.
क्या हम इनके
लिए कुछ
कर सकते
हैं , नहीं,
हमने आज
तक इनके
लिए कुछ
नहीं किया
हैं , ये
लोग ऐसे
ही ख़तम
हो जाएँगे
और हम
सब इन्हें
देखते सुनते
और पढ़ते
रह जाएंगें
/ [ 1 ]
रायपुर में पिछले दिनों मानवाधिकार आओग की टीम के सामने कांकेर ...के अंतागढ़ ब्लोक के गाँव एडानार और मलमेटा से कुछ आदिवासी आए थे , उन्होंने जो कुछ कहा , वो रोंगटे खड़े करने वाला था , वहीं पी यू सी एल ने तय किया की एक टीम उन गांवों में जाए ,टीम गई [ उसकी रिपोर्ट अलग से तैयार की गई है ] वहां की स्थिति और भी भयावह है
एडानार पंचायत में सात गाँव है और ये सभी अन्तागढ़ ब्लॉक के ताडोकी थाना में आते हैं , गुन्जिनार ,अद्बेज ,मलमेटा , महोरपाट ,मंसपुर ,छोटे धोंसा ,बड़े धोंसा और एडानार , यहाँ फ़िलहाल न तो कोई खनिज के आसार दीखते है और न ही कोई हाल ही में कोई नक्सली हमले हुए हैं हुए हैं , लेकिन सातो गाँव सी आ पी और बी एस एफ के हमलो से बेजार हैं ,कहा जा रहा है की आगे चल के यहाँ आयरन ओर की खदाने मिलेंगी , इसी लिए सारी कवायद हो रहि हैं / लगभग पूरा गाँव उपस्थित था , अपनी अपनी व्यथा सुनाने के लिए / चाहे जब फ़ोर्स के लोग 100 -200 की संख्या में आते है और चाहे जिसे मारपीट करके ले जाते हैं , हमने पूछा की कितने लोग है जिन्हें जेल में जाना पड़ा तो 50 लोग खड़े हो गए , उसमे बहुत से लोग थे ,जिन्हें तीन तीन साल जेल रखा , बेगुनाह मान के बरी किया गया ,और एक महीने बाद फिर पकड़ लिया गया , आरोप किसी को पता नही , बस य़हि कहा गया की तुम सब लोग नक्सली बैठक में जाते हो , आज तक किसी को भी सजा नहीं हुई , यानि साबित कुछ नहीं हुआ की किसी ने कोई अपराध किया हो /
हमने पूछा भी ,भाई आप लोग अंदर वालो की बैठक में जाते ही क्यों हो , उन्होंने कहा की देखो , आप लोग आए तो हम सब आए की नहीं , फ़ोर्स जब बुलाता है तब हम सब जाते है की नहीं , और जब अन्दर वाले बुलाते है तो हम कैसे उन्हें मना कर सकते हैं , उनके पास हथियार भी तो हैं / उनसे ये भी पूछा की वो कहते क्या है तो उन्होंने कहा की यही सब जो आप लोग कह रहे हैं /
तीन चार लोगो को मार भी दिया , जिसकी आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई / कब किसको नक्सली बता के पकड़ लें या मार दें कोई पता नहीं / न कोई सुनता है , दोनों पार्टियों के नेता तो वोट तक मांगने ही नहीं आते , तो फिर हमारी बात कोन सुनेगा /और आगे देखें
जितनी जानकारी मिल पाती है, उससे कई गुना और जानने को होता हैं ,2
छत्तीसगढ़ में फ़ोर्स की ज्यादतियों की जितनी जानकारी मिल पाती है, उससे कई गुना और जानने को होता हैं , इन ज्यादतियों के केंद्र में होता है ,सिर्फ आदिवासी / इन्हें जान से मार दिया जाये . इनकी ज़मीन कब्ज़ा की जाये , जंगल ,संसाधन छीन लिए जाएँ , महिलाओ की अस्मिता से खिलवाड़ हो , गाँव के गाँव जला दिए जाएँ , बिना किसी अपराध के सालों जेल में सडा दिया जाये , और भी क्या क्या जुल्म इनके साथ होते रहे , कोई इनकी सुनने वाला नहीं हैं / कुछ मानवअधिकार वादियों के अलावा कोई इनके साथ खड़ा नहीं दिखता . आखिर क्यों ?
