चावल के लिए ग्रामीणों को करना पड़ता है मौत से सामना
शाम छह बजे के बाद रास्ता ब्लॉक कर दिया जाता है। कटीले तारों के इस तरफ सरकार तो उस तरफ जनताना सरकार का बोलबोला है
जगदलपुर/दंतेवाड़ा.चालीस घंटे से हो रही बारिश में पत्रिका टीम ने दंतेवाड़ा जिले की सीमा से सटे बस्तर के लोहंडी ब्लॉक का जायजा लिया। टीम बाइक से बारसूर पहुंचे। इसके बाद स्टेट हाइवे पांच नंबर को पकड़ा। महज पांच से सात किलोमीटर चले थे कि 195 बटालियन के कैंप के पास पहुंचे। जहां जवानों ने रोका और पूछा कहां जा रहे हो, गांव का नाम बताया हर्राकोडेर। उन्होंने मना किया, लेकिन जान जोखिम में डाल कर आगे बढ़ गए।
महज दो सौ मीटर चले थे कि 195 बटालियन की एक कंपनी और मिली। इसका बोधघाट परियोजना के समय बने पुल के ऊपर कब्जा है। उस पुल को सीआरपीएफ ने दो भागों में बांट दिया है। कटीला तार पुल के बीचो-बीच है। शाम छह बजे के बाद रास्ता ब्लॉक कर दिया जाता है। कटीले तारों के इस तरफ सरकार तो उस तरफ जनताना सरकार का बोलबोला है। इस पुल को पार करने के बाद दो रपटा पुल हैं।
बारिश में यहां से निकलने वालों को हर रोज मौत को मात देकर निकलना पड़ता है। एरपुंड़, महालेवाया, सालेपाल हर्राकोडेर, पिल्ली कोडेर, गोटिया बोदली, जैसे आधा दर्जन से अधिक गांव है। इन गांव में अधिकारी तो कभी झांकने नहीं जाते, नेता भी कभी नहीं पहुंचे। पहाडिय़ों को पार करते हुए आदिवासी महिलाओं और पुरुषों की एक टोली आती दिखी। हमने अपनी बाइक को रोका और पूछा कहां जा रहे हो। वे लोग बोले चावल का दिन है, चावल लेने जा रहे हैं। उनसे बात की। जल्दी-जल्दी पूछो मौसम बहुत खराब है, चावल लेकर एरपुंड से आना है।
समय पर नहीं आए तो रपटा पुल को पार नहीं कर पाएंगे। उनसे पूछा चावल तुमको कौन देता है, जबाब था रमन बाबा। तुम्हारे क्षेत्र का विधायक कौन है, विधायक सुदुराम सरपंच। इतना कहते ही आगे बढ़ गए। जबकि इस विधानसभा से दीपक बैज है। हम बोदली गांव की ओर बढ़ गए। गांव वाले चावल लेने के लिए एरपुंड की ओर। बोदली गांव पहुंचे तो संदिग्ध निगाहों ने घेर लिया। उन्होंने पूछताछ करने के बाद कहा, सरकार को बताओ कि गांव वाले कब तक नरकीय जीवन जीने पर मजबूर रहेंगे। जहां विकास के नाम पर दो किलो चावल वो भी 20 से 25 किमी का सफर तय कर मिलता है।� बरसात में मौत को मात देकर पेट पलते है।
वहां से दोपहर बाद करीब तीन बजे निकले बारिश अपने चरम पर थी। एक रपटा को गांव वालों की मदद से 70 रुपए देकर पार करवाई। जैसे ही दूसरे रपटा पुल के पास पहुंचे बहाव बहुत तेज था हिम्मत ने जबाब दे दिया। पुल के दोनों ओर लोग पानी के बहाव कम होने का इंतजार कर रहे थे, बारिश कम नही हुई। आखिरकार हमें रात महालेवाया के सचिव के यहां आग्रह कर रात काटनी पड़ी। सुबह पानी कम हुआ तो गांव वालों की एक बार मदद ली। बाइक को कंधे पर उठाकर पार करवाई, तब कहीं १०० मीटर का पुल पार कर दंतेवाड़ा के लिए रवाना हो सके।
रपटा न पुल
पेट के लिए चार माह बरसात में गांव वालों को परेशान� होना पड़ता है। सात किलोमीटर के दायरे में दो रपटा पुल हैं लो गांव वालों के लिए चुनौती है। बरसात के सीजन में ऐसा कभी नहीं हुआ कि एक-दो मौत न हुई हो। जो बह गया, वो बह गया। हैरान करने वाली बात है कि पुलिस रिकॉर्ड में भी ये मौतें नहीं हैं।
यदि इस तरह के हालात हैं तो� गांव वालों को फंसा हुआ नहीं छोड़ा जा सकता है। रपटा पुल पर बरसात के लिए रस्सी और खंभों के जरिए टंपरेरी व्यवस्था की जाएगी।� फिलहाल पहली प्राथमिकता गांवा वालों को सुरक्षित करना है। एक टीम को तत्काल रवाना करता हूं।
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