Tuesday, November 24, 2015

महिलाएं क्रांति करें और नाम हो 'नाजन्म' --तसलीमा नसरीन

महिलाएं क्रांति करें और नाम हो 'नाजन्म'

  • 22 मिनट पहले
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सुना है महाराष्ट्र में अनचाही बच्चियों को 'नकुशा' कहकर बुलाते हैं. अनचाही तो लड़कियां ही होती हैं. अनचाहा होने की वजह से गर्भ में ही उनकी हत्या कर दी जाती है.
जन्म के बाद भी उन्हें ज़मीन में दफ़न कर दिया जाता है. लड़कियों को जिंदा दफ़न करने की संस्कृति तो बहुत पुरानी है.
महाराष्ट्र सरकार ने इन लड़कियों के लिए एक आंदोलन शुरू किया है. इसके तहत व्यवस्था की जाएगी कि इन बच्चियों को 'नकुशा' न कहकर किसी दूसरे वास्तविक नाम से पुकारा जाए.
पर क्या हज़ारों साल की परंपरा को इस तरह जबरन बदलना मुमिकन है? क़ानून बनाकर 'नकुशा' को किसी दूसरे नाम से पुकारने का इंतज़ाम कर भी दिया जाए, तो क्या जिन कारणों से अनचाही बच्चियां होती हैं, उन्हें बदलने की कोई व्यवस्था हो रही है?

तसलीमा नसरीन

समाज और परिवार में लड़कियों को जिस भूमिका के लिए मजबूर किया जाता है, वह पूरे नारी समाज को ही अनचाहा बनाए रखने का सबसे बड़ा कारण है. लड़कियों को यौन सामग्री, संतान पैदा करने की मशीन और पुरुषों की दासी माना जाता है.
लड़कियां अब भी पतियों की निजी जायदाद हैं. इस वजह से समाज का हर आदमी यह ध्यान रखता है कि लड़की कहां गई, किसके साथ गई, किसके साथ सोई, उसने क्या पहना, क्या खाया, क्या पिया.
सिर्फ़ ध्यान ही नहीं रखा जाता, उस पर फ़ैसला किया जाता है, उसे उपदेश दिया जाता है और उसे दंड देने की व्यवस्था की जाती है.
लड़कियां परिवार, समाज, राजनीति-सब जगह अनचाही हैं. लड़कियां नारी विरोधी और मर्दवादी समाज में हर पल जोखिम उठाती हैं. उन्हें यौन हिंसा का शिकार तो जन्म के बाद से ही होना पड़ता है.

फ़ाइल फोटोImage copyrightGetty

आजकल तो राह चलती लड़कियों का अपहरण कर उनके साथ सामूहिक बलात्कार कर दिया जाता है. उनके लिए बस, ट्रेन, स्कूल, कॉलेज, ऑफ़िस, अदालत-कोई जगह सुरक्षित नहीं.
इन्हें शादी के वक़्त दहेज देना होता है, फिर भी वे सुरक्षित नहीं हैं. पति को और ज़्यादा दहेज चाहिए, इसलिए उन पर शारीरिक और मानसिक अत्याचार होता रहता है. औरतों को जलाकर मार दिया जाता है.
लड़कियों का जीवन जन्म के ठीक बाद से ही कठिनाई भरा होता है. कौन मां अपनी बेटी को जान-बूझकर इस यंत्रणा भरी दुनिया में लाना चाहेगी?
कई औरतें अपनी बेटियों को भ्रूण में ही मार देती हैं. हर लड़की को गर्भपात का अधिकार है. यदि उसे लगता है कि यह पृथ्वी, यह देश, यह समाज लड़कियों के रहने लायक नहीं है तो वे गर्भपात करवा सकती हैं. लड़कियों को गर्भपात कराने का हक़ छीनना मानवाधिकार का उल्लंघन है.

