अब एनकाउंटर बताकर बच नहीं सकेगी पुलिस
Now would not survive the encounter, telling police
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[ patrika ]
नई दिल्ली/रायपुर। पुलिस अब एनकाउंटर यानी मुठभेड़ से हुई मौत बताकर मामले से पल्ला नहीं झाड़ सकेगी। मुठभेड़ों की असलियत पर उठते रहे सवालों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर कड़ा रूख अपनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अहम फैसले में मुठभेड़ों से होने वाली मौतों पर एफआईआर दर्ज करने और उसकी पूरी जांच किए जाने को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए हैं। शीष्ाü कोर्ट ने मुठभेड़ों को लेकर राज्य सरकारों को भी निर्देश दिए हैं।
मजिस्ट्रेट, सीआईडी जांच जरूरी
उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आर.एम. लोढ़ा की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने फैसले में कहा कि पुलिस मुठभेड़ में मौत की मजिस्ट्रेट जांच होनी चाहिए। मुठभेड़ में इस्तेमाल हथियार की फोरेंसिक जांच भी होनी चाहिए और इसकी जांच सीआईडी या दूसरा पुलिस स्टेशन करे। पीठ ने यह भी कहा कि गुप्त सूचना को पहले वरिष्ठ अधिकारी को बताया जाए और उससे आदेश लेने के बाद ही मौके पर कोई कर्मी जाए।
पीयूसीएल ने दायर की थी याचिका : फर्जी मुठभेड़ों की बढ़ती संख्या को लेकर स्वयंसेवी संस्था पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने याचिका दायर की थी। इसमें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी सुझाव दिया था। आयोग का कहना था कि मुठभेड़ों में मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जाता रहा है। एनएचआरसी ने सभी मुठभेड़ों की जांच कराए जाने का सुझाव दिया था।
जांच पूरी होने से पहले अवॉर्ड नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर मुठभेड़ की तत्काल एफआईआर दर्ज होनी चाहिए। जब तक मामले की जांच चलेगी, तब तक सम्बंधित पुलिस अधिकारी को प्रमोशन या बहादुरी पुरस्कार नहीं मिलेगा। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि पुलिस मुठभेड़ के सभी मामलों की जांच सीबीआई या सीआईडी जैसी स्वतंत्र एजेंसी से कराई जानी चाहिए। फैसले में यह भी कहा गया है कि पुलिसवालों को अपराधियों के बारे में मिली सूचना को रिकॉर्ड कराना होगा और हर मुठभेड़ के बाद अपने हथियार और गोलियां जमा करनी होगी।
सभी मामलों में दखल नहीं देगा मानवाधिकार आयोग
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह भी कहा कि पुलिस मुठभेड़ के सभी मामलों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) दखल नहीं देगा। जब तक इस बात की पूरी आशंका हो कि मुठभेड़ फर्जी थी। पुलिस मुठभेड़ के मामले में एफआईआर दर्ज कर इसे तत्काल मजिस्ट्रेट को भेजना होगा। अगर पीडित पक्ष को लगता है कि मुठभेड़ फर्जी थी, तो वह सत्र न्यायालय में केस दर्ज करा सकता है।
प्रदेश की प्रमुख मुठभेड़ें, जिनकी हो रही जांच
6 अप्रैल 2010 को सुकमा जिले के ताड़मेटला, मोरपल्ली व तिम्मापुरम में मुठभेड़ के दौरान 76 जवानों की जान चली गई थी। इसके विरोध में कोया कमांडों ने 11, 14 व 16 मार्च 2011 को 300 घरों को जला दिया था। जस्टिस टी.पी. शर्मा की अध्यक्षता में एक सदस्यीय न्यायिक आयोग मामले की जांच कर रहा है।
6 जुलाई 2011 को बलरामपुर जिले के लोगराटोला गांव में एक छात्रा मीना खलको मुठभेड़ में मारी गई थी। जस्टिस अनीता झा आयोग मामले की जांच कर रहा है।
28 जून 2012 की रात बीजापुर के सारकेगुड़ा गांव में मुठभेड़ के दौरान पुलिस ने 17 ग्रामीणों को माओवादी समझकर मार दिया था। इस मामले की जांच मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के सेवानिवृत जस्टिस वी.के. अग्रवाल कर रहे हैं।
17 मई 2013 को बीजापुर जिले के एड़समेटा गांव में भी नौ ग्रामीण मुठभेड़ के शिकार हुए। यह जांच भी चल रही है।
11 मार्च 2014 को सुकमा जिले
के तोंगपाल में मुठभेड़ के दौरान 16 जवान शहीद हो गए थे। इस मामले की जांच एडीजी आर.के. विज कर रहे हैं।
