न लश्करे तैयबा का का नाम आया न हिजबुल मुजाहिदीन का । अगर आया होता तो समूचे राष्ट्रवाद
बादल सरोज
125 के चीथड़े चीथड़े उड़ जाने वाला हादसा किसी छोटे मोटे युध्द से कम नहीं है ।
न लश्करे तैयबा का का नाम आया न हिजबुल मुजाहिदीन का । अगर आया होता तो समूचे राष्ट्रवादी अभी तक ताता थैया का ततैया नाच कर चुके होते ..... वे खामोश हैं, क्योंकि इस विस्फोट के तार सीधे भोपाल तक जुड़े हुए हैं ।
जिस राजेन्द्र कासवाँ के भवन में यह धमाका हुआ है वह सत्तापार्टी का चुनाव प्रबंधक और वित्तपोषक है । उसके घर में अवैध जिलेटिन भण्डार में यह दूसरा विस्फोट है । इसके पहले के विस्फोट, जिसमे उसके भाई झमक कासवाँ की मौत हुयी थी, को भी खुर्दबुर्द कर दिया गया था । नतीजे में यह भयानक हादसा हो गया ।
प्रशासनिक भ्रष्टाचार बिना राजनीतिक संरक्षण के नहीं होता । वैसे भी व्यापमं के दौरान प्रशासन पर दबाब और सत्ता पार्टी के लोगो द्वारा पुलिस एवं अन्य अधिकारियों की नियमित पिटाई से यह सामने आ चूका है कि माफिया कितने उद्दण्ड हो गए हैं ।
झाबुआ के सबसे बड़े माफिया सुधीर शर्मा से सत्ता के सर्वोच्च मुखिया के साथ रिश्ते किसी से छुपे नहीं हैं । झाबुआ की जिलेटिनो पर इन्ही सुधीर शर्मा के फरहरे फहराते हैं ।
पेटलावद विस्फोट खनन माफियाओं की हवस का नतीजा है । कुछ छुटभैय्ये और माफिया के वेतनभोगी अफसरों के विरुध्द कार्यवाही माफिया और उनके सरपरस्त राजनीतिक आकाओं को बचाने की कोशिश के सिवा कुछ भी नहीं है ।
इस विस्फोट के तार भोपाल से जुड़े हैं ।
मुख्यमंत्री और प्रभारी मंत्री की भी जिम्मेदारी है ।
इस घटना और इस इलाके के माफियाओं की समूची जांच सीबीआई को सौंपी जानी चाहिए ।
माकपा के राज्य नेताओं का दल पेटलावद रवाना हो चुका है ।
बादल सरोज
125 के चीथड़े चीथड़े उड़ जाने वाला हादसा किसी छोटे मोटे युध्द से कम नहीं है ।
न लश्करे तैयबा का का नाम आया न हिजबुल मुजाहिदीन का । अगर आया होता तो समूचे राष्ट्रवादी अभी तक ताता थैया का ततैया नाच कर चुके होते ..... वे खामोश हैं, क्योंकि इस विस्फोट के तार सीधे भोपाल तक जुड़े हुए हैं ।
जिस राजेन्द्र कासवाँ के भवन में यह धमाका हुआ है वह सत्तापार्टी का चुनाव प्रबंधक और वित्तपोषक है । उसके घर में अवैध जिलेटिन भण्डार में यह दूसरा विस्फोट है । इसके पहले के विस्फोट, जिसमे उसके भाई झमक कासवाँ की मौत हुयी थी, को भी खुर्दबुर्द कर दिया गया था । नतीजे में यह भयानक हादसा हो गया ।
प्रशासनिक भ्रष्टाचार बिना राजनीतिक संरक्षण के नहीं होता । वैसे भी व्यापमं के दौरान प्रशासन पर दबाब और सत्ता पार्टी के लोगो द्वारा पुलिस एवं अन्य अधिकारियों की नियमित पिटाई से यह सामने आ चूका है कि माफिया कितने उद्दण्ड हो गए हैं ।
झाबुआ के सबसे बड़े माफिया सुधीर शर्मा से सत्ता के सर्वोच्च मुखिया के साथ रिश्ते किसी से छुपे नहीं हैं । झाबुआ की जिलेटिनो पर इन्ही सुधीर शर्मा के फरहरे फहराते हैं ।
पेटलावद विस्फोट खनन माफियाओं की हवस का नतीजा है । कुछ छुटभैय्ये और माफिया के वेतनभोगी अफसरों के विरुध्द कार्यवाही माफिया और उनके सरपरस्त राजनीतिक आकाओं को बचाने की कोशिश के सिवा कुछ भी नहीं है ।
इस विस्फोट के तार भोपाल से जुड़े हैं ।
मुख्यमंत्री और प्रभारी मंत्री की भी जिम्मेदारी है ।
इस घटना और इस इलाके के माफियाओं की समूची जांच सीबीआई को सौंपी जानी चाहिए ।
माकपा के राज्य नेताओं का दल पेटलावद रवाना हो चुका है ।
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