हम स्कॉटलेंड की तरह कश्मीर में जनमत संग्रह क्यों नहीं कर सकते , दुनिया में कई देश बने और आज़ाद हुए है।
दुनिया ने देखा की कैसे ब्रिटेन ने स्कॉटलैंड में जनमत संग्रह कराया और वहां की जनता के 55 प्रतिशत लोगो ने आज़ाद हों ऐसे इंकार कर दिया ,संग्रह के पहले आज़ाद [असंद लोगो और ब्रिटेन सरकार ने भी प्रचार किया , स्कॉटलैंड कोई पहला देश नहीं है जो बड़ी आसानी से बहुमत का आधार पे निर्णय किया हो , पिछले सालो में ऐसे कई देश है जिन्होंने अपन एमुल देश के साथ रहना या बहार जाना पसंद किया और बिना किसी बड़ी खून खराबे या सेना के स्तेमाल के निणय कर पाये , वो अलग बात है की ज्यादतर वे देश योरोप के थे या रूस के भाग थे ,
आखिर हम जनमत संग्रह से इतना क्यों घबराते हैं ,इतहास का सत्य भी यही है की कश्मीर में जब पाकिस्तान क्व कबायलियो ने हमला किया तब भारत के गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन और उनके अंग्रेज जनरल ने सेना भेजने की पहली शर्त यही राखी थी की कश्मीर का भारत में विलय हो और आपात स्थिति खत्म होने के बाद जनमत संग्रह से अंतिम निर्णय कर लिया जाये , नेहरू और उस समय के महाराजा हरिसिंह के पास इसे मानने के अलावा कोई रास्ता भी नहीं था , हमने इस निर्णय को माना , लेकिन बाद में राष्ट्रवाद के चक्कर में नेहरू से लेके कोई भी सरकार इसे स्वीकार करने को तैयाऱ नहीं थे ,
हमने अपनी जिद में अपनी सेना के हजारो जवानो की जान गँवाई , हजारो कश्मीरी नोजवानो की जान गई , हमारे आर्थिक संसाधन बर्बाद हुए ,लेकिन हमारी कोई भी सरकार कश्मीरियों का दिल नहीं जीत पाई , और हमेशा कश्मीरियों के लिए दुश्मन की तरह पेश आये , हम कश्मीर तो चाहते है लेकिन कश्मीरियों को दुश्मन की तरह ट्रीट करने लगे ,
हम ये भी जानते है की जम्मू और लद्दाख के लोग अलग होने के पक्ष में हो ही नही सकते , मामला बचा है सिर्फ कश्मीर घाटी का , एक बार किसी सरकार को हिम्मत करके जनमत संग्रह करवा ही लेने चाहिए , आज़ादी या भारत में किसी एक को चुनने के लिए , सब जानते है की यदि घाटी अलग भी हो गई तो वो ज्यादा दिन आर्थिक रूप से कड़ी नहीं हो पायेगी ,हमारी सरकार अपना प्रचार करे और पृथकवादी लोग अपनी बात करे ,यदि फिर भी घाटी के लोग आज़ाद हों चाहते है तो जम्मू और लद्दाख को भारत के साथ होके घाटी को आज़ाद हमारे देश की ही भलाई हैं
हम ये भी जानते है की इतना साहसिक कदम भाजपा ही उठा सकती है ,कांग्रेस कभी करना तो दूर कह भी नहीं सकती हैं ,इससे हमारे देश का दूरगामी भला ही होगा ,आर्थिक रूप से भी और सेना के बेजा स्तेमाल से भी ,
ये ठीक है की ये सब इतना आसान नहीं है, लेकिन कभी तो हमें ये करना ही पड़ेगा,
दुनिया ने देखा की कैसे ब्रिटेन ने स्कॉटलैंड में जनमत संग्रह कराया और वहां की जनता के 55 प्रतिशत लोगो ने आज़ाद हों ऐसे इंकार कर दिया ,संग्रह के पहले आज़ाद [असंद लोगो और ब्रिटेन सरकार ने भी प्रचार किया , स्कॉटलैंड कोई पहला देश नहीं है जो बड़ी आसानी से बहुमत का आधार पे निर्णय किया हो , पिछले सालो में ऐसे कई देश है जिन्होंने अपन एमुल देश के साथ रहना या बहार जाना पसंद किया और बिना किसी बड़ी खून खराबे या सेना के स्तेमाल के निणय कर पाये , वो अलग बात है की ज्यादतर वे देश योरोप के थे या रूस के भाग थे ,
आखिर हम जनमत संग्रह से इतना क्यों घबराते हैं ,इतहास का सत्य भी यही है की कश्मीर में जब पाकिस्तान क्व कबायलियो ने हमला किया तब भारत के गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन और उनके अंग्रेज जनरल ने सेना भेजने की पहली शर्त यही राखी थी की कश्मीर का भारत में विलय हो और आपात स्थिति खत्म होने के बाद जनमत संग्रह से अंतिम निर्णय कर लिया जाये , नेहरू और उस समय के महाराजा हरिसिंह के पास इसे मानने के अलावा कोई रास्ता भी नहीं था , हमने इस निर्णय को माना , लेकिन बाद में राष्ट्रवाद के चक्कर में नेहरू से लेके कोई भी सरकार इसे स्वीकार करने को तैयाऱ नहीं थे ,
हमने अपनी जिद में अपनी सेना के हजारो जवानो की जान गँवाई , हजारो कश्मीरी नोजवानो की जान गई , हमारे आर्थिक संसाधन बर्बाद हुए ,लेकिन हमारी कोई भी सरकार कश्मीरियों का दिल नहीं जीत पाई , और हमेशा कश्मीरियों के लिए दुश्मन की तरह पेश आये , हम कश्मीर तो चाहते है लेकिन कश्मीरियों को दुश्मन की तरह ट्रीट करने लगे ,
हम ये भी जानते है की जम्मू और लद्दाख के लोग अलग होने के पक्ष में हो ही नही सकते , मामला बचा है सिर्फ कश्मीर घाटी का , एक बार किसी सरकार को हिम्मत करके जनमत संग्रह करवा ही लेने चाहिए , आज़ादी या भारत में किसी एक को चुनने के लिए , सब जानते है की यदि घाटी अलग भी हो गई तो वो ज्यादा दिन आर्थिक रूप से कड़ी नहीं हो पायेगी ,हमारी सरकार अपना प्रचार करे और पृथकवादी लोग अपनी बात करे ,यदि फिर भी घाटी के लोग आज़ाद हों चाहते है तो जम्मू और लद्दाख को भारत के साथ होके घाटी को आज़ाद हमारे देश की ही भलाई हैं
हम ये भी जानते है की इतना साहसिक कदम भाजपा ही उठा सकती है ,कांग्रेस कभी करना तो दूर कह भी नहीं सकती हैं ,इससे हमारे देश का दूरगामी भला ही होगा ,आर्थिक रूप से भी और सेना के बेजा स्तेमाल से भी ,
ये ठीक है की ये सब इतना आसान नहीं है, लेकिन कभी तो हमें ये करना ही पड़ेगा,
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