सहिष्णुता सचमुच हिंदुओं के ख़ून में है?
- 4 घंटे पहले
अधिकांश भारतीय अपने देश और अपने बारे में जो दो सबसे बड़ी मान्यताएं मानते हैं, उन पर मैं बहुत पहले लिखना चाहता था.
कुछ दिन पहले केंद्रीय मंत्री वैंकेया नायडू ने एक कार्यक्रम में इन धारणाओं को दोहराया था.
उन्होंने कहा था, “आजकल देश में हम नए तरह का ढर्रा देख रहे हैं. वो कहते हैं कि इस देश में सहिष्णुता में कमी आ रही है. भारत दुनिया का इकलौता देश है जहां सहिष्णुता है, अगर यह सौ प्रतिशत नहीं है तो कम से कम 99 प्रतिशत तो है ही.”
नायडू ने आगे कहा, “अगर आप इतिहास पलटेंगे तो पाएंगे कि भारत कई विदेशी हुकूमतों के आक्रमण का शिकार रहा, लेकिन इस बात का एक भी उदाहरण नहीं है कि भारत ने किसी देश पर हमला किया हो. भारतीयों का व्यवहार भी इस तरह का नहीं है. हम सभी धर्मों का सम्मान करते हैं. यही भारत की महानता है. सहिष्णुता तो भारतीयों के ख़ून में है.”
दो धारणाएं ऐसी हैं, जिन्हें अधिकांश भारतीय मानते हैं. पहली, ये धारणा कि भारत केवल आक्रमण का शिकार रहा है और भारतीयों ने कभी दूसरे देश पर आक्रमण नहीं किया. दूसरी ये कि भारतीय (इस संदर्भ में इसका मतलब हिंदू है) अनोखे हैं क्योंकि हममें सहिष्णुता है.
हमीं वो लोग हैं जो अपने विजेताओं के साथ रह रहे हैं.
आइए दूसरी धारणा पर पहले नज़र डालते हैं. इस मामले में भारत अकेला देश नहीं है. हम ऐसे कई देशों को देख सकते हैं जहां इसी तरह की घटनाएं घटीं.
फ़्रांसीसियों ने 1066 में इंग्लैंड को जीता था, यह वही समय है जब मुसलमानों ने उत्तरी भारत को जीता था.
भारत से उलट, आज भी ब्रिटेन का अधिकांश उच्च कुलीन वर्ग विदेशी मूल का है.
ख़ुद महारानी एलिज़ाबेथ सैक्से-कोबर्ग गोथा के शाही ख़ानदान से हैं. जैसा कि नाम से ही पता चलता है, यह अंग्रेज़ी नहीं बल्कि जर्मन है.
जर्मन विरोधी भावनाओं के कारण विश्व युद्ध के दौरान इसका नाम बदलकर विंड्सर रख दिया गया था.
लेकिन ब्रिटेन का उच्च वर्ग अपनी विदेशी जड़ों को बड़े सम्मान के साथ रखता है और इसकी वजह से वो असंतुष्ट नहीं रहता.
दो सौ साल बाद, चीन को कुबलई ख़ान के नेतृत्व में मंगोलों ने जीत लिया और वो वहीं के होकर रह गए.
चीन में यूवान का मंगोल वंश मशहूर है. उत्तर अफ़्रीका कई नस्लों के मिलने से बना है, जो कम से कम 450 ईसा पूर्व या शायद इससे भी पहले से घुल मिल गए थे (यह क़रीब वही समय है जब हैरोडोटस ने इतिहास की पहली किताब लिखी).
तुर्की को मध्य एशियाई तुर्कों ने जीता था. यहां ग्रीक समेत कई देशों के लोगों ने क़ब्ज़ा किया था. तुर्की को एनातोलिया कहा जाता है क्योंकि पूरब के लिए एनातोल का मतलब ग्रीक है.
इसी वजह से साइप्रस आधा टर्किश और आधा ग्रीक है. भारत और पाकिस्तान की तरह, दोनों लोग एक दूसरे के पड़ोस में बहुत शांति से रहते हैं.
हंगरी नाम हूण से बना है, जो मध्य एशिया का एक क़बीला है. इन्होंने यूरोप को जीता और उन्हीं में शामिल हो गए. हंगेरियन इंडो-यूरोपीय भाषा नहीं है.
