बस्तर के युवा पत्रकार संतोष यादव को तत्काल रिहा करो - पीयूसीएल
लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ प्रेस को पेशेवर स्वंत्रतता, दबावों से मुक्ति
और निहित स्वार्थों के हमले से सुरक्षा दो
छत्तीसगढ़ लोक स्वातंत्र्य संगठन, बस्तर जिला, दरभा विकासखंड के निवासी –
युवा पत्रकार श्री संतोष यादव के, 28 सितम्बर शाम 5.30 बजे पुलिस वालों
द्वारा अपने साथ ले जाने के बाद से, लापता होने पर गंभीर चिंता व्यक्त
करता है, और उनकी तत्काल रिहाई की मांग करता है.
संतोष यादव दरभा क्षेत्र में कई वर्षों से ईमानदारी से आंचलिक पत्रकारिता
करते आ रहे हैं. वे दैनिक नवभारत व दैनिक पत्रिका की एजेंसी लेकर ग्रामीण
रिपोर्टिंग करते हुए जीवन यापन करते हैं. वे अपनी पत्नी और दो छोटे
बच्चों के साथ दरभा में रहते हैं.
उनकी प्रताड़ना की शुरुआत जीरम घाटी कांड के पश्चात प्रारंभ हुई. इस घटना
में महेंद्र कर्मा सहित कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं की माओवादियों
द्वारा हत्या की गयी थी. संतोष जी स्थानीय पत्रकार होने के नाते घटना
स्थल पर पहुँचने वाले पहले पत्रकारों में से थे और उनकी निष्पक्ष
रिपोर्टिंग से स्थानीय पुलिस काफी नाराज़ थी.
2014 के मध्य में एक बार पुलिस उनके घर पर आधी रात को आई और उन्हें एक रेस्टहाउस में ले गई जहा उनसे पूछताछ की गयी और डराया धमकाया गया. पुलिस का आदेश था कि वे 5 लाख रूपये लेकर अपने क्षेत्र से नक्सलियों को पकड़वाकर लाये. उन्होंने कहा कि उनका जो संपर्क है ग्रामीणों से है, और वह यह नहीं कर सकते. शायद उसी कारण 27 अगस्त 2014 को उनपर महिलाप्रताड़ना का फर्जी प्रकरण दायर किया गया.
24 जून 2015 को संतोष यादव को फिर स्थानीय थाने पर बुलाया गया जहा उन्हें बताया गया कि उनकी गिरफ़्तारी के लिए वारंट ज़ारी किया गया है. पुलिस ने लॉकअप में ले जाकर, कपडे उतरवाकर मारने की तैय्यारी की. केवल उनके
पत्रकार होने और घटना के उजागर होने के डर से उन्हें छोड़ा गया. लगातार
उन्हें डर के साए में जीना पड़ रहा है.
इस प्रकार के प्रताड़ना के बावजूद संतोष यादव निरंतर ग्रामीणों की
समस्याओं के बारे में काफी लिखते आ रहे हैं और ग्रामीणों के बीच में वे
काफी लोकप्रिय हैं. पिछले कुछ दिनों से दरभा ब्लाक के ग्राम भदरीमहू में
लगातार सर्चिंग-कॉम्बिंग ऑपरेशन चल रहे हैं. 9-10 ग्रामीणों को नक्सली
आरोपों में गिरफ्तार किया गया है, जिनके बारे में गाँव वालों का कहना था
कि ये साधारण ग्रामीण हैं. संतोषजी यथा संभव ग्रामीणों की बातों की
रिपोर्टिंग कर रहे थे.
29 सितम्बर के स्थानीय अखबारों में यह छपा है कि 28 सितम्बर को भदरीमहू
के 150-200 ग्रामीणों ने दरभा थाने पर जाकर नक्सलियों से सुरक्षा की मांग
की है. फोटो में स्थानीय पुलिस के साथ स्वयं आईजी कल्लूरी की तस्वीर है.
