शाहरुख, हम आपके लायक नहीं -बरखा दत्त
- बरखा दत्त
Nov 19, 2015, 04:58 AM IST
प्रिय शाहरुख,
मुझे जरा भी बुरा नहीं लगेगा यदि आप मुझे आगे कभी इंटरव्यू न देने का फैसला कर लें। यह दूसरी या तीसरी बार है, जब मेरे प्रश्नों के जवाब में आपके विचारों की ईमानदारी और निश्चय की स्पष्टता ने आपको बेतुके और शर्मनाक विवाद में फंसा दिया। वे प्रश्न जिनका काजोल, करण जौहर या ‘लुंगी डांस’ से कुछ संबंध नहीं था। कुछ दक्षिणपंथी विचारकों ने मुझसे पूछा कि मैंने आपसे ऐसा कुछ क्यों पूछा। उनका निहितार्थ यह था कि रचनात्मक स्वतंत्रता व सहिष्णुता पर चर्चा करके और सबसे बढ़कर उग्र राष्ट्रवादियों की ओर से भारतीय मुस्लिम के रूप में आपको जिस परीक्षा से गुजरना पड़ा- उससे मैंने अपनी विकृत और सांप्रदायिक सोच उजागर कर दी है।
मैंने इन बयानों के विषैले चरित्र के अनदेखी की और उन्हें याद दिलाया कि आपके ऐसे शब्दों का इतिहास रहा है, जब आपने मुझे कहा था कि अपनी देशभक्ति को साबित करना अापकी जिंदगी का ‘सबसे अपमानजनक अौर दिल दुखाने वाला’ अनुुभव है। बात 2010 की है जब हम इंटरव्यू के लिए मिले थे, जैसेकि इस बार मिले थे। इतने बरसों में हमारी बातचीत इतनी सहज हो गई है कि वह गहरे भावनात्मक क्षेत्र में प्रवेश कर जाती है। आपने मुझसे इतनी स्पष्टता से बात की कि मैं निरस्त्र रह गई। आप जो कि भारत के सबसे चहेते सितारे हैं, लेकिन आपने मुझसे कहा कि अापका कोई दोस्त नहीं है। आपने खुले दिल से बताया कि आप कितना ‘अकेलापन’ महसूस करते हैं। केवल आपकी बेटी ही आपको समझती है।
टेलीविजन पर आपने पूरी शिद्दत से अचरज प्रकट किया कि कहीं यह आपकी नाकामी तो नहीं है कि आपकी मित्रता टिकती नहीं। कई अवसरों पर आप तटस्थता से खुद को देखने के इच्छुक रहे हैं, खुद पर मजाक किया है बिना उस दिखावे और खुद को महत्वपूर्ण बताने के प्रयासों के, जो आपकी बिरादरी की खासियत रही है। आप खुद पर हंसे हैं और इससे मुझे भी हंसाया है। आप हमेशा मीडिया के सवालों से सीधे टकराते रहे हैं और वह भी खुद को विनम्रता से पेश करने के साथ। फिर चाहे एक-दो प्रश्न ऐसे भी होते, जो निजता में अनुचित प्रवेश करने वाले और फूहड़ भी होते और आपको बुरी तरह उत्तेजित कर देते है। जैसे एक बार किसी रिपोर्टर ने पूछा कि क्या आप समलैंगिक हैं और आपने हंसकर कहा, ‘कभी मेरे साथ एक रात गुजारो।’
लेकिन जब पांच साल पहले हम मुंबई में मिले तो आप गुस्सा थे, क्योंकि अब की तरह तब भी नफरत फैलाने वाली विक्षिप्त ब्रिगेड आपको पाकिस्तान भेजना चाहती थी (मैं तो कहूंगी, वे सौभाग्यशाली होंगे)। तब आपसे माफी मांगने को कहा गया था, क्योंकि आपने कहा था कि पाकिस्तानियों को इंडियन प्रीमियर लीग में खेलने दिया जाए। और आपने दृढ़ता के साथ इनकार कर दिया था। आपकी फिल्म ‘माई नेम इज खान’ प्रदर्शित होने ही वाली थी, शिवसेना यह फिल्म दिखाने वाले सिनेमाघरों को निशाना बना रही थी। वे चाहते थे कि फिल्म प्रदर्शित किए जाने से आप उनसे माफी मांगें। आप अपनी राय पर डटे रहे। आपने मुझसे कहा, ‘मैं कहता रहा हूं कि हमारी तीन पहचान हैं; जिस धर्म में हम जन्म लेते हैं उस धर्म की पारिवारिक पहचान। इस तरह आप मुस्लिम, हिंदू या सिख होते हैं। आपको इस पर भरोसा करना होता है, क्योंकि यही आपको सिखाया जाता है।’ फिर आप जहां रहते हैं और काम करते हैं या पैदा हुए हैं और काम करते हैं- यह आपकी क्षेत्रीय पहचान है। लेकिन यह सब आपकी राष्ट्रीय पहचान के गौण अंग हैं। कब गौण अंग, प्रमुख पहचान से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गए?’ दो साल बाद आप मंुबई के वानखेड़े स्टेडियम पर हाथापाई में उलझ गए- आपने बाद में इस पर खेद जताया और कहा कि आपसे गलती हो गई- लेकिन मुझे अब भी याद है कि अापने मुझे बताया था कि अधिकारी ने सांप्रदायिक अपशब्द कहे थे, ऐसी गाली जिसमें फिर आपको, अापके धर्म की वजह से निशाना बनाया गया। और अब 2015 में फिर वही सब, जिसमें आपने मेरे इंटरव्यू में कहा, ‘उन सबको, जो मुझे पाकिस्तान जाने को कह रहे हैं, मैं कहना चाहता हूं कि यही मेरा देश है, मैं कहीं नहीं जा रहा हूं। इसलिए बकवास बंद करें।’
लेकिन वे चुप नहीं हुए, हुए क्या? जब आपने कहा, ‘हमारा धर्म हमारे मांस खाने की आदतों से परिभाषित नहीं होता और न सम्मान प्रकट करता है। यह कितना मूर्खतापूर्ण है।’ मुझे तब लगा कि कूदकर तालियां बजाने लगूं। आपने अपने बेबाक अंदाज में बीफ पॉलिटिक्स की बेतुकी, लेकिन खतरनाक बहस पर विराम लगा दिया, जिसने भारत में पिछले कुछ माह से कहर बरपा रखा था। आपने स्पष्टता से हर चीज पर राय जाहिर की। पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट में संघर्ष (आपने छात्रों का समर्थन किया) से लेकर सम्मान लौटाने वालों (हालांकि, आप विरोध के इस तरीके के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन आपने उन्हें साहसी माना) तक। 2010 में शिवसेना की धमकी के बावजूद आपने फिर दोहराया कि पाकिस्तान के कलाकारों व रचनाशील लोगों को हमारी फिल्मों में जगह दी जानी चाहिए।
आप अपनी बिरादरी में अपने जैसे दर्जे के लोगों में प्रथम हैं। हालांकि, बड़े और ग्लैमर वाले सितारों में से किसी अन्य (कुछ उल्लेखनीय अपवाद छोड़कर) ने बोलने की इच्छा नहीं दिखाई है- आप विनम्रतापूर्वक इसे संयम कह सकते हैं, लेकिन यदि आप दो टूक कहें तो आप जो शब्द इस्तेमाल करेंगे वह होगा- कायरता, लेकिन आपने अलग रुख अपनाया। सबसे पीड़ादायक तो यह है कि अब आप से कहा जा रहा है कि ‘खान’ इतने लोकप्रिय हो सकते हैं, यह देश की धर्मनिरपेक्षता का सबूत है। आपको इस बकवास की अपेक्षा थी, इसीलिए आपने कटुता से कहा, ‘खान शाइनिंग इज नॉट इंडिया शाइनिंग।’ गहराई में उतरें तो निहितार्थ यह है कि आपको ऐसे देश का एहसानमंद होना चाहिए जहां इतने हिंदू, मुस्लिम स्टार के फैन हैं। यह ध्यान दिलाने का काम आप पर छोड़ दिया गया कि ‘बॉलीवुड के तीन खान’ की सांकेतिकता धर्मनिरपेक्षता की एंटी-थीसिस है।
काश मैं नफरत फैलाने वाली ब्रिगेड की अनदेखी कर सकती! किंतु जब पार्टी महासचिव और लंबे समय तक सांसद रहे व्यक्ति उन लोगों में शामिल हैं, जो आपसे पाकिस्तान जाने को कह रहे हैं और जब अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री अापको अपना भाई बताती हैं, लेकिन उनके जहरीले बयानों के लिए माफी मांगती हैं, तो मैं इतना ही कह सकती हूं- आपके इंटरव्यू में कहा हर शब्द अब और भी कीमती हो गया है। आप शाहरुख, आपके स्क्रीन अवतार राज या राहुल नहीं, असली शाहरुख मेरे हीरो हैं। यह शर्मनाक है, लेकिन मुझे स्वीकार करना होगा- हम आपके लायक नहीं हैं।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
बरखा दत्त
वरिष्ठ पत्रकार और एनडीटीवी की कंसल्टिंग एडिटर
barkha@ndtv.com
No comments:
Post a Comment