शांति और स्वशासन के लिए कोटा से बस्तर की पद यात्रा
यद्यपि इस यात्रा को पूरा हुए लगभग 18 महीने पूरे हो गए है , लेकिन वहाँ की स्थिति पहले से और बदतर हो गई है , मुझे लगा की इस पदयात्रा के अनुभव से एक दुबारा रूबरु हुआ जाये , मेने इसे एक साल पहले लिखा था , में भी इसे दोहराना चाहता हूँ ,और आपका भी पढ़ना एक अनुभव से गुजरना होगा।
लाखन सिंह
कोंटा से सुकमा पैदल मार्च [1]
पूरे दस दिन सबसे रूबरू नहीं हो सका , आदिवासी महासभा ने कोंटा से जगदलपुर तक का पैदल मार्च [ 1 से 15 मार्च 2013 ] शुरू किया था .छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने प्रस्ताव किया की कुछ लोग इस यात्रा में शरीक हों [ रमाकांत , एपी जोसी , सहाना और मैं ] ने तय किया की , कोंटा से सुकमा [ 80 किलोमीटर , पांच दिन ] तक यात्रा में शिरकत की जानी चाहिए / अस्थमा ,परिवार और कुछ मित्रो ने गंभीरता से कहा की दुबारा सोच लो , कही आयोजको को मुश्किल में न डाल दो , लेकिन मुझे लगा की , चला जाये ,होगा सो देखा जायेगा ,मनीष कुंजाम ने भी कहा ,आ जाओ , कुछ नहीं होने देंगे , सही भी यही है की कुछ नहीं हुआ . पूरा क्षेत्र बहुत दुखद , सहमा और स्तब्ध सा हैं, में कह सकता हूँ की आदिवासी महासभा ने इस शमशान की शांति को ब्रेक किया हैं , लोगो का गुस्सा फूट पड़ा हैं , वे हर हालात में शांति चाहते हैं , और स्वशाशन भी . में यात्रा में आई बातो को छोटी छोटी 15 टिपण्णी में समेटना चाहता हूँ ,
कोंटा छत्तीसगढ़ के नक़्शे में बिलकुल वैसा ही है जैसे भारत के नक़्शे में कन्याकुमारी / ये छत्तीसगढ का वो प्रवेश द्वार है जहाँ से बस्तर के राजा से लेकर , माओवाद , सी पी आई ,सेना और सांस्कृतिक हस्त्क्षेप बहुतायत में हुआ, 2005 से लेकर 08 तक यहाँ सलवा जुडूम , सुरक्षा बल , और माओवाद का तांडव न केवल देखा बल्कि सबसे ज्यादा सहा भी , शायद ये कभी मालूम नहीं पड़ेगा की , कितने आदिवासी महिला पुरुष बच्चे बे मोत मारे गए , कितने गाँव उजाड़े और जलाये गए , कितने गायब हो गए , खेती , जमीन ,थोड़ी बहुत संपत्ति और छोटे छोटे सपने ,संसाधनों को लूटने की सरकार और उद्योगपतियों की मिली भगत की भेंट चढ़ गए .
अभी बहुत दिन नहीं हुए है जब , इस क्षेत्र में आना जाना लगभग असंभव था ,स्वामी अग्निवेश से लेकर कलेक्टर कमिश्नर तक को सलवाजुडूम के गुंडों ने घुसने नहीं दिया था ,सी बी आई तक को सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाना पड़ी थी की , वे उन्हें स्थानीय पुलिस से बचाया जाये , सेना के केम्प के सामने से सवारी बस की सवारी को अपना सामान सर पे रख के पैदल गुज़ारना पड़ता था / लेकिन आज स्थिति में बदलाव आया हैं , एर्राबोर में सी आर पी केम्प के कमान्डेंट ने पैदल यात्रियों को न केवल चाय पिलाई बल्कि , एक जुटता की बात भी की , इस बदलते माहोल के लिए आदिवासी महासभा के साथ जन संघठन और नलिनी सुन्दर को धन्यवाद देना कोई नहीं भूलता , जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में सलवा जुडूम को समाप्त कराया।
पूरे दस दिन सबसे रूबरू नहीं हो सका , आदिवासी महासभा ने कोंटा से जगदलपुर तक का पैदल मार्च [ 1 से 15 मार्च 2013 ] शुरू किया था .छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने प्रस्ताव किया की कुछ लोग इस यात्रा में शरीक हों [ रमाकांत , एपी जोसी , सहाना और मैं ] ने तय किया की , कोंटा से सुकमा [ 80 किलोमीटर , पांच दिन ] तक यात्रा में शिरकत की जानी चाहिए / अस्थमा ,परिवार और कुछ मित्रो ने गंभीरता से कहा की दुबारा सोच लो , कही आयोजको को मुश्किल में न डाल दो , लेकिन मुझे लगा की , चला जाये ,होगा सो देखा जायेगा ,मनीष कुंजाम ने भी कहा ,आ जाओ , कुछ नहीं होने देंगे , सही भी यही है की कुछ नहीं हुआ . पूरा क्षेत्र बहुत दुखद , सहमा और स्तब्ध सा हैं, में कह सकता हूँ की आदिवासी महासभा ने इस शमशान की शांति को ब्रेक किया हैं , लोगो का गुस्सा फूट पड़ा हैं , वे हर हालात में शांति चाहते हैं , और स्वशाशन भी . में यात्रा में आई बातो को छोटी छोटी 15 टिपण्णी में समेटना चाहता हूँ ,
कोंटा छत्तीसगढ़ के नक़्शे में बिलकुल वैसा ही है जैसे भारत के नक़्शे में कन्याकुमारी / ये छत्तीसगढ का वो प्रवेश द्वार है जहाँ से बस्तर के राजा से लेकर , माओवाद , सी पी आई ,सेना और सांस्कृतिक हस्त्क्षेप बहुतायत में हुआ, 2005 से लेकर 08 तक यहाँ सलवा जुडूम , सुरक्षा बल , और माओवाद का तांडव न केवल देखा बल्कि सबसे ज्यादा सहा भी , शायद ये कभी मालूम नहीं पड़ेगा की , कितने आदिवासी महिला पुरुष बच्चे बे मोत मारे गए , कितने गाँव उजाड़े और जलाये गए , कितने गायब हो गए , खेती , जमीन ,थोड़ी बहुत संपत्ति और छोटे छोटे सपने ,संसाधनों को लूटने की सरकार और उद्योगपतियों की मिली भगत की भेंट चढ़ गए .