न तो कोई इनका कोई वोट बैंक बन पाया हैं , ना धर्म या जातिगत पहचान बनी है जिससे की देश में या देश के बाहर कोई समूह इनके साथ खड़ा दिखाई दे पाए , किसी धर्म या जाती पे हुए हमले की प्रतिक्रिया तो हर जगह दिखती भी है और सरकार हिलती भी दिखती है , मोदी पूरे देश में मुसलमानों के खिलाफ संघार के दोषी मने और जाने जाते भी है , लेकिन रमन सिंह की कोई बात नहीं करता , जो मोदी से कई गुना ज्यादा आदिवासियों के संघार के लिए जिम्मेदार हैं , यदि हिसाब लगाया जाये तो रमन सिंह के सामने मोदी तो बच्चा दिखाई देंगें , दलितों के साथ जितनी बेइंसाफी पुरे देश में होती होगी उससे कई गुना तो सिर्फ छत्तीसगढ़ में पे के साथ हुई होगी,/ लेकिन ये उनका दुर्भाग्य है की इन्हें कोई समूह के रूप में भी नहीं लेता
/
क्या हम सब मूक दर्शक बन के इस षड्यंत्र में शामिल नहीं हैं , मुझे तो लगता है की भले ही हम न माने लेकिन यही सही है की हम भी जाने अनजाने इसके लिए जिम्मेदार हैं /अभी पिछले सप्ताह की बात है की पी यू सी एल का एक दल जाँच के लिए कांकेर जिले के अंतागढ़ तहसील के गाँव एडानार और मलमेटा गया था , छोटे से गाँव की एक मीटिंग में हमने ऐसे ही पूछ लिया कि ऐसे कितने लोग है जो जेल गए हैं , तो पचास लोग खड़े हो गए , जो एक, दो, माह नहीं तीन तीन साल तक जेल में रहे , बाद में उन्हें निर्दोष मान के रिहा कर दिया ,, बाद में फिर उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया , नाम चाहिए ,वो अगली किसी पोस्ट में बता देंगे / चार नोजवानो को तो गाँव में ही बी एस एफ ने गोली से मार दिया, कोई भनक तक नहीं , कारण ? सिर्फ एक की रावघाट की पहाडियों पे आयरन ओर है जिसपे निजी उद्योगपतियों को कब्ज़ा दिलवाना है , इन्हें नक्सली बता के ही भगाया जा सकता या मार जा सकता हैं / गाँव खाली हों ,चाहे वो मुआवज़े के नाम से हो या आतंक से /
इस चित्र में ऐसे कुछ नोजवान है जो बार बार जेल में गए ,और निर्दोष छूटे फिर जेल में गए /
मालमेटा और एडानार में जुल्म की कहानियां बिखरी पड़ी हैं ,पहले तो लोगो ने बताया ही नहीं, फिर धीरे धीरे खुलने लगे , [ [मलमेटा एडानार वही जो कांकेर के अंतागढ़ के गाँव है ]
मलमेटा के राम मंडावी , देऊ राम नुरेटी ,सोबरम दर्रा और भी लोग गाँव में होंगे लेकिन ये तीनो तो मीटिंग मे शामिल ही थे .,इनसे बात की इनके घर गए इनकी पत्नी और माँ से मिले , अज़ब प्रकरण था इनका , इन तीनो को 2009 में बी एस एफ ने बिना किसी वारंट या कुछ बताये गिरफ्तार कर लिया , बाद में पता चला की किसी नक्सली घटना में इनका हाथ होना बताया गया , केस चला पूरे तीन साल, कोई गवाही नहीं , कोई सबुत नहीं , किसी घटना में शामिल नहीं , कभी किसी नक्सली मीटिंग गए नहीं , आखिर तीन साल बाद इन्हें निर्दोष मान के रिहा कर दिया गया /
