मोदी के खिलाफ गुजरात दंगा मामले में अमेरिकी कोर्ट ने जारी किया समन, 21 दिन में देना होगा जवाब
dainikbhaskar.com|Sep 26, 2014, 09:27AM IST
फोटो: 25 सितंबर को अमेरिका के लिए रवाना होते प्रधानमंत्रीनरेंद्र मोदी।
वॉशिंगटन। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका पहुंचने से ठीक पहले न्यूयॉर्क की एक अदालत ने उनके खिलाफ समन जारी कर दिया है। 2002 के गुजरात दंगा मामले में बतौर मुख्यमंत्री मोदी की भूमिका पर यह समन जारी किया गया है। एक अंग्रेजी अखबार के मुताबिक, प्रधानमंत्री को अब 21 दिनों के भीतर जवाब देना होगा। अगर तय वक्त के भीतर जवाब नहीं दिया गया तो उनके खिलाफ 'डिफॉल्ट जजमेंट' का इस्तेमाल किया जा सकता है।
मोदी के खिलाफ याचिका
न्यूयॉर्क के सदर्न डिस्ट्रिक्ट की संघीय अदालत ने मानवाधिकार संगठन अमेरिकन जस्टिस सेंटर (एजेसी) की याचिका पर मोदी के खिलाफ समन जारी किया है। 28 पन्नों की इस याचिका में मोदी पर मानवता के खिलाफ अपराध, हत्याएं, टॉर्चर और दंगा पीड़ितों पर मानसिक और शारीरिक यंत्रणा पहुंचाने का आरोप लगाया गया है। संगठन ने नरेंद्र मोदी पर कार्रवाई करने के साथ-साथ दंगा पीड़ितों को मुआवजा दिए जाने की भी मांग की है।
न्यूयॉर्क के सदर्न डिस्ट्रिक्ट की संघीय अदालत ने मानवाधिकार संगठन अमेरिकन जस्टिस सेंटर (एजेसी) की याचिका पर मोदी के खिलाफ समन जारी किया है। 28 पन्नों की इस याचिका में मोदी पर मानवता के खिलाफ अपराध, हत्याएं, टॉर्चर और दंगा पीड़ितों पर मानसिक और शारीरिक यंत्रणा पहुंचाने का आरोप लगाया गया है। संगठन ने नरेंद्र मोदी पर कार्रवाई करने के साथ-साथ दंगा पीड़ितों को मुआवजा दिए जाने की भी मांग की है।
जवाब नहीं देने पर हो सकती है कार्रवाई
मोदी के खिलाफ जो समन जारी किया गया है, उसमें कहा गया है कि 21 दिनों के भीतर जवाब दाखिल नहीं करने की सूरत में 'डिफॉल्ट जजमेंट' का इस्तेमाल किया जाएगा। गौरतलब है कि इस तरह के जजमेंट का प्रयोग तब होता है, जब किसी मामले में कोई एक पार्टी तय वक्त के भीतर जवाब नहीं दे पाती है। ज्यादातर मामलों में जब प्रतिवादी समन का जवाब देने में नाकाम रहता है तो फैसला वादी के पक्ष में जाता है।
मोदी के खिलाफ जो समन जारी किया गया है, उसमें कहा गया है कि 21 दिनों के भीतर जवाब दाखिल नहीं करने की सूरत में 'डिफॉल्ट जजमेंट' का इस्तेमाल किया जाएगा। गौरतलब है कि इस तरह के जजमेंट का प्रयोग तब होता है, जब किसी मामले में कोई एक पार्टी तय वक्त के भीतर जवाब नहीं दे पाती है। ज्यादातर मामलों में जब प्रतिवादी समन का जवाब देने में नाकाम रहता है तो फैसला वादी के पक्ष में जाता है।
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