कदम-कदम पर बिछाया बेटियों की तस्करी का जाल
प्रदेश में गरीबी और बेकारी से जूझ रहे गांवों की मासूम बालिकाओं को काम दिलाने के बहाने तस्करी कर ले जाने का पूरा जाल बिछाया जा चुका है "पत्रिका" की पड़ताल और स्टिंग में चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं
[ राजकुमार सोनी की रिपोर्ट ,पत्रिका ,5 ,6 ,15 ]
रायपुर. प्रदेश में गरीबी और बेकारी से जूझ रहे गांवों की मासूम बालिकाओं को काम दिलाने के बहाने तस्करी कर ले जाने का पूरा जाल बिछाया जा चुका है। छत्तीसगढ़ सहित झारखंड और ओडिशा के गांवों में "पत्रिका" की पड़ताल और स्टिंग में चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं कि नौकरी दिलाने की आड़ में चल रहीं करीब 1200 एजेंसियों ने अपने गुर्गों को पूरी तरह से सक्रिय कर रखा है और लड़के-लड़कियों की पहली खेप दलालों के मार्फत 15 जून के बाद दिल्ली पहुंचाई जाएगी और यह सिलसिला सितंबर तक बदस्तूर चलेगा। हैरानी यह है कि बेखौफ दलालों द्वारा बांटे गए विजिटिंग कार्ड ग्रामीणों के पास नजर आ रहे हैं। मेट्रो शहरों में मांग के मुताबिक मासूमों को उपलब्ध कराने का दलाल खुलेआम दावा कर रहे हैं।
आश्चर्यजनक ढंग से मानव तस्करी के दलालों का फैला यह जाल दिल्ली के शकूरपुर, पंजाबी बाग और डिफेंस कॉलोनी से संचालित हो रहे हैं। दलालों से बातचीत में उजागर हुआ कि आलीशान कोठियों में आया, कुक, नौकर-नौकरानियों के तौर पर काम करने वालों को मांग के मुताबिक ले जाया जाएगा।
मिल जाएंगे छत्तीसगढ़ के लोग
आदिवासी बहुल क्षेत्र बलरामपुर जिले के शंकरगढ़ के रेहड़ा गांव में दलाल अरुण के बारे में जानकारी मिली कि वह और उसका परिवार कमीशन लेकर क्षेत्र के लोगों को फैक्ट्रियों, ईंट-भट्ठों में काम करने के लिए यूपी-बिहार भेजते हैं। ग्रामीण से नई दिल्ली के मयूर विहार में संचालित दुर्गी प्लेसमेंट सर्विस और रघुवीर नगर के आशियाना विकास सोसायटी का कार्ड दिया।
रिंगटोन संकेत
दलाल दीपक का नंबर दिया। इसमें फोन लगाने पर फिल्म प्रेम रोग का गाना बजा.. ये गलियां चौबारा, यहां आना न दोबारा अब हम तो भए परदेशी। बात में छानबीन पर पता चला कि दलाल गानों को संकेतों के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। इस रिंगटोन का आशय था। दीपक फिलहाल दिल्ली में नहीं है और वह अपने गांव गया हुआ है। दीपक ने बताया कि वह जुलाई तक लोगों को उपलब्ध करा देगा।
लुभाने के लिए लालच
दलालों ने अपने काम के तौर तरीकों में बदलाव कर लिया है। पहले लड़के-लड़कियों को बसों और ट्रेनों से मेट्रो शहरों में भेजा जाता था। अब इसके लिए छोटे वाहनों का इस्तेमाल किया जाने लगा है। शातिर ढंग से काम करते हुए एजेंसियां लड़के-लड़कियों को जींस, टीशर्ट, नाइट ड्रेस, मोबाइल और रिचार्ज जैसी सुविधाएं दे देते हैं, जिससे उनकी चमक-दमक को देखकर और लोग भी गांव से जाने के लिए आकर्षित हों। गांवों में धर्म-जाति और समुदाय विशेष की उपलब्धता के आधार पर विजिटिंग का वितरण किया जा रहा है, जिससे लोगों में यह संदेश जाए कि एजेंसियां अच्छे काम कर रही हैं।
पांच सालों में 14 हजार से ज्यादा बच्चे गायब
छत्तीसगढ़ से पांच सालों में 14114 बच्चे गायब हुए। विधानसभा में विपक्ष के नेता टीएस सिंहदेव के सवाल के लिखित उत्तर में गृह मंत्री रामसेवक पैकरा ने जवाब दिया था कि प्रदेश में 2010 से अब तक 14 हजार 114 बच्चे गायब हैं। इसी अवधि में 19 हजार से ज्यादा वयस्क लड़कियां और महिलाएं भी छत्तीसगढ़ से लापता पाई गईं। 2010 में 2757, 2011 में 3187, 2012 में 3384, 2013 में 2907 और 2014 में 1776 बच्चे गायब हुए।
सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी राज्य सरकार को फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 13 नवंबर को छत्तीसगढ़ सरकार को बचपन बचाओ आंदोलन की याचिका पर मानव तस्करी मामले में फटकार लगाते हुए लापता बच्चों का पता लगाने को कहा था। छत्तीसगढ़ पुलिस ने आनन-फानन दिल्ली के कई क्षेत्रों में छापेमारी कर कुछ बच्चो को बचाया था, लेकिन इसके बाद पूरा मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
सूचना तंत्र के कमजोर होने
का फायदा मानव तस्कर उठा लेते हैं। बड़ी समस्या यह है कि माता-पिता भी बच्चों को बेच देते हैं। जहां मानव तस्करी होती है, हम वहां सघन अभियान चलाएंगे
।
प्रदीप तिवारी, नोडल अधिकारी, मानव तस्करी, निरोधक प्रकोष्ठ
पहली कॉल
हैलो, क्या ये फिलीफ भाई का नंबर है।
हां, जी।
मुझे लालू बडि़क ने नंबर दिया है। हमको काम करने वाले चाहिए।
फिलीफ जी तो नहीं हैं।
कब मिलेंगे?
डेथ हो गई है उनकी।
अरे..कब?
2009 में।
कैसे हो गया यह...?
508 शुगर हो गई थी उनकी।
आप कौन बोल रही हैं?
मैं उनकी मिसेज बोल रही हूं।
क्या आप रजनी टोप्पो हैं?
नहीं, वो तो दीदी हैं।
मुझे छत्तीसगढ़ के ही कर्मचारी मिल जाएंगे न?
15-16 के बाद फोन करिए मिल जाएंगे।
-राजकुमार सोनी
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