साल भी घर नहीं रह पाए की दुबारा पुलिस इन्हें पकड़ ले गई ,न कोई आरोप ,न कोई सुनवाई ,बस जब चाहे जो इन्हें पकड़ ले जाता हैं , सबसे दुखद ये है, की जेल के तीन सालो में इनसे मिलने परिवार के लोग भी नही गए , बार बार पूछा भी की आखिर माँ या पत्नी क्यों नही मिलने गए तो बड़ा मासूम सा उत्तर दिया की पुलिस ने कहा की यदि जेल मिलने जाओगे तो इन सब को भी बंद कर देंगे / पूरा परिवार बेबस , खेती बरबाद ,घर बीरान ,लेकिन कोई सुनवाई नहीं , जब रिहा किया निर्दोष रिहा किया गया तो ,कोई प्रशाशन या पुलिस ने अफ़सोस ज़ाहिर नहीं किया ,बल्कि हमेशा के लिए अपराधी बना दिया /
ऐसी गिरफ्तारियाँ रोज होती हैं , गडवाराम , जेतुराम ,प्रेमलाल ,गनुरम ,सोनी राम ,समर्थ और राम नाथ को 22.10.12 को बी एस एफ वाले पकड़ के ले गए , सब पे एक ही आरोप की वे सब नक्सली समर्थक हैं , इनकी आज तक जमानत नहीं हुई / वकील से मिले तो पता चला की उन्हें कोई खास रूचि ही नहीं हैं /धाराये लगे गई 3 0 7 ,3 0 2 , देशद्रोह की , पता नहीं शाशन किसे देशद्रोह मानता , और देश भक्ति क्या हैं /
खुला पेट लिए घूमते है
ये ओंगकालू राम / सुन्दर [40 ] मलमेटा
में ही रहते हैं , खुला पेट लिए घूमते है ,कांकेर में अपनी बहन को लेने गया था , भानुप्रतापपुर में पुलिस
का मुखबिर इंदिरा
भुआरिया मिला , कहा की तुम नक्सलियों के साथ हो , जो भी जेब में हो हमे देदो . पैसा दिया भी , तो भी उसका दिल नहीं ,और उसने इसके पेट में छुरा भोंक दिया , आंते
बाहर आ गई, बड़ी मुश्किल से अस्पताल गया , लगभाग
दो साल भारती रहा , कांकेर में , जो भी घर में था सब इलाज में लग गया , मुखबिर
थाने में आराम से रह रह था
,
नंदुलाल पोटाई , जय लाल ,सहस राम ,मोतीराम ,रामाधार ,जागुराम ,रूपसिंह ,रामदयाल जैसे कई लोगो को समय समय पे मार पीट की गई ,इसपे आज तक कोई सुनवाई ही नहीं हुई ,
सुबह सुबह 5 -6 बजे के करीब फ़ोर्स हमला करती है ,अडेनार पंचायत के सात गाँव में ,किसी को भी उठा लिया जाता हैं , इन गाँव के 40 लोग रायपुर में मानव अधिकार आयोग की सुनवाई के समय आये थे , इसके बाद ही पी यू सी एल की टीम इन गाँव में गई थी /
इस छोटे से गाँव में पुलिस ने बताया की 375 लोगों के खिलाफ स्थाई वारंट है . रामाधार बताते है, की इतने तो पुरुष भी गाँव में नही है , आज तक किसी ने ये नहीं बताया की किस किस के खिलाफ वारंट है , लोग हमेशा डरे और सहमे हुए है ,पता नहीं कब किसे गिरफ्तार कर लिया जाये /
गाँव के लोगो ने ये भी बताया था मार्च 2009 में सरेंडी गाँव के ही फागुराम ,बैजू , और मंदेर को उनके खेत में ही गोली से मार दिया था ,जिसकी आज तक कोई सुनवाई या जाँच तक नहीं हुई ,
आखिर ये गाँव पुलिस से ग्रसित क्यों है ? कारन बस इतना है, की गाँव के पास राव घाट की पहाड़ियाँ है जहाँ लोह अयस्क का भण्डार है , बस यही अभिशाप है ,इनके लिए, इसे निजी उद्योगपतियों को देने का विरोध नक्सली कर रहे है ,
ये कनेश्वरी है ,
ये कनेश्वरी है , गाँव है इनके अड़ेनार जो अंतागढ़ तहसील के कांकेर जिले में आता हैं [ छत्तीसगढ़ ] उम्र हैं
14 पढ़ती है 8 वी कक्षा में तुलेश्वरी और पिंकी इनके बहने है दोनों छोटी , माँ हैं , इसके उपर घर पूरी जिम्मेदारी आ
गई हैं , कारण पता है, क्या है ?
