Monday, November 2, 2015

इन आदिवासियों को हिंदू कहलाने से गुरेज़

इन आदिवासियों को हिंदू कहलाने से गुरेज़

  • 3 अक्तूबर 2015
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आदिवासियों का आंदोलनImage copyrightNIRAJ SINHA
झारखंड के सरना आदिवासी ख़ुद को हिंदू कहे जाने का विरोध कर रहे हैं और अपने धर्म को मान्यता दिए जाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं.
यह समुदाय छोटानागपुर क्षेत्र में रहता है.
सरना आदिवासी समुदाय का कहना है कि वे हिंदू नहीं हैं. वे प्रकृति के पुजारी हैं. उनका अपना धर्म है 'सरना', जो हिंदू धर्म का हिस्सा या पंथ नहीं है. इसका हिंदू धर्म से कोई लेना देना नहीं है.
उनकी मुख्य मांग है कि उनकी गणना में उनके आगे हिंदू न लिखा जाय.

दिल्ली चलो

Image copyrightNIRAJ SINHA
Image captionकरमा पूजा
इस मांग के समर्थन में छोटानागपुर में रैली, जुलूस, धरना, प्रदर्शन और बैठकों का दौर चल रहा है और आगामी छह अक्टूबर को वो दिल्ली कूच करने का भी इरादा बना रहे हैं.
दिवासी सरना महासभा के संयोजक शिवा कच्छप कहते हैं, "धर्म आधारित जनगणना में जैनियों की संख्या 45 लाख और बौद्ध की जनसंख्या 84 लाख है. हमारी आबादी तो उनसे कई गुना ज़्यादा है. पूरे देश में आदिवासियों की आबादी 11 करोड़ से ज्यादा है. फिर क्यों न हमारी गिनती अलग से हो?"
पूर्व विधायक देवकुमार धान का कहना है कि धर्म आधारित जनगणना में झारखंड की कुल जनसंख्या में 42 लाख 35 हजार 786 लोगों ने अन्य के कॉलम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है.

पुराना इतिहास

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Image captionप्रकृति पूजा
इस मांग को आदिवासी विषयों के जानकार और पत्रकार कोरनेलियुस मिंज भी सही मानते हैं.
वो कहते हैं, "सरना धर्म वालों का दावा मज़बूत हो रहा है. इनका इतिहास काफी पुराना है. लेकिन इस पर ख़तरे बढ़ रहे हैं कि इसे दूसरे धर्म में शामिल कर संख्या बढ़ा लिए जाएं. अधिकतर जनगणना में इन्हें हन्दिू में शामिल किया जाता रहा है."
एशिया पेसिफिक यूथ इंडिजिनेस पीपुल्स फोरम की अध्यक्ष मिनाक्षी मुंडा कहती हैं, "आदिवासियों की ये मांग पुरानी है और इसमें दम है. उनकी जनगणना अलग से होनी चाहिए. यह उनके अस्तित्व से जुड़ा सवाल है. आदिवासियों के जन्म, मृत्यु, विवाह, पर्व-त्योहार के रिति-रिवाज अलग हैं."
आदिवासी बच्चेImage copyrightNIRAJ SINHA
हालांकि धर्म से जुड़ा यह मुद्दा सरकार में आदिवासियों के प्रतिनिधित्व को लेकर अधिक है.
इनका तर्क है कि अकेले झारखंड में सरकारी आंकड़े के मुताबिक़ क़रीब 80 लाख आदिवासी हैं, जबकि हक़ीक़त में यह संख्या और ज़्यादा है.
झारखंड विधानसभा की 81 सीटों में से 28 सीटें और 14 लोकसभा में चार सीटें आदिवासियों के लिए सुरक्षित हैं और आदिवासी इलाक़ों के लिए अलग से ट्राइबल एडवाइज़री काउंसिल भी है.
उनकी यह मांग लंबे समय से रही है लेकिन अब यह आंदोलन की शक्ल ले रहा है.
(बीबीसी हिन्दी 

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