जंगल व नदी की कीमत पर छत्तीसगढ़ बन रहा पावर सरप्लस राज्य
धीरेन्द्र सिन्हा बिलासपुर,नईदुनिया ]पावर सरप्लस की दौड़ ने प्रदेश के जंगल और नदियों को खतरे में डाल दिया है केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा कराए जा रहे सर्वे की प्रारंभिक रिपोर्ट के मुताबिक कोयला खदान और थर्मल पावर प्लांट्स पर्यावरण को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैंरिपोर्ट में बताया गया है कि यही हाल रहा तो ८० साल में छत्तीसगढ़ में जंगल पूरी तरह नष्ट हो जाएगा इसकी वजह से नदियों का अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा साथ ही सामान्य तापमान के तीन से चार डिग्री सेल्सियस बढ़ने की आशंका हैभारत सरकार पर्यावरण मंत्रालय वृहद स्तर पर एक गोपनीय सर्वे करा रहा है इसमें कई राज्यों के जंगल व नदी की वर्तमान और अगले ५० साल बाद की स्थिति पर रिपोर्ट मांगी गई है इसका उद्देश्य है कि समय रहते जंगल व नदी को बचाया जा सके इसके लिए छत्तीसगढ़ के लिए भी एक टीम तैयार की गई है इसमें गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय फॉरेस्ट्री डिपार्टमेंट के डीन प्रो. एसएस सिंह को जिम्मेदारी दी गई है पिछले तीन साल से वे इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं गोपनीयता का हवाला देते हुए उन्होंने आंकड़े उपलब्ध कराने से तो मना कर दिया, लेकिन प्रारंभिक रिपोर्ट के महत्वपूर्ण निष्कर्ष बताए उनके अनुसार कोल खदानें और थर्मल पावर प्लांट्स पर्यावरण पर बहुत खराब प्रभाव डाल रहे हैं।पावर सरप्लस बनने के लिए राज्य में कोयले की खदानें और थर्मल पावर प्लांटों की संख्या तेजी से बढ़ रही है प्रदेश के ४४ प्रतिशत भाग में जंगल है, जो खनिज संपदा से परिपूर्ण हैं खदानों से कोयला निकालने के लिए पेड़ काटे जा रहे हैं अकेले नकिया कोल ब्लाक के लिए चार लाख पेड़ों की बलि दी गई है इससे जैव विविधता को खतरा है थर्मल पावर प्लांट्स में कोयला व पानी के उपयोग से वायुमंडल गर्म हो रहा है रायपुर, बिलासपुर व कोरबा जिला इसका उदाहरण है यहां गर्मी में सामान्य तापमान हर साल एक से दो डिग्री बढ़ रहा है।जंगल व नदी की... यही स्थिति रही तो आने वाले ८० साल बाद राज्य में जंगल ही नहीं बचेगा नदियां सूख जाएंगी इससे उनका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा शासन को इस ओर ध्यान देने की जरूरत हैक्या है प्रदेश में वर्तमान स्थिति :प्रदेश में अभी ३९ कोयला खदानें हैं इसके अलावा १६ थर्मल पावर प्लांट हैं, वहीं १२ अंडर कंस्ट्रक्शन हैं जानकारी के मुताबिक कोरबा, कोरिया व सरगुजा जिले के नीचे ५० हजार मिलियन टन कोयला अभी जमीन के नीचे है देश के कोयला उत्पादन में हर साल छत्तीसगढ़ का योगदान २१ प्रतिशत से अधिक रहता है रायगढ़ व कोरबा में छह-छह, सुरजपुर व कोरिया में ११-११, सरगुजा में चार व बलरामपुर में एक कोयला खदान है अधिकांश खदानों से निकलने वाले कोयले का उपयोग उद्योग-धंधे व बिजली उत्पादन में ही किया जाता है यही वजह है कि छत्तीसगढ़ पावर सरप्लस राज्य है इसे बनाए रखने पेड़ों की बलि देकर खदानें बढ़ाई जा रही हैंनदियों को जोड़ने की कवायद :सर्वे के मुताबिक प्रदेश में २१ छोटी- बड़ी नदियां हैं इनमें महानदी, शिवनाथ, इंद्रावती, हसदेव, केलो, बाघ व मांड प्रमुख हैं, जहां गर्मी के दिनों में भी पानी का बहाव रहता है इसके अलावा अरपा, लीलागर, सोम व आगर, मनियारी जैसी नदियां गर्मी के दिनों में सूख जाती हैं ऐसी परिस्थिति में इन नदियों को जोड़ने की योजना है बताया गया कि प्रदेश की सभी नदियां जंगलों से होकर बहती हैं वहां पेड़ों की जड़ें पानी को रोक लेती हैं वहीं, देश के अन्य राज्यों में नदियां मुख्य रूप से पहाड़ों से निकलती हैं इसलिए यहां इन नदियों को जोड़ने में दिक्कत नहीं आएगीकेंद्र सरकार ने इसके लिए विशेष दिशा-निर्देश भी दे रखे हैंडाटा बेस हो रहा तैयार :नदी, बांध के जरिए सिंचाई करने व जल को बचाने के लिए प्रयास जारी है इसके लिए सभी जिलों से जानकारी एकत्रित कर डाटा बेस तैयार किया जा रहा है इसमें जंगल, खदान व प्लांट के बारे में पूरी जानकारी होगी राज्य शासन के लिए भी यह रिपोर्ट बेहद महत्वपूर्ण होगी अब तक शासन के पास इस तरह कोई डाटा बेस नहीं है. | ||
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Friday, June 5, 2015
जंगल व नदी की कीमत पर छत्तीसगढ़ बन रहा पावर सरप्लस राज्य
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