इनके पिता विजय धनेलिया [ 40 साल ] को एक सुबह फोर्स ने गोली से मार दिया , वो घर से थोड़ी दूर पे दातुन तोड़ के दान्त साफ कर रह रहा था , की इतने में 200 की संख्या में फ़ोर्स आया , और इनकी कनपटी में नजदीक से फायर कर दिया , और विजय वहीँ मर गये /पोस्ट मार्टम किया गया ताडोकी ठाने के पास ,जिसकी रिपोर्ट आज तक परिवार को मांगने पे भी नहीं दी गई,/
कनेश्वरी को आज तक नहीं पता की आखिर उसके पिता को मार क्यों गया , किसी ने उसे बताया की पुलिस के लोग कह रहे थे की वो नक्सली थे / जब उसी दिन पुलिस के लोग घर बतानेआये की हाँ, हमने तुम्हारे बाप को मर दिया है , तो उन्होंने ये भी नहीं कहा की क्यों मारा हैं उन्हें / पूरा गाँव आज की सभा में मोजूद था , सब ने यही कहा की विजय का नक्सलियों से दूर दूर का भी सम्बन्ध नहीं था . कनेश्वरी आज भी कुछ अपने पिता के बारे में कुछ नहीं बोलती है , सिवाय इसके की, फ़ोर्स आई और दातुन करते हुए जामपारा में उन्हें गोली मार दी . वो कहती है की उनके सीधे साधे किसान उनका नक्सलियों से कोई लेने देना नही था /
3 अगस्त को ही सरंडी गाँव में मंगेश गोड [18] राहुल [1 6 ] हरेन्द्र कुमार [1 8 ]विशम्भर सिंह [3 2 ] को भी पकड़ ले गए , जेल में दल दिया , जिनकी आज तक जमानत नहीं हुई /
अंतागढ़ में जाकर इनके वकील से भी बात हुई , ज्यादातर प्रकरणों में ये मुख्या आरोपी ही नहीं हैं , जिन केस में इन्हें पकड़ा गया था ,उसके मुख्य आरोपी तो कब के निर्दोष छुट गए थे , इन्ह ईटीओ अन्य में गिरफ्तार कर लिया गया / इनकी फ़ायल तो कब की बंद हो के रिकार्ड रूम में चली गई हैं ,मजे की बात ये हिं की अभी तक , इने केस शुरू ही नहीं हुए है क्यों की इनकी फायल ही रिकार्ड रूम से कोर्ट में नहीं पहुची है .
इससे ज्यादा अंधेरगर्दी देखी है कहीं और , नहीं न ?
वही गाँव मलमेटा ,
वही गाँव मलमेटा , अंतागढ़ कांकेर / छत्तीसवगढ़
जिनके लिए 10 रुपये भी संपत्ति है ऐसे उजियार सिंह /बैसाखू [ 40 ] के घर में घुस के फ़ोर्स के लोगो ने दस हज़ार रुपये पेटी तोड़ के लूट लिये , ये सीधा सच्चा परिवार सवेरे सवेरे मिजाई के लिये अपने खेत पे गया था , बहुत सी फ़ोर्स आई गाँव के हर घर मे घुसी और जो मिला उसे लुट लिया . उजियार सिंह के परिवार ने धन और पत्ता बेच के रुपये अपने कमरे की टांड पे पेटी में रखे थे . कुछ सिपाही घुसे ,तलाशी ली और रुोाए निकाल के उसका कुन्द तोड़ के रुपये निकाल लिए
./
इसके पहले भी इसी परिवार के घर मे घुस के फ़ोर्स के लोगो ने बकरा पकड़ लिया था ,मगर इनकी बहादुर पत्नी ने वो बकरा उनसे छीन लिया . लूट पाट का कम यदि सेना या फ़ोर्स के लोग करें तो इसे क्या कहा जायेगा /
जहानुराम सोडी की कहानी भी कुछ ऐसी ही हैं , ये घर का सामान लेने पास के ही बाज़ार में गए थे की फ़ोर्स के तीन लोगो ने इससे चार हज़ार रुपये छें लिए ,सोचा की चलो इसकी रिपोर्ट लिखवा देते है, तो जब ये तडोकी थाना गए तो इसे ही गिरफ्तार कर लिया / कहा गया की उसके खिलाफ स्थाई वारंट हैं / उस एटीम महीने बाद रिहा किया गया , बाद में एक सप्ताह बाद दुबारा गिरफ्तार कर लिया गया /
इस प्रकार की घटना को गाँव के लोग भी छोटी मोटी घटना ही मानते हैं , मने भी क्यों नहीं जब इनकी जान ही खतरे में हो तो ऐसी लूटपाट तो बनती ही हैं , क्यों, क्या . कुछ गलत कहा हमने या गाँव के लोगो ने /
ये कहने की भी कोई जरुरत है की ये सरे आदिवासी लोग ही है , नहीं तो किसी और के साथ ऐसा किया होता तो बबाल तो मचता ही
सुदूर कठिन चढ़ाई पे बसा गाँव अझनेर भी शिकार हो रहा हैं ,
सुदूर कठिन चढ़ाई पे बसा गाँव अझनेर भी शिकार हो रहा हैं ,रावघाट के लोह अयस्क की लूट का .कांकेर जिले के अंतागढ़ का आखरी गाँव जैतपुर [ फुल पाड ] से महादेव पहाड़ की 2
किलोमिटर की खड़ी चढ़ाई और पांच किलोमीटर पहाड़ पे बसा है अझनेर गाँव [ खडका गाँव पंचायत
] , हमारे पास खबर थी की इस में 8 नौजवानों को ख़तम कर दिया गया है , जैतपुर के सरपंच उमेश नुरेटी हमारे साथ जाने को तैयार हो गए , उन्होंने ये भी कहा की झपमारका के हालत तो और भी ख़राब हैं ./ खैर ,चढ़ाई कठिन तो थी, हमें लगा की ये चढ़ाई भी गाँव के लिए वरदान ही होगी , पुलिस या फोर्स कैसे गाँव पहुचता होगा .
