कोसमपाली में लोग आखिर करें क्या / ज़मीन गई , पानी गया , खेत गए , लोग मरे , तीन तरफ से रास्ता बंद ,
कोसमपाली , तमनार ब्लौक रायगढ़ जिला ,छत्तीसगढ़ राज्य
तो क्या हम आत्महत्या कर ले , क्या हम लड़ना बंद कर , नहीं जब आज जीवित है हमें लड़ना ही पड़ेगा ,
कोसमपाली में
लोग आखिर करें क्या / ज़मीन गई , पानी गया , खेत गए , लोग मरे , तीन तरफ से रास्ता
बंद , तीनो तरफ खाई चोथी तरफ से केलो नदी , तलाब , शमशान घाट , मंदिर ,चारागाह का नाम ,नहीं जंगल कब का नष्ट हो गया
गाँव रह गया है टापू ,और
नौजवानों की विधवायें है और आशंका से भरा जीवन , जी हाँ , फिर भी गाँव के लोग लड़ना चाहते हैं ,अपने
बचे खुचे
संसाधन के लिये /
रात के
10 बजे , सडक के बीचो बीच गाँव के लोग बैठे हैं ,अपने लुटे पिटे गाँव में लोग आगे
की सोच रहे, और कह रहे हैं , करम सिंह ,भरत सिदार कन्हाई राम और बहुत से आदिवासी भारी
मन से
कोसमपाली की व्यथा कहते हैं , वो कहते है की हमारे गाँव ने दो बार जिंदल के लिए अपनी जमीन दिया ,
[ झूटे और गैरकानूनी से जमीने खरीदी गई ] इसके बाद हमारे गाँव के तीनो ओर निकलने वाले रास्ते 150 मीटर गहरी खाई के खदानों
में गुम हो गये ,अब तीसरे दौर के खनन की बात की बात आई तो गाँव ने पहले की तरह विरोध किया , क्यों
की ऐसी हालत में
तीन तरफ खदान और चोथी तरफ केलो नदी तो गाँव तो एक टापू की तरह हो जाता , बचे खुचे सामुदायिक संसाधन है वो भी ख़तम हो जायेंगे / यहाँ से भूमिहीन लोग पहले ही पलायन कर चुके हैं
. गाँव में 43 विधवाए है ,जिनमें 30 से अधिक के पति खेती जाने के बाद शराब पी कर दुर्घटनाओ में मर गए हैं , जो किसान मुआवजा लेके ज़मीन खरिदने दुसरे गाँव में
गए उन्हें ज़मीन नहीं मिली और जो खरीद पाए उन्हें उस गॉव के लोग खेती नहीं करने दे रहे हैं,
जिन्होंने जमीन नहीं
बेचीं उस पर भी जिंदल ने कब्ज़ा
कर लिया , कुछ किसानो को बिना बताये फर्जी क्रेता विक्रेता बना के रजिस्ट्री करवा ली गई, . किसान इसके खिलाफ हाई कोर्ट भी गये , ग्राम सभा
की सिफारिश को भी नहीं मानी गयी , जब बहुत विरोध हुआ तो कोर्ट को दिखाने के लिए , पानी की टंकी ,नल और नाली बनवा दी गई , लेकिन आजतक न तो टंकी में पानी आया और न ही नल चला /जो
लगे थी उसे डायरेक्ट कनेक्शन से जोड़ दिया , जिसका बिल ग्राम पंचायत
के पास
५ लाख आ गया / गाव
बेबस और आक्रोशित हैं /
लोग बहुत निराश थे , किसी ने कहा की अब कुछ नही हो सकता ,हम सब जगह हो आये ,पुलिस ,कलेक्टर और जिंदल के आगे हम कुछ नही कर सकते , कुछ भी कर लो कुछ हो नहीं सकता
,न कानून कुछ कर सकता है और न ही सरकार ,
तब गाँव के ही एक बुजुर्ग ने खड़े हो के बहुत गंभीरता से कह की तो क्या हम आत्महत्या कर ले , क्या हम लड़ना बंद कर ,
नहीं जब आज जीवित है हमें लड़ना ही पड़ेगा , क्योकि हमारे पास इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं हैं, उन्होंने कहा की एक छोटे से कीड़े पर भी जब किसी का पाँव पड जाता है तो वो भी काट देता है ,तो हम तो आदमी हैं ,इसलिए हम लड़ेंगे और खूब जोर से लड़ेंगें /
