RTI कार्यकर्ता को जज ने हवालात में डाला
[हिमांशु कुमार ]
अभी पिछले हफ्ते ही भारत में सूचना के अधिकार कानून को बने हुए दस साल हुए हैं .
लोकतंत्र में शासन किसी का नहीं होता
बल्कि जनता का काम काज करने के लिए सेवक या नौकर या तो चुने जाते हैं या नियुक्त किये जाते हैं
इन सेवकों का काम जनता की सेवा करना होता है
लेकिन चुने जाने या नियुक्त होने के कुछ समय बाद यह सेवक अपने आप को जनता का मालिक समझने की गलती करने लगते हैं
यह सेवक अपने काम काज को अपने मालिक यानि जनता से ही छिपाने की कोशिश करने लगते हैं
जनता को अपने नौकरों से जानकारी लेने का अधिकार सूचना के अधिकार कानून द्वारा दस साल पहले मिली थी
बहुत सारे जानकारी मांगने वाले लोगों की हत्या कर दी गयी
अभी सूचना के अधिकार के तहत अदालत से जानकारी मांगने वाले एक नागरिक को एक जज साहब द्वारा गैर कानूनी ढंग से हवालात में डलवाने का भयानक मामला सामने आया है
दंतेवाडा की जिला अदालत का मामला है
ज़िले भर में जब कहीं भी लोग जुआ खेलते हैं तो पुलिस उन्हें पकडती है
पकड़ने के बाद पुलिस उन्हें अदालत में पेश करती है
अदालत उनके पास से पैसा मोबाईल आदि जब्त करती है और जुर्माना लेती है
इस जुर्माने के पैसे को सरकारी खजाने मे जमा होना चाहिये
लेकिन दंतेवाड़ा अदालत द्वारा जुआरियों से वसूला गया पैसा सरकारी खजाने मे जमा ही नहीं किया जा रहा था
इसकी जानकारी करीम खान द्वारा सूचना के अधिकार के तहत मांगे गए जवाब से मिली
करीम खान दंतेवाड़ा में रहते हैं
करीम खान ने अदालत से यह भी पूछा कि आप अदालत में जो भर्तियाँ या पदोन्नतियां करते हैं वह किन नियमों के तहत करते हैं ?
अदालत नें बताया कि हमारे पास कोई नियम नहीं हैं .
करीम खान नें इसकी सूचना उच्च न्यायालय को दी
इस पर जज साहब नें एक पत्र में लिखा है कि अगर आवेदक को नियमों की इतनी ही चिंता है तो आवेदक ही नियम बना कर उच्च न्यायालय को क्यों नहीं दे देता .
नियम बनाने की जिम्मेदारी सूचना के अधिकार के आवेदक की नहीं होती
जज साहब नें अपने पत्र में आगे लिखा है कि सरकार को चाहिये कि वह सूचना के अधिकार कानून में संशोधन करे ताकि इस तरह सूचना मांगने वाले लोगों के ऊपर जुर्माना लगाया जा सके .
जज साहब नें एक फैसले मे यह भी लिखा है कि इस आवेदक को बुला कर समझाया गया कि वह आगे से इस तरह सूचना मांग कर समय नष्ट ना करे
यानि जज साहब किसी को कानूनी अधिकार का प्रयोग करने से रोकने की कोशिश कर रहे हैं
इसके बाद जज साहब नें आवेदक के विरुद्ध एक षड्यंत्र रचा
उन्होंने आवेदक करीम खान को सूचना लेने के लिए अदालत में आने के लिए कहा
करीम खान जब सूचना लेने के लिए दंतेवाड़ा अदालत के कार्यालय में पहुंचे तो जज साहब कार्यालय मे खुद आ गए और बोले कि कागज़ात चुराने आया है ना तू .
करीम खान नें कहा कि नहीं मुझे तो आपने पत्र भेज कर बुलाया था , देखिये यह रहा आपका पत्र ,
इसके बाद जज साहब नें पुलिस को बुलाया और कहा इसे हवालात में डाल दो
पुलिस वालों नें करीम खान को पकड़ कर अदालत में बने हुए हवालात में डाल दिया और फिर पुलिस वाले बीस मिनिट बाद थाने ले गए
यह खबर दंतेवाड़ा शहर में फ़ैल गयी
तुरंत कुछ पत्रकार थाने मे पहुँच गए
पत्रकारों ने थानेदार से पूछा कि पुलिस नें करीम खान को किस अपराध में पकड़ा है ?
पत्रकारों नें पुलिस से पूछा कि आपके पास इनके खिलाफ़ कोई लिखित शिकायत आयी है क्या ?
थानेदार ने कहा कि नहीं जज साहब नें हमें फोन कर के कहा था कि यह व्यक्ति अदालत परिसर में संदिग्ध अवस्था में घूम रहा हैं
पत्रकारों ने कहा तो फिर आप अभी जज साहब की तरफ से करीम खान के खिलाफ़ एक रिपोर्ट दर्ज कीजिये और इनकी बाकायदा गिरफ्तारी कीजिये वरना किसी के फोन कर देने से आप किसी को हवालात में नहीं रख सकते
घबरा कर थानेदार नें करीम खान को छोड़ दिया
सवाल यह है कि करीम खान तो अपने संवैधानिक अधिकार का ही प्रयोग कर रहे है
अगर नागरिक के कानूनी अधिकारों का उलंघन होता है तो नागरिक अदालत की शरण लेता है
लेकिन अगर अदालत ही नागरिक के कानूनी अधिकारों को कुचलने लगेगी तो नागरिक कहाँ जाए ?
अगर किसी के पास इस सवाल का जवाब हो तो वह ज़रूर बताए .
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