बस्तर का दर्द : इधर बंदूक तो उधर गोली... फिर कैसे हो प्यार की बोली
बंदूक इधर भी है ��"र उधर भी। गोली मा��"वादी भी चला रहे हैं ��"र पुलिस वाले भी। हम लोग क्या करें ��"र कहां जाएं? यह दर्द उन ग्रामीणों का है, जो पुलिस ��"र मा��"वादियों के बीच पिस रहे हैं।
जगदलपुर/दरभा. \
'बंदूक इधर भी है और उधर भी। गोली माओवादी भी चला रहे हैं और पुलिस वाले भी। हम लोग क्या करें और कहां जाएं? माओवादी गांव में आते हैं, हमसे खाना मांगते हैं तो पुलिस कहती है- हत्यारों का अन्नदाता बनने की जरूरत नहीं है। पुलिस के साथ खड़े रहते हैं तो माओवादियों को लगता है, हम लोग मुखबिर बन गए हैं।\' यह दर्द भडरीमहू गांव के उन ग्रामीणों का है, जो पुलिस और माओवादियों के बीच पिस रहे हैं।
यहां के 10 लोग माओवादी होने के आरोप में जेल में बंद हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि जिन लोगों को माओवादी बताकर जेल में ठूंस दिया गया है, वे सभी खेती-बाड़ी करते हैं। पुलिस ने उन्हें इसलिए माओवादी बना दिया, क्योंकि असली उनकी पकड़ में नहीं आए।
विकास का सच
दरभा से महज 15 किमी दूर गांव भडरीमहू पहुंचने के दौरान सरकार के विकास के दावों की भी पोल खुल जाती है। इस गांव तक पहुंचने के लिए पथरीले रास्तों तो कभी पगडंडियों का सहारा लेना पड़ता है। आदिवासी यह बताने से नहीं चूकते कि वे किस मुसीबत में जी रहे हैं।
उन्हें दैनिक जरूरतों की पूर्ति के लिए या तो ककालगुर आना पड़ता है या फिर दरभा तक दौड़ लगानी होती है। दरभा तक आने-जाने के बीच कभी उन्हें माओवादी घेरते हैं तो कभी पुलिस वाले। दोनों अपने ढंग से सूचनाएं चाहते हैं। मुंह न खोलने की स्थिति में धमकी दी जाती है तो कभी गोलियों से भूनने का भय दिखाया जाता है।
माओवादियों का आधार कार्ड?
भडरीमहू से गिरफ्तार किए गए 10 ग्रामीणों मुका, आयता, कोसा, वीजा, देवा, बोटी, कुमा, बुधरा, सोमडू� के बारे में जगदलपुर के पुलिस अधीक्षक अजय यादव का तर्क है कि इनमें से कुछ झीरमकांड में शामिल थे, जबकि कुछ एसटीएफ के सहायक प्लाटून कमांडर एसपी सिंह की हत्या में संलिप्त थे।
दरभा पुलिस का कहना है, जिन्हें गिरफ्तार किया गया है, उनका पुराना पुलिस रिकार्ड नहीं है, लेकिन सभी खूंखार माओवादी हैं। इधर, ग्रामीण पुलिस की कार्रवाई पर कहते हैं, अगर ये लोग माओवादी हैं तो सरकार ने उनका आधार कार्ड, मतदाता परिचय पत्र व राशनकार्ड किस आधार पर बना दिया? क्या सरकार माओवादियों का आधार कार्ड बनाती है? उन्होंने \'पत्रिका\' को दस्तावेज भी दिखाए।
ग्रामीणों ने कहा, जब पुलिस को इसका अहसास हो गया, गलती हो गई है तो उनके इन दस्तावेजों को हथियाने की जुगत में लग गई है। ग्रामीणों का कहना है, कुछ दिन पहले पुलिस ने उन्हें माओवादियों से सुरक्षा देने का आश्वासन दिया था, तब उन लोगों को दरभा थाने ले जाया गया था। आईजी कल्लूरी ने उनके साथ फोटो भी खिंचवाई थी। पुलिस वालों ने उन्हें बताया था, फोटो पेपर में छपेगी... पता नहीं छपी या नहीं।
देवा को कैंसर
पुलिस ने जिन ग्रामीणों को जेल भेजा है, उनमें से अधिकतर 30 से 40 साल के हैं। गांव के पूर्व पंच देवा हिरमा कहते हैं, झीरमकांड दरभा के पास हुआ था, इसलिए पुलिस यहां के युवाओं को माओवादी बनाने पर तुली है। वजह है, युवा नहीं रहेंगे तो बूढ़े आदिवासी माओवादियों के साथ मिलकर गोली नहीं चला सकते।
हिरमा का कहना है, हमारे गांव का कोई भी युवा किसी हिंसा में शामिल नहीं है, लेकिन पुलिस को कौन समझाए। हालात यह हैं कि युवाओं के जेल जाने से उनके परिवारों में रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। बच्चों ने स्कूल जाना बंद कर दिया है। जेल में बंद युवक मुका की पत्नी देवे को अब कैंसर की बीमारी ने जकड़ लिया है।
(राजकुमार सोनी)
No comments:
Post a Comment