ग्रीक लोगों ने मिस्र पर सदियों से राज किया और उन्हीं में घुल मिल गए. (मिस्र की अंतिम रानी क्लियोपैट्रा, असल में ग्रीक भाषी थी.)
ये कुछ उदाहरण भर हैं, जिन्हें मैं अपनी याददाश्त के आधार पर दे रहा हूँ. और कई उदारहण हैं.
इसलिए वैंकेया नायडू का यह कहना ग़लत है कि हिंदू कुछ मायनों में बहुत असाधारण या अनोखे हैं क्योंकि हमने उन लोगों को ‘बर्दाश्त’ करने या उनके साथ रहने का किसी तरह हुनर सीख लिया, जिन्होंने हमें जीता था.
अब इस दूसरे मिथक पर आते हैं कि भारतीयों ने कभी किसी दूसरे देश पर हमला नहीं बोला. इसके लिए हमें बहुत दूर जाने की ज़रूरत नहीं है.
अपने शासन के अंतिम दिनों में भारतीय राजा रणजीत सिंह के जनरलों ने काबुल पर क़ब्ज़ा कर लिया था. यह स्वाभाविक है कि रणजीत सिंह ख़ुद को ‘भारतीय’ की बजाय पंजाबी के रूप में देखते थे क्योंकि भारत के राष्ट्र राज्य बनने के बहुत पहले की यह बात है, लेकिन यह एक मामूली बात है.
सम्राट अशोक ने अपने मशहूर स्तंभ कंधार में लगाए थे और मुझे संदेह है कि इन्हें बड़े सम्मान के साथ रखा गया होगा: मुमकिन है कि उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान पर आक्रमण किया होगा या बात न मानने पर धमकी दी होगी.
कुछ लोग कहेंगे कि अफ़ग़ानिस्तान भी भारत का ही हिस्सा है.
इस पर मैं कहूँगा कि महमूद ग़ज़नी से लेकर इब्राहिम लोधी और शेर ख़ान सूरी तक उत्तर भारत पर अफ़ग़ानों की जीत का इतिहास देखें तो ये भी कहा जा सकता है कि भारत अफ़ग़ानिस्तान का हिस्सा है.
मेरा तर्क है कि ये विचार आधुनिक है कि हिंदू शांति प्रेमी और संयमी हैं.
हमें अपने ही लोगों का ख़ून बनाने में कभी हिचक नहीं हुई. उदाहरण के लिए मराठों ने गुजरात पर क़ब्ज़ा कर लिया था और आज भी बड़ौदा पर वो ही क़ाबिज़ हैं.
यह कोई शांतिपूर्ण या लोकतांत्रिक क़ब्ज़ा नहीं था.
अशोक ने कलिंग को जीता और हज़ारों उड़िया लोगों का क़त्लेआम किया. कोई भी इससे इनकार नहीं करता है. ऐसा नहीं था कि सहिष्णुता ने उसे यही दुहराने के लिए चीन या बर्मा या ऑस्ट्रेलिया जाने से रोक लिया, बल्कि भौगोलिक सीमाओं ने उसका रास्ता रोका.
उत्तरी भारत के राजवंशों के पास विदेशी ज़मीन यानी उपमहाद्वीप के बाहर इलाक़े जीतने में बहुत बड़ी बाधा भौगोलिक स्थितियां थीं.
दक्षिण में भी ऐसे ही उदाहरण हैं. उत्तर भारत में मुसलमानों के आक्रमण और इंग्लैंड पर फ़्रांस के आक्रमण के समय में ही चोल वंश के नेतृत्व तमिलों ने दक्षिण एशिया पर आक्रमण किया क्योंकि बाक़ी भारतीय राजवंशों के मुक़ाबले उनके पास ही सक्षमे नौसेना थी.
ये सब ज्ञात है और मैं कुछ भी नया नहीं बता रहा हूँ. लेकिन यह अहम है कि इसके बावजूद अधिकांश भारतीय और यहां तक कि केंद्रीय कैबिनेट के मंत्री तक ऐसे बचकाने मिथकों पर विश्वास करते हैं.
(ये लेखक के निजी विचार हैं. आकार पटेल एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के कार्यकारी निदेशक हैं.)
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