थोड़ी देर के लिये मुस्लिम होके सोचिये ...
मेरे एक मित्र रियल स्टेट में काम करते है वे कल बता रहे थे की आजकल लोग जो फ़्लैट खरीदने आते है उनकी मांग होती है की हमारे बिल्डिंग में कोई मुसलमान नही होना चाहिये , इसी लिए ज्यादातर बिल्डर अपने फ़्लैट बेचते समय ध्यान रखते है की उनमे ग्राहक कोई मुस्लिम न हो .
ये सब यदि इनटोलरेंस नही है तो क्या है।
ये सब यदि इनटोलरेंस नही है तो क्या है।
आप थोड़ी देर के लिए अपने आप को मुस्लिम होके सोचने पे एहसास होगा की देश में क्या हालत बन गये है .
ये सही है की यह सब रातो रात नही हो गया है , ये ज़हर 1925 से भरने का काम संघ कर रहा है ,आज वे सत्ता में है तो उनके इस घ्रणित कार्य को सरकारी सरंझण और और शह मिल रही है .
ये सब पहले भी होता था इसमें कोई शक नही है लेकिन इसके पहले कभी ऐसे काम का इतनी बेशर्मी से किसी सरकार ने शह नही दिया ,जो आज हो रहा है ।
मुझे तो लगता है की संघ का एजेंडा देश को 1946 -47 की स्थिती में खड़ा करना है,जब संघ की शक्ति निर्णायक न होने के कारण भारत पाकिस्तान की तरह धर्मिक देश नही बन पाया , अब उस एजेंडे को पूरा करने का वक्त आया लगता है ।
नेहरु गाँधी की सतत आलोचना और सरदार पटेल की स्थापना की राजनीति यही कहती है ,पटेल इन्हें इसीलिए माफिक बैठते है .
संघ अपने एजेंडे पर कुछ जल्दबाजी में काम कर रहा है वो चाहता है की मोदी की कलई उतरने के पहले वो कही पहुच सके .उसे मालूम है कि विकास का हल्ला ज्यादा चलने वाला नही है , क्यों की ये तो अन्तराष्ट्रीय परिघटना है जिसपे मोदी का कोई बस नही है .पिछले चुनाव परिणाम भी उनके लिये अलार्मिंग ही है . बिहार के परिणाम के बाद और स्थिति ख़राब हो जाएगी क्यों कि आगे पंजाब बंगाल और यू पी के चुनाव में बहुत कुछ ज्यादा सम्भावना नही दिखती
मोदी को मिला बड़ा बहुमत इस बात की कोई गारंटी नही है की ये सरकार अपने पांच साल पुरे ही कर पायेगी ही , सिर्फ याद के लिए की राजीव गाँधी आम चुनाव में 400 से ज्यादा सीट लेके आये थे लेकिन वो पांच साल पुरे नही कर पाए थे .
(लाखन सिंह)
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