पत्रिका की पड़ताल : सरगुजा में भूख बना रही आदिवासियों को गुलाम, साहूकारों के पास खुद को रख रहे गिरवी
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आदिवासी परिवार जिंदा रहने के लिए 5 हजार से लेकर 15 हजार रु. तक में खुद को साहूकारों के पास एक साल के लिए गिरवी रख देते हैं।
रायपुर.(मैनपाटसे लौटकर श्वेता शुक्ला ). \'पीपली लाइ \' वफिल्म जैसा सुर्खियों में आए मैनपाट के खालपारा गांव के आदिवासी भूख मिटाने के लिए \'गुलामी\' के घुप अंधेरे में है। मई माह में यहां भूख से सगतराम के मासूम बेटे की मौत के बाद शासन ने हलचल तो बढ़ाई, लेकिन इसके पीछे छिपे भूख के दर्द पर मरहम नहीं लग सका। मैनपाट से 15 किमी दूर इस गांव में सीएमडीसी की खदानों में जमीन खोने के बाद माझी आदिवासी खाली हाथ हो गए हैं। लिहाजा, यहां हर घर का कोई ना कोई सदस्य परिवार का पेट पालने के लिए साहूकारों के पास गिरवी रहकर उनके खेत या घरों में गुलामी का जीवन जी रहा है। माझी समुदाय के जानकार भिनसरिया राम माझी कहते हैं, भूख का यह दर्द क्षेत्र के अन्य गांवों का भी है। न तो खेती है और न ही रोजगार। आदिवासी परिवार जिंदा रहने के लिए 5 हजार से लेकर 15 हजार रु. तक में खुद को साहूकारों के पास एक साल के लिए गिरवी रख देते हैं।
पहले खुद बिका, फिर भाई
ग्रामीण बतातें हैं, पहले खेती से गुजर-बसर हो जाती थी। जमीन जाने के बाद यह सहारा भी छिन गया। जितेंद्र माझी बताते हैं, घर में खाने को नहीं था। पहले मैं 8 हजार रुपए में साहुकार का गुलाम रहा। गांव लौटा तो 17 साल के छोटे भाई मंजू को 12 हजार रुपए में साल भर के लिए गुलाम बनने भेजा।� बुजुर्ग सुखदेव कहते हैं, गुलाम बनना हमारी मजबूरी है। पैसे वालों के लोग आते हैं, गांव से बच्चे, जवान या महिलाओं को खेतों या घरों में काम कराने के लिए ले जाते हैं। हरवाही में मालिक का हर हुक्म मानना पड़ता है। नर्मदापुर जनपद पंचायत सीईओ उज्जवल का दावा है, गुलामी क्यों, मनरेगा में रोजगार की कमी नहीं है। हमारा प्रयास है कि खालपारा में सभी को रोजगार मिल जाए।
मुआवजे के बाद भी हो गया कर्जदार
मई माह में सगतराम माझी के बेटे की भूख से मौत हो गई थी। मीडिया में यह मामला सुर्खियां बनने के बाद सरकार ने पीडि़त परिवार को स्वेच्छा अनुदान मद से 25 हजार रुपए की सहायता दी। मृतक के चाचा शंकर राम कहते हैं, मौत के बाद सगत राम को उसकी लीज ली गई जमीन का मुआवजा लगभग साढ़े छह लाख रुपए तत्काल मिल गया। घर में पैसा आया तो दलाल सक्रिय हो गए। दलालों ने पांच लाख रुपए जमा करवाकर लोन पर एक ट्रेक्टर खरीदवा दिया। आज तक इसकी किश्त नहीं दे पाए हैं, उल्टे हम कर्जदार हो चुके हैं। वो कहते हैं, हमारी जिंदगी जानवरों जैसी है। अक्सर हमें भूखा सोना पड़ता है। राशन का चावल महीनेभर नहीं चलता।� मनरेगा के प्रोजेक्ट अधिकारी सत्येन्द्र तिवारी कहते हैं, अगर वो काम मांगने आएंगे तो हम मनरेगा में उन्हें रोजगार दे सकते हैं।
सुखनी की आंखों का सरकारी इलाज होगा
लेदरागढ़ा में भूख से मौत के बाद पहाड़ी कोरवा लम्बू राम की पत्नी सुखनी बाई की खराब आंख का इलाज अब सरकार कराएगी। पीएससी मनोरा की टीम बुधवार को उसे लेकर� जिला अस्पताल पहुंची। उनको बेहतर इलाज के लिए देश के किसी अन्य नेत्र अस्पताल भी ले जाया जाएगा। इस बीच कलक्टर हिमशिखर गुप्ता छुट्टी पर चले गए हैं।
चरम पर है बदहाली
संसदीय सचिव शिव शंकर पैकरा ने पत्रिका से स्वीकार किया कि कोरवाओं की हालत बदहाल है। उन्होंने इस मामले को उजागर करने के लिए पत्रिका की सराहना की। सन्ना पहुंचे विधायक राजशरण भगत ने कहा कि इस मामले की पूरी जांच कराई जाएगी। उधर, रायपुर में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने राज्यपाल से मुलाकात कर उन्हें संपूर्ण घटनाक्रम से अवगत कराया। उन्होंने राज्यपाल को वो गांठकांदा भी दिखाया, जिसे खाकर पहाड़ी कोरवा भूख मिटाते हैं
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