शानदार और उत्साहित बैठक रात में करीब 1 बजे तक चली , उसमे तय
किया गया की ,वनाधिकार कनून के अन्तर्गत सामूहिक दावा किया जायेगा , गाँव की सीमा बंदी की जाएगी ,सीमा पे नोटिस बोर्ड लगाया जायेगा की बिना
ग्रामसभा की अनुमति के कोई भी सरकारी या कंपनी का कोई व्यक्ति या संस्था काम नहीं कर सकती / और गाँव के संसाधन पे गाँव के अधिकार हैं ,उसे क़ानूनी
रूप से प्राप्त किया जायेगा , इसके लिए कई और योजनाये बनाई गई / जो भी है जैसे भी हैं , जो बचा है उसके लिए लड़ेंगे
, जिंदल हो या सरकार उसके खिलाफ
खड़े होने के अलावा कोई रास्ता नहीं हैं,
,मेरे परिवार ,और सबके विनाश से ही यदि ये तंत्र खड़ा रहता है तो ऐसा जनतंत्र आपको ही मुबारक ., मेरे लिए तो ये विनाश तंत्र हैं , कुछ सुना आपने ? 2
ये बात कभी समप्रदायिक दंगो के बाबत बशीर बद्र ने कही थी / शायद वे कभी छत्तीसगढ़ के गाँव में देखते तो पता नहीं क्या लिखते /
हाँ ये कोसमपाली है , [ रायगढ़ ,तमनार ] पूरे गाँव ने तीन बार अधिग्रहण की मार झेली हैं ,जिंदल की कोयला खदान से पूरा गाँव तबाह हो गया हैं , घर के ठीक सामने या नीचे कई सौ फीट की खदान हैं , चारो तरफ शौर है , भयंकर विस्फोट की थरथराती आवाजे है ,जिससे पूरा घर कांप जाता हैं , दिवालो पे दरारें पड़ना आम बात हैं , सबसे बड़ी बात इस निरीह आदिवासी से किसी ने भी झूटा भी नहीं पूछा की वो क्या चाहता हैं , कोई ज़मीन भी नहीं थी इसकी , जिसका कोई मुआवजा ही मिलता , न ग्राम सभा में इसकी कोई चर्चा हुई ,और न ही कभी किसी कलक्टर या जिंदल के किसी आदमी ने कभी बात की .बस धीरे धीरे खदान खुदती गई ,और वो ठीक घर के सामने तक पहुच गई /
गाँव में बैठकें भी होती है ,कोई मुआवज़ा मांगता है कोई ज़मीन और कोई नोकरी की मांग करता हैं , लेकिन में क्या करूँ ,मेरी तो कोई ज़मीन ही नहीं गई , छोटा से मकान था , मेहनत मजदूरी से परिवार चलता था , घर का अधिग्रहण तो कंपनी ने किया नहीं , मेरा घर बचा है और में तनहा /
कंपनी वाले सोचते हैं की में देर सवेर घर छोड़ के चला जाऊंगा , और वो बिलकुल सही सोचते हैं / मेरे पास इसके अलावा कोई रास्ता भी तो नहीं बचा हैं / क्या आप मुझे कोई रास्ता सुझा सकते हैं / नहीं न ? , तो फिर बाद में मुझसे कुछ नहीं कहना ,की मेने विकास के लिए कुछ क़ुरबानी नहीं दी या मेरा भरोसा जनतंत्र या उसके तरीको में नहीं था / ,मेरे परिवार ,और सबके विनाश से ही यदि ये तंत्र खड़ा रहता है तो ऐसा जनतंत्र आपको ही मुबारक ., मेरे लिए तो ये विनाश तंत्र हैं , कुछ सुना आपने ?
एसडी एम् तमनार ने कहा की जिंदल के जी एम से पूछ के बताऊंगा की सामूहिक दावा फार्म लेने है की नहीं
जब सरकार ही संसद के कानून और सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मानने से इनकार कर दे तो किसे कहा जाये .
