मिथक मुस्लिमों के बहुसंख्यक होने का - संजय पराते
वर्ष 2011 में धार्मिक समुदायों की जनगणना के आंकड़े सामने हैं. इस देश में हिन्दू आज भी सबसे बड़ा धार्मिक समुदाय है, जिसकी आबादी पिछले एक दशक में 13.87 करोड़ बढ़ी है, लेकिन देश की कुल जनसंख्या में उसकी प्रतिशत आबादी में 0.7 प्रतिशत की कमी हुई है. दूसरा सबसे बड़ा समुदाय मुस्लिम है, जिसकी आबादी भी बढ़ी है -- एक दशक में 3.4 करोड़ और उसकी प्रतिशत आबादी भी बढ़ी है 0.8 प्रतिशत. यह हकीकत है. इस वास्तविकता का उपयोग संघी गिरोह अपने उस मिथक को स्थापित करने के लिए कर रहा है, जिससे 'हिन्दू राष्ट्र' निर्माण का उसका लक्ष्य आसान हो. वह मिथक है, निकट भविष्य में मुस्लिम बहुसंख्यक हो जायेंगे और हिन्दू अल्पसंख्यक. इसलिए हे हिन्दुओं ! जागो, अपनी जनसंख्या को बढाओ. घर में भले ही खाने के लिए दाने न हो, लेकिन धर्म को बचाओ और धर्म तभी बचेगा, जब तुम्हारी आबादी बढ़ेगी. लेकिन केवल आबादी बढाने से ही काम नहीं चलेगा, साथ ही मुस्लिमों की आबादी भी कम करनी होगी, उनके धर्म को नष्ट भी करना होगा. इसलिए हे हिन्दुओं, अपना सबसे बड़ा दुश्मन मुस्लिमों को मानो, उन्हें ख़त्म करने के लिए दंगे-फसाद-नफ़रत का ब्रह्मास्त्र चलाओ और इसके बावजूद जो बच रहे, उन्हें पाकिस्तान की राह दिखाओ.
तो ये धार्मिक असहिष्णुता का अल्पसंख्यक मुस्लिमों के खिलाफ इतना बड़ा वातावरण जो देख रहे हैं न आप, उसकी जड़ों में संघी गिरोह की यही 'बीमार ग्रंथि' है. जो भी आम या ख़ास नागरिक इस बीमारी पर चोट करेंगे, वे इस गिरोह के ख़ास निशाने पर होंगे. वे मारे जायेंगे केवल इस अपराध में कि वे इस देश की बहुलतावादी संस्कृति एवं धर्म-निरपेक्षता की रक्षा के लिए संघी गिरोह की सोच के खिलाफ तनकर खड़े हैं. ऐसे लोगों को वामपंथी कहकर गरियाया जायेगा और खुले-आम सर कलम करने की धमकियां दी जायेंगी. अपनी नस्लवादी सोच के समर्थन में वे ललकार कर कहेंगे -- जरा ऐसी बात पाकिस्तान, ईरान या इराक में कहकर देखें, तुम्हारा क्या हाल होता है !! सन्देश स्पष्ट है. हम भी पाकिस्तान, ईरान और इराक बनने की लाईन में खड़े हैं, आईये इस पुण्य काम में हाथ बंटाएं. संघियों के इस मिथक को तोडना जरूरी है.
भारत के ज्ञात इतिहास में एक धार्मिक समुदाय के रूप में हिन्दू हमेशा ही बहुसंख्यक रहे हैं. संघी गिरोह जिस जिस मुस्लिम शासन को 'अत्याचारी राज्य' के रूप में पेश करता है, वह भी हिन्दुओं को अल्पसंख्यक नहीं बना पाया. अंग्रेजों के राज में भी आबादी के गठन का यह स्वरुप बरकरार रहा. पिछली तीन बार के जनगणना के आंकड़ों पर गौर करें :
धर्म...कुल जनसंख्या में प्रतिशत...कुल जनसंख्या (करोड़)...दशकवार वृद्धि %
...... .1991....2001....2011....2001....2011...1981-91...91-2001...01-11
हिन्दू. ..81.5.....80.5... 79.8.... 82.76.... 96.63... 22.7..... 19.9..... 16.8
मुस्लिम 12.6....13.4.... 14.2.....13.82.... 17.22....32.9..... 29.3..... 24.6.
...... .1991....2001....2011....2001....2011...1981-91...91-2001...01-11
हिन्दू. ..81.5.....80.5... 79.8.... 82.76.... 96.63... 22.7..... 19.9..... 16.8
मुस्लिम 12.6....13.4.... 14.2.....13.82.... 17.22....32.9..... 29.3..... 24.6.
इन आंकड़ों से निम्न बातें स्वतः स्पष्ट है :
1. हिन्दू और मुस्लिम दोनों धार्मिक समुदायों की आबादी में वृद्धि हुई है. आज भी हिन्दुओं की आबादी मुस्लिमों की तुलना में 5.6 गुना से ज्यादा है.
2. पिछले दो दशकों में हिन्दुओं की आबादी की वृद्धि दर में 5.9% की गिरावट आई है, तो मुस्लिमों की वृद्धि दर में गिरावट इससे भी ज्यादा तेज है -- 8.3% की.
1. हिन्दू और मुस्लिम दोनों धार्मिक समुदायों की आबादी में वृद्धि हुई है. आज भी हिन्दुओं की आबादी मुस्लिमों की तुलना में 5.6 गुना से ज्यादा है.
2. पिछले दो दशकों में हिन्दुओं की आबादी की वृद्धि दर में 5.9% की गिरावट आई है, तो मुस्लिमों की वृद्धि दर में गिरावट इससे भी ज्यादा तेज है -- 8.3% की.
