Saturday, November 14, 2015

इप्टाः कुछ बस्तियां यहां थीं बताओ किधर गईं

इप्टाः कुछ बस्तियां यहां थीं बताओ किधर गईं

  • 4 घंटे पहले
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बंगाल का अकालImage copyrightGetty
कुछ बस्तियां यहां थीं बताओ किधर गयीं.
क़द्र अब तक तिरी तारीख़ ने जानी ही नहीं.
1943. बंगाल का अकाल. अनाज की कमी नहीं लेकिन लोगों को मिला नहीं. तीस लाख लोग भूख से मारे गए लेकिन अंग्रेज़ सरकार के कान पर जूं तक ना रेंगी.
जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल से मदद मांगी गई कि बंगाल में लोग भूखे मर रहे हैं तो उन्होंने जबाब भेजा-अच्छा, तो गांधी अब तक क्यों नहीं मरे!
उधर दूसरा विश्वयुद्ध दुनिया की राजनीतिक समीकरण बदलने को उतारू था. रूस की क्रांति ने भारत में भी बदलाव की ललक पैदा की.
ऐसे में कम्युनिस्ट पार्टी ने एक ऐसी संस्था की परिकल्पना की जो देश भर में ना सिर्फ़ आज़ादी की अलख जगाए बल्कि सामाजिक बुराइयों अशिक्षा और अंधविश्वास से भी लोहा ले.
इप्टाImage copyright
Image captionइप्टा का प्रतीक चिन्ह
मनोबल टूटा था लेकिन जीजिविषा बाकी थी.
सही अर्थों में सर्वहारा समाज के उत्थान के लिए इप्टा का निर्माण हुआ.
25 मई 1943 को मुंबई के मारवाड़ी हाल में प्रो. हीरेन मुखर्जी ने इप्टा की स्थापना के अवसर की अध्यक्षता करते हुए ये आह्वान किया, “लेखक और कलाकार आओ, अभिनेता और नाटककार आओ, हाथ से और दिमाग़ से काम करने वाले आओ और स्वंय को आज़ादी और सामाजिक न्याय की नयी दुनिया के निर्माण के लिये समर्पित कर दो”.
डॉ. भाभाImage copyrighthomibhabhafellowships.com
Image captionडॉ. भाभा
इसका नामकरण प्रसिद्ध वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा ने किया था.
इसका नारा था, “पीपल्स थियेटर स्टार्स पीपल”. इसे आकार देने में मदद की श्रीलंका की अनिल डि सिल्वा ने.
इप्टा का प्रतीक चिन्ह बनाया भारत के प्रसिद्ध चित्रकार चित्ताप्रसाद ने.
‘रंग दस्तावेज़’ के लेखक महेश आनंद के अनुसार ‘इप्टा यानी इंडियन पीपल्स थिएटर असोसिएशन के रूप में ऐसा संगठन बना जिसने पूरे हिन्दुस्तान में कलाओं की परिवर्तनकारी शक्ति को पहचानने की कोशिश पहली बार की.'
कलाओं में भी आवाम को सजग करने की अद्भुत शक्ति है जिसे हिंदुस्तान की तमाम भाषाओं में पहचाना गया. ललित कलाएं, काव्य, नाटक, गीत, पारंपरिक नाट्यरूप, इनके कर्ता, राजनेता और बुद्धिजीवी एक जगह इकठ्ठा हुए, ऐसा फिर कभी नहीं हुआ.”

बंगाल कल्चरल स्क्वाड

बंगाल-अकाल पीड़ितों के लिए राहत जुटाने के लिये स्थापित ‘बंगाल कल्चरल स्कवाड’ के नाटकों ‘जबानबंदी’ और ‘नबान्न’ की लोकप्रियता ने इप्टा के स्थापना की प्रेरणा दी.
मुंबई तत्कालीन गतिविधियों का केंद्र था लेकिन बंगाल, पंजाब, दिल्ली, युक्त प्रांत, मालाबार, कर्णाटक, आंध्र, तमिलनाडु में प्रांतीय समितियां भी बनी.
स्क्वाड की प्रस्तुतियों और कार्यशैली से प्रभावित होकर बिनय राय के नेतृत्व में ही इप्टा के सबसे सक्रिय समूह ‘सेंट्रल ट्रूप’ का गठन हुआ.
भारत के विविध क्षेत्रों की विविध शैलियों से संबंधित इसके सदस्य एक साथ रहते. इनके साहचर्य ने ‘स्पिरिट ऑफ इंडिया’, ‘इंडिया इम्मोर्टल’, कश्मीर जैसी अद्भुत प्रस्तुतियों को जन्म दिया.

पीसी जोशी और इप्टा

पीसी जोशीImage copyrightcaravan magazine
Image captionभारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पहले महासचिव पूरन सिंह जोशी
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पहले महासचिव पूरन चंद जोशी ने इस बात को समझा कि एक दृढ़ राजनीतिक जागृति का आधार सांस्कृतिक और सामाजिक जागरुकता ही हो सकती है.
प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव प्रो. अली जावेद कहते हैं, "वो बहुत दूरदर्शी आदमी थे. उन्होंने देश भर में योग्य कलाकारों, लोगों को पहचाना और उन्हें इस मूवमेंट से जोड़ने की कोशिश की."
कैफ़ी आज़मी और अली सरदार ज़ाफ़रीImage copyrighthttpwww.azmikaifi.comachievements
Image captionकैफ़ी आज़मी और अली सरदार ज़ाफ़री
प्रोफेसर जावेद ने बताया कि क़ैफी आज़मी आज़मगढ़ के एक गांव के रहने वाले थे और लखनऊ आए थे मौलवी बनने के लिए.
कानपुर की एक ट्रेड यूनियन के एक मुशायरे में पीसी जोशी ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें अपने साथ जोड़ा.
हिंदी के वरिष्ठ लेखक विश्वनाथ त्रिपाठी कहते हैं कि भारत की रचनात्मकता और अभिव्यक्ति पर गांधी के बाद अगर किसी और राजनेता का प्रभाव पड़ा तो वे पी सी जोशी ही थे.
इप्टा से पहले उन्होंने प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना में और आज़ादी के बाद जब दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की स्थापना हुई तो उसकी परियोजना और विकास में भी पीसी जोशी का बड़ा योगदान रहा.