अभी बहुत दिन नहीं हुए है जब , इस क्षेत्र में आना जाना लगभग असंभव था ,स्वामी अग्निवेश से लेकर कलेक्टर कमिश्नर तक को सलवाजुडूम के गुंडों ने घुसने नहीं दिया था ,सी बी आई तक को सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाना पड़ी थी की , वे उन्हें स्थानीय पुलिस से बचाया जाये , सेना के केम्प के सामने से सवारी बस की सवारी को अपना सामान सर पे रख के पैदल गुज़ारना पड़ता था / लेकिन आज स्थिति में बदलाव आया हैं , एर्राबोर में सी आर पी केम्प के कमान्डेंट ने पैदल यात्रियों को न केवल चाय पिलाई बल्कि , एक जुटता की बात भी की , इस बदलते माहोल के लिए आदिवासी महासभा के साथ जन संघठन और नलिनी सुन्दर को धन्यवाद देना कोई नहीं भूलता , जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में सलवा जुडूम को समाप्त कराया।
कोंटा से सुकमा यात्रा [3 ]
कोंटा से एर्राबोर के पास एक गाँव हैं गगनपल्ली , ये गाँव बड़ा एतिहासिक हैं , एक तो इसलिए की 1949 - 50 में तेलंगाना संघर्ष के दौरान सी राजेश्वर राव , कैफ़ी आज़मी और राजबहादुर गौड़ यहाँ 6 माह भूमिगत रहे थे, . ये परिवार था सोयम जोगेइया का , जो 1965 में लागातर दो बार और 1980 में एक बार विधायक रहे , चुने गए थे कांग्रेस से किन्तु मन और र्विचार से कमुनिस्ट थे , उनके ही बेटे सोयम मुकेश के साथ पांच दिन रहा , मेरे आग्रह पे वे हमको उस गाँव ले गये / सोयम मुकेश सी पी आई के निष्ठावान कार्यकर्ता हैं ,और पूरी यात्रा के इंतजाम अली भी हैं,.
गगन पल्ली शुरू से राजनेतिक गतिविधियों का केंद्र रहा हैं ,सलवा जुडूम के दिनों इसे सबक सिखाने के लिए कई बार जलाया गया ,उजाड़ा गया , खेती जलाई गई . पूरा गाँव खाली करवाया गया , सलवा जुडूम के अत्याचार का केंद्र रहा है गगनपल्ली / पूरा गॉव खाली हो गया था , धीरे धीरे इंजरम केम्प से परिवार गाँव वापस आ रहे हैं , केम्प में वही रह गए है जो या तो सलवा जुडूम के नेता थे या एस पी ओ में भरती हो गए थे .उन्हें आज भी अपनी जान का खतरा हैं ,/
बहुत किस्से है इस गाँव के , की सोयम जोगैया के तीन बेटो में एक है ,सोयम मुक्का , जो न केवल सलवा जुडूम के नेता है ,बल्कि उसपे कई हत्याओ और बलात्कार के आरोप हैं , इसने ही स्वमी अग्निवेश पे किये गए हमले की अगुवाई की थी , जिसे पुलिस कोर्ट में फरार बता रही है और वो शान से प्रेस कांफ्रेंस कर रहा हैं , वो बड़ी शान से कोंटा के रेस्ट हाउस के पास रहता हैं / में दोनों से मिला , मेने देखा की दोनों में नाम मात्र को भी बाहरी तौर पे भेद नहीं दिखाई देता / किसी ने कहा हैं ,की हम जिसका विरोध करते है , वो उसके तरह ही हो जाता हैं . ये दोनों भाई एक दुसरे के बिलकुल बिपरीत हैं लेकिन ,किसी का किसी पे प्रभाव नहीं हैं . शायद यही आदिवासी संस्कृति होगी /
कोंटा से सुकमा यात्रा [4]
कोंटा से सुकमा यात्रा [ 7 ]
सी आर पी में भी आखिर हमारे ही लोग हैं , हो सकता है, की ये बदलते समय की प्रतिक्रिया हो , या इन सैनिकों का रिलायजेशन हो , पता नहीं ,हो तो ये भी सकता हैं की ये इनकी रणनीति हो , जो भी हो ,हमारी मुलाकात बिरला गॉव में रात्रि विश्राम के बाद पेदाकुर्ती सी आर पी केम्प के सामने उनके कमान्डेंट , [हरियाणा] से बहुत देर तक हुई , में वहाँ पदयात्रियों से कुछ पहले चाय के चक्कर पहुच गया था , उनके साथ एक केरला के और एक पंजाब के ऑफिसर भी थे , /
उन्होंने बड़ी संजीदगी से कहा की हमारी दुश्मनी तो यहाँ के किसी भी आदमी से नहीं हो सकती , जिनके पास रहने और खाने तक की मुश्किल हो उनसे सेना का क्या विरोध हो सकता हैं , इन्हें पढाना चाहिए , स्वास्थ्य की सुविधा देनी चाहिए इनकी आर्थिक तरक्की की जरुरत हैं , ते लोग कभी भी सेना के लिए संकट तो बन ही नहीं सकते , इतने सच्चे इमानदार लोग किसी के लिए क्या समस्या खड़ा कर सकते हैं . मुझे लगा की कोई समाजवादी कार्यकर्ता बोल रहा हैं , अभी बहुत कुछ कहने को बांकी था , उन्होंने कहा की हमारा विरोध अन्दर वालों [ मओवादियो ] से भी नहीं हैं , ये उनकी विचारधारा है ,वे इनकी भलाई सोचते हैं, जो काम सरकार को आज़ादी के इतने सालो तक करना चाहिए था ,यदि किया होता तो शायद इसकी नोबत ही नही आती /
एक और कमाल की बात की, सही तो यही है की हम उनसे लड़ने यहाँ आये है वे हमसे लड़ने हमारे वहाँ नहीं गए , में पांच साल से ,दुसरे सात साल से और तीसरे भी सात साल से यहाँ हैं , में हरियाणा ,ये केरल और पंजाब से हैं , हम तो देश की एकता और अखंडता के लिए लड़ रहे हैं , मेने उनसे पूछा की अन्दर /वाले देश की अखंडता के खिलाफ क्या करते है , तो उन्होंने कहा वेसे तो कुछ नहीं , हमें तो लगता है की हम अपने ही देश में अपने ही लोगो के खिलाफ यूद्ध लड़ रहे हैं / बहुत बेगुनाह मारे जारहे हैं, इतने तो किसी यूद्ध में भी नहीं मारे गए ,/
चर्चा के बीच पैदल मार्च वहां पहुच गया , तो उन्होंने मनीष कुंजाम से हाथ मिलाया और कहा की हम व्यक्तिगत रूप से तुम लोगो का स्वागत करते हैं , सबको चाय पिलाई , उन्होंने और हमने फोटो लिए /मुझे लगा की में किसी मानवीय विचारधारा के विद्वान से मिला जो बात तो सही कहता है लेकिन दुसरे पाले में हैं ,ऐसा पाला जो आदिवासियों को हटा के उनके संसाधन उद्योगों के हवाले कर देना चाहता हैं . पता नहीं उन्हें मालूम भी है की वे किसके हाथ की कठपुतली बन के अपने ही देश के लोगो के साथ यूद्ध लड़ रहे हैं .
