Wednesday, November 4, 2015

गोलियों और बमों के आवाजों में परलकोट के विकास की आवाज़ कही गुम सी हो गयी है


गोलियों और बमों के आवाजों में परलकोट के विकास की आवाज़ कही गुम सी हो गयी है












[राजेश हालदार @ परलकोट]




- दण्डकारण्या एक ऐसा नाम जिसका जिक्र भारतीय पवित्र ग्रन्थ रामायण में बाखूबी किया गया है | भगवान श्रीराम चन्द्र ने अपने वनवास काल के दौरान इसी दण्डकारण्या के जंगलो में अपने कई दिन व्यतीत किये जिसके प्रतीक आज भी परलकोट क्षेत्र के कई गाँवो और पहाड़ो में है | प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण श्रीराम चन्द्र जी की पग-भूमि रही दण्डकारण्या का एक हिस्सा जो आज परलकोट के नाम से जाना जाता है ,जहा के संस्कृति और सौन्दर्य का वर्णन कई लेखको ने अपने लेखन में किया है , परन्तु आज वही राम पग-भूमि पर दहशत के गोलियों की आवाज़ गूंजा करती है |
परलकोट क्षेत्र जंगलो से घिरा हुआ है और यह की जीवन दायनी कोटरी नदी प्राकृतिक सम्पदा को जीवत करती है | लगभग एक दशक पहले यह के निवासी बेहद सादाहरण परन्तु खुशहाल ज़िन्दगी व्यतीत करते रहे परन्तु उनके खुशहाल जीवन पर नक्सलवाद और पुलिसवाद नाम का ग्रहण क्या लगा कि आज भी यह के निवासी डर और जुल्म के साए में जीने को विवश है |
इन एक दशको में यह के निवासियों ने पुलिस-नक्सली खीचतान में कई अपनों को खोया | यह के बेबस निवासियों को कही नक्सलियों ने पुलिस मुखबिरी के संदेह पर मौत के घाट उतर दिया तो कही पुलिस ने नक्सली बताकर उम्र भर के लिए जेल के सलाखों के पीछे पहुंचा दिया | अपनी वेदनाओ को दिल में लिए आज भी परलकोट के भोले-भाले निवासी दो पक्षीय भय में जीने को मजबूर है | 

कभी पुलिस-नक्सली मुठभेड़ तो कभी जन-अदालत तो कभी एनकाउंटर ने राम पग-भूमि के इस पवित्र मिटटी को कई सालो से यूँ ही लहू-लुहान किया है | यह जंगलो के पेड़ो की खालो में धंसी गोलिया , पत्थरों पे पड़े खून के छींटे तो कही मिटटी में दबी खामोश लाशें पिछले एक दशको में गुजरे यह के निवासियों के दर्द और बेबसी को बयां करते है |

यह के बेबस निवासियों के लिए एक तरफ कुआँ है तो दूसरी तरफ खांई | जहा एक ओर नक्सलीयो द्वारा अपने दलम में शामिल होने का दवाब डाला जाता है वही दूसरी ओर पुलिस इन बेबसों को नक्सलियों के खिलाफ मुखबीर बनाकर अपना काम सिद्ध करना चाहती है और दोनों ही अवस्था में मौत या कारावास की सजा यह के मासूम निवासियों को ही मिलती है | परलकोट क्षेत्र में अब तक कई पुलिस-नक्सली मुठभेड़ हुए , कई गोलिया चली कई बम विस्फोट हुए ,तो कईयो के गला रेत कर मौत के कफ़न पहना दिए गए और हर बार मातम का साया क्षेत्र के किसी बेबस और लाचार परिवार में छाया , हर दफे परलकोट के किसी माँ की गोद सुनी हुयी , तो कही किसी सुहागन की माँग |
परलकोट क्षेत्र में आज लगभग सैकड़ो बी.एस.एफ. और पुलिस कैंप है जिसमे हजारो की तादात में जवान तैनात है , चारो और बन्दुक के नाल और बुटो की आहट है | परलकोट क्षेत्र जो कभी स्वतंत्र प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण थी , जहा कभी लोग संस्कृति से भरे सुन्दर वातावरण में चैन की सांस लिया करते थे वो अब सैनिक छावनी में तब्दील हो चूका है जहा के वातावरण में अब गोलियों की गूंज सुनाई देती है | 

