अतातुर्क कमाल पाशा |
तुर्की मे बिस्मिल शहर , रोशनी का कोई देश नहीं
होता
पता नहीं आपको मालूम है की नहीं की तुर्की मे उस
समय के क्रांतकारी शासक कमाल पाशा ने भारतीय क्रांतकारी
रामप्रसाद बिस्मिल के नॅम पे अपने देश मे बिस्मिल नाम का जिला बनाया था , पहल के
96 अंक मे सुधीर विध्यार्थी के लेख से हमे मालूम पडा , आप भी जरूर जनना चाहेंगे
तो हाजिर उनकी जानकारी ,
तुर्की देश मे एक शहर है
"दियारबाकिर" जिसका अर्थ होता हैं , बगियो का दियार ,हिन्दी मे
इसे विद्रोहियो का इलाका या उनका भूखंड भी कह सकते हैं तुर्की के साउथ इस्ट
अनतोलिया के इस दियारबाकीर प्रान्त के पूर्व मे बिस्मिल के नाम पे एक जिला है, ये
वही भारतीय क्रांतकारी रामप्रसाद बिस्मिल है जिन्हे 9 अगस्त 1927 के प्रसिद्द
काकोरी कांड मे अपने तीन साथियो के साथ 19 दिसम्बर 1927 को अंग्रेजो ने फांसी पे
चढा दिया था .दियारबाकिर मे बिस्मिल जिला और बिस्मिल शहर की स्थापना 1938 मे
अतातुर्क कमाल पाशा ने की थी .
बिस्मिल
का नाम उनकी शाहदत के समय क्रांति का प्रतीक बन चुका था .कमाल पाशा उनसे बहुत प्रभावित
थे , 1922 मे प्रभा पत्रिका मे बिस्मिल ने विजयी कमाल पाशा नाम से एक लेख भी
लिखा था यह ठीक वही समय है जब कमाल पाशा ने तुर्की मे गणतंत्र की घोषना करके सुल्तान
अबुदुल वाहीद खान गाज़ी को अपदस्थ कर दिया था और वो अंग्रेजो के जहाज़ से माल्टा भाग
गया था .कमाल पाशा ने आखिर खिलाफत का भी अन्त कर दिया था
1936 मे कोन्या से भारी संख्या मे आये तुर्क
विस्थपितो को बसाने के लिये इस जिले को बनाया गया था बाद मे तुर्की के राष्ट्रपती
पाशा ने इसे बिस्मिल जिला बना दिया इसका मुख्य शहर बिस्मिल शहर के नाम से जाना
जाता हैं , यह पहाडियो के बीच बसी सुन्दर बस्ती है जॉ parko के लिये जानी जाती हैं
,इस जिले मे 13 गाव और दो कस्बे हैं ,
तुर्की
गणराज्य की स्थापना पाशा ने 29 oktumbar 1923 को की थी सरकार ने कानून लागू करते ही सारे स्कूलो को सरकार के
अधीन कर दिया और सारे मदरसो को बंद कर दिया था ,उन्होने कहा था की मसज़िद के अंदर
मुसलमान है और बाहर वे तुर्की के नागरिक .और खुदाओ और मुल्लाओ का स्थान सिर्फ
मस्जिदों के अंदर हैं ,उन्होने पर्दा प्रथा पे तुरन्त रोक लगा दी, कमाल पाशा ने
अपने देश मे खलिफा की कट्टर धर्मिक सत्ता को खतम करके सही मे गन्तन्त्र को
स्थापित कर दिया था ,
आपको याद् दिलाने की जरूरत नहीं है की इसी
बद्लाव के खिलाफ गांधी जी ने आज़ादी के समय खिलाफत आंदोलन चलाया , और हमेशा
के लिये कोंग्रेस को धर्मिक दोराहे पे खडा कर दिया ,इसके बाद कोंग्रेस
सम्मेलन मे कुरान की आयते और गीता के श्लोक पढे जाने लगे , इस खिलाफत आंदोलन
का विरोध कई क्रांतक्रियो और खान अब्दुल गफ्फर खान ने भी किया था किसीने तुर्की के
लोगो से नही पूछा की वो क्या चाहते है ,बस गांधी जी ने तय कर लिया की अरब के मुसलमान
तुर्की के सम्राज्य मे उनके अधीन रहना चाहते है ,
खैर ये अलग बहस का मुद्दा हैं ,जॉ फिर कभी सही ,
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