उनके नाम स्थान ,और राज्य को मत खोजिये , यही हमारे और उनके लिए उचित हैं
कोंटा से सुकमा यात्रा [ 8 ]
कोंटा से सुकमा यात्रा [ 10 ]
दोरनापाल में करतम सूर्या की मूर्ति तुरंत हटाई जाये , ये आदिवासियो का अपमान हैं
क्या आप सोच सकते है की कभी जलीयाँवाला बाग़ में ज़नरल डायर की मूर्ति लगी हो , नहीं न ?, यदि ऐसा होता तो शायद देश के लोग उसे या तो तोड़ देते या उसे हटाने के लिए एक स्वर में मांग जरुर करते / लेकिन दोरनापाल के चोराहे के बिल्कुं नज़दीक एक ऐसे शख्श की मूर्ति उद्घाटन के इंतजार में हैं , जिसने सुकमा क्षेत्र के बहुत गाँव में अपने 100-150 लोगो के गिरोह के साथ हमले किये ,लोगो को क़त्ल किया , घरो को बेदर्दी के साथ जलाया , फसलो को लूटा , महिलाओ केसाथ दुराचार किया , जिसके आतंक से कई गांवो में सन्नाटा छा जाता था / उसके नाम है करतम सूर्या , जिसे पुलिस ने न केवल ड्रेस और हथियार दिया , बल्कि पूरा गिरोह तैयार कराया /
करतम सूर्या के किस्से अभी पुराने नहीं हुए हैं , 2010 में एक बिस्फोट में मारे जाने के पहले इसका काम था , गाँव के गाँव खाली करवाने के लिए हर वो तरिका अपनाना जो किसी भी मानवता को शर्मिंदा करता हो , जब वो अपने गिरोह [ गिरोह में 100-150 बर्दी और हथियार से लैस एसपीओ होते थे ] के साथ किसी बाज़ार या गाँव में जाता था तो सन्नाटा मच जाता था / इसका एक और सलवाजुडूम का साथी था रामभुवन कुशवाह जिसने भारी आतंक मचाया और अब धमतरी भाग गया /
ऐसे आतंकी और आदिवासियों पे अमानवीय अत्याचार करने वाले इंसान की सरकारी खर्च पे मूर्ति लगाना सारी मानवीयता के लिये अपमान हैं / कहा तो ये भी गया की इसके नाम से एक स्कूल का नाम रखा जा रहा था , लेकिन कलेक्टर के मना करने पे इसे रोका गया /
क्या इसका विरोध हमे सब मिलके नहीं करना चाहिए , यदि हाँ तो सरकार को पत्र तो जरुर लिख सकते हैं /
कोंटा से सुकमा यात्रा [ 12]
एक और साथी सुकुल प्रसाद नाग से मिलिए ,
धीर गंभीर , सुडोल , सुन्दर ललाट , क्रांतकारी विचारो से लैस , कॉमरेड सुधीर मुखर्जी के साथ के किस्से , बहुत पुराने कार्यकर्त्ता सुकुल प्रसाद नाग से यात्रा में मिलना बेहद सुखद लगा / वे भी 13 महीने जेल से अभी अभी बाहर आये हैं ,आरोप की अवधेश सिंह पे हमले में उनका हाथ था , कोर्ट ने उन्हें औरो की तरह निरपराध मान के रिहा कर दिया /
कॉम , नाग को दोरनापाल में सलवाजुडूम के आतंकियों ने गाड़ी से खीच के बहुत बुरी तरह मारा था , ये गुंडे मनीष कुंजाम को तलाश रहे थे जो आंध्र में एक बैठक से वापस आ रहे थे , सलवाजुडूम के लोग इसलिए नाराज़ थे की मनीष कुंजम ने आंध्र की एक बड़ी सभा में इन्हें गुंडा कह दिया था। [ कहा भी यही था ] जैसे तैसे मनीष रास्ता बदल के सुकमा पहुचे , कॉम नाग अलग गाड़ी में थे , तो इन्हें लगभग मरा समझ के ड़ाल दिया था।
उन्होंने बताया की सात आदिवासियों के सर महेन्द्र कर्मा के कहने पे काट, दिय गए थे, वे आरोपी भी जेल में थे, हमने कई बार उन्हें पीटने का सोचा , लेकिन हो नहीं पाया / जेल में उन्होंने भूख हड़ताल की तब कही जाके कुछ बनता दिखाई दिया /
65 साल की उम्र , पैदल चलने में सबसे आगे , भारी उर्जा से भरे कामरेड को सलाम .
कोंटा से सुकमा यात्रा
[ 11 ]
करतम जोगा से मिलिये
यात्रा के दोरान कुछ साथियों से मुलाकात करवाता हूँ / ये हैं करतम जोगा , ये सुप्रीम कोर्ट में सलवा जुडूम के खिलाफ रिट लगाने वालो में प्रमुख थे , सी पी आई की तरफ से जनपद के चुने हुये प्रतिनिध भी हैं , बेहद हँसमुख , कमिटमेंट के साथ काम करने वाले , और सलवाजुडूम के खिलाफ आन्दोलन के एक प्रमुख स्तम्भ /
सरकार ने इन्हें ताड मेटला में आदिवासियों के घर जलाने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया और तीन साल एक माह जेल मे रखा / बाद में इन्हें बेगुनाह मान कर रिहा भी का दिया गया . आज वभी वैसे ही पूरी ऊर्जा के साथ नाचते गाते यात्रा में देखना बड़ा सुखद लगा . इनकी बातो से कही भी नहीं लगा की वे जीवन के तीन साल जेल में बिता के आये हैं , न कोई चेहरे पे गुस्सा और न कोई अफ़सोस / ऐसे ही कमुनिस्ट होते हैं ,इन्हें सलाम /
कोंटा से सुकमा यात्रा [ 13 ]
एक और साथी से मुलाकात करवाता हूँ, ये हैं कॉम, सोयम मुकेश
सोयम मुकेश से यदि बिना किसी पूर्व जानकारी के मिलता तो शायद कभी उनके बारे में इतना नही जान पाता,बेहद सीधे सादे , दुबले पतले दिखने में बीमार जैसे ,पैर सूजे और चेहरा फुला हुआ , लेकिन वे कोंटा के सबसे पुराने सी पी आई के कार्यकर्त्ता हैं . पूरी यात्रा का इंतजाम इनके ही हाथो था ,यानी भोजन और रुकने की व्यवस्था ,/
सभी गाँव में साधन सम्बन्ध , हम भी क्यों नहीं , इनके पिता सोयम जोगैया ,यहाँ से तीन बार विधायक बने वो भी 60 और 80 क्र दशक में / थे तो कांग्रेस पार्टी के लेकिन कोंटा में सबसे पुराने प्राम्भिक सी पी आई के कार्यकता थे , तेलंगाना संघर्ष में जब भारत की सेना ने हमला किया , सी , राजेश्वर राव , कैफ़ी आज़मी , राज बहादुर गोड जब भूमिगत हुए तो कोंटा में आकर इन्होने से ही संपर्क किया था , और इनके गाँव गगनपल्ली में 6 माह इनके साथ रहे , हमें सोयम अपने गाँव और घर भी ले गए / मुकेश ने अपना घर छोड़ दिया था आज से 20 साल पहले , अंदर वालो की पहल से।लेकिन इनकी ज़मीन अभी भी गगन पल्ली में ही है औ र्खेती भी करते हैं, गगन पल्ली सलवाजुडूम के लोगो ने कई बार उजाड़ा /
बड़ा राजनेतिक परिवार , करीब 100 एकड़ जमीन के बाबजूद आर्थिक रूप से गरीबी रेखा से भी नीचे जीने वाला ये परिवार , किसी भी इमानदार कमुनिस्ट के लिए आदर्श माना जा सकता हैं। इनकी एक और कहानी हैं,इनके छोटे भाई है , सोयम मुक्का जो सलवा जुडूम के नेता , हत्याएँ , बलात्कार , गाँव लुटने के गंभीर घटना के लिये जिम्मेदार , जिन्हें पुलिस कोर्ट में फरार बता रही थी और ये महाशय शान से प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे , स्वामी अग्निवेश के साथियों पे हमला करने वाले ,सोयम मुक्का कोंटा रेस्ट हॉउस के नज़दीक ही शान से पुलिस के पहरे में रहते हैं /
