दुनिया का सबसे बड़ा झूट है की इन हिंसक घटनाओ से धर्म का कोई वास्ता नहीं है ,पहले बीमारी तो पहचानो तब ही न इलाज़ करोगे
दुनिया का सबसे बड़ा झूट है की इन हिंसक घटनाओ से धर्म का कोई वास्ता नहीं है ,पहले बीमारी तो पहचानो तब ही न इलाज़ करोगे
धर्म हाँ धर्म ही नफरत सिखाता है धर्म ही हिंसा ज़ायज़ ठहराता हैं धर्म ही उकसाता है और धर्म के आधार पे ही हमले और लोगो को मारा जाता है ,कोई किसी धर्म का भगवान आके हथियार नहीं पकड़ता लेकिन कोई भगवांन किसी को रोकता भी नहीं है।
जब तक हिंसा की जड़ में नहीं जाओगे और खुल के अच्छे बुरे धर्म की बात करोगे तब तक आप भी हिंसा में भागीदार होगे ही।
आखिर ये हिंसक लोग कहाँ से खुराक पाते है ,धर्म से ही न ?
अब ये बहुत हो गया की धर्म थोड़े ही नफरत और हिंसा सिखाता है ,धार्मिक किताबे दोनों को तर्क उपलब्ध कराती है ,किसी भी हत्यारे से पूछ लो वो हजारो तरीके से समझा देगा की क्यों उसने सही सही किया और आप जो धर्म के उदार चरित्र को लेके उसका झंडा लिए घूम रहे है उसे भी तर्क उपलब्ध करवा देता है।
धर्म दोहरी तलवार नहीं इकहरी तलवार ही है जो समाज को हजारो साल से कई बार खून में डुबाया है ,नही मानो तो आपकी मर्जी ,एक दो नही कई धर्मिक युद्द में हजारो लोग की जान गई और उन्हें धर्म पे जीत बताया गया।
मुझे बहुत गुस्सा आ रहा है की कैसे एक पढ़े लिखे ,एयर फ़ोर्स के जवान के परिवार में से सबसे बड़े भाई को घर में ही मार मार के जान ले ली ,और कुछ खून के प्यासे लोग इसे जायज बताने की जुर्रत कर रहे है , धिक्कार है ऐसे धर्म पे और उसके अनुआई पे।
मेरे छत्त्तीसगढ़ के बस्तर में कई आदिवासी अभी भी बड़ी संख्या में गाय और सूअर का मास खाते है , मेने कभी उनके बीच इसपे चर्चा नहीं सुनी।
दुनिया का सबसे बड़ा झूट है की इन हिंसक घटनाओ से धर्म का कोई वास्ता नहीं है ,पहले बीमारी तो पहचानो तब ही न इलाज़ करोगे
जब तक हिंसा की जड़ में नहीं जाओगे और खुल के अच्छे बुरे धर्म की बात करोगे तब तक आप भी हिंसा में भागीदार होगे ही।
आखिर ये हिंसक लोग कहाँ से खुराक पाते है ,धर्म से ही न ?
अब ये बहुत हो गया की धर्म थोड़े ही नफरत और हिंसा सिखाता है ,धार्मिक किताबे दोनों को तर्क उपलब्ध कराती है ,किसी भी हत्यारे से पूछ लो वो हजारो तरीके से समझा देगा की क्यों उसने सही सही किया और आप जो धर्म के उदार चरित्र को लेके उसका झंडा लिए घूम रहे है उसे भी तर्क उपलब्ध करवा देता है।
धर्म दोहरी तलवार नहीं इकहरी तलवार ही है जो समाज को हजारो साल से कई बार खून में डुबाया है ,नही मानो तो आपकी मर्जी ,एक दो नही कई धर्मिक युद्द में हजारो लोग की जान गई और उन्हें धर्म पे जीत बताया गया।
मुझे बहुत गुस्सा आ रहा है की कैसे एक पढ़े लिखे ,एयर फ़ोर्स के जवान के परिवार में से सबसे बड़े भाई को घर में ही मार मार के जान ले ली ,और कुछ खून के प्यासे लोग इसे जायज बताने की जुर्रत कर रहे है , धिक्कार है ऐसे धर्म पे और उसके अनुआई पे।
मेरे छत्त्तीसगढ़ के बस्तर में कई आदिवासी अभी भी बड़ी संख्या में गाय और सूअर का मास खाते है , मेने कभी उनके बीच इसपे चर्चा नहीं सुनी।
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