डर..दहशत... लकड़ी के बदले चावल और नमक[ बीजापुर ]
राज्य सरकार से अछूते इस गांव का हाल जानने की पत्रिका ने कोशिश की, जहां लम्बी और कई घंटों की पूछताछ के बाद पत्रिका संवाददाता को गांव में जाने की इजाजत दी गई
जगदलपुर. बीजापुर जिला मुख्यालय से महज सात किमी दूर राज्य सरकार का वजूद खत्म हो जाता है। वहां माओवादियों की जनताना सरकार का राज चलता है। शायद यही वजह है कि बीते दस सालों में किसी भी नेता, अफसर या सामान्य व्यक्ति ने इस गांव की सरहद पर कदम रखने की हिम्मत नहीं की। राज्य सरकार से अछूते इस गांव का हाल जानने की पत्रिका ने कोशिश की, जहां लम्बी और कई घंटों की पूछताछ के बाद पत्रिका संवाददाता को गांव में जाने की इजाजत दी गई।
इस गांव पर पहुंचने पर जो हाल देखने को मिला, उससे यह साबित हो गया कि राज्य सरकार का कोई अस्तित्व यहां नहीं है। ग्रामीणों को लकड़ी के बदले में गांव की दुकान से चावल और नमक मिलता है। उनके पास किसी भी प्रकार का रोजगार नहीं है। जंगल से लकड़ी एकत्र करना और उसे दुकान में देना। बदले में मिलने वाले चावल और नमक से वे अपना जीवन काट रहे हैं।
पहाड़ी के नीचे घने जंगलों के बीच से गुजरता कच्चा रास्ता मनकेली तक ले जाता है। यहां सड़क, पानी, बिजली, स्कूल, आंगनबाड़ी तक नहीं है। बीजापुर जिले में सरकार की योजनाओं का हाल जानने के लिए हमने पास के गांव में जाना तय किया। स्थानीय संवाददाता के साथ मुख्यालय से करीब नौ बजे हम वहां से चार किमी दूर गोवरना के लिए रवाना हुए। जंगलों के बीच से गुजरते हुए करीब 15 मिनट में गोवरना पहुंचे। आगे की रास्ते की जानकारी नहीं थी, इसलिए हमने गांव के किसी युवक को साथ ले जाना चाहा पर मनकेली जाने की बात से यहां सभी दहशतजदा दिखे। कोई कुछ बोलने को तैयार हुआ न आगे जाने को। यह दहशत देखकर हमने भी लौटना चाहा, लेकिन हिम्मत जुटाकर आगे बढ़े। पहाड़ी नाले को पार कर पंद्रह मिनट बाद हम मनकेली में थे।
सरकार का नामोनिशान नहीं
गांव में हैंडपंप को छोड़ दिया जाए तो सरकार का यहां कोई नामोनिशान नहीं है। गांव के लोगों के राशन कार्ड तक नहीं है। सोसायटी से महंगे दाम पर चावल खरीदना ग्रामीणों की मजूबूरी है। सालों पहले प्राथमिक शाला और आंगनबाड़़ी थी, पर माओवादियों ने उसे तोड़ दिया तब से इनका संचालन बंद है। गांव के एक युवक ने बच्चों को यहां पढ़ाना शुरू किया था पर सुरक्षा जवानों ने उसे पकड़कर १७ दिनों के लिए जेल में बंद कर दिया। तब से यह व्यवस्था भी ठप हो गई।
पत्रिका संवाददाता से माओवादियों ने की कड़ी पूछताछ
मनकेली पहुंचने के दस मिनट बाद ही हम चारों तरफ से घिर चुके थे। मनकेली में कदम रखते ही हम एक घर पर रुके। हमें देखते ही वहां मौजूद परिवार डर गया। हमने उनसे बात करनी चाही, पर वे खामोश थे। हैरानी के साथ वे� हमें देखते रहे। उनमें से एक ने कहा, यहां कोई कभी नहीं आता, आप यहां कैसे पहुंचे गए हैं। क्या आप फोर्स के आदमी हैं? हमने बताया, हम पत्रकार हैं और गांव में सरकारी योजनाओं की हकीकत जानना चाह रहे हैं।
इस पर उसने कहा, हमें कुछ बोलने की इजाजत नहीं है, हमारे नेता आपसे बात करेंगे। हमने वापस जाने की बात कही पर उसने कहा, अब आप वापस नहीं जा सकते। कुछ ही पल में हम सैकड़ों ग्रामीणों के बीच थे और लंबी पूछताछ का सिलसिला शुरू हो गया। जब हमने उन्हें यकीन दिलाया कि हम पत्रकार हैं, तब जाकर उन्होंने छोड़ा। बातचीत से हमें लगा कि यह असली माओवादी नहीं बल्कि उनका आउटर लेयर है पर सरकार की पहुंच नहीं होने से अंदर वालों के आदेश मानना इनकी मजबूरी है। मनकेली समेत इलाके के दर्जनों गांव माओ की सेना के कब्जे में है और इनकी इजाजत के बिना कोई यहां आ तो सकता है पर जा नहीं सकता।
युवा नहीं निकलते गांव से
सरकार ने इस गांव के लोगों को अघोषित तौर पर माओवादी करार दिया है। स्थिति यह है कि एक दशक से गांव का कोई भी युवा अपनी सरहद पार कर शहर तक नहीं आया। जब भी किसी ने ऐसा करने की हिमाकत की पुलिस ने उसे माओवादी बताकर जेल में बंद कर दिया। गांव की महिलाएं ही शहर से सामान लाने-ले जाने का काम करती है। जंगल से लकडिय़ों को लाकर होटलों में बेचना रोजगार का प्रमुख जरिया है। इसके बदले वे चावल व नमक खरीदकर वापस गांव लौटती है।
राज्य सरकार के खिलाफ गुस्सा
मनकेली के ग्रामीणों में राज्य सरकार के खिलाफ काफी गुस्सा नजर आया। उन्होंने बताया, सलवा-जुडूम के समय उन्हें राहत शिविरों में रखा गया था पर वे वहां से वापस गांव चले आए। इसके बाद उन्हें माओवादी करार दिया गया और गांव आकर सुरक्षा जवानों ने उनके घर जला दिए। अब भी जवान गांव तक आते हैं और ग्रामीणों को प्रताडि़त करते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि सुरक्षा बलों के जवान गांव की महिलाओं के साथ बदसलूकी करते हैं। गांव की बूढ़ी महिलाओं के साथ भी बलात्कार किया गया है पर वे मजबूरी में इसकी शिकायत तक नहीं करतीं।
जनताना सरकार के गांव से
[अ निमेष पॉल]
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