मुझे अजीब लगा कि, कहीं भी मुकेश में मुक्का की आलोचना नहीं की और न ही सपोर्ट किया , इतना सहज जीवन कोई आदिम जाती के लोग ही अपना सकते हैं , तथाकथित सभ्य समाज़ में इसकी काल्पना की ही नहीं जा सकती हैं /
सोयाम मुकेश की सादगी और पार्टी के प्रति कमिटमेंट ने मुझे बहुत प्रभावित किया / पता नहीं वे कभी इस नोट को कभी पढ़ पाएंगे की नहीं , लेकिन में उन्हें सलाम करता हूँ। [ करीब एक साल बाद सोयम मुक्का को माओवादियों ने मार दिया ]
कोंटा से सुकमा यात्रा
[ 14 ]
बस्तर क्षेत्र से सी आर पी ,सी एस ऍफ़ , आई टी बी टी और सेना को तुरंत वापस किया जाये , तथा बस्तर में सेना का प्रशिक्षण केंद्र हटाया जाये /
सलवा जुडूम बंद होने की बात सरकार मान रही हैं , एस पी ओ अपने पुराने रूप में नहीं हैं , खाली कराए गए गाँव अब बसने की तरफ बढ़ रहे हैं , एक तरफ़ा हत्याओ का दौर थमा हैं , सेनाये अपने केम्प से बरसो से निकली भी नही हैं , ज्यादातर अपने लिए बनाये गए किले में कैद हैं , फिर भी सिर्फ कोंटा से सुकमा के बीच ही 8 सेना के केम्प दहशत का माहोल बनाए क्यों हैं।
सिर्फ पांच दिन की [ जिसमे में रहा , शेष यात्रा सुकमा से जगदलपुर के बीच जारी हैं , जो 15 मार्च को जगदलपुर पहुचेगी ] यात्रा में ज्यादातर लोगो ने की केम्पो के कारण दहशत बनी हुई हैं / मनीष कुंजाम ने कहा की सरकार जानती है की नक्सली अपने चरम पे है ,इसके बाद इन्हें नीचे ही आना हैं , इसी लिए फ़ोर्स बढाया जा रहा हैं , ताकि एक बार इन्हें अंतिम रूप से खदेड़ दिया जाये , तो बाद में आसानी से बचे हुए आदिवासियों से निबटा जा सकेगा / और सेना के बल पे इनकी ज़मीन खाली करवा के कंपनियों को सोंपी जा सकती है , इसी लिए सेना का जमाबडा किया जा रहा हैं , यहाँ के खनिज ,जंगल और पानी सबको आकर्षित करते हैं /
आदिवासी महा सभा का कहना है की ऐसा हम होने नहीं देंगे, हमारी मांग है की जितने भी एम् ओ यू सरकार ने किये है उन्हें रद्द किया जाये , पांचवी अनुसूची के प्रावधानों का पालन किया जाये और छटवी अनुसूची लागु की जाये , सेना के केम्प तुरंत हटाये जाये , हमारे पास आन्दोलन के अलावा कोई विकल्प नहीं हैं ,सलवा जुडूम जैसा विनाश आज तक पहले किसी भी समुदाय ने बर्दाश्त नहीं क्या होगा . हमने सहा है तो हम अंतिम लड़ाई भी लड़ेगे /
कोंटा से सुकमा यात्रा
[ 15 ] अंतिम क़िस्त
कभी दंतेवाडा के एस पी एस आर पी कल्लूरी ने गर्व से कहा था , जो भी लाल सलाम कहेगा तो उसे में नक्सल मान के उसके खिलाफ कार्यवाही करूँगा , और दूसरी बात ये की में यहाँ से सी पी आई को ख़तम कर दूंगा , आगर कही हों तो वे आके सुकमा के स्टेडियम हजारो लोगो द्वारा लाल सलाम के नारे देखे ,और आदिवासी महा सभा की गरज़ना सुने /
पैदल मार्च का पहला पड़ाव सुकमा के स्टेडियम में लगभग़ 25 हज़ार आदिवासियों की भीड़ से समाप्त हुआ ,यहाँ से यात्रा दन्तेवाडा होते हुए 15 मार्च को जगदलपुर पहुचेगी ./ सभा ने यहाँ से मुख्यामंत्री के नाम ज्ञापन में माँग की /
बस्तर में सभी खदान के एम् ओ यू रद्द किये जाएँ / पोलोवराम बांध,बोधघाट परियोजना , पाडापुर डेम ,और तेलावार्ती पॉवर प्रोजेक्ट का काम तत्काल बंद किया जाये / सभी सुर्क्षा बल और बस्तर में सेना ट्रेनिंग केम्प बन्द किया जाये /सरकेगुडा में हुए जनसंघार की जाँच कराई जाये और जिम्मेदार अधिकारियो को गिरफ्तार किया जाये / पांचवी अनुसूची और पेसा के प्रावधानों को लागु किया जाये ,वनाधिकार मान्यता कानून के अनुसार अधिकार पत्रक दिया जाएँ , सुकमा कलेक्टर के अपहरण के समय किये गए करार के अनुसार जिलो में बंद बेगुनाह आदिवासियों की सुनवाई फ़ास्ट ट्रेक कोर्ट में सुनवाई की जाये ,और उन्हें रिहा किया जाये / अदि आदि /
इस यात्रा में मनीष कुंजाम के अलावा रामा सोढ़ी , करतम देवा ,पोडियम भीमा ,मद्काम हड्मा , आराधना मरकाम ,गंगा राम नाग ,कुसुम नाग , करतम जोगा , सुकुल प्रसाद नाग , सोयम मुकेश के साथ बहुत से साथियों से मुलाकात हुई जो शांति और स्व्शाशन के लिए लड़ रहे हैं /
ये शांति यात्रा सलवाजुडूम, नक्सल वाद औए सेना के आतंक के बाद पहली बार तनाव को भेदती राह हैं . लोगो ने रहत की साँस ली ,और मन की सलवा जुडूम से आदिवासी महा सभा ,नलिनी सुन्दर और बहुत जन संघटन की प्रयास और सुप्रीम कोर्ट का आदेश हुआ ,
भारी मन से आज वापस ज रहे है। इन दिनों जो देखज और सुना वो हमारे लिए अविस्मरणीय ही है , सीपीआई के साथियो ने हमारा बहुत ख्याल रखा , उन्होंने पूरा ध्यान दिया की मुझे ज्यादा पैदल न चलन पड़े, कॉम मनीष कुंजाम को बहुत बहुत धन्यवाद ,हमारे साथ रमाकांत जी ए पी जोसी और कानून की छात्र बेंगलोर से आई सहाना ने मुझे बहुत सहा ,मुझे छोड़ के इन तीनो लोगो ने पुरे 80 किलोमीटरपैदल ही मार्च किया ,
कुछ और अच्छे फोटो , खास के हम लोगो के लिए अविस्मरणीय
कोंटा से एर्राबोर के पास एक गाँव हैं गगनपल्ली , ये गाँव बड़ा एतिहासिक हैं , एक तो इसलिए की 1949 - 50 में तेलंगाना संघर्ष के दौरान सी राजेश्वर राव , कैफ़ी आज़मी और राजबहादुर गौड़ यहाँ 6 माह भूमिगत रहे थे, . ये परिवार था सोयम जोगेइया का , जो 1965 में लागातर दो बार और 1980 में एक बार विधायक रहे , चुने गए थे कांग्रेस से किन्तु मन और र्विचार से कमुनिस्ट थे , उनके ही बेटे सोयम मुकेश के साथ पांच दिन रहा , मेरे आग्रह पे वे हमको उस गाँव ले गये / सोयम मुकेश सी पी आई के निष्ठावान कार्यकर्ता हैं ,और पूरी यात्रा के इंतजाम अली भी हैं,.
