Saturday, October 10, 2015

अल्पसंख्यक होना लगभग अपराधी होना बन गया है- अशोक वाजपेयी

अल्पसंख्यक होना लगभग अपराधी होना बन गया है- अशोक वाजपेयी





अशोक वाजपेयी अपनी जनतांत्रिकता के लिए जाने जाते रहे हैं. देश की जनतांत्रिक परम्पराओं पर जब भी संकट के बादल मंडराए हैं उन्होंने आगे बढ़कर उका प्रतिकार किया. 2002 में हुए गुजरात दंगों के समय उन्होंने सरकारी सेवा में रहते हुए खुलकर सरकार का विरोध किया था और प्रतिरोध की एक मिसाल पेश की थी. देश में खराब होते सांप्रदायिक माहौल, उसमें शासन की चुप्पी आज परेशान करने वाली है. अचानक से ऐसा लग रहा है जैसे देश का साम्प्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण किया जा रहा हो. ऐसे अशोक वाजपेयी ने साहित्य अकादेमी पुरस्कार वापस कर हम युवाओं में ऊर्जा का संचार किया है.

यह चिंता की बात है कि जो प्रतिरोध के पुरोधा माने जाते रहे हैं वे ऐसे माहौल में चुपचाप हैं. जबकि अशोक जी जैसे लेखक ने उस चुप्पी को तोड़ने का काम किया है. हम युवाओं को तनकर खड़े होने की प्रेरणा दी है. लेखक के रूप में अपनी भूमिका को समझने का सन्देश दिया है. अशोक जी सच में आज के युवा लेखकों के लिए अन्धकार में एक प्रकाश की तरह हैं.


जानकी पुल के पाठकों के लिए अशोक जी ने विशेष वक्तव्य दिया है- 
“यह साहित्य, कलाओं, परम्परा और संस्कृति सबके लिए बहुत कठिन समय है. जिस बहुलता, समावेश और खुलेपन को, बहुभाषिकता और बहुधार्मिकता को हम पोसते और उससे शक्ति पाते रहे हैं, उस पर लगातार आक्रमण हो रहे हैं. हम इकहरेपन की तानाशाही के कगार पर पहुँच रहे हैं और संकीर्णता, हिंसा, हत्या, असहिष्णुता, प्रतिबन्ध सब लगातार बढ़ रहे हैं. अल्पसंख्यक होना लगभग अपराधी होना बन गया है. ऐसे समय में हम सृजनसम्प्रदाय के लोग चुप और उदासीन नहीं बैठ सकते हैं.”  

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