मिथक पुरुष

बलराज सिंह
Image captionबलराज सिंह और दमयंती सिंह
विश्वनाथ त्रिपाठी बताते हैं कि उनके परिचितों में राजनेताओं के अलावा सभी भारतीय भाषाओं के रचनाकर्मियों की लंबी सूची थी. वे लोगों में एक मिथक पुरुष की तरह थे.
जब वे कम्यून में रहते थे तो हर सुबह वे पार्टी के सभी कार्यकर्ताओं के सिरहाने उन कामों की सूची की एक छोटी सी चिट छोड़ दिया करते जो उस व्यक्ति को उस दिन करने होते.
इतने लोगों को जानने के बावजूद वे हरेक के रोज़मर्रा के सुख और दुख में शामिल होते.
भीष्म साहनीImage copyrightBBC World Service
Image captionलेखक अभिनेता भीष्म साहनी
भीष्म साहनी ने अपने संस्मरण ‘आज के अतीत’ में पीसी जोशी से पहली मुलाकात का ज़िक्र किया है.
साहनी लिखते हैं, 'वे लापरवाह तरह से कपड़े पहने हुए थे, पैरों में पुरानी चप्पल और तंबाकू खा रहे थे. मैंने खुद से कहा, बेशक ये वो पीसी जोशी नहीं हो सकते जिनका नाम हरेक की ज़ुबान पर है. लेकिन जब उन्होंने अपना हाथ मेरे कंधे पर रखा तो उनकी आंखों की स्नेहपूर्ण चमक और एक चमकीली मुस्कान ने मेरे सारे शक़ को दूर कर दिया.’
भीष्म साहनी की बेटी कल्पना साहनी के शब्दों में, ‘पीसी जी अनोखी शख़्सियत थे, विनम्र, स्नेहपूर्ण, सरल लेकिन अपने विज़न और विचारों में एकदम स्पष्ट.’
इप्टा नाटकImage copyrightSAHMAT
बलराज साहनी ने अपने संस्मरण में ज़िक्र किया है कि पीसी जोशी को जीवन के हर पहलू से गहरा लगाव था. वे हर पल अपनी जानकारी की हदों को बढ़ाने में मशगूल रहते.
वे इस पर क़तई विश्वास नहीं करते थे कि कला को राजनेताओं के हाथ की कठपुतली होना चाहिए.
बलराज साहनी ने माना कि ये पीसी जोशी का प्रभावशाली और आकर्षक व्यक्तित्व ही था कि देश भर के कई कलाकार इप्टा से जुड़े और उसके सदस्य बने

इप्टा में कौन थे?

फैज़ अहमद फ़ैज़Image copyrightAli Hashmi
Image captionफ़ैज़ अहमद फ़ैज़
एम. के रैना. लिखते हैं ‘उस दौर में नाटक संगीत, चित्रकला, लेखन, फिल्म से जुड़ा शायद ही कोई वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी होगा जो इप्टा से नहीं जुड़ा था’.
ये एक ऐसी संस्था थी जो अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धताओं के परे जाकर भी लोगों से जुड़ी.
सलिल चौधरीImage copyrightsalilda.com
Image captionसंगीतकार सलिल चौधरी
पृथ्वीराज कपूर, बलराज और दमयंती साहनी, चेतन और उमा आनंद, हबीब तनवीर, शंभु मित्र, जोहरा सहगल, दीना पाठक इत्यादि जैसे अभिनेता, कृष्ण चंदर, सज्जाद ज़हीर, अली सरदार ज़ाफ़री, राशिद जहां, इस्मत चुगताई, ख्वाजा अहमद अब्बास जैसे लेखक, शांति वर्द्धन, गुल वर्द्धन, नरेन्द्र शर्मा, रेखा जैन, शचिन शंकर, नागेश जैसे नर्तक, रविशंकर, सलिल चौधरी जैसे संगीतकार, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, मखदुम मोहिउद्दीन, साहिर लुधियानवी, शैलेंद्र, प्रेम धवन जैसे गीतकार, विनय राय, अण्णा भाऊ साठे, अमर शेख, दशरथ लाल जैसे लोक गायक, चित्तो प्रसाद, रामकिंकर बैज जैसे चित्रकार.
य़े आंदोलन नाटक, गीत और संगीत को थिएटर हॉल की बंद दीवारों के बाहर लोगों के बीच ले आया.
ज़ोहरा सहगलImage copyrightAP.PTI
Image captionज़ोहरा सहगल
इप्टा के सदस्य हर जगह सामाजिक जागरुकता की अलख जगाने के लिए नाटक कर रहे थे- गलियों में, सड़कों पर, ट्रेन में,ट्रकों के ऊपर.
इस तरह शुरू हुआ एक ऐसा सांस्कृतिक पुनर्जागरण, जिसने ना सिर्फ़ कला और संस्कृति में नए आयाम जोड़े बल्कि जो आज भी देश भर में समाज के जागरण के लिए काम कर रहा है.
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