गगन पल्ली शुरू से राजनेतिक गतिविधियों का केंद्र रहा हैं ,सलवा जुडूम के दिनों इसे सबक सिखाने के लिए कई बार जलाया गया ,उजाड़ा गया , खेती जलाई गई . पूरा गाँव खाली करवाया गया , सलवा जुडूम के अत्याचार का केंद्र रहा है गगनपल्ली / पूरा गॉव खाली हो गया था , धीरे धीरे इंजरम केम्प से परिवार गाँव वापस आ रहे हैं , केम्प में वही रह गए है जो या तो सलवा जुडूम के नेता थे या एस पी ओ में भरती हो गए थे .उन्हें आज भी अपनी जान का खतरा हैं ,/
बहुत किस्से है इस गाँव के , की सोयम जोगैया के तीन बेटो में एक है ,सोयम मुक्का , जो न केवल सलवा जुडूम के नेता है ,बल्कि उसपे कई हत्याओ और बलात्कार के आरोप हैं , इसने ही स्वमी अग्निवेश पे किये गए हमले की अगुवाई की थी , जिसे पुलिस कोर्ट में फरार बता रही है और वो शान से प्रेस कांफ्रेंस कर रहा हैं , वो बड़ी शान से कोंटा के रेस्ट हाउस के पास रहता हैं / में दोनों से मिला , मेने देखा की दोनों में नाम मात्र को भी बाहरी तौर पे भेद नहीं दिखाई देता / किसी ने कहा हैं ,की हम जिसका विरोध करते है , वो उसके तरह ही हो जाता हैं . ये दोनों भाई एक दुसरे के बिलकुल बिपरीत हैं लेकिन ,किसी का किसी पे प्रभाव नहीं हैं . शायद यही आदिवासी संस्कृति होगी /
गगनपल्ली गॉव साथ में सोयम मुकेश |
ऐतहासिक गॉव गगनपल्ली जहा कभी सी राजेश्वर राओ ,कैफ़ी आज़मी और राजबहदुर गोड ६ माह रहे |
कोंटा से सुकमा यात्रा [4]
कोंटा से
सुकमा यात्रा
[ 6 ]
ज्यादातर सलवाजुडूम केम्प खाली हो रहे हैं , इंजरिम , दरभागुडा ,बिरला ,इर्राबोर , दोरनापाल... , पेडाकुरती , केरलापाल वगेरा केम्प अब वीरान जैसे हो गए हैं . इन केम्पो में वही लोग है जो या तो सलवाजुडूम के नेता थे या ,एस पी ओ के परिवार के हैं या राजनेतिक प्रभाव रखने वाले लोग हैं, जो कब्जा बनाये रखना चाहते हैं , एक समय इन केम्पो में सामान्य तालपत्री हुआ करती था , फिर घासफूस ,लकड़ी और मिटटी के छोटे मकान बनाये गए ,मकान इतने छोटे की जहाँ सामान्य आदिवासी का रहने दूभर हो जाये ,अप्राकृतिक वारावरण और ऊपर से राशन मिलना बंद कर दिया गया . दोरनापाल में जहा 30 हज़ार लोग रहते थे ,तो सभी केम्प में एक लाख के आसपास लोग बसाये गए /
कोंटा से सुकमा तक ही लगभग 150 गाँव उजाड़े गए ,जितने भी केम्प लगाये गए उसके पास ही सेना या सी आर पी केम्प भी हैं , सामने रोज रोज सलवाजुडूम का आतंक और सेना का तनाव , हत्याएँ , बलात्कार ,घर जलना ,खेती नष्ट करना रोज की बात थी ,इस तनाव पूर्ण जीवन के बीच आदिवासी महा सभा की शांति और स्वशाशन के लिए पैदअह ल मार्च लोगो में आशाका संचार करता दिखा / हर जगह लोग कह रहे थे , की हमें अपनी हालत पे छोड़ दो , इस विनाशकारी सी आर पी को वापस बुला लो ,हमें नक्सलियों से कोई खतरा नहीं है , उनसे रक्षा के नाम से हमरा जीना नरक मत बनाओ / हम भी देश के औरो को तरह नागरिक हैं , हमें भी पांचवी अनुसूची ,छटवी अनुसूची से मिले स्वशासन का लाभ मिलने दो /
हम किसी के लिए खतरा नहीं है और न ही कोई हमारे लिए खतरा हैं . माओवाद के नाम से हमारे पुरे समुदाय को ख़तम नहीं करो , बहुत दर्दनाक स्थिति में लोग जी रहे हैं , इन्हें यदि कुछ नहीं दे सकते हो तो कमसे कम , हमें अपने हालत पे तो छोड़ सकते हो।
इस पूरे रस्ते पे सिर्फ रामराम गाँव को छोड़ के कही भी बिजली नहीं थी ,सड़क ,स्वास्थ्य , स्कूल नाम मात्र को हैं ,लेकिन सेना जगह जगह लोगो को दिखाई देती हैं ,
ज्यादातर सलवाजुडूम केम्प खाली हो रहे हैं , इंजरिम , दरभागुडा ,बिरला ,इर्राबोर , दोरनापाल... , पेडाकुरती , केरलापाल वगेरा केम्प अब वीरान जैसे हो गए हैं . इन केम्पो में वही लोग है जो या तो सलवाजुडूम के नेता थे या ,एस पी ओ के परिवार के हैं या राजनेतिक प्रभाव रखने वाले लोग हैं, जो कब्जा बनाये रखना चाहते हैं , एक समय इन केम्पो में सामान्य तालपत्री हुआ करती था , फिर घासफूस ,लकड़ी और मिटटी के छोटे मकान बनाये गए ,मकान इतने छोटे की जहाँ सामान्य आदिवासी का रहने दूभर हो जाये ,अप्राकृतिक वारावरण और ऊपर से राशन मिलना बंद कर दिया गया . दोरनापाल में जहा 30 हज़ार लोग रहते थे ,तो सभी केम्प में एक लाख के आसपास लोग बसाये गए /