हर हाल में पालन होगा
वैसे तो हर मुठभेड़ की विभागीय स्तर पर जांच होती ही है और कई बार न्यायिक जांच भी, बावजूद इसके सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए निर्देश का हर हाल में पालन सुनिश्चित किया जाएगा।
-ए.एन. उपाध्याय, पुलिस महानिदेशक, छत्तीसगढ
मजिस्ट्रेट, सीआईडी जांच जरूरी
उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आर.एम. लोढ़ा की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने फैसले में कहा कि पुलिस मुठभेड़ में मौत की मजिस्ट्रेट जांच होनी चाहिए। मुठभेड़ में इस्तेमाल हथियार की फोरेंसिक जांच भी होनी चाहिए और इसकी जांच सीआईडी या दूसरा पुलिस स्टेशन करे। पीठ ने यह भी कहा कि गुप्त सूचना को पहले वरिष्ठ अधिकारी को बताया जाए और उससे आदेश लेने के बाद ही मौके पर कोई कर्मी जाए।
पीयूसीएल ने दायर की थी याचिका : फर्जी मुठभेड़ों की बढ़ती संख्या को लेकर स्वयंसेवी संस्था पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने याचिका दायर की थी। इसमें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी सुझाव दिया था। आयोग का कहना था कि मुठभेड़ों में मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जाता रहा है। एनएचआरसी ने सभी मुठभेड़ों की जांच कराए जाने का सुझाव दिया था।
जांच पूरी होने से पहले अवॉर्ड नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर मुठभेड़ की तत्काल एफआईआर दर्ज होनी चाहिए। जब तक मामले की जांच चलेगी, तब तक सम्बंधित पुलिस अधिकारी को प्रमोशन या बहादुरी पुरस्कार नहीं मिलेगा। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि पुलिस मुठभेड़ के सभी मामलों की जांच सीबीआई या सीआईडी जैसी स्वतंत्र एजेंसी से कराई जानी चाहिए। फैसले में यह भी कहा गया है कि पुलिसवालों को अपराधियों के बारे में मिली सूचना को रिकॉर्ड कराना होगा और हर मुठभेड़ के बाद अपने हथियार और गोलियां जमा करनी होगी।
सभी मामलों में दखल नहीं देगा मानवाधिकार आयोग
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह भी कहा कि पुलिस मुठभेड़ के सभी मामलों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) दखल नहीं देगा। जब तक इस बात की पूरी आशंका हो कि मुठभेड़ फर्जी थी। पुलिस मुठभेड़ के मामले में एफआईआर दर्ज कर इसे तत्काल मजिस्ट्रेट को भेजना होगा। अगर पीडित पक्ष को लगता है कि मुठभेड़ फर्जी थी, तो वह सत्र न्यायालय में केस दर्ज करा सकता है।
प्रदेश की प्रमुख मुठभेड़ें, जिनकी हो रही जांच
6 अप्रैल 2010 को सुकमा जिले के ताड़मेटला, मोरपल्ली व तिम्मापुरम में मुठभेड़ के दौरान 76 जवानों की जान चली गई थी। इसके विरोध में कोया कमांडों ने 11, 14 व 16 मार्च 2011 को 300 घरों को जला दिया था। जस्टिस टी.पी. शर्मा की अध्यक्षता में एक सदस्यीय न्यायिक आयोग मामले की जांच कर रहा है।
6 जुलाई 2011 को बलरामपुर जिले के लोगराटोला गांव में एक छात्रा मीना खलको मुठभेड़ में मारी गई थी। जस्टिस अनीता झा आयोग मामले की जांच कर रहा है।
28 जून 2012 की रात बीजापुर के सारकेगुड़ा गांव में मुठभेड़ के दौरान पुलिस ने 17 ग्रामीणों को माओवादी समझकर मार दिया था। इस मामले की जांच मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के सेवानिवृत जस्टिस वी.के. अग्रवाल कर रहे हैं।
17 मई 2013 को बीजापुर जिले के एड़समेटा गांव में भी नौ ग्रामीण मुठभेड़ के शिकार हुए। यह जांच भी चल रही है।
11 मार्च 2014 को सुकमा जिले
के तोंगपाल में मुठभेड़ के दौरान 16 जवान शहीद हो गए थे। इस मामले की जांच एडीजी आर.के. विज कर रहे हैं।
हर हाल में पालन होगा
वैसे तो हर मुठभेड़ की विभागीय स्तर पर जांच होती ही है और कई बार न्यायिक जांच भी, बावजूद इसके सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए निर्देश का हर हाल में पालन सुनिश्चित किया जाएगा।
-ए.एन. उपाध्याय, पुलिस महानिदेशक, छत्तीसगढ
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