फिर वही कोसमपाली जो तमनार तहसील में जिंदल पीड़ित गाँव हैं , छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन की पहल पे गाँव के लोगो ने ग्राम सभा में तय किया की , वनाधिकार कानून के तहत गाँव के बचे खुचे संसाधन पे सामूहिक दावा प्रस्तुत किया जाये , पहल भी हुई , पहले दिन जानकारी के लिए ग्राम पंचायत के सचिव ने तमनार के एस डी एम् खगेश्वर मंडावी से पूछा की हमें सामूहिक दावा जमा करना है ,तो हमें क्या करना होगा , एस डी एम् ने तत्काल कहा की भई इसके बारे में हम जिंदल के जी एम डी के भार्गव से पूछना पड़ेगा की हम दावा फार्म ले सकते है की नहीं / ये ठीक है की छत्तीसगढ़ सरकार ने एक आदेश जारी किया था की जो अधिकारी जितनी ज्यादा ज़मीन का अधिग्रहण करेगा उसे उस ज़मीन की कीमत का 10 प्रतिशत राशी दी जाएगी ,ये उस राशी से अलग हैं जो उसे कंपनियों से मिल रही हैं .
खैर , ग्रामसभा ने बैठक में तय किया की वनाधिकार कानून के तहत अपने गाँव की सीमा बंदी करेंगे , और सारे गाँव के लोग सवेरे सवेरे इक्कठा हुये , हाथ में कुदाल ,फावड़ा ,तसला , पत्थर के ढेर, साथ में नापने की रस्सी और सफ़ेद रंग बाल्टी मे भरा हुआ. बहुत उत्साह था , महिलाओ में , उन्हें ये एहसास करके गर्व था की वे अपने गाँव की सीमा बांध रहे है , जिसके अधिकार उन्हें वनाधिकार कानून 2006 ने दिया हैं . उनका संकल्प है की वे अपने गाँव की सीमा पे ठीक वैसा ही नोटिस लगाएंगी ,जैसा जिंदल ने लगाया है ,'' बिना ग्राम सभा की अनुमति के किसी का भी प्रवेश अवैध है 'उन्होंने यह भी तय किया है की वे अपने गाँव की सीमा पे एक बेरियर लगायेंगे ,जिससे जिंदल या सरकारी अधिकारी बिना पूछे और बिना कारण ग्राम सभा के क्षेत्र में नही घुस सकता हैं .ये अधिकार दिया है कानून ने .
अफ़सोस यही है की कानून का पालन न तो सरकार करती है और न ही उद्योगपति , न तो वे कानून मानते हैं , और न संविधान को मानते हैं /
ठीक यही आरोप सरकारे नक्सलवादियो पे लगाया जाता है , लेकिन यदि सरकारें ही संसद और सुप्रीम कोर्ट के आदेश को न माने तो किसे कहा जाये, /
कानून में चाहे सुप्रीम कोर्ट कुछ कहे या कुछ भी लिखा हो , होगा वही जो जिंदल चाहें
कानून में चाहे सुप्रीम कोर्ट कुछ कहे या कुछ भी लिखा हो ,
होगा वही जो जिंदल चाहें,
कोसमपाली सरसमाल में अब जिन्दल
देवस्थल को उजाड़ने की तैयारी मैं / बमुश्किल
पचास डिसमिल में है , एक सरना का पेड़ , और थोडा खुला क्षेत्र ,ना
कोई देवी देवता की मूर्ति और न ही कोई मंदिर नुमा ढांचा , फिर भी जिंदल को चाहिए ये भी ज़मीन . अजीब प्रस्ताव ' बकरा लो और शिफ्ट करो अपने देवता
/
कोसमपाली की बात में कई बार कर चुका हूँ , यही की इस गाँव को जिंदल का ग्रहण लग गया है , रोज रोज नए नए हथकंडे अपनाये जाते हैं , अब ताज़ा खबर ये है की , अभी पिछले दिनों जिंदल कोयल खदान के लोग फ़ौज फांटे के साथ पहुच गए ,गाँव के बहार आदिवासियों के देवस्थल के पास , ये देवस्थल मुश्किल से पचास डिसमिल जगह पे बच गया हैं , देवस्थल को चारो तरफ से पहले ही खदान के लोगो ने अपनी बाउंड्री में घेर लिया है , यदि साल में होने वाली पूजा ले लिए गाँव के लोगो को जाना होता है तो ., कंपनी के बनाये गए बेरियर से अनुमति के बाद जाना होता हैं देवस्थल कप गौर से देखें तो पता चलेगा की ,इसके ठीक दस कदम दुरी पे बहुत गहरी में खदान खोद ली गई हैं [ फोटो देखें ] वो अलग बात है की , सारे नियम देवस्थल पे किसी के कब्ज़ा बनाये जाने के खिलाफ हैं / पेसा कानून ,वनाधिकार कानून और सुप्रीम कोर्ट भी यही कहता हैं ,खैर आगे की कहानी और भी भयावह हैं /