गाँव की तरफ जब हमारा दल पहुच रहा था , तभी एक फायर की आवाज़ आई , लगा की हमारे आने की सुचना दी गई थी ,पता नहीं किसने और र्क्यो / 40 - 50 ग्रामीण आये थे ,सुनने के लिए , बहुत मुश्किल था उनसे बात करना , बहुत मुश्किल से चर्चा के लिए खुले , खुले तो खुलते ही चले गए , फिर जो दर्दनाक दास्ताँ कही तो कहते ही गए /
हाँ ये तो गलत था की इस गाँव के सभी नोजवान मारे गए हैं ,ऐसा कुछ नही हुआ था , लेकिन जो होरहा था वो बहुत भयानक था /सुदूर पहाड़ी पे बसा गाँव धीरे धीरे ख़तम हो रहा ही , यहाँ एक दो साल पहले 48 परिवार रहते थे , अब मात्र 2 0 पारिवार बचे हैं .17 परिवार तो एस पी ओ के मारपीट के कारण नारायणपुर में जाके बस गए , यहाँ न तो फ़ोर्स आती है न ही कोई पुलिस ,क्योकि इतनी चढाई चढ़ के कोन आयेगा ,तो रास्ता निकाला गया , गाँव से ही एस पी ओ भर्ती किये गये , लगभग 12 -1 4 अब इनका काम था, की वे कैसे भी इन गांवो को खाली करवाये / और शुरू हो गया इनका तांडव , रोज मार ]पीट , बाज़ार करने जाओ तो उन्हें सताया जाये , बस एक ही बात की ये सब लोग गाँव खली कर दें , काहे की ग्रामसभा ,काहे का पेसा एक्ट ,काहे का वनाधिकार कानून ,और काहे का ज़मीन का मुआवज़ा / कुछ नहीं सिर्फ और सिर्फ एस पी ओ और उनकी मार पीट , पुलिस में गिरफ्तारी ,और हमेशा के लिए समस्या /
यहाँ न तो फ़ोर्स का डर है और न ही किसी अधिकारी का हस्तक्षेप , फिर भी गाँव खाली हो रहा हैं, अझनेर गाँव रावघाट परियोजना के एफ ब्लोक के नाम से जाना जायेगा , इसके आसपास के 8 0 गाँव भी देर सवेर लपेट में आयेंगे , विडम्बना या भी है की किसी गाँव वालो को पता भी नहीं है की ,यहाँ लोहा है जो इनके जीवन के लिये अभिशाप बना हैं / ये भी सही हो की नक्सली इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं / जब मुख्या धारा के सभी राजनेतिक दल [ वामपंथी सहित ] खदान खोदने के समर्थन करते हों तो इनकी सुनने वाला है ही कोन. / वामपंथियों को ये भ्रम है की सार्वजानिक क्षेत्र के उद्योग से विकास का सही रास्ता होगा , पता नहीं वो किस युग में रह रहे हैं / सारा सार्वजानिक क्षेत्र का नाटक निजी हाथो में सोमपने का नाटक ही है / और फिर सबसे बड़ी बात की ,आखिर कोई उससे भी पूछेगा जिसकी ज़मीन और संसाधन है /
[ डा, लाखन सिँह ]
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