तेरा मुँह काला
[नथमल शर्मा ]
असहिष्णु होते जा रहे राजनैतिक (?) समाज ने जैसे सदभाव और भाईचारे को अब तार -तार करना ठान लिया है। सुधींद्र कुलकर्णी के चेहरे पर स्याही पोतना फिर यही तो बता रहा है। जिस फ़िज़ा में असहमति का सम्मान न हो वहां कालिख ही कालिख नज़र आती है। याद रखना जरुरी है कालिख में फिर कोई रंग नहीं दिखता। खेतों का हरा ,आग सा केसरिया या सुकून का सफ़ेद। भगवा भी नहीं।
कल मुंबई में ऐसी ही कालिख उड़ी। पाक के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद मेहमूद की किताब 'नाइदर ए हाक नार ए डव 'का विमोचन था। इसके संयोजक सुधींद्र कुलकर्णी थे। शिव सेना को यह पसंद नहीं आया। धमकी दी ,कार्यक्रम नहीं होने देंगे। उधर कुलकर्णी ने सरकार से सुरक्षा मांगी। महाराष्ट्र में भाजपा सरकार है। शिवसेना भी सहयोगी भूमिका में है। सरकार ने सुरक्षा मुहैया करवाई। फिर भी शिव सेना ने विरोध किया और कुलकर्णी के चेहरे पर स्याही पोत दी। लेकिन उम्मीद के खिलाफ सुधींद्र कुलकर्णी ने उसी पुते चेहरे के साथ कार्यक्रम करवाया और बाद में पत्रकारों से बात भी की। एनडीए प्रथम में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी के कार्यकाल में कुलकर्णी पीएमओ में विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी थे। उन्हें भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी के राजनीतिक सलाहकार के रूप में ज्यादा जाना जाता है। यानी शिवसेना ने जिसके चेहरे पर कालिख पोती या काली स्याही लगा दी वह भाजपा से ही गहरे तालुकात रखते थे /है भी।
कल मुंबई में ऐसी ही कालिख उड़ी। पाक के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद मेहमूद की किताब 'नाइदर ए हाक नार ए डव 'का विमोचन था। इसके संयोजक सुधींद्र कुलकर्णी थे। शिव सेना को यह पसंद नहीं आया। धमकी दी ,कार्यक्रम नहीं होने देंगे। उधर कुलकर्णी ने सरकार से सुरक्षा मांगी। महाराष्ट्र में भाजपा सरकार है। शिवसेना भी सहयोगी भूमिका में है। सरकार ने सुरक्षा मुहैया करवाई। फिर भी शिव सेना ने विरोध किया और कुलकर्णी के चेहरे पर स्याही पोत दी। लेकिन उम्मीद के खिलाफ सुधींद्र कुलकर्णी ने उसी पुते चेहरे के साथ कार्यक्रम करवाया और बाद में पत्रकारों से बात भी की। एनडीए प्रथम में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी के कार्यकाल में कुलकर्णी पीएमओ में विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी थे। उन्हें भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी के राजनीतिक सलाहकार के रूप में ज्यादा जाना जाता है। यानी शिवसेना ने जिसके चेहरे पर कालिख पोती या काली स्याही लगा दी वह भाजपा से ही गहरे तालुकात रखते थे /है भी।
हालांकि शिवसेना का इतिहास ऐसी पाक विरोधी घटनाओं से भरा पड़ा है। मैच नहीं होने देने के लिए पिच खोद देने से लेकर हाल ही में महान ग़ज़ल गायक ग़ुलाम अली के कार्यक्रम का विरोध और फिर कल कुलकर्णी पर स्याही लगाने तक। अपने सत्ता के भागीदार के कृत्य पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री चुप है। वैसे ऐसे कृत्यों पर लगता है चुप्पी का ही दौर है। निर्दोष अखलाख की हत्या और उससे भी पहले कुरीतियों के खिलाफ अलख जगा रहे नारायण दाभोलकर ,गोविन्द पानसरे और फिर चिंतक लेखक प्रो. एम. एम. कुलबुर्गी की हत्या। अपने नेताओ के एकतरफा बयान। एक वर्ग विशेष के खिलाफ विष -वमन। सब पर सरकार चुप है। खूब बोलने के लिए जाने वाले