गई जमीन अब जान के लाले
यह इसी देश में संभव है कि किसान विकास कार्यों के लिए अपनी जमीन दे, अपनी जीविका और सुरक्षा कुर्बान करे और अगर अपने अधिकार मांगने लगे तो लाठी खाए, गोली खाकर जान गंवाए. देश भर में जहां कहीं भी सरकारें जमीन अधिग्रहण करती हैं, वहां जनता से टकराव के बाद पुलिस बल का इस्तेमाल जैसे नियम बन गया है.
इलाहाबाद जिले की करछना तहसील के कचरी गांव में करीब दो महीने से धारा 144 लागू है. पुलिस आैैर ग्रामीणाें में संघर्ष के बाद पूरे गांव में पीएसी तैनात है. गांव के कई घरों में ताले लगेे हैं. गांव सूना पड़ा है. पुलिस की दहशत से गांव के 70 फीसदी लोग घरों में ताला लगाकर वहां से भाग गए हैं. जो घर खुले हैं, उनमें सिर्फ महिलाएं और बच्चे हैं. कई घरों के दरवाजे टूटे हैं. घरों के अंदर भी तोड़फोड़ की गई है. गांव वालों के मुताबिक इन्हें पुलिस ने तोड़ा है. गांव के सभी पुरुष पुलिस के डर से फरार हैं, यहां सिर्फ महिलाएं, बच्चे और बूढ़े बचे हैं.
जमीन बचाने के लिए कचरी गांव के किसान 1,850 से ज्यादा दिनों से धरने पर हैं. इसी साल 9 सितंबर की सुबह 7 बजे किसान आंदोलनकारियों पर पुलिस ने धावा बोल दिया. ग्रामाणों और पुलिस के बीच जबर्दस्त संघर्ष हुआ. लाठीचार्ज हुआ, आंसू गैस के गोले छोड़े गए, जमकर पथराव हुआ, चापड़ चले और आगजनी भी हुई. ग्रामीणों का आरोप है कि पुलिस ने एक घर में आग भी लगा दी. कई राउंड गोलियां चलाईं. धरनास्थल पर मौजूद लोगों की पिटाई की और उन्हें गिरफ्तार कर ले गई. हालांकि पुलिस ज्यादातर आरोपों से इंकार कर रही है. पुलिस का कहना है कि उन्होंने गोली नहीं चलाई और घर में आग खुद ग्रामीणों ने लगाई थी.
गांव के एक घर में दो ग्रेनेड फेंके गए. घर के अंदर की दीवारें काली पड़ गई हैं. गांव वाले कह रहे हैं कि यह ग्रेनेड पुलिस ने फेंका है जबकि पुलिस का कहना है कि बम घर के अंदर से फेंका गया. अब सवाल ये है कि अगर बम घर के अंदर से फेंका गया तो अंदर ही कैसे फट गया? यदि अंदर से कोई बम फेंक रहा था और बम अंदर ही फट गया तो कोई हताहत क्यों नहीं हुआ? बहरहाल, ये बम आर्टिलरी (आयुध कारखाने) के बने हैं, जिन पर सितंबर 2010 एक्सपाइरी डेट है. पुलिस अधिकारियों ने सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों की एक जांच समिति के सवालों के जो जवाब दिए, उनमें हास्यास्पद किस्म का विरोधाभास है. अधिकारियों ने एक ही बातचीत में बार-बार बयान बदले हैं.
तीन साल के एक बच्चे के कंधे पर 12 टांके आए हैं. ग्रामीणों का आरोप है कि उसे पुलिस की गोली छूकर निकली है जबकि पुलिस का कहना है कि बच्चा ग्रामीणों के हमले में दराती से घायल हुआ है. जो भी हो, पुलिस को कम से कम ऐसे सवाल का जवाब देना चाहिए कि चारपाई पर पड़े 84 साल के बुजुर्ग से सरकार को क्या खतरा था, जिसे घर में से घसीट कर पीटा गया? सरकार या पुलिस को 13-14 साल के बच्चे से क्या खतरा हो सकता है जिसे जेल में डाल दिया गया?
बहरहाल, गांव के 41 किसान इलाहाबाद की नैनी जेल में बंद हैं. इन 41 लोगों में 13 साल से लेकर 17 साल तक के नाबालिग और 75 साल के बुजुर्ग भी शामिल हैं. ये सभी बिना किसी सुनवाई के जेल में बंद हैं. इन लोगों के अलावा पुलिस अन्य किसानों और 300 अज्ञात लोगों के खिलाफ गैंगस्टर और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) की कार्रवाई की तैयारी कर रही है. महिलाओं और बच्चों के साथ आंदोलन में उतरे किसानों को प्रशासन ने उपद्रवी मानते हुए उनके खिलाफ हत्या के प्रयास सहित विभिन्न गंभीर धाराओं में मुकदमे दर्ज कराए हैं.
आंदोलनकारियों के मुखिया किसान नेता राज बहादुर पटेल अब भी पुलिस की पकड़ से बाहर हैं. उन पर 12 हजार रुपये का इनाम है. उनके परिवार के 22 सदस्य जेल में बंद हैं. यह सब इसलिए हुआ है क्योंकि किसान अपनी जमीन किसी कंपनी को देने का विरोध कर रहे हैं, इसीलिए पुलिस उन्हें अपराधी मानती है. कचरी गांव के कई घरों में पुलिस ने तोड़फोड़ की है. राज बहादुर पटेल के घर की महिलाओं ने बताया, ‘नौ सितंबर को भारी संख्या में आई पुलिस ने पूरा गांव घेर लिया, जो सामने मिला, उसे पीटा, घरों में तोड़फोड़ की और 46 ग्रामीणों को पकड़ कर थाने ले गई. पुलिस दल के साथ डीएम भी थे.’