कोंटा से सुकमा तक ही लगभग 150 गाँव उजाड़े गए ,जितने भी केम्प लगाये गए उसके पास ही सेना या सी आर पी केम्प भी हैं , सामने रोज रोज सलवाजुडूम का आतंक और सेना का तनाव , हत्याएँ , बलात्कार ,घर जलना ,खेती नष्ट करना रोज की बात थी ,इस तनाव पूर्ण जीवन के बीच आदिवासी महा सभा की शांति और स्वशाशन के लिए पैदअह ल मार्च लोगो में आशाका संचार करता दिखा / हर जगह लोग कह रहे थे , की हमें अपनी हालत पे छोड़ दो , इस विनाशकारी सी आर पी को वापस बुला लो ,हमें नक्सलियों से कोई खतरा नहीं है , उनसे रक्षा के नाम से हमरा जीना नरक मत बनाओ / हम भी देश के औरो को तरह नागरिक हैं , हमें भी पांचवी अनुसूची ,छटवी अनुसूची से मिले स्वशासन का लाभ मिलने दो /
हम किसी के लिए खतरा नहीं है और न ही कोई हमारे लिए खतरा हैं . माओवाद के नाम से हमारे पुरे समुदाय को ख़तम नहीं करो , बहुत दर्दनाक स्थिति में लोग जी रहे हैं , इन्हें यदि कुछ नहीं दे सकते हो तो कमसे कम , हमें अपने हालत पे तो छोड़ सकते हो।
इस पूरे रस्ते पे सिर्फ रामराम गाँव को छोड़ के कही भी बिजली नहीं थी ,सड़क ,स्वास्थ्य , स्कूल नाम मात्र को हैं ,लेकिन सेना जगह जगह लोगो को दिखाई देती हैं ,
कोंटा से सुकमा यात्रा [ 7 ]
सी आर पी में भी आखिर हमारे ही लोग हैं , हो सकता है, की ये बदलते समय की प्रतिक्रिया हो , या इन सैनिकों का रिलायजेशन हो , पता नहीं ,हो तो ये भी सकता हैं की ये इनकी रणनीति हो , जो भी हो ,हमारी मुलाकात बिरला गॉव में रात्रि विश्राम के बाद पेदाकुर्ती सी आर पी केम्प के सामने उनके कमान्डेंट , [हरियाणा] से बहुत देर तक हुई , में वहाँ पदयात्रियों से कुछ पहले चाय के चक्कर पहुच गया था , उनके साथ एक केरला के और एक पंजाब के ऑफिसर भी थे , /
उन्होंने बड़ी संजीदगी से कहा की हमारी दुश्मनी तो यहाँ के किसी भी आदमी से नहीं हो सकती , जिनके पास रहने और खाने तक की मुश्किल हो उनसे सेना का क्या विरोध हो सकता हैं , इन्हें पढाना चाहिए , स्वास्थ्य की सुविधा देनी चाहिए इनकी आर्थिक तरक्की की जरुरत हैं , ते लोग कभी भी सेना के लिए संकट तो बन ही नहीं सकते , इतने सच्चे इमानदार लोग किसी के लिए क्या समस्या खड़ा कर सकते हैं . मुझे लगा की कोई समाजवादी कार्यकर्ता बोल रहा हैं , अभी बहुत कुछ कहने को बांकी था , उन्होंने कहा की हमारा विरोध अन्दर वालों [ मओवादियो ] से भी नहीं हैं , ये उनकी विचारधारा है ,वे इनकी भलाई सोचते हैं, जो काम सरकार को आज़ादी के इतने सालो तक करना चाहिए था ,यदि किया होता तो शायद इसकी नोबत ही नही आती /
एक और कमाल की बात की, सही तो यही है की हम उनसे लड़ने यहाँ आये है वे हमसे लड़ने हमारे वहाँ नहीं गए , में पांच साल से ,दुसरे सात साल से और तीसरे भी सात साल से यहाँ हैं , में हरियाणा ,ये केरल और पंजाब से हैं , हम तो देश की एकता और अखंडता के लिए लड़ रहे हैं , मेने उनसे पूछा की अन्दर /वाले देश की अखंडता के खिलाफ क्या करते है , तो उन्होंने कहा वेसे तो कुछ नहीं , हमें तो लगता है की हम अपने ही देश में अपने ही लोगो के खिलाफ यूद्ध लड़ रहे हैं / बहुत बेगुनाह मारे जारहे हैं, इतने तो किसी यूद्ध में भी नहीं मारे गए ,/
चर्चा के बीच पैदल मार्च वहां पहुच गया , तो उन्होंने मनीष कुंजाम से हाथ मिलाया और कहा की हम व्यक्तिगत रूप से तुम लोगो का स्वागत करते हैं , सबको चाय पिलाई , उन्होंने और हमने फोटो लिए /मुझे लगा की में किसी मानवीय विचारधारा के विद्वान से मिला जो बात तो सही कहता है लेकिन दुसरे पाले में हैं ,ऐसा पाला जो आदिवासियों को हटा के उनके संसाधन उद्योगों के हवाले कर देना चाहता हैं . पता नहीं उन्हें मालूम भी है की वे किसके हाथ की कठपुतली बन के अपने ही देश के लोगो के साथ यूद्ध लड़ रहे हैं .
उनके नाम स्थान ,और राज्य को मत खोजिये , यही हमारे और उनके लिए उचित हैं
कोंटा से सुकमा यात्रा [ 8 ]
हम नक्सलियों के समर्थक नहीं हैं , दोरनापाल की जन सभा में आदिवासी महासभा का ऐलान ,
तीसरे दिन दोरनापाल में बड़ी जनसभा में मनीष कुंजाम ने साफ किया की , सलवा जुडूम के विरोध का मतलब ये नहीं हैं की हम माओवाद के समर्थक हैं / सलवा जुडूम के माध्यम से सरकार ने आदिवासियों को आपस में मुर्गो की तरह लड़ाया , जहा दोनों तरफ से हम ही मारे गये / जुडूम के चलते ही पुरे देश में माओवाद फैला , पहले ये छोटे से हिस्से में जाना चाहता था , लेकिन जुडूम के कारण ये पूरे देश में अपनी पहचान बनाने में सफल हुआ , सबसे ज्यादा ताकत जुडूम के कारण ही मिली / इस पूरी लड़ाई में यदि कोई हारा है तो वो सिर्फ आदिवासी ही है ,चाहे वो इधर हो या अन्दर की तरफ .
