Saturday, November 21, 2015

बस्तर के गढ़बासला में पुनर्जीवित हो रही है हड़प्पाकालीन आभूषणकला

बस्तर के गढ़बासला में पुनर्जीवित हो रही है हड़प्पाकालीन आभूषणकला

खिलेश्वरी बघेल  लोककलाकार 
उत्तरबस्तर के ग्राम गढ़बासला में बेरोज़गार लड़कियों द्वारा बनाये गये हड़प्पाशैली की स्मृति दिलाते ख़ूबसूरत और मनमोहक आभूषणों को देखकर आप उन्हें ख़रीदने के लिये लालायित हुये बिना नहीं रह सकते । हैरत तब और बढ़ जाती है जब यह बताया जाता है कि ये आभूषण मिट्टी से बनाये गये हैं । गढ़बासला गाँव की चार लड़कियाँ मिट्टी के ख़ूबसूरत आभूषण बनाकर हड़प्पाकालीन आभूषण शैली को पुनर्जीवित करने में लगी हुयी हैं । खिलेश्वरी बघेल बारहवीं तक पढ़ी है जबकि कला नायक पाँचवी तक । गाँव की इन भोली–भाली लड़कियों को मार्केटिंग के बारे में कोई जानकारी नहीं है । पिछले चार माह से हड़प्पाकालीन आभूषणशैली को पुनर्जीवित करने में साधनारत इन कलाकार लड़कियों से जब यह पूछा गया कि उन्हें इस कार्य से महीने में कितनी आय हो जाती है तो बेहद शर्मीली कला नायक तो कुछ नहीं बोली लेकिन खिलेश्वरी बघेल ने धीरे से मुस्कराकर सिर्फ़ इतना बताया कि अभी तक तो कुछ भी नहीं बिका ।

प्राचीन कलाओं को संरक्षित करने के प्रयासों के लिये दीवानगी की हद तक समर्पित अंचल के काष्ठशिल्पी अजय मण्डावी के सहयोग से ये लड़कियाँ कलासाधना में लगी हुयी हैं । अजय ने बताया कि आभूषण बनाने के लिये ख़ूब चिकनी मिट्टी को बड़े परिश्रम से तैयार किया जाता है । मिट्टी को आकार देने के बाद उन्हें चटक कर टूटने से बचाने के लिये छाया में सुखाया जाता है और फिर मज़बूती लाने के लिये आवे की आँच में पकाया जाता है जिन पर बाद में एक्रीलिक रंगों से पालिश की जाती है ।
बस्तर के गाँवों में प्रतिभाओं और कलासाधकों की कमी नहीं है, कमी है तो सिर्फ़ उन्हें प्रोत्साहित करने और उनके उत्पादों को मार्केट तक पहुँचाने की । मृत्तिकाकला के प्रचार और अपने उत्पादों को बेचने के लिये बस्तर दशहरा मेले में ये लड़कियाँ हड़प्पाशैली में बनाये गये मिट्टी के इन आभूषणों की एक प्रदर्शिनी लगाना चाहती हैं किंतु उनके पास इतने पैसे नहीं हैं कि वे मेला में लगाये जाने वाले स्टाल के लिये किराया तक चुका सकें ।http://ghotul.blogspot.in/2015/11/blog-post_65.html

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