प्रदेश में 23 हजार धान की किस्में, लेकिन राज्य का हक किसी पर नहीं
Posted:2015-06-03 11:16:35 IST Updated: 2015-06-03 11:16:35 IST
हमारा प्रदेश धान के जर्मप्लाज्म के मामले में सबसे ज्यादा अमीर है। जो जर्मप्लाज्म हमारी धरोहर हैं, उनका उपयोग बगैर विश्वविद्यालय की अनुमति के बहुराष्ट्रीय कंपनी न करने लगे
रायपुर. हमारा प्रदेश धान के जर्मप्लाज्म के मामले में सबसे ज्यादा अमीर है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में धान की किस्मों के 23250 जर्मप्लाज्म के अलावा तिवड़ा और अलसी के भी जर्मप्लाज्म मौजूद हैं। लेकिन विडंबना है कि इन हजारों किस्मों का प्रोटेक्शन ऑफ प्लांट वैरायटी एंड फार्मर्स राइट्स अथॉरिटी (पीपीवीएफआरए) में रजिस्ट्रेशन नहीं कराया जा सका है। ऐसे में अंदेशा है कि जो जर्मप्लाज्म हमारी धरोहर हैं, उनका उपयोग बगैर विश्वविद्यालय की अनुमति के बहुराष्ट्रीय कंपनी न करने लगे।
प्रत्येक नई या पुरानी किस्मों का पीपीवीएफआरए में रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है। इससे रजिस्ट्रेशन कराने वाले किसान या संस्था के नाम पर ये किस्में सुरक्षित हो जाती हैं और कोई भी इस पर अपना अधिकार नहीं जता पाता। साथ ही हमेशा के लिए यह सुरक्षित भी हो जाती हैं। लेकिन इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने इस दिशा में ध्यान ही नहीं दिया। विश्वविद्यालय ने आईसीएआर के पास इसे सुरक्षित रखकर अपनी जिम्मेदारियों से हाथ खींच लिए। ऐसे में अब तक हमारे जर्मप्लाज्म का रजिस्ट्रेशन नहीं हो पाया है।
राष्ट्र की संपत्ति
इन जर्मप्लाज्म को राष्ट्रीय संपत्ति मानते हुए कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक्स रिसोर्सेज के पास सुरक्षित रखा गया है। हालांकि, यहां इसे इसलिए सुरक्षित रखा गया है, क्योंकि विश्वविद्यालय में जर्मप्लाज्म को सुरक्षित रख पाने की तकनीक की अवधि कम है। ऐसे में आईसीएआर इसे ज्यादा वर्षों तक संभाल कर रख सकता है।
फिलीपिंस के बाद हम दूसरे
कृषि विश्वविद्यालय में 23 हजार से अधिक धान की प्रजातियों के प्लाज्म का संग्रह है। फिलीपींस के बाद सर्वाधिक धान जर्मप्लाज्म का रिकार्ड इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के नाम है। इनमें से 1500 प्रजातियां विशुद्ध रूप से छत्तीसगढ़ी हैं। वर्ष 1971 से 1977 तक मध्यप्रदेश चावल अनुसंधान केन्द्र बरौंडा, रायपुर के तत्कालीन निदेशक डॉ. आरएच रिछारिया ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के सैकड़ों गांवों से धान की लगभग 17 हजार किस्में इक_ा कीं। इसके बाद भी जर्म प्लाज्मा के एकत्रीकरण का कार्य जारी रहा। इस दौरान 23250 से अधिक प्रजातियां इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने एकत्र कर दुनिया में दूसरा स्थान हासिल किया।
यह होगा फायदा
यदि प्रदेश की सारी किस्मों का रजिस्ट्रेशन पीपीवीएफआरए में हो जाए, तो इन किस्मों पर विश्वविद्यालय का अधिकार होगा और वे आईजीकेवी के नाम पर सुरक्षित होंगे। कोई भी बहुराष्ट्रीय कंपनी या कोई देश यदि इन किस्मों को अपग्रेडेशन पर रिसर्च करना चाहेंगे, तो उन्हें आईजीकेवी से अनुमति लेनी होगी साथ ही किस्म के साथ आईजीकेवी के नाम का भी उल्लेख होगा। कोई भी रिसर्चर अवैधानिक रूप से इन किस्मों का उपयोग नहीं कर पाएगा, और ये चोरी होने से बच जाएंगे।
हमारे पास जितने भी जर्मप्लाज्म मौजूद हैं, हम उन सभी को सहेजने को लेकर गंभीर हैं। पीपीवीएफआरए में जर्मप्लाज्मों (किस्मों) का रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया में है। यह जल्द ही पूरा हो जाएगा।
जेएस उरकुरकर, डायरेक्टर रिसर्च, आईजेकेवी
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