लगातार धारा 144 लागू होने, गांव में पुलिस की दबिश और उत्पीड़न के चलते गांववाले दहशत में जी रहे हैं. आठ अक्टूबर को एक किसान सहदेव (65) की मौत हो गई. ग्रामीणों का कहना है कि सहदेव की मौत पुलिस की प्रताड़ना और सदमे से हुई है. पुलिस गांव वालों को इतना प्रताड़ित कर रही है कि हर कोई भय में जी रहा है. इसी तरह से पास के कोहड़ार गांव में जय प्रकाश के घर पर बुलडोजर चलवाकर उसे ध्वस्त करा दिया है.
इन किसानों का दोष बस इतना है कि वे अपनी जमीन जेपी समूह को नहीं देना चाहते. गौर करने लायक बात ये है कि सरकार भी ग्रामीणों से बातचीत करने को राजी नहीं है, वह कोर्ट का आदेश मानने को तैयार नहीं है कि किसानों की जमीन वापस की जाए. सरकार कोई भी यत्न करके ग्रामीणों से निपटने के मूड में है.
इलाहाबाद के पास के इलाके में 20 किलोमीटर की दूरी में तीन थर्मल पावर प्लांट लगाए जाने हैं. करछना और बारा में दो पावर प्लांट जेपी समूह के होंगे और बारा में एक प्लांट एनटीपीसी और यूपी पावर कॉरपोरेशन का होगा. इसके लिए भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना 23 नवंबर, 2007 को अधिग्रहण अधिनियम की धारा 4, 17(1) और 17(4) के तहत जारी हुई थी. तत्कालीन प्रदेश सरकार ने अधिग्रहीत जमीन पावर प्रोजेक्ट के लिए जेपी समूह को हस्तांतरित कर दी थी.
जब अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हुई तो कचरी के किसान नेता राजबहादुर पटेल की अगुवाई में दर्जनों किसानों ने अधिग्रहण के खिलाफ प्रशासन को आवेदन सौंपा लेकिन प्रशासन ने इसकी अनदेखी की और अधिग्रहण संबंधी कार्रवाई जारी रही. आखिरकार अप्रैल, 2008 में सात किसानों की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट में अधिग्रहण की योजना को चुनौती दी गई. इस प्रोजेक्ट के लिए 2010 में 2200 बीघा जमीन अधिग्रहीत की गई. सरकार ने जमीन का मुआवजा बाजार दर से दस गुना कम तय किया, कुल तीन लाख रुपये प्रति बीघा, जबकि तब जमीन का बाजार भाव 30 लाख रुपये प्रति बीघा था. यहां के किसान ‘किसान कल्याण संघर्ष समिति’ के बैनर तले भूमि अधिग्रहण के विरोध में लामबंद हैं. किसानों का संघर्ष जारी है तो पुलिस का दमन भी. इस मुद्दे पर अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा दूसरे संगठनों के साथ मिलकर आंदोलन कर रही है. विरोध के चलते अभी तक अधिग्रहीत जमीन की घेराबंदी पूरी नहीं हो सकी है.
22 अगस्त, 2010 से इलाके के किसान धरने पर बैठे. सरकार ने जब इस तरफ भी ध्यान नहीं दिया तो किसानों ने आमरण अनशन शुरू कर दिया. प्रशासन ने बातचीत करके मसला सुलझाने की जगह आंदोलन को कुचलने का रास्ता अपनाया. जनवरी 2011 में अनशनरत किसानों पर लाठीचार्ज हुआ, आंसू गैस के गोले दागे गए और फायरिंग की गई. इस संघर्ष में पुलिस की गोली से एक किसान गुलाब विश्वकर्मा की मौत हो गई थी, जिसके कारण किसानों का गुस्सा बढ़ गया. उस वक्त किसानों के उग्र हो जाने पर पुलिस को पीछे हटना पड़ा था. इसके बाद 22 अगस्त 2015 को भी कचरी के 122 ग्रामीणों के विरुद्ध शांति भंग की धारा 107/116 के अंतर्गत कार्रवाई करते हुए नोटिस तामील किया गया.
इस बीच 13 अप्रैल, 2012 को हाईकोर्ट ने करछना में प्रस्तावित जेपी समूह के थर्मल पावर प्लांट के लिए भूमि का अधिग्रहण रद्द करते हुए कहा था कि किसानों को मुआवजा लौटाना होगा, इसके बाद उनकी जमीनें वापस कर दी जाएं. वहीं बारा पावर प्रोजेक्ट के मामले में किसानों की याचिका खारिज कर दी गई. दोनों ही मामलों में भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाली अवधेश प्रताप सिंह और अन्य किसानों की याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाया. बारा में जेपी के पावर प्रोजेक्ट के मामले पर कोर्ट ने कहा कि बारा प्लांट में निर्माण का कार्य काफी आगे बढ़ चुका है, इसलिए वहां भूमि अधिग्रहण रद्द किया जाना नामुमकिन है. नोएडा भूमि अधिग्रहण मामले में गजराज सिंह केस का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि अगर अधिग्रहण के बाद प्रोजेक्ट पर काम प्रारंभ हो चुका है तो वहां का अधिग्रहण रद्द नहीं किया जा सकता है. बारा के किसान मुआवजे को लेकर अपनी लड़ाई जारी रख सकते हैं. करछना के किसानों के मामले में कोर्ट ने कहा कि अभी तक परियोजना का कार्य शुरू नहीं किया गया है.
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