बारूद के ढेर पर बैठी दुनिया
[देशबन्धु ]
19, NOV, 2015, THURSDAY 11:12:34 PM
पेरिस पर हमले के बाद आईएस के खिलाफ जिस तरह का माहौल पश्चिमी देशों में बन रहा है, उससे 11 सितंबर को अमरीका पर हुए हमलों के बाद बने माहौल का स्मरण हो आया। तब तत्कालीन अमरीका ने अलकायदा के खिलाफ एक तरह से युद्ध ही छेड़ दिया था। अफगानिस्तान में किस तरह नाटो की सेना कार्रïवाई करती रही, वहां की सरकार किस तरह अमरीका के इशारों पर चलती रही, ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान में कैसे मारा गया, यह दोहराने की आवश्यकता नहींहै। जाके पैर न फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई, वाली उक्ति अमरीका और अन्य पश्चिमी मुल्कों के संदर्भ में बिल्कुल कारगर बैठती है। मध्य एशिया, दक्षिणपूर्वी एशिया, अफ्रीका आदि के कई देश न जाने कब से आतंकवाद, चरमपंथ, गृहयुद्ध, उग्रवाद की आग में झुलस रहे हैं, और इस आग को इन्हीं देशों के संसाधनों से भड़काने में कई पश्चिमी देश लगे रहे। अब यह तपिश पश्चिमी देशों में पहुंच रही है तो मलहम लगाने का ख्याल आ रहा है। अमरीका ने अपने ऊपर हुए हमले का बदला ले लिया, अब फ्रांस ने आईएस के खिलाफ युद्ध घोषित कर दिया है और सीरिया पर आईएस के कथित ठिकानों पर रोजाना बम गिराए जा रहे हैं। आईएस ने पेरिस पर हमले के बाद अमरीका समेत कुछ और देशों पर हमले की धमकी दी है, जिससे दुनिया में दहशत का बढऩा स्वाभाविक है। इधर रूस ने भी मेट्रोजेट विमान को बम से उड़ाए जाने की खबर की पुष्टि के बाद यह ऐलान किया है कि वह दोषियों को ढूंढ निकालेगा, चाहे वह दुनिया के किसी भी कोने में छिपे हों। सीरिया में वह आईएस पर पहले से कार्रïवाई कर रहा था, जिसमें अमरीका, फ्रांस, ब्रिटेन उसका साथ नहींदे रहे थे, बल्कि आरोप लगा रहे थे कि वह असद सरकार के विरोधियों को निशाना बना रहा है। पर अब फ्रांस और रूस ने मिलकर लडऩे का निश्चय किया है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यह पहला मौका है, जब रूस और फ्रांस ने एक साथ होकर लडऩे का फैसला किया है।
वक्त का तकाजा भी यही है।
जी 20 की बैठक में भी इस बात पर जोर दिया गया कि आईएस के खिलाफ एकजुट होकर कार्रवाई की जाए। रूस और फ्रांस तो साथ आ गए, लेकिन अभी अमरीका, ब्रिटेन आदि देशों की ओर से ऐसा कोई आश्वासन नहींआया है कि वे हर तरह से साथ देंगे। आईएस जैसे आतंकी संगठन को कुछ देशों से मदद मिल रही है, यह तथ्य अब अंतरराष्ट्रीय मंच से भी दोहराया गया है, जाहिर है इस स्थिति में सभी देशों की एकजुटता व्यावहारिक रूप से असंभव नहींतो, आसान भी नहीं दिखती। वैश्विक समीकरणों में आर्थिक कारक सबसे ज्यादा प्रभाव रखते हैं, ऐसे में क्या यह मुमकिन है कि अपने आर्थिक नफा-नुकसान की परवाह किए बगैर आईएस के खिलाफ वैश्विक शक्तियां एकजुट होंगी? और यह भी याद रखना चाहिए कि आईएस इस दुनिया में अकेला आतंकी संगठन नहींहै। अफ्रीका में बोको हराम का कैसा कहर है, सब जानते हैं। आज ही नाइजीरिया में बोको हराम ने फिर आतंक का खूनी खेल खेला है। इधर पाकिस्तान, अफगानिस्तान में लश्करे तैयबा, अलकायदा आदि की हिंसा का प्रसार हो रहा है। आतंक के कई चलते-फिरते कारखानों के कारण दुनिया बारूद के ढेर पर बैठी है। इसलिए केवल आईएस के खिलाफ कुछ दिनों या महीनों की कड़ी कार्रवाई से शांति स्थापित नहींहोगी। इसके लिए समग्रता में विचार और उपाय करना होगा। पहले विश्वयुद्ध के बाद गठित राष्ट्रसंघ अपनी जिम्मेदारी में सफल नहींरहा तो दुनिया ने द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका देखी। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन हुआ। दुनिया में तृतीय विश्वयुद्ध घोषित तौर पर प्रारंभ नहींहुआ है, लेकिन जो हालात बने हैं, वे मानवता के लिए किसी युद्ध से कम खतरनाक नहींहैं। संयुक्त राष्ट्रसंघ अब अगर अपनी जिम्मेदारी का सफल निर्वहन नहींकर सका तो दुनिया किस भयावह स्थिति में पहुंचेगी, इसकी कल्पना से ही डर लगता है।
No comments:
Post a Comment