Saturday, September 20, 2014

तुम्हारा खून ,खून ,हमारा खून पानी ,,


तुम्हारा  खून ,खून ,हमारा खून पानी ,,



सभ्यता  के असभ्य जन ,यह तुम्हारा वक़्त  नहीं ,
नींद  में खलल मत डालो 
मिटटी में मिल जाओ , पहाड़ में समा जाओ ,नदी में  बह जाओ 
जाओ जी लेना फिर कभी,[ उमा ]

कर्मा पाडू  ,कर्मा गुड्डू ,कर्मा जोगा ,कर्मा बदरू ,कर्मा शम्भू ,कर्मा मासा ,पूनम लाकु ,पूनम सोलू ,छोटू ,कर्मा छन्नू , पूनम शम्भु  या करा मायलु  का नाम किसी ने सुना हैं इनमे 6  लोग तो 15  साल से कम के हैं  नहीं सुना   , सही है ,क्यों  की सारे देश केका मिडिया तो महेंद्र कर्मा   वगैरा  की शहादत में डूबा हैं , चलो  में बताता हूँ ,ये सब लोग बीजापुर [ छत्तीसगढ़ ] से 20  किलोमीटर  दूर कठिनाई  भरे रास्ते  में गाँव  एडसमेटा  के आदिवासी है , इन्हें कांग्रेसी काफिले पे  हमले से  ठीक  8  दिन पहले छत्तीसगढ़ की  महान  फ़ोर्स  ने  दोडा  दोडा  के गोली मारी थी , इसमें पहले  8  लोग वहीँ मर गए थे , शेष 4  लोग अपना इलाज़  करवा रहे हैं 

 में उन दिनों पुणे में था . किसी राष्ट्रीय न्यूज़  चेनल या अखबार में कोई समाचार नहीं  छपा था , किसी ने रायपुर से फोन  किया तो टी व्ही  छत्तीसगढ़ से पता चला की कोई घटना हुई भी हैंऔर जीरम  घाटी  में काफिले पे हमला हुआ , सारे देश में हाहाकार   मच गया ,मानो इनका खून ,खून  और हमारा खून पानी / दुर्भाग्य से यही सच हैं / आज तक इन हत्या का कोई मुकदमा दर्ज नहीं हुआ ,कोई ऍफ़ आई आर नहीं हुई ,कुछ कर्यकर्ता थाने गये  तो  रिपोर्ट दर्ज  से  कर ने से इंकार कर दिया , अब रिपोर्ट दर्ज करने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना पड  रहा हैं . एक तरफ सरकारी तामझाम , गरिमा युक्त  अंतिम बिदाई , राजकीय शोक , प्रधान मंत्री  से लेकर सोनिया जी , राहुल ,राजनाथ ,सिंह राज्यपाल ,मुख्यमंत्री  तक  हाल बेहाल हो गए . वही  दूसरी तरफ एडसमेटा  में कोई लाश उठाने वाला नहीं था , उनकी  माँ ,पत्नी  बहन ने लाशे खाट पे  ढोयी 
इन ग्रामीणों के पोस्ट मार्टम इतना अपमानजनक हुआ ,जिस जानवरों का भी नहीं होता होगा , दो दिन तक खुले में लाशे पड़ी रहीं , उनके शरीर फुल गए थे , इन सब लोगो का पोस्ट मार्टम खुले में घटना स्थल पे ही किया गया , वो भी  बहुत बेदर्दी के साथ .इन बच्चो  और बड़ो की लाश का  चीरा  भी इनके मान बहन और पत्नियों से लगवाया गया , डॉ  शव से 25 कदम दूर खड़े थे ,  लम्बी लकड़ी  से  दूर  से ही कुदर रहे थे , जिनके प्रिय  को मर दिया गया ,उन्हें ही इस शव की चीर फाड़ करना पड़ी . /
इस द्रश्य की आप कल्पना कर सकते  हैं , और आखरी में इस आग्रह  के बाबजूद की आदिवासी    परम्परा  में शव को ज़मीन में गाड़ा  जाता है , पुलिस  सारे शव जला   दिये , ताकि बाद में दुबारा  पोस्ट मार्टम की झंझट   हो
ऐसा पहली बार नहीं हो रहा , सारकेगुडा , सिंगावाराम ,पोंजेर ,माटवाडा ,कोका  वाडा,एडानार  जैसी कई हत्याएं हुई .जिसकी आज तक कोई क़ानूनी कार्यवाही नहीं हुईं . क्या आदिवासी होना अपराध हो गया हैं , कोई राजनेता कभी कुछ नहीं बोलता , चुनावी नफा नुक्सान की भी चिंता भी नहीं है , जब सी  आर पी को ही वोट  डालना है तो फ़िक्र कहे की,  सही तो यही है की ,   दोनों बड़े राजनेतिक दल तो वोट मांगने तक नहीं जाते . फिर उन्हें कहे की चिन्ता .

[ लाखन सिँह ]













1 comment:

  1. Hul Johar!
    To avoid another Sukma, be fair to the tribal people of India. Accept dignified and rightful existence of the tribal people. Respect the constitution of India.Respect 5th Scheduled area act, 6th Scheduled area act, CNT act, SPT act, PESA act, Samtha Judgement, Forest Rights Act 2006 etc.

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