विकास की राह पर अनसुना दर्द : प्रदेश बना.. जगे सपने.. पर यहां सड़क भी नहीं
रायपुर-जबलपुर हाइवे पर चिल्पी घाटी तक दोनों तरफ घने जंगल और डामर की चमकती सड़क पर चलने का आनंद मध्यप्रदेश की सीमा से सटे गांवों में प्रवेश करते ही अचानक काफूर हो जाता है। यहां पहुंचने के बाद अहसास हो जाता है कि मध्यप्रदेश से अलग होने के बाद छत्तीसगढ़ में विकास की नई इबारत अब भी अधूरी ही है।
हालात ये हैं कि यहां एक दर्जन से अधिक गांवों के लिए पहुंच मार्ग भी नहीं बनाया जा सका है। चिल्पी घाटी से 2 किलोमीटर आगे मंडला रोड पर बायीं तरफ तुरैयाबहरा गांव के लिए 20 साल पहले रास्ता बनाया गया था, जिसकाअब नामोनिशां भी� नहीं है। बीच में तीन पहाड़ी नदियां पड़ती हैं।
बारिश के दिनों में ये गांव टापू बन जाते हैं और लोग चार महीनों के लिए अपने घरों में कैद हो जाते हैं। तुरैयाबहरा के सुकुत बताते हैं, ढाई साल पहले ग्राम सुराज के दौरान प्रभारी मंत्री आए थे, तब बड़ी-बड़ी गाडिय़ों को यहां तक पहुंचाने के लिए झाडफ़ानूस हटाकर रास्ता बनाया गया था। मंत्री ने सड़क और पुल बनाने का वादा किया था, लेकिन हालात जंगल के ही हैं।
बिजली 20 दिन में एकाध बार आती है
यहां मछियाकोना, मराडबरा, माहिलीघाट, कबरी पथरा, तुरैयाबहरा और अन्य कई गांव हैं, जहां बिजली तो है, पर ज्यादातर समय गुल रहती है। बैगा झोरिया कहते हैं, यहां बिजली 20 दिन में एकाध बार ही आती है। बोडला के अनुविभागीय अधिकारी अश्विनी देवांगन बताते हैं, बोक्करखार तक रोड है, इसके आगे पहाड़ी रास्ता है। माहिलीघाट में करीब 250 परिवार रहते हैं, लेकिन पानी के लिए पहाड़ी जलस्रोत ही सहारा है।
पहाड़ी पार कान्हा, जानवरों का डर
नंदनी, समनापुर, बरबसपुर, सोनवाही, सिंघनपुर, बेंदा, तुरैयाबहरा, धबईपानी, लूप गांव मध्यप्रदेश के कान्हा अभयारण्य से लगे हैं। यहां के लोग जंगली जानवरों के कारण दहशत में रहते हैं। उनके पालतू मवेशियों पर जानवरों के हमले तो आए दिन की बात है। मई में एक ग्रामीण भालू के हमले से बुरी तरह से जख्मी हो गया था। समनापुर के वैद्यराज कहते हैं, कान्हा और भोरमदेव संयुक्त अभयारण्य हैं। कुछ गांवों की सुरक्षा को लेकर फेंसिंग की बात तो की गई, लेकिन हुई नहीं।
4 महीने कैद रहते हैं गांव में
गांवों तक पहुंचने के पहले दो बड़ी पहाड़ी नदियां पड़ती हैं। यानी ग्रामीणों के लिए न तो चिल्पी से होकर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक-12-ए तक का रास्ता रहता है और न ही पीछे कान्हा, केसली और भोरमदेव के जंगल की तरफ से बाहर निकलने का। ऐसे में ग्रामीण बारिश के 4 महीने गांवों में कैद हो जाते हैं।
पत्थरभरा रास्ता
मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर धबईपानी से बोक्करखार, माहिलीघाट, माचापानी, बगई पहाड़ की तलहटी में बसे गांव भी दिखे। धबईपानी से माचापानी की तरफ जाते समय छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की सीमा सड़क के साथ ही चलती है। बीच जंगल से 3 तार वाले बिजली खंभे तो दिखते हैं, लेकिन सड़क नहीं। संकरा रास्ता, दर्रानुमा पहाड़, घाटी पर घाटी, बड़े उतार-चढ़ाव पहाड़ी पत्थरों और बोल्डरों का रास्ता ऐसा है कि महज 3-4 किमी दूर माचापानी, माहिलीघाट, बोक्करखार तक पहुंचने में ही घंटों लग जाते हैं।
चिल्पी घाटी से बरुण सखाजी
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