परन्तु संतोष यादव की पत्नी पूनम यादव ने बताया कि 28 सितम्बर को दोपहर
बाद से कुछ पुलिस जवान घर आये और ‘कल्लूरी साहब बुला रहे है’ बोल कर
संतोष यादव को अपने साथ ले गए | जब रात 9 बजे तक भी संतोषजी नही लौटे तो उनके मित्र दरभा थाने में पता करने गये. पुलिस वालो ने उनके साथ
दुर्व्यवहार किया और संतोष के बारे में कोई जानकारी नहीं होने की बात
कही, किन्तु थानेदार दुर्गेश शर्मा ने उन्हें जगदलपुर जा कर पता करने के
लिए कहा | पूनम यादव के अनुसार जगदलपुर पुलिस ने भी अगले दिन संपर्क करने पर संतोष के बारे में किसी प्रकार की जानकारी से इंकार कर दिया |
इस सम्बन्ध में जब एक अन्य पत्रकार ने जिला पुलिस अधीक्षक अजय यादव से
बात की, तो उन्होंने पहले तो किसी संतोष यादव के पकडे जाने से इंकार कर
दिया, पर बाद में उन्होंने स्वीकार किया की दरभा से कुछ लोगो को पूछताछ
के लिये हिरासत में लिया गया है, जिन्हें बाद में छोड़ दिया जायेगा |
इस सम्बन्ध में नवभारत के जगदलपुर ब्यूरो चीफ से संपर्क नही हो पाया, किन्तु पत्रिका के प्रमुख जिनेश जैन ने स्पष्ट कहा कि छोटे-मोटे जगहों में वे
कोई पत्रकार नही केवल एजेंट रखते है, और यदि वे किसी पुलिस प्रकरण में
फसे तो हम उनसे संस्थान का सम्बन्ध अलग कर लेते है |
दूसरी ओर, विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार 28 सितम्बर की
शाम 7 बजे से संतोष यादव व ग्राम भदरी महू के कुछ लोगो को जगदलपुर के
निकट परपा थाने में रखा गया है, और रात में इनके साथ कई घंटो तक पूछताछ
और दुर्व्यवहार की गई है| कहा जा रहा है कि संतोष यादव की हालत चिंताजनक
है|
बस्तर के स्थानीय पत्रकारों की स्थिति बेहद असुरक्षित है, उन्हें वे तमाम
सुविधाएं और सुरक्षा प्राप्त नहीं होते जो राष्ट्रिय पत्रिकाओं के
पत्रकारों को मिलते हैं, जबकि वास्तव में उन राष्ट्रिय मीडिया की
रिपोर्ट्स स्थानीय पत्रकारों के मदद के बिना असंभव है. स्थानीय पत्रकार
अपने स्रोतों की गोपनीयता बरक़रार नहीं रख पाते और अक्सर पुलिस विभाग के
विज्ञप्तियों पर ही निर्भर रहते हैं. स्वतंत्र रिपोर्टिंग करने पर फर्जी
मुकदमों का खतरा बना ही रहता है. इसके बावजूद सारकेगुडा जैसे मामलों को
सभी पत्रकारों ने बहुत बहादुरी से उजागर किया था.
छत्तीसगढ़ में पत्रकारों पर निरंतर हमले, मानवअधिकार का एक गंभीर हनन है.
आज भी सुशील पाठक हत्याकांड के जांच की मोनिटरिंग उच्च न्यायलय द्वारा की जा रही है. छुरा, गरियाबंद के पत्रकार उमेश राजपूत की हत्या के मामले में
उच्च न्यायलय ने सीबीआई जांच का निर्देश दिया. हाल में पत्रकार दिलीप
मेनन, जिन्होंने जेके लक्ष्मी सीमेंट के अपराधों को उजागर किया था, को
उच्च न्यायलय से सुरक्षा देने का निर्देश दिया गया.
लोकतंत्र के लिए निर्भीक और निष्पक्ष प्रेस एक बुनियादी ज़रूरत है. यह बात
कनफ्लिक्ट एरिया में और भी अधिक सच है. हम छत्तीसगढ़ में, विशेषकर बस्तर
में, कार्य कर रहे पत्रकारों की पेशेवर स्वतंत्रता और सुरक्षा की मांग
करते हैं ताकि वे हर प्रकार के दबावों से मुक्त होकर नागरिकों को सही
जानकारी दे सके.
24 घंटे पश्चात भी, पत्रकार श्री संतोष यादव को हिरासत में रखा गया है,
हम मांग करते हैं कि उन्हें तत्काल रिहा किया जाये.