अभी 21 तारीख को जिंदल के लोग गुंडों के साथ आये और गाँव के लोगो से कहा की ,अपने देव स्थल को तहा से हटा के अपने गाँव में शिफ्ट कर लो , बात बनना भी नहीं था ,बनी भी नही ,आदिवासी किसी भी हालत में इसके लिए राजी नहीं हुए .लोगो ने कंपनी का कोयल परिवहन को रोक दिया, चक्का जाम किया / कंपनी के लोग तो भाग गए , लेकिन 24 को तहसीलदार पुलिस को लेकर पहुच गए ,और लगे समझाने की , भाई अपने देवता को यहाँ से हटा लो हम कंपनी से कह के बकरा वगैरा दिलवा देंगें/ सौ साल पुराने देवस्थल को हटाने के लिए गाँव के लोग तैयार नहीं हुए , क्यो कि सही में वहा कोई मंदिर या मूर्ति तो है, ही नहि , बस एक सरना का पेड़ हैं ,जिसके नीचे वे लोग कुछ पूजा पट करते हैं . उन्होंर ये भी कहा की हम लोग देवता को अपने गाँव से बाहर ही रखते हैं ,गाँव में नहीं /
कोसमपाली में जिंदल और प्रशाशन के प्रताड़ना की कहानी तो कई बार मेने कही है . ये सारी घबराहट इसलिए हुई है क्योकि ,गाँव ले लोगो ने वनाधिका रकानून के अनुसार सामूहिक संसाधन का दावा भरने की कार्यवाही शुरू कर दी है ,इन्होने अपने गाँव की सीमा बन्धन शुरू किया हैं , प्रशाशन ने इससे धबरा के चलित थाना शुरू कर दिया है ,जिससे की पुलिस प्रताड़ना को बढाया जा सके /
सुई की नोक बराबर भी जमीन नहीं दूंगा ,- जिंदल
रायगढ़ के कोसमपाली में ज़िन्द्ल की कोयला खदान से प्रभावित आदिवासियों की बुरी स्थिति की बात पहले भी मेने कई बार कही हैं , यही की ये गाँव तीन तरफ से खदान ने घेर लिया हैं , सरे रास्ते बंद कर दिया गए हैं / इसी सिलसिले में पिछले दिनों एक बार फिर जाना हुआ , कोसमपाली के आदिवासी किसान निरंजन ,घसिया राम और अजीत सिंह ने 2008 में वनाधिकार कानून के तहत 1.5 एकड़ भूमि के पत्ते की मांग की , उसे बहुत कोशिश के बाद मिला कु 50 डिस्मिल ज़मीन , चलो कुछ तो मिला , लगा की जैसे तैसे गुज़ारा हो जायेगा . क्योकि उसके कब्जा तो डेढ़ एकड़ पे ही बना रह था , लेकिन उसके खेत के ठीक पास जिंदल की खदान खुद रही है , जिंदल के अधिकारियो ने उसकी और अन्य तीन किसानो की पट्टे में मिली ज़मीन को 2012 में अपने घेरे में लेके हथिया ली .
पटवारी से लेके एस डी एम् तक ने कहा की ये ज़मीन आदिवासी किसान की हैं ,इसे कोई कैसे ले सकता हैं , कल्लेक्टर तक ने कहा की इसके खिलाफ ऍफ़ आई आर लिखवाई जाये , ऍफ़ आई आर लिखी भी गई .लेकिन आज तक वो ज़मीन किसान को नहीं मिली ./
ऐसे तो पूरे गाँव की 80 प्रतिशत ज़मीन जिंदल के हाथो में चली गई हैं ,किसान कोर्ट भी गए हैं . हजारो एकड़ ज़मीन पे भी जिंदल जैसे लोग किसान की 5 0 डिसमिल ज़मीन भी से नहीं आ रहे हैं / कोरबो के खिलाफ माहाभारत हुआ और वे अपना सब कुछ गवां बैठे , क्या यहाँ भी कुछ ऐसी ही लड़ाई होगी , शायद नहीं ?
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