सलवा जुडूम को बंद करने की लड़ाई महासभा ,जन संघठन और नलिनी सुन्दर ने लड़ी और इसे बंद करवाया , केरलापाल से कलेक्टर के अपहरण के बाद पूरी सरकार मओवादियो से वार्ता को राज़ी हो गई , देश भर से वार्ताकार पहुच गए , सुरक्षाबल अपनी बैरक में लोट गए , सारे हमले बंद कर दिया गए , लेकिन जब हजारो आदिवासी मारे जा रहे थे , उनके गाँव जलाये जा रहे थे , ज़मीन और संसाधन लुटे जा रहे थे , तब सरकार को उनसे वार्ता नहीं सूझी / हम लगातार मांग करते रहे की उनसे चर्चा करके समाधान निकल जाए , लेकिन हजारो आदिवासियों से ज्यादा उन्हें एक कलेक्टर की जान प्यारी थी / कलेक्टर के रिहा करने के बाद भी जो भी वायदा किया गया उसमे एक भी सरकार ने पूरा नहीं किया / दोरनापाल वही जगह है जहा 30 हज़ार लोग केम्प में रखे गये थे , यही स्वामी अग्निवेश से लेकर कलेक्टर कमिश्नर तक को ताड मेटला जाने से रोका गया , सलवा जुडूम के गुंडों द्वारा /
कोंटा से सुकमा यात्रा [ 10 ]
दोरनापाल में करतम सूर्या की मूर्ति तुरंत हटाई जाये , ये आदिवासियो का अपमान हैं
क्या आप सोच सकते है की कभी जलीयाँवाला बाग़ में ज़नरल डायर की मूर्ति लगी हो , नहीं न ?, यदि ऐसा होता तो शायद देश के लोग उसे या तो तोड़ देते या उसे हटाने के लिए एक स्वर में मांग जरुर करते / लेकिन दोरनापाल के चोराहे के बिल्कुं नज़दीक एक ऐसे शख्श की मूर्ति उद्घाटन के इंतजार में हैं , जिसने सुकमा क्षेत्र के बहुत गाँव में अपने 100-150 लोगो के गिरोह के साथ हमले किये ,लोगो को क़त्ल किया , घरो को बेदर्दी के साथ जलाया , फसलो को लूटा , महिलाओ केसाथ दुराचार किया , जिसके आतंक से कई गांवो में सन्नाटा छा जाता था / उसके नाम है करतम सूर्या , जिसे पुलिस ने न केवल ड्रेस और हथियार दिया , बल्कि पूरा गिरोह तैयार कराया /
करतम सूर्या के किस्से अभी पुराने नहीं हुए हैं , 2010 में एक बिस्फोट में मारे जाने के पहले इसका काम था , गाँव के गाँव खाली करवाने के लिए हर वो तरिका अपनाना जो किसी भी मानवता को शर्मिंदा करता हो , जब वो अपने गिरोह [ गिरोह में 100-150 बर्दी और हथियार से लैस एसपीओ होते थे ] के साथ किसी बाज़ार या गाँव में जाता था तो सन्नाटा मच जाता था / इसका एक और सलवाजुडूम का साथी था रामभुवन कुशवाह जिसने भारी आतंक मचाया और अब धमतरी भाग गया /
ऐसे आतंकी और आदिवासियों पे अमानवीय अत्याचार करने वाले इंसान की सरकारी खर्च पे मूर्ति लगाना सारी मानवीयता के लिये अपमान हैं / कहा तो ये भी गया की इसके नाम से एक स्कूल का नाम रखा जा रहा था , लेकिन कलेक्टर के मना करने पे इसे रोका गया /
क्या इसका विरोध हमे सब मिलके नहीं करना चाहिए , यदि हाँ तो सरकार को पत्र तो जरुर लिख सकते हैं /
कोंटा से सुकमा यात्रा [ 12]
एक और साथी सुकुल प्रसाद नाग से मिलिए ,
धीर गंभीर , सुडोल , सुन्दर ललाट , क्रांतकारी विचारो से लैस , कॉमरेड सुधीर मुखर्जी के साथ के किस्से , बहुत पुराने कार्यकर्त्ता सुकुल प्रसाद नाग से यात्रा में मिलना बेहद सुखद लगा / वे भी 13 महीने जेल से अभी अभी बाहर आये हैं ,आरोप की अवधेश सिंह पे हमले में उनका हाथ था , कोर्ट ने उन्हें औरो की तरह निरपराध मान के रिहा कर दिया /
कॉम , नाग को दोरनापाल में सलवाजुडूम के आतंकियों ने गाड़ी से खीच के बहुत बुरी तरह मारा था , ये गुंडे मनीष कुंजाम को तलाश रहे थे जो आंध्र में एक बैठक से वापस आ रहे थे , सलवाजुडूम के लोग इसलिए नाराज़ थे की मनीष कुंजम ने आंध्र की एक बड़ी सभा में इन्हें गुंडा कह दिया था। [ कहा भी यही था ] जैसे तैसे मनीष रास्ता बदल के सुकमा पहुचे , कॉम नाग अलग गाड़ी में थे , तो इन्हें लगभग मरा समझ के ड़ाल दिया था।
उन्होंने बताया की सात आदिवासियों के सर महेन्द्र कर्मा के कहने पे काट, दिय गए थे, वे आरोपी भी जेल में थे, हमने कई बार उन्हें पीटने का सोचा , लेकिन हो नहीं पाया / जेल में उन्होंने भूख हड़ताल की तब कही जाके कुछ बनता दिखाई दिया /
65 साल की उम्र , पैदल चलने में सबसे आगे , भारी उर्जा से भरे कामरेड को सलाम .
करतम जोगा से मिलिये
यात्रा के दोरान कुछ साथियों से मुलाकात करवाता हूँ / ये हैं करतम जोगा , ये सुप्रीम कोर्ट में सलवा जुडूम के खिलाफ रिट लगाने वालो में प्रमुख थे , सी पी आई की तरफ से जनपद के चुने हुये प्रतिनिध भी हैं , बेहद हँसमुख , कमिटमेंट के साथ काम करने वाले , और सलवाजुडूम के खिलाफ आन्दोलन के एक प्रमुख स्तम्भ /
सरकार ने इन्हें ताड मेटला में आदिवासियों के घर जलाने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया और तीन साल एक माह जेल मे रखा / बाद में इन्हें बेगुनाह मान कर रिहा भी का दिया गया . आज वभी वैसे ही पूरी ऊर्जा के साथ नाचते गाते यात्रा में देखना बड़ा सुखद लगा . इनकी बातो से कही भी नहीं लगा की वे जीवन के तीन साल जेल में बिता के आये हैं , न कोई चेहरे पे गुस्सा और न कोई अफ़सोस / ऐसे ही कमुनिस्ट होते हैं ,इन्हें सलाम /
कोंटा से सुकमा यात्रा [ 13 ]
एक और साथी से मुलाकात करवाता हूँ, ये हैं कॉम, सोयम मुकेश
सोयम मुकेश से यदि बिना किसी पूर्व जानकारी के मिलता तो शायद कभी उनके बारे में इतना नही जान पाता,बेहद सीधे सादे , दुबले पतले दिखने में बीमार जैसे ,पैर सूजे और चेहरा फुला हुआ , लेकिन वे कोंटा के सबसे पुराने सी पी आई के कार्यकर्त्ता हैं . पूरी यात्रा का इंतजाम इनके ही हाथो था ,यानी भोजन और रुकने की व्यवस्था ,/
