मसला गोहत्या या लव जिहाद नहीं बल्कि मुसलमान हैं
गाय प्रेम के इस युग में क्या हमने गोमांस बेचने वाले किसी बड़े होटल पर गोरक्षकों की कृपादृष्टि देखी है या उन हिंदुओं पर जो गोमांस खाते हैं?
एक और मुसलमान की मौत. या सच होगा यह कहना कि एक और मुसलमान की ह्त्या. परसों उसका नाम अखलाक था, कल नोमान, आज जाहिद है. जाहिद तक पहुंचने में मौत को दस रोज़ लग गए. उसपर पेट्रोल बम नौ अक्टूबर को ही फेंका गया था. नोमान पर चार रोज़ पहले हमला हुआ और वह कुछ घंटे में ही दम तोड़ गया. वैसे ही जैसे दादरी के अखलाक ने तोड़ा था. एक-दो दिन बाद अखबार में किसी और का नाम हो सकता है.
और जो मारा न जा सका, वह शम्सुद्दीन है. बहराइच के बाबापुरवा के अफसर अली का बेटा अगर मरने से बच गया तो इसे उसका चीमड़पन ही कहा जाना चाहिए. वह ढोल पर कसने के लिए चमड़ा लेकर लौट रहा था कि उसे घेरकर पीटा गया, पेड़ से बांधकर. वह मरा नहीं.
गांधी जो कहना चाह रहे थे, वह यह कि वे बहुसंख्यकवाद के खिलाफ हैं. इस तर्क से भारत में हमें मुस्लिम या ईसाईपरस्त होने में संकोच नहीं करना चाहिए. न श्रीलंका में तमिलपरस्त होने में जोकि प्रायः हिंदू ही हैं. या कहीं और हिंदूपरस्त होने में जहां वे अल्पसंख्यक हों.
जाहिद मारा गया जम्मू-कश्मीर में, जिसे मुस्लिम बहुल राज्य कहा जाता है… उस राज्य के स्वतंत्र विधायक को बीफ की दावत करने पर भारतीय जनता पार्टी के विधायकों ने पीटा-वह भी विधान सभा में. फिर दिल्ली में स्याही का हमला हुआ.
भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी मुख्यमंत्री ने इस मौत को नफरत की राजनीति का नतीजा बताया. नफरत लेकिन किसके खिलाफ? यह नफरत कोई चौतरफा नहीं है. जाहिद, नोमान या अखलाक जो मारे गए और शम्सुद्द्दीन, जो बचा रह गया, सबके सब मुस्लिम विरोधी राजनीति के फैलाए जहर के शिकार हुए हैं.
इसीलिए हम इसे इसके सही नाम से पुकारें: यह भारत के मुसलमानों के खिलाफ एक अघोषित युद्ध का नतीजा है. कल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हिंदी मुखपत्र पांचजन्य ने वेदों के हवाले से गोहत्या करने वालों की हत्या का आह्वान किया. उसके पहले साक्षी महाराज जो भारतीय जनता पार्टी के सम्मानित सांसद है, गोहत्या करने वालों के लिए मृत्यु दंड की मांग कर चुके हैं.
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