लोग हमारे लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी चुप। कौन नहीं जनता कि मौन की भी अपनी भाषा होती है। चाणक्य को याद करें तो राजनीति में राजा की चुप्पी का अर्थ सहमति ही है। जैसे राजा की इच्छा ही आदेश वैसे ही चुप्पी भी समर्थन। ये राजशाही नहीं है। लोकशाही है। जनता की सरकार जो जनता के ही कल्याण के लिए कृत - संकल्पित होती है। ऐसे में क्या यह साबित करने की कोशिश की जा रही है कि सिर्फ हिन्दू जनता का कल्याण ही सर्वोपरि है। और वह भी तब जब सरकार ही यह नहीं बता पा रही है कि हिन्दू की परिभाषा क्या है । एक आरटीआई कार्यकर्ता को बाकायदा यही जवाब दिया गया। भाषणों में गंगा -जमुनी संस्कृति की दुहाई देना और निर्दोष अखलाख को मार देना ,कुलकर्णी पर स्याही पोत देना एकदम विपरीत आचरण ही तो है।
गांधी और बुद्ध के दृष्टांत प्रायः सभी नेता अपने भाषणों में देते है। उसी गांधी की तस्वीरों वाले नोट बांटकर वोट लेने के किस्से भी आम है। गांधी की हत्या जिस उग्र विचार से उपजी उस देश की जड़ों में फिर भी अहिंसा गहरे तक है इसे याद रखने की जरुरत है। बुद्ध ने कहा था कि विचार से ही कर्म की उत्पत्ति होती है। यानी गांधी हत्या से लेकर गुलाम अली का विरोध ,कुलकर्णी पर स्याही जैसी तमाम घटनायें ऐसे ही उग्र विचार से पोषित हुई और उपजी है। जिस कट्टरता से बाबरी विध्वंस हुआ या गोधरा और निर्दोष सिख भी मारे गए या मुजफ्फरपुर हुआ।हाँ ,याद रखिये कल जिस समय कुलकर्णी के चेहरे पर कालिख पोती जा रही थी उसी समय जार्डन की राजधानी में हमारे राष्ट्रपति प्रणब मुख़र्जी गांधी के नाम पर बनीं सड़क का लोकार्पण कर रहे थे। अहिंसा अंततः किसी भी तरह की कट्टरता पर भारी ही पड़ती है। तात्कालिक खतरा जरूर मंडराते दिख रहा है लेकिन हमरे लोकतंत्र और सामाजिक समरस समाज में किसी तरह के कट्टरवाद के लिए कोई जगह नही है। जो काली स्याही शब्द रचती है उससे किसी का चेहरा काला करने से उजलापन ख़त्म नहीं होगा।कवि खगेन्द्र ठाकुर की पंक्तिया याद आती है - "हाँ में काला हूँ ,कोयले सा काला/ कोयला जब दहकता है तो नवसृजन करता है। "
गांधी और बुद्ध के दृष्टांत प्रायः सभी नेता अपने भाषणों में देते है। उसी गांधी की तस्वीरों वाले नोट बांटकर वोट लेने के किस्से भी आम है। गांधी की हत्या जिस उग्र विचार से उपजी उस देश की जड़ों में फिर भी अहिंसा गहरे तक है इसे याद रखने की जरुरत है। बुद्ध ने कहा था कि विचार से ही कर्म की उत्पत्ति होती है। यानी गांधी हत्या से लेकर गुलाम अली का विरोध ,कुलकर्णी पर स्याही जैसी तमाम घटनायें ऐसे ही उग्र विचार से पोषित हुई और उपजी है। जिस कट्टरता से बाबरी विध्वंस हुआ या गोधरा और निर्दोष सिख भी मारे गए या मुजफ्फरपुर हुआ।हाँ ,याद रखिये कल जिस समय कुलकर्णी के चेहरे पर कालिख पोती जा रही थी उसी समय जार्डन की राजधानी में हमारे राष्ट्रपति प्रणब मुख़र्जी गांधी के नाम पर बनीं सड़क का लोकार्पण कर रहे थे। अहिंसा अंततः किसी भी तरह की कट्टरता पर भारी ही पड़ती है। तात्कालिक खतरा जरूर मंडराते दिख रहा है लेकिन हमरे लोकतंत्र और सामाजिक समरस समाज में किसी तरह के कट्टरवाद के लिए कोई जगह नही है। जो काली स्याही शब्द रचती है उससे किसी का चेहरा काला करने से उजलापन ख़त्म नहीं होगा।कवि खगेन्द्र ठाकुर की पंक्तिया याद आती है - "हाँ में काला हूँ ,कोयले सा काला/ कोयला जब दहकता है तो नवसृजन करता है। "
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