डॉ लाखन सिंह
अध्यक्ष सुधा भारद्वाज
महासचिव
लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ प्रेस को पेशेवर स्वंत्रतता, दबावों से मुक्ति
और निहित स्वार्थों के हमले से सुरक्षा दो
छत्तीसगढ़ लोक स्वातंत्र्य संगठन, बस्तर जिला, दरभा विकासखंड के निवासी –
युवा पत्रकार श्री संतोष यादव के, 28 सितम्बर शाम 5.30 बजे पुलिस वालों
द्वारा अपने साथ ले जाने के बाद से, लापता होने पर गंभीर चिंता व्यक्त
करता है, और उनकी तत्काल रिहाई की मांग करता है.
संतोष यादव दरभा क्षेत्र में कई वर्षों से ईमानदारी से आंचलिक पत्रकारिता
करते आ रहे हैं. वे दैनिक नवभारत व दैनिक पत्रिका की एजेंसी लेकर ग्रामीण
रिपोर्टिंग करते हुए जीवन यापन करते हैं. वे अपनी पत्नी और दो छोटे
बच्चों के साथ दरभा में रहते हैं.
उनकी प्रताड़ना की शुरुआत जीरम घाटी कांड के पश्चात प्रारंभ हुई. इस घटना
में महेंद्र कर्मा सहित कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं की माओवादियों
द्वारा हत्या की गयी थी. संतोष जी स्थानीय पत्रकार होने के नाते घटना
स्थल पर पहुँचने वाले पहले पत्रकारों में से थे और उनकी निष्पक्ष
रिपोर्टिंग से स्थानीय पुलिस काफी नाराज़ थी.
2014 के मध्य में एक बार पुलिस उनके घर पर आधी रात को आई और उन्हें एक रेस्टहाउस में ले गई जहा उनसे पूछताछ की गयी और डराया धमकाया गया. पुलिस का आदेश था कि वे 5 लाख रूपये लेकर अपने क्षेत्र से नक्सलियों को पकड़वाकर लाये. उन्होंने कहा कि उनका जो संपर्क है ग्रामीणों से है, और वह यह नहीं कर सकते. शायद उसी कारण 27 अगस्त 2014 को उनपर महिलाप्रताड़ना का फर्जी प्रकरण दायर किया गया.
24 जून 2015 को संतोष यादव को फिर स्थानीय थाने पर बुलाया गया जहा उन्हें बताया गया कि उनकी गिरफ़्तारी के लिए वारंट ज़ारी किया गया है. पुलिस ने लॉकअप में ले जाकर, कपडे उतरवाकर मारने की तैय्यारी की. केवल उनके
पत्रकार होने और घटना के उजागर होने के डर से उन्हें छोड़ा गया. लगातार
उन्हें डर के साए में जीना पड़ रहा है.
इस प्रकार के प्रताड़ना के बावजूद संतोष यादव निरंतर ग्रामीणों की
समस्याओं के बारे में काफी लिखते आ रहे हैं और ग्रामीणों के बीच में वे
काफी लोकप्रिय हैं. पिछले कुछ दिनों से दरभा ब्लाक के ग्राम भदरीमहू में
लगातार सर्चिंग-कॉम्बिंग ऑपरेशन चल रहे हैं. 9-10 ग्रामीणों को नक्सली
आरोपों में गिरफ्तार किया गया है, जिनके बारे में गाँव वालों का कहना था
कि ये साधारण ग्रामीण हैं. संतोषजी यथा संभव ग्रामीणों की बातों की
रिपोर्टिंग कर रहे थे.
29 सितम्बर के स्थानीय अखबारों में यह छपा है कि 28 सितम्बर को भदरीमहू
के 150-200 ग्रामीणों ने दरभा थाने पर जाकर नक्सलियों से सुरक्षा की मांग
की है. फोटो में स्थानीय पुलिस के साथ स्वयं आईजी कल्लूरी की तस्वीर है.
