िरायगढ़ में विकास के नाम पर पेड़ों की बलि
Posted:2015-06-05 11:40:54 IST Updated: 2015-06-05 12:17:37 IST
अब शहरी विकास के नाम पर भी हजारों पेड़ों की बलि फिलहाल दी जा चुकी है। धुएं सहित जलप्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण से जूझते जिले की हरियाली में सेंध मारी जा रही है
रायगढ़. पर्यावरण दिवस के अवसर पर पूरे तामझाम से सरकारी और निजी महकमा दुनियां में हरियाली लाने के लिए लंबी चौड़ी योजनाएं लिए बैठा जबकि हकीकत यह है कि पहले से ही राख, धुएं सहित जलप्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण से जूझते जिले की हरियाली में सेंध मारी जा रही है। जहां उद्योगों के नाम पर हजारों हेक्टेयर पौधों की बली दी गई।
वहीं अब शहरी विकास के नाम पर भी हजारों पेड़ों की बलि फिलहाल दी जा चुकी है अन्य की तैयारी जारी है। शहरी क्षेत्रों में विकास के नाम पर हजारों पेड़ों की बलि दी गई। इस सिलसिला लंबे समय से चल रहा है। वहीं यदि इसकी फरपाई की बात की जाए तो पौधरोपण का कार्य कागजों में हुआ है। अब यदि शहर में पेड़ों के कटने के सिलसिले की बात की जाए तो शुरुआत तीसरी रेल लाइन के निर्माण के दौरान हुई। जहां चक्रपथ इलाके में लगभग सौ पेड़ों को काट दिया गया।
इसके बाद नगर निगम के द्वारा पिछले दिन साल से 25 सड़क का निर्माण किया जा रहा है। सड़क निर्माण अभियान में करीब ३ सौ से अधिक पेड़ों की बलि भी चढ़ा दी गई है। खास बात यह है कि निगम के द्वारा वन विभाग के बिना अनुमति के पेड़ों को काटा गया। ऐसे में तात्कालीन रायगढ़ रेंजर आरके सिसोदिया ने निगम को नोटिस भी जारी किया था। इस नोटिस में जितने पेड़ काटे गए उससे अधिक पेड़ लगाने की बात भी कही गई थी, लेकिन निगम के द्वारा अधिकांश जगहों पर पौध रोपण का कार्य कागजों में ही किया गया। वहीं कुछ जगहों पर पेड़ लगाया गया, लेकिन रख-रखाव के अभाव में यह पौधे भी मरने की कगार पर पहुंच गए हैं। इससे पहले भी निगम के द्वारा पौधरोपण पर लाखों खर्च हुए।
50 लाख 52 हजार 375 मिट्रिक टन राख
जिले में संचालित होने वाली कंपनियों की बात की जाए तो केवल पावर प्लांटो से ही वर्तमान में लगभग साढ़े पचास लाख मिट्रिक टन राख हर साल निकल रहा है। जबकि अभी भी और कंपनियों की स्थापना की जानी है। इसके अलावा यदि स्टील सेक्टर के कंपनियों की बात की जाए तो स्पंज आयरन सहित अन्य कंपनियों में प्रतिटन उत्पादन के लिए 0.63 टन कोयले की आवश्यकता होती है। इसमें भी कोयले की गुणवत्ता के अनुसार 30 से 40 प्रतिशत राख निकलता है। ऐसे में जिले में इन राख का क्या किया जा रहा है इस बात को पूछे जाने पर पर्यावरण विभाग केवल इतना कहता है कि इसकी इंट बनाई जा रही है। पर कितने कंपनियों ने कितनी इंट बनाई है इसका हिसाब मिलना मुश्किल होता है। विभाग के पास इस बात की जानकारी भी नहीं होती है और न कभी मांगी जाती है।
बजट में लाखों की स्वीकृत
नगर निगम के बजट पर गौर करते तो पर्यावरण सुधार के लिए निगम के द्वारा हर साल बजट प्रावधान किया जाता है। इस बार भी निगम के द्वारा पर्यावरण सुधार एवं वृक्षारोपण एव आकस्मिकता के लिए 30 लाख रुपए प्रावधान किया गया है। इसके अलावा पौधरोपण स्थलों पर पानी टंकी निर्माण के लिए 2 लाख रुपए स्वीकृत किया गया है।
वकास की अंधी दौड़ में प्रकृति और पर्यावरण की उपेक्षा सरकारों की ओर से की जा रही है। उद्योग और आधारभूत संरचना के विकास में इस शर्त को तो जोड़ा जाता है कि दोगुनी हरियाली लाई जाएगी। पर हकीकत में ऐसा होता नहीं है। यदि ऐसा होता तो अब तक उद्योगों में और शहरी विकास के नाम पर जितने भी पेड़ कटे हैं उसके दोगुने का रोपण होता तो पूरा जिला हरियर हो जाता।
राजेश त्रिपाठी, जनचेतना\
रायगढ़ जिले में जिस प्रकार से पर्यावरण की उपेक्षा की जा रही है। आने वाले समय में जिले के लोगों को इसे भुगतना होगा। जिस प्रकार से उद्योगों के नाम पर पेड़ काटे गए, शहर विकास के नाम पर पेड़ काटे गए लेकिन उसकी भरपाई नहीं की गई। उसका खमियाजा पहले पर्यावरण भुगतेगा इसके बाद में यहा निवास करने वाले लोग भुगतेंगे। इस मसले पर गंभीरता से और इमानदारी से प्रयास करना होगा।
रमेश अग्रवाल, ग्रीन नोबेल विजेता
नाकाम स्टेशन की स्थापना हो चुकी है। वहीं एक से दो दिनों में इसे चालू कर दिया जाएगा। इसके बाद शहर के प्रदूषण आदि की जांच शुरू हो जाएगी।
आरके शर्मा, पर्यावरण अधिकारी
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