अचानकमार ;जंगल से हटाया.. बंजर में बसाया.. कठिन हुई जीने की डगर
अचानकमार टाइगर रिजर्व एरिया से हटाकर वन विभाग ने मुंगेली जिले की कारीडोंगरी पंचायत क्षेत्र में बसाया है। अब वे अपने घरौंदों से बिछड़कर जीने की जद्दोजहद कर रहे हैं
"उजाड़ गया सैलाब घरौंदा मेरा, सबकुछ बिखर गया है संवारा नहीं गया। उस घर से कितनी यादें जुड़ी हैं मैं क्या कहूं, जिस घर में लौटकर दुबारा नहीं गया।
माना बहुत सस्ता है ये सौदा जमीर का, जीते जी मुझसे मौत से हारा नहीं गया।"
रायपुर. कुछ ऐसी ही पीड़ा जंगल को आत्मसात कर जीने वाले� उन बैगा आदिवासियों को सहनी पड़ रही है, जिन्हें अचानकमार टाइगर रिजर्व एरिया से हटाकर वन विभाग ने मुंगेली जिले की कारीडोंगरी पंचायत क्षेत्र में बसाया है। अब वे अपने घरौंदों से बिछड़कर जीने की जद्दोजहद कर रहे हैं। प्रकृति की गोद में बसने वाले इन आदिवासियों का दर्द यह है कि जगह तो दे दी, लेकिन जीवनयापन कैसे चले। जो जमीन उन्हें दी गई, वह बंजर है और उसे उपजाऊ बनाने के लिए उन्हें हाड़तोड़ मेहनत करनी पड़ रही है।
पत्रिका टीम इन गांवों में पहुंचकर आदिवासियों से रूबरू हुई और हालात का जायजा लिया। वन विभाग ने छह गांवों के 249 परिवारों को यहां बसाया है। इनमें से 238 परिवार बैगा हैं, बाकी अन्य आदिवासी। इसके पहले ये लोग जंगलों में खेती और वनोपज संग्रहण से जीवनयापन करते रहे हैं, जहां उनके पेट भरने के लिए जरूरी सभी चीजें मिल जाया करती थीं।� अचानकमार एरिया के लगभग 30 गांवों को हटाया जाना है। उनमें से जलदा, कूबा, बोकराकछार, बाहुद, बाकल और सांभरधसान को हटाया जा चुका है, जहां के आदिवासी अपने पुराने घरौंदों को भुला नहीं पाते हैं।
सिंचाई-कृषि यंत्र चाहिए
आदिवासियों ने बताया, उन्हें खेती करने में परेशानी आ रही है। जमीन बंजर है और उसे उपजाऊ बनाने के लिए दिन-रात एक करना पड़ रहा है। सिंचाई की व्यवस्था नहीं होने से सालभर खाने के लिए धान मुश्किल से मिल पा रहा है। बाडिय़ों में सब्जियां भी नहीं उगती हैं। जीने के लिए अन्य जरुरतों के लिए माली हालत से जूझ रहे हैं।
काम की दरकार
आदिवासी यहां अपना सामंजस्य बनाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनके जीवनयापन में दिक्कतें आ रही हैं।� बोकराकछार निवासी भागबली बैगा, सांभरधसान के शिवकुमार मरावी ने कहा, उनको काम की जरूरत तो है, जिससे परिवार का गुजारा हो सके।
काम की दरकार
जंगल से यहां आने वाले सांभरधसान गांव के गंगाराम, चैनसिंह कहते हैं, जंगल उनकी मां के समान है। उसे भुलाया नहीं जा सकता। बाकल गांव के प्रेम सिंह, बिपतराम, हीरालाल, बीरेंद्र कहते हैं, जंगल हमारे लिए सबकुछ है। जड़ी-बूटियों से अपनी कई बीमारियां भी ठीक कर लेते हैं। राज्य सरकार ने इन आदिवासियों के लिए रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से संरक्षण और संवर्धन की योजना बनाई थी, जो ठंडे बस्ते में चली गई है।
कारीडोंगरी से राजीव द्विवेदी
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