परन्तु संतोष यादव की पत्नी पूनम यादव ने बताया कि 28 सितम्बर को दोपहर
बाद से कुछ पुलिस जवान घर आये और ‘कल्लूरी साहब बुला रहे है’ बोल कर
संतोष यादव को अपने साथ ले गए | जब रात 9 बजे तक भी संतोषजी नही लौटे तो उनके मित्र दरभा थाने में पता करने गये. पुलिस वालो ने उनके साथ
दुर्व्यवहार किया और संतोष के बारे में कोई जानकारी नहीं होने की बात
कही, किन्तु थानेदार दुर्गेश शर्मा ने उन्हें जगदलपुर जा कर पता करने के
लिए कहा | पूनम यादव के अनुसार जगदलपुर पुलिस ने भी अगले दिन संपर्क करने पर संतोष के बारे में किसी प्रकार की जानकारी से इंकार कर दिया |
इस सम्बन्ध में जब एक अन्य पत्रकार ने जिला पुलिस अधीक्षक अजय यादव से
बात की, तो उन्होंने पहले तो किसी संतोष यादव के पकडे जाने से इंकार कर
दिया, पर बाद में उन्होंने स्वीकार किया की दरभा से कुछ लोगो को पूछताछ
के लिये हिरासत में लिया गया है, जिन्हें बाद में छोड़ दिया जायेगा |
इस सम्बन्ध में नवभारत के जगदलपुर ब्यूरो चीफ से संपर्क नही हो पाया, किन्तु पत्रिका के प्रमुख जिनेश जैन ने स्पष्ट कहा कि छोटे-मोटे जगहों में वे
कोई पत्रकार नही केवल एजेंट रखते है, और यदि वे किसी पुलिस प्रकरण में
फसे तो हम उनसे संस्थान का सम्बन्ध अलग कर लेते है |
दूसरी ओर, विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार 28 सितम्बर की
शाम 7 बजे से संतोष यादव व ग्राम भदरी महू के कुछ लोगो को जगदलपुर के
निकट परपा थाने में रखा गया है, और रात में इनके साथ कई घंटो तक पूछताछ
और दुर्व्यवहार की गई है| कहा जा रहा है कि संतोष यादव की हालत चिंताजनक
है|
बस्तर के स्थानीय पत्रकारों की स्थिति बेहद असुरक्षित है, उन्हें वे तमाम
सुविधाएं और सुरक्षा प्राप्त नहीं होते जो राष्ट्रिय पत्रिकाओं के
पत्रकारों को मिलते हैं, जबकि वास्तव में उन राष्ट्रिय मीडिया की
रिपोर्ट्स स्थानीय पत्रकारों के मदद के बिना असंभव है. स्थानीय पत्रकार
अपने स्रोतों की गोपनीयता बरक़रार नहीं रख पाते और अक्सर पुलिस विभाग के
विज्ञप्तियों पर ही निर्भर रहते हैं. स्वतंत्र रिपोर्टिंग करने पर फर्जी
मुकदमों का खतरा बना ही रहता है. इसके बावजूद सारकेगुडा जैसे मामलों को
सभी पत्रकारों ने बहुत बहादुरी से उजागर किया था.
छत्तीसगढ़ में पत्रकारों पर निरंतर हमले, मानवअधिकार का एक गंभीर हनन है.
आज भी सुशील पाठक हत्याकांड के जांच की मोनिटरिंग उच्च न्यायलय द्वारा की जा रही है. छुरा, गरियाबंद के पत्रकार उमेश राजपूत की हत्या के मामले में
उच्च न्यायलय ने सीबीआई जांच का निर्देश दिया. हाल में पत्रकार दिलीप
मेनन, जिन्होंने जेके लक्ष्मी सीमेंट के अपराधों को उजागर किया था, को
उच्च न्यायलय से सुरक्षा देने का निर्देश दिया गया.
लोकतंत्र के लिए निर्भीक और निष्पक्ष प्रेस एक बुनियादी ज़रूरत है. यह बात
कनफ्लिक्ट एरिया में और भी अधिक सच है. हम छत्तीसगढ़ में, विशेषकर बस्तर
में, कार्य कर रहे पत्रकारों की पेशेवर स्वतंत्रता और सुरक्षा की मांग
करते हैं ताकि वे हर प्रकार के दबावों से मुक्त होकर नागरिकों को सही
जानकारी दे सके.
24 घंटे पश्चात भी, पत्रकार श्री संतोष यादव को हिरासत में रखा गया है,
हम मांग करते हैं कि उन्हें तत्काल रिहा किया जाये.
डॉ लाखन सिंह
अध्यक्ष सुधा भारद्वाज
महासचिव
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