Image copyrightEPA

समाज में जो अनचाहों को जन्म देना नहीं चाहते, उन्हें पुरुषों के हाथों अपमानित, उपेक्षित और उनके शोषण का शिकार नहीं बनाना चाहते, उनके ऐसा नहीं चाहने की वजह साफ़ है. उनकी ऐसे अनचाहे बच्चों को जन्म नहीं देने की इच्छा के पीछे तर्क है.
उनके ऊपर लिंगानुपात ठीक करने का बोझ डालना ठीक नहीं.
इस समाज में यदि पुरुष अनचाहे होते, पुरुष होने की वजह से उनका शोषण होता, उन पर अत्याचार होता तो औरतें लड़कों को जन्म देने का विरोध करतीं.
मुझे नहीं लगता कि जिस समाज में पढ़ी-लिखी लड़कियां भी नारी विरोधी काम करती हैं, उस समाज में औरतों को जल्द ही समान अधिकार मिल जाएगा. आज औरतें करवा चौथ और 'सिंदूर खेला' जैसे तरह-तरह के पुरुष सत्तात्मक उत्सव में भाग लेती हैं.
स्त्रियां पतियों की लंबी उम्र के लिए व्रत करती हैं, उनके मंगल के लिए मंगलसूत्र पहनती हैं, सिंदूर लगाती हैं और शंख की चूड़ियां पहनती हैं. पुरुषों को औरतों के लिए कोई व्रत-उपवास नहीं करना पड़ता.


पत्नी के मरने पर पति को नई औरत मिलेगी, नई औरत के साथ और पैसा मिलेगा. इसमें अपवाद भी हैं. अभागे लोगों की गाय मरती है, भाग्यवानों की पत्नी. सती प्रथा क़ानूनी तौर पर ख़त्म हो चुकी है, पर दूसरे रूपों में आज भी मौजूद है.
लगभग हर देश में औरतें दूसरे दर्जे की नागरिक हैं. स्त्रियां कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं. पुरुषों पर भी अत्याचार होता है, पर वह पुरुष होने की वजह से नहीं होता.
इन सच्चाइयों की वजह से औरतें और औरतों को जन्म देना नहीं चाहतीं. स्त्रियों पर अत्याचार उनके स्त्री होने की वजह से होता है. वे ख़ुद औरत होने का दर्द भुगत रही हैं, लिहाज़ा, और औरतों को जन्म नहीं देना चाहतीं. यदि मैं किसी बच्चे को जन्म देती, तो बेटी को जन्म देने से पहले दो बार सोचती.
हां, मैं नारीवादी होते हुए भी नहीं चाहती कि नारी विरोधी समाज में अपनी बेटी को रोज़ाना बलात्कार, यौन हिंसा, घरेलू हिंसा का शिकार होते हुए देखूं.

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लड़कियां पैदा करने का दवाब औरतों पर नहीं डाला जाना चाहिए. इसके बजाय पुरुष सत्तात्मक समाज की जगह मानवतावादी या समानता पर आधारित समाज का निर्माण किया जाना चाहिए.
स्कूलों में महिलाओं को समान अधिकार देने का पाठ्यक्रम ज़रूरी कर देना चाहिए. हर बच्चा यह देखे कि पुरुष-स्त्री के अधिकार समान हैं. बच्चे यह महसूस करें कि माता-पिता मालिक-ग़ुलाम की हैसियत में नहीं हैं. वे समान मनुष्य, संगी और साथी की हैसियत से रहें.

Image copyrightcourtesy presidents media

मेरा तो मानना है कि इस नारी विरोधी समाज में औरतों को बच्चे जन्म देना ही बंद कर देना चाहिए. लड़कों को जन्म देने का मतलब है भविष्य के अत्याचारी को जन्म देना. लड़की को जन्म देने का अर्थ है भविष्य में शोषण की शिकार को जन्म देना.
नारी विरोध समाज में महिलाओं को क्रांति करनी चाहिए. इस क्रांति का नाम हो 'नाजन्म.'
(ये लेखिका के निजी विचार हैं.)
(बीबीसी हिन्दी

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