छत्तीसगढ़ में रोज 4 किसानों की आत्महत्या
Wednesday, November 18, 2015
[सजी खबर ]
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ सरकार ने किसानों की आत्महत्या से इंकार किया है. सरकार ने धमतरी के एक किसान के मामले में सफाई दी है कि उसकी मौत कर्ज के कारण या फसल खराब होने के कारण नहीं हुई है. लेकिन हक़ीकत ये है कि राज्य सरकार छत्तीसगढ़ में विविध कारणों से आत्महत्या करने वाले किसानों की आत्महत्या को, किसानों की आत्महत्या ही नहीं मानना चाहती.
छत्तीसगढ़ में पिछले महीने भर में एक के बाद एक कई इलाकों में कई किसानों ने आत्महत्या कर ली. लेकिन राज्य सरकार यह मानने के लिये तैयार नहीं है कि किसान आत्महत्या कर रहे हैं. हालत ये है कि किसानों की आत्महत्या पर उठने वाले सवालों को खारिज करने के लिये सरकार ने आंकड़ों को ही खारिज करना शुरु कर दिया है.
किसानों की आत्महत्या को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार की आंकड़ेबाजी को महज एनसीआरबी के आंकड़ों से समझा जा सकता है.
एनसीआरबी यानी भारत सरकार की नेशनल क्राइम रिसर्च ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में 2006 से 2010 के बीच हर साल औसतन 1,555 किसानों ने आत्महत्याएं की थीं. यानी छत्तीसगढ़ में हर दिन चार से अधिक किसानों ने आत्महत्या कर ली.
जब इस मामले पर देश भर में सवाल खड़े हुये तो अगले साल यानी 2011 में किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा ही शून्य में बदल गया. कहां तो हर दिन चार किसानों की आत्महत्या और साल में 1555 किसानों की आत्महत्या के मामले दर्ज हो रहे थे. और कहां 2011 में यह आंकड़ा शून्य घोषित कर दिया गया. 2012 में किसानों की आत्महत्या की संख्या केवल चार बताई गई. 2013 में यह फिर से शून्य हो गई.
छत्तीसगढ़ सरकार के आंकड़ों की बाजीगरी को समझने के लिये आपको 2009 के आंकड़े देखने होंगे. 2009 में छत्तीसगढ़ में किसानों की आत्महत्या के 1,802 मामले दर्ज हुए थे, जबकि स्वरोजगार के अन्य वर्ग में यह संख्या 861 थी. 2013 में जब किसानों की आत्महत्या का मामला ज़ीरो बता दिया गया तब स्वरोजगार के मामलों में आत्महत्या की संख्या 2077 हो गई.
छत्तीसगढ़ में 2013 में, सभी आत्महत्याओं में अन्य एवं स्वरोजगार की हिस्सेदारी 60 फ़ीसदी तक थी. मतलब ये कि अब सरकार ने किसानों की आत्महत्या को स्वरोजगार की आत्महत्या के आंकड़ो में जोड़ दिया. जाहिर है, ऐसा करते हुये सरकार के सामने सीधे-सीधे किसानों की आत्महत्या के आंकड़े मुंह चिढ़ाते नज़र नहीं आयेंगे.
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