दोहरा दंश झेल रहे प
रलकोट क्षेत्र के कई गाँवों में यह दंश इतना भयानक रहा कि वह के ग्रामीणों को अपनी ज़मीन और संस्कृति को छोड़ पलायन करना पड़ा , ऐसा ही एक गाँव है मोहला जहा आज से लगभग 6 साल पहले ग्रामीणों ने इसी दंश के चलते गाँव छोड़ने का फैसला किया और नक्सल प्रभावित इस गाँव में निवासरत परिवारों ने ग्राम छोड़ पलायन करना प्रारंभ किया और देखते ही देखते पूरा का पूरा गाँव सुना हो गया , नक्सल भय से पलायन करते इन परिवारों को शासन द्वारा पखांजूर में कैंप बनाकर बसाया गया और इनके जीवन शैली हो बेहतर बनाने के कई वादे किये परन्तु लगभग 6 साल बाद भी इन दोहरा दंश के मारे लोगो की स्थिति में कोई खास सुधार नही हो पाया है | हालाँकि शासन द्वारा कुछ युवको को गोपनीय पुलिस की नौकरी दी गयी और इस पर शासन के आला अधिकारी अपनी पीठ ठोकते नहीं थक रहे परन्तु ज़मीनी हकीक़त कुछ और ही बया करती है | जिन कैंपो में इन्हें बसाया गया वहा चारो ओर गन्दगी का आलम है ,घरो की स्थिति भी बेहद दयनीय है , रोजगार के बेहतर साधन से भी वंचित है जिसके चलते यह के युवाओ और युवतियों को मजदूरी कर किसी तरह से गुजर-बसर करना पड़ रहा है | बच्चो के लिए शिक्षा के बेहतर इन्तेज़ामात नहीं है और न ही इनके भविष्य को बेहतर बनाने की कोई योजना |

इन गोलियों और बमों के आवाजों में परलकोट के विकास की आवाज़ कही गुम सी हो गयी है | क्षेत्र में आज भी कई गाँव ऐसे है जहाँ न सड़के है न बिजली और न ही पानी की कोई व्यवस्था बरहाल आज इस आधुनिक युग में भी परलकोट के कई गाँवों के लोगो को झरिया का पानी पीकर अँधेरे के आगोश में अपनी हर रात बितानी पड़ रही है | क्षेत्र के लोग आज भी बेहतर शिक्षा और बेहतर स्वस्थ सुविधा से वंचित है जिसके चलते अशिक्षा और इलाज के अभाव में यह हर साल कई जाने चली जाती है | इस दोहरे खुनी लड़ाई ने क्षेत्र के विकास पर पूर्णविराम का चिन्ह लगा दिया है |
भगवान राम के इस पावन पग-भूमि पर खून की होली का खेल न जाने कब रुके पर इस खेल में हर बार हार परलकोट के किसी माँ, किसी पत्नी,किसी बहन की हो होती रहेगी | परलकोट वासियों के जुबान पर अब बस एक ही आस की पुकार है " न जाने कब श्रीराम के इस पवित्र पग-भूमि पर गोलियों के गूंज के जगह स्वतंत्र और भय-मुक्त पक्षियों की आवाज़ गूंजेगी " |||||

परलकोट से - राजेश हालदार की रिपोर्टिंग
फोटो- 1. मोहला कैंप 2. मोहला कैंप 3.बन्दुक के नाल के साये में बसती बेबस ज़िन्दगीया 4. फरवरी 2015 को परलकोट के हबलबरस में हुए मुठभेड़ ने श्रीराम के पग-भूमि को खून से रंग दिया 5. विकास से कोसो दूर झरिया का पानी पीने को आज भी मजबूर बेबस ग्रामीण

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