Tuesday, September 16, 2014

हंसो कि कश्मीरी मर रहे हैं --Wasim Akram Tyagi


हंसो कि कश्मीरी मर रहे हैं 


[ फेस बुक  पोस्ट से ]
 
हंसो कि कश्मीरी मर रहे हैं
मेरे शौहर को सालों से कैंसर है और गुज़ारे के लिए जो दुकान खोली थी वो बह गई 'अब मैं क्या करूंगी, इन हालात से कैसे लड़ूंगी.' शौहर और दो बच्चों के साथ घर में बैठी थीं. आंसू आंखों से लगातार बह रहे थे, तेज़ होती हिचकियों के बीच वह कुछ कह रही थीं उनकी आंखों के सामने घर का एक हिस्सा ढह गया और घर का सारा सामान पानी के तेज़ रेले में दूर और दूर होता चला गया, अभी संभलने का मौक़ा भी न मिला था कि कुछ ही क्षणों में दूसरा हिस्सा भी तिनकों की तरह बिखरने लगा. ( बीबीसी पर कश्मीर की बाढ़ पीड़ित दिलशाद का बयान ) ऐसे दुखियारे लोगों के लिये उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय के उप-कुलपति प्रोफेसर जवाहर कौल ने सहायता करने की अपील की थी। मगर तथाकथित राष्ट्रवादियों बजरंगियों को उनकी यह अपील पसंद न आई और उन्होंने कुलपति के साथ मार पीट की। क्या किया जाये ऐसी मानसिकता का, जिसे न जख्म दिखाई देते हैं न जख्मी ? यह वही मानसिकता है जिसे हमारे तथाकथित ‘साक्षी महाराजों’ ने जन्म देकर जवान किया है। यह वही मानसिकता है जिसे कश्मीर तो चाहिये मगर इस पर शर्त पर कि उसमें कश्मीरी नहीं रहेंगे। दूध मांगो तो खीर देंगे कश्मीर मांगो तो चीर देंगे के नारा लगाने वाले तथाकथित राष्ट्रवादी कश्मीर के लिये सहायता मांगने वाले प्रोफेसर को निशाना बनाते हैं। Facebook पर पवन अवस्थी नाम का शख्स स्टेटस डालता है कि, ‘कश्मीर के हालात को देखते हुए इस बात की सख्त जरुरत है की राहत सामग्री के साथ कंडोम के पैकेट भी कश्मीर की राहत सामग्री में शामिल किये जाए’ इस स्टेटस पर थोड़ी ही देर में उनकी मानसिकता के लोग आते हैं और तरह – तरह की टिप्पणियां करके मरने वालों, और पीड़ितों का मजाक उड़ाते हैं। कश्मीर के समुदाय विशेष की महिलाओं पर Vimlesh Sharma नाम का एक शख्स टिप्णी करता है, ‘वरना हजारों की तादाद् में मुल्ली ग्यभिन हो जायेगी’। इसी स्टेटस पर एक और टिप्पणी दिपक मोदी की आती है जो इस प्रकार है “साथ में रबर का..... भी क्युकी कितने मुल्ले डूब मरे हैं मुल्ली सब को काम आयेगा” Navin Kumar Gupta अपने कमेंट में लिखता है कि “भाई कश्मीर में कुछ दिनों के लिये सैक्स फ्री कर देना चाहिये क्योंकि सेना के जवान कई महीनों से भूखे हैं”
इस तरह के कई दर्जन कमेंट पवन अवस्थी के स्टेटस पर मौजदू हैं, ऐसा नहीं है कि ये कमेंट किसी जाहिल ने किये हैं, ये सब वे हैं जो मान्यता प्राप्त कॉलेजों से डिग्री लेकर आये हैं। इन लोगों की प्रोफाईल पर जाकर पता चलता है कि इनकी उम्र भी लगभग तीस साल के ऊपर है। यह वह उम्र है जिसमें सांप्रदायिकता के कीटाणू या तो लगभग खत्म हो जाते हैं या फिर जवान हो जाते हैं। देश के नागरिकों की मौत पर खुशियां मनाने वाले किस मुंह से खुद को राष्ट्रवादी बताते हैं ? किस मुंह से वे कश्मीर के बदले चीर डालने की धमकियां देते हैं ? किस मुंह से वे समाज में बैठते हैं ? बहुत अफसोस होता है देश के इस भविष्य इस तरह लाशों पर हंसते हुऐ देखकर। सांप्रदायिकता की राजनीती और आये दिन समुदाय विशेष के खिलाफ आने वाले तथाकथित पार्टी विशेष के लोगों के बयानों, प्रोपगेंडों ने देश की युवा पीढ़ी को उस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है जहां से वह अपने लिये रोजगार नहीं बल्कि समुदाय विशेष को सबक सिखाने के लिये हथियार मांग रही है। अपने देश का वर्तमान यह है अगर हालात ऐसे ही रहे तो भविष्य क्या होगा इसका अंदाजा भी आसानी से लगाया जा सकता है ? जिस मुंह से जन गण मण गाया गया था था वही मुंह, वही लोग, देश के नागरिकों की मौत पर हंस रहे हैं, उनका मजाक उड़ा रहे हैं। क्या इससे भी ज्यादा शर्म की बात भारत और भारतवासियों के लिये कुछ हो सकती है ? सवाल आपसे है, सवाल तथाकथित पार्टी विशेष के लोगों से है, सवाल उनसे है जो हिंदुत्व की बात करते हैं, सवाल उनसे है जो राष्ट्रवाद की बात करते हैं कि क्या उनका हिंदुत्व, क्या उनका राष्ट्रवाद, क्या उनकी देशभक्ति ने उन्हें सिर्फ यही सिखाया है ?

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