सभी गाँव में साधन सम्बन्ध , हम भी क्यों नहीं , इनके पिता सोयम जोगैया ,यहाँ से तीन बार विधायक बने वो भी 60 और 80 क्र दशक में / थे तो कांग्रेस पार्टी के लेकिन कोंटा में सबसे पुराने प्राम्भिक सी पी आई के कार्यकता थे , तेलंगाना संघर्ष में जब भारत की सेना ने हमला किया , सी , राजेश्वर राव , कैफ़ी आज़मी , राज बहादुर गोड जब भूमिगत हुए तो कोंटा में आकर इन्होने से ही संपर्क किया था , और इनके गाँव गगनपल्ली में 6 माह इनके साथ रहे , हमें सोयम अपने गाँव और घर भी ले गए / मुकेश ने अपना घर छोड़ दिया था आज से 20 साल पहले , अंदर वालो की पहल से।लेकिन इनकी ज़मीन अभी भी गगन पल्ली में ही है औ र्खेती भी करते हैं, गगन पल्ली सलवाजुडूम के लोगो ने कई बार उजाड़ा /
बड़ा राजनेतिक परिवार , करीब 100 एकड़ जमीन के बाबजूद आर्थिक रूप से गरीबी रेखा से भी नीचे जीने वाला ये परिवार , किसी भी इमानदार कमुनिस्ट के लिए आदर्श माना जा सकता हैं। इनकी एक और कहानी हैं,इनके छोटे भाई है , सोयम मुक्का जो सलवा जुडूम के नेता , हत्याएँ , बलात्कार , गाँव लुटने के गंभीर घटना के लिये जिम्मेदार , जिन्हें पुलिस कोर्ट में फरार बता रही थी और ये महाशय शान से प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे , स्वामी अग्निवेश के साथियों पे हमला करने वाले ,सोयम मुक्का कोंटा रेस्ट हॉउस के नज़दीक ही शान से पुलिस के पहरे में रहते हैं /
मुझे अजीब लगा कि, कहीं भी मुकेश में मुक्का की आलोचना नहीं की और न ही सपोर्ट किया , इतना सहज जीवन कोई आदिम जाती के लोग ही अपना सकते हैं , तथाकथित सभ्य समाज़ में इसकी काल्पना की ही नहीं जा सकती हैं /
सोयाम मुकेश की सादगी और पार्टी के प्रति कमिटमेंट ने मुझे बहुत प्रभावित किया / पता नहीं वे कभी इस नोट को कभी पढ़ पाएंगे की नहीं , लेकिन में उन्हें सलाम करता हूँ। [ करीब एक साल बाद सोयम मुक्का को माओवादियों ने मार दिया ]
बस्तर क्षेत्र से सी आर पी ,सी एस ऍफ़ , आई टी बी टी और सेना को तुरंत वापस किया जाये , तथा बस्तर में सेना का प्रशिक्षण केंद्र हटाया जाये /
सलवा जुडूम बंद होने की बात सरकार मान रही हैं , एस पी ओ अपने पुराने रूप में नहीं हैं , खाली कराए गए गाँव अब बसने की तरफ बढ़ रहे हैं , एक तरफ़ा हत्याओ का दौर थमा हैं , सेनाये अपने केम्प से बरसो से निकली भी नही हैं , ज्यादातर अपने लिए बनाये गए किले में कैद हैं , फिर भी सिर्फ कोंटा से सुकमा के बीच ही 8 सेना के केम्प दहशत का माहोल बनाए क्यों हैं।
सिर्फ पांच दिन की [ जिसमे में रहा , शेष यात्रा सुकमा से जगदलपुर के बीच जारी हैं , जो 15 मार्च को जगदलपुर पहुचेगी ] यात्रा में ज्यादातर लोगो ने की केम्पो के कारण दहशत बनी हुई हैं / मनीष कुंजाम ने कहा की सरकार जानती है की नक्सली अपने चरम पे है ,इसके बाद इन्हें नीचे ही आना हैं , इसी लिए फ़ोर्स बढाया जा रहा हैं , ताकि एक बार इन्हें अंतिम रूप से खदेड़ दिया जाये , तो बाद में आसानी से बचे हुए आदिवासियों से निबटा जा सकेगा / और सेना के बल पे इनकी ज़मीन खाली करवा के कंपनियों को सोंपी जा सकती है , इसी लिए सेना का जमाबडा किया जा रहा हैं , यहाँ के खनिज ,जंगल और पानी सबको आकर्षित करते हैं /
आदिवासी महा सभा का कहना है की ऐसा हम होने नहीं देंगे, हमारी मांग है की जितने भी एम् ओ यू सरकार ने किये है उन्हें रद्द किया जाये , पांचवी अनुसूची के प्रावधानों का पालन किया जाये और छटवी अनुसूची लागु की जाये , सेना के केम्प तुरंत हटाये जाये , हमारे पास आन्दोलन के अलावा कोई विकल्प नहीं हैं ,सलवा जुडूम जैसा विनाश आज तक पहले किसी भी समुदाय ने बर्दाश्त नहीं क्या होगा . हमने सहा है तो हम अंतिम लड़ाई भी लड़ेगे /
कभी दंतेवाडा के एस पी एस आर पी कल्लूरी ने गर्व से कहा था , जो भी लाल सलाम कहेगा तो उसे में नक्सल मान के उसके खिलाफ कार्यवाही करूँगा , और दूसरी बात ये की में यहाँ से सी पी आई को ख़तम कर दूंगा , आगर कही हों तो वे आके सुकमा के स्टेडियम हजारो लोगो द्वारा लाल सलाम के नारे देखे ,और आदिवासी महा सभा की गरज़ना सुने /
पैदल मार्च का पहला पड़ाव सुकमा के स्टेडियम में लगभग़ 25 हज़ार आदिवासियों की भीड़ से समाप्त हुआ ,यहाँ से यात्रा दन्तेवाडा होते हुए 15 मार्च को जगदलपुर पहुचेगी ./ सभा ने यहाँ से मुख्यामंत्री के नाम ज्ञापन में माँग की /
बस्तर में सभी खदान के एम् ओ यू रद्द किये जाएँ / पोलोवराम बांध,बोधघाट परियोजना , पाडापुर डेम ,और तेलावार्ती पॉवर प्रोजेक्ट का काम तत्काल बंद किया जाये / सभी सुर्क्षा बल और बस्तर में सेना ट्रेनिंग केम्प बन्द किया जाये /सरकेगुडा में हुए जनसंघार की जाँच कराई जाये और जिम्मेदार अधिकारियो को गिरफ्तार किया जाये / पांचवी अनुसूची और पेसा के प्रावधानों को लागु किया जाये ,वनाधिकार मान्यता कानून के अनुसार अधिकार पत्रक दिया जाएँ , सुकमा कलेक्टर के अपहरण के समय किये गए करार के अनुसार जिलो में बंद बेगुनाह आदिवासियों की सुनवाई फ़ास्ट ट्रेक कोर्ट में सुनवाई की जाये ,और उन्हें रिहा किया जाये / अदि आदि /
इस यात्रा में मनीष कुंजाम के अलावा रामा सोढ़ी , करतम देवा ,पोडियम भीमा ,मद्काम हड्मा , आराधना मरकाम ,गंगा राम नाग ,कुसुम नाग , करतम जोगा , सुकुल प्रसाद नाग , सोयम मुकेश के साथ बहुत से साथियों से मुलाकात हुई जो शांति और स्व्शाशन के लिए लड़ रहे हैं /
ये शांति यात्रा सलवाजुडूम, नक्सल वाद औए सेना के आतंक के बाद पहली बार तनाव को भेदती राह हैं . लोगो ने रहत की साँस ली ,और मन की सलवा जुडूम से आदिवासी महा सभा ,नलिनी सुन्दर और बहुत जन संघटन की प्रयास और सुप्रीम कोर्ट का आदेश हुआ ,
भारी मन से आज वापस ज रहे है। इन दिनों जो देखज और सुना वो हमारे लिए अविस्मरणीय ही है , सीपीआई के साथियो ने हमारा बहुत ख्याल रखा , उन्होंने पूरा ध्यान दिया की मुझे ज्यादा पैदल न चलन पड़े, कॉम मनीष कुंजाम को बहुत बहुत धन्यवाद ,हमारे साथ रमाकांत जी ए पी जोसी और कानून की छात्र बेंगलोर से आई सहाना ने मुझे बहुत सहा ,मुझे छोड़ के इन तीनो लोगो ने पुरे 80 किलोमीटरपैदल ही मार्च किया ,
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