इन आंकड़ों के मद्देनजर पहला सवाल तो यही हो सकता है कि यदि हिन्दुओं में दशकीय जनसंख्या वृद्धि दर 16.8% तथा मुस्लिमों में 24.6% बनी रहे, तो कितने सालों बाद दोनों धार्मिक समुदायों की आबादी बराबर होगी? गणित का चक्रवृद्धि सूत्र बताता है कि इसमें कम-से-कम 300 साल लग जायेंगे. 300 साल बाद इस देश में हिन्दुओं की आबादी 102 अरब होगी, तो मुस्लिमों की भी. लेकिन इस पृथ्वी में 204 अरब लोगों के रहने की जगह है? ...और दूसरे देशों के बाकी लोग कहां जायेंगे?? निश्चित ही, जनसंख्या संतुलन का प्राकृतिक सिद्धांत इसकी इज़ाज़त नहीं देता. संघी मिथक वास्तविकता से बहुत-बहुत दूर है.
लेकिन जनसंख्या की वृद्धि दर स्थिर नहीं है. दोनों धार्मिक समुदायों में यह गिरावट जारी है और हिन्दुओं की तुलना में मुस्लिमों में तेज गिरावट जारी है. तो दूसरा सवाल यही हो सकता है कि दोनों समुदायों की जनसंख्या वृद्धि दर कितने सालों बाद शून्य पर आ जाएगी? एक मोटा गणितीय विश्लेषण यही बताता है कि आज से लगभग 60 सालों बाद याने वर्ष 1971 की जनगणना तक दोनों समुदायों की जनसंख्या वृद्धि दर लगभग शून्य होकर जनसंख्या स्थिर हो जाएगी. 'प्यू रिसर्च' की रिपोर्ट के अनुसार तो वास्तव में ऐसा वर्ष 2050 तक ही हो जायेगा.
इससे तीसरा सवाल पैदा होता है, तब दोनों समुदायों की अनुमानित आबादी क्या होगी? वर्ष 2011 की जनसंख्या वृद्धि दर को स्थिर मानें, तो वर्ष 2051 में हिन्दुओं की आबादी 180 करोड़, तो मुस्लिमों की 41 करोड़ होगी. वर्ष 2071 में हिन्दुओं की अनुमानित आबादी 245 करोड़ होगी, तो मुस्लिमों की 65 करोड़ तक ही पहुंचेगी. आज हिन्दू और मुस्लिमों की आबादी में 79.41 करोड़ का अंतर है, तो वर्ष 2071 तक बढ़कर वह 180 करोड़ हो जायेगा.
इसका अर्थ है कि हिन्दू और मुस्लिम दोनों की आबादी बढ़ सकती है, उनकी आबादियों की कुल जनसंख्या में प्रतिशत हिस्सेदारी भी बदल सकती है, लेकिन किसी भी स्थिति में हिन्दू धार्मिक आबादी के 'बहुसंख्यक' होने का चरित्र नहीं बदला जा सकता. इसलिए इस संघी मिथक का कि चूंकि मुस्लिम आबादी की वृद्धि दर हिन्दुओं से ज्यादा है, इसलिए हिन्दू अल्पसंख्यक होने वाले है, का वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं है.
संघी गिरोह भी यह जानता है, लेकिन अपने मिथक को इसलिए प्रचारित करता रहता है कि उसका मूल उद्देश्य 'हिन्दू राष्ट्र' की स्थापना करना है. इसके लिए एक काल्पनिक दुश्मन की हमेशा जरूरत रहती है, जिसके खिलाफ वह हिन्दुओं को भड़काते रह सके. वह इस काल्पनिक दुश्मन को सब वास्तविक समस्याओं की जड़ और हिन्दुओं की बदहाली का कारण बताता है, ताकि देश को सांप्रदायिक आधार पर बांटा जा सके और इसकी गंगा-जमुनी तहजीब और बहुलतावादी परंपराओं को नष्ट किया जा सके. संघी गिरोह के लिए मुस्लिमों को ऐसे दुश्मन के रूप में स्थापित करना बहुत आसान है. इसलिए आज वह उनके खान-पान, रहन-सहन, विचार श्रृंखला सबको निशाना बना रहा है. चाहे बाबरी मस्जिद का विध्वंस हो या गुजरात के दंगे, चाहे दाभोलकर-पानसरे-कलबुर्गी की हत्या हो या इखलाक की और असहिष्णुता की इन घटनाओं के खिलाफ देश में खड़े हो रहे 'प्रतिरोध' आंदोलन को निशाना बनाना -- ये सब उसके 'हिन्दू राष्ट्र' के निर्माण के सजग प्रयास हैं. वह एक ऐसी मानसिकता तैयार करना चाहता है, जो तर्क की जगह आस्था को, संवाद की जगह विवाद को, सहिष्णुता की जगह हिंसा और अतार्किक बहुसंख्यकवादी गोलबंदी को बढ़ावा दे.
जनगणना के आंकड़ों को भारतीय नागरिकों की समूची जनसंख्या में बढ़ोतरी से पेश चुनौती के रूप में देखने के बजाये वह उसे धार्मिक समुदायों के आंकड़ों के सांप्रदायीकरण में इस्तेमाल करता है. वह यह सिद्ध करने में जुट जाता है कि फलां-फलां जगह हिन्दू बहुमत में थे, आज अल्पमत में हो गए. वह इसके सामाजिक-आर्थिक राजनैतिक कारणों को भी देखने से इनकार कर देता है. तब इस खेल में उसके लिए मुस्लिम गैर-राष्ट्रवादी और पाकिस्तानी होते हैं. हालांकि इस गिरोह का भारत से भी कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि भारत को तो वह पाकिस्तान की तर्ज़ पर 'हिंदुस्थान' में बदलने पर आमादा है.
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