दो गांव, जहां सरकार के लम्बे चौड़े दावे बह जाते हैं तेज बहाव में
राजकुमार सोनी
सिंघोला (धमतरी) । ग्रामीणों के समूह में जैसे ही सिंघोला जाने का रास्ता पूछा तो उनमें से एक का जवाब था- "लंका" जाना है आपको। दूसरे ग्रामीण का कहना था- अजी साहब...उस टापू में कुछ नहीं मिलता। वो गांव नहीं "कालापानी" है। हकीकत में चारों तरफ पानी से घिरे गांव सिंघोला का जीवन बड़ा कष्टदायी है। हर रोज उन्हें नदी के बहते पानी को पार कर मौत को मात देनी होती है। हालांकि, ग्रामीणों ने तमाम दुश्वारियों के बीच जीवन जीने की कला सीख ली है। वे कहते हैं, "सबसे कठिन जगह पर शायद इसलिए रहते हैं क्योंकि ईश्वर को पता है कि हम कठिनाई झेल सकते हैं।" सरकार से उनकी एक ही मांग है कि टापू तक पहुंचने वाला कोई छोटा-मोटा पुल बन जाए।
राजधानी से 142 किमी दूर सिंघोला पहुंचने के लिए एक गांव भिंडावर से नाव में यात्रा करनी होती है। गहरे पानी पर लगभग तीन किमी की यह यात्रा भय और साहस से भरी होती है। सफर में खतरनाक जल जीव और बड़े आकार की मछलियां नाव को धक्का मारती है तो कभी तेज लहरों का सामना करना पड़ता है। नाव के डूब जाने की आशंका के बीच नाविक एक-दूजे की हौसला आफजाई करते हैं। तब यह सवाल बराबर कौंधता है कि विकास के तमाम दावों के बावजूद लोग टापू में गुजर-बसर करने के लिए मजबूर क्यों हैं? क्या सरकार ने कभी वहां रहने वाले लोगों के विस्थापन के बारे में नहीं सोचा होगा?
राजकुमार सोनी
सिंघोला (धमतरी) । ग्रामीणों के समूह में जैसे ही सिंघोला जाने का रास्ता पूछा तो उनमें से एक का जवाब था- "लंका" जाना है आपको। दूसरे ग्रामीण का कहना था- अजी साहब...उस टापू में कुछ नहीं मिलता। वो गांव नहीं "कालापानी" है। हकीकत में चारों तरफ पानी से घिरे गांव सिंघोला का जीवन बड़ा कष्टदायी है। हर रोज उन्हें नदी के बहते पानी को पार कर मौत को मात देनी होती है। हालांकि, ग्रामीणों ने तमाम दुश्वारियों के बीच जीवन जीने की कला सीख ली है। वे कहते हैं, "सबसे कठिन जगह पर शायद इसलिए रहते हैं क्योंकि ईश्वर को पता है कि हम कठिनाई झेल सकते हैं।" सरकार से उनकी एक ही मांग है कि टापू तक पहुंचने वाला कोई छोटा-मोटा पुल बन जाए।
राजधानी से 142 किमी दूर सिंघोला पहुंचने के लिए एक गांव भिंडावर से नाव में यात्रा करनी होती है। गहरे पानी पर लगभग तीन किमी की यह यात्रा भय और साहस से भरी होती है। सफर में खतरनाक जल जीव और बड़े आकार की मछलियां नाव को धक्का मारती है तो कभी तेज लहरों का सामना करना पड़ता है। नाव के डूब जाने की आशंका के बीच नाविक एक-दूजे की हौसला आफजाई करते हैं। तब यह सवाल बराबर कौंधता है कि विकास के तमाम दावों के बावजूद लोग टापू में गुजर-बसर करने के लिए मजबूर क्यों हैं? क्या सरकार ने कभी वहां रहने वाले लोगों के विस्थापन के बारे में नहीं सोचा होगा?
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