बस्तर में सैनिको की जान बचाइये रमन सिंह जी
धमतरी में कल एक सीआरपी के जवान ने आत्महत्या कर ली ,दो दिन पहले ही बस्तर में एक जवान ने कर ली थी आत्महत्या .
अभी तक बस्तर या अन्य नक्सल क्षेत्रों में बहुत से सैनिको ने रहन सहन की ख़राब स्थितियों , अवकाश की समस्या और उच्च अधिकारियो के व्यवहार से सौ से ज्यादा सैनिक अपनी जान गवां चुके है, , मलेरिया या स्वास्थागत असुविधाओ के कारण जवान अपनी जान ख़तम कर रहे है .
कई बार वो इसलिए मारे जाते है की उन्हें जब छुट्टी मिलती है तो वे जिला स्तर तक जाने के लिए साधारण बस से जाना पड़ता है और वे आसानी से नक्सली हमले के शिकार हो जाते है.
जब भी सीआरपी या bsf मूमेंट करती है तो स्थानीय पुलिस या पुराने spo अब सहायक आरक्षक को सबसे आगे बिना किसी विशेष प्रशिक्षण या भारी हथियार के ले लेते है , जिसके कारण सबसे ज्यादाम मौत स्थानीय सैनिको की होती है
सभी सैनिको के रहने खाने और स्वास्थ को लेके बहुत परेशानियाँ है, उन्हें न तो पोषित खाना मिलता है और न स्थानीय लोगो का कोई समर्थन नही मिलता .
और सबसे बड़ी बात उन्हें अपना दुश्मन भी स्पष्ट नहीं दिखता जब भी वे लोग मूमेंट करते है तो उनके ऊपर नक्सलियों को मारने का दबाब भी होता है, इसी कारण तरह तरह की कहानियां गढ़ के आम ग्रामवासियों पे अपना गुस्सा उतार देते है.
मेने सरगुजा जे ऐसे केम्प भी देखे है जहाँ पिछले दो तीन सालो में कभी मूमेंट ही नही हुआ है .
सैनिक बेहद निराश और पीड़ा में है .
एक सैनिक ने मुझे एक बार ट्रेन में बताया था की सरकार सिर्फ पुरस्कार या मुआवजा की भाषा जानती है उन्हें हमसे कोई लेना देना नही हैं . मंत्री रटा रटाया बयान देते है की बलिदान व्यर्थ नही जाने देंगे और कुछ दिन बाद फिर वही मौत का तांडव .
अभी तक बस्तर या अन्य नक्सल क्षेत्रों में बहुत से सैनिको ने रहन सहन की ख़राब स्थितियों , अवकाश की समस्या और उच्च अधिकारियो के व्यवहार से सौ से ज्यादा सैनिक अपनी जान गवां चुके है, , मलेरिया या स्वास्थागत असुविधाओ के कारण जवान अपनी जान ख़तम कर रहे है .
कई बार वो इसलिए मारे जाते है की उन्हें जब छुट्टी मिलती है तो वे जिला स्तर तक जाने के लिए साधारण बस से जाना पड़ता है और वे आसानी से नक्सली हमले के शिकार हो जाते है.
जब भी सीआरपी या bsf मूमेंट करती है तो स्थानीय पुलिस या पुराने spo अब सहायक आरक्षक को सबसे आगे बिना किसी विशेष प्रशिक्षण या भारी हथियार के ले लेते है , जिसके कारण सबसे ज्यादाम मौत स्थानीय सैनिको की होती है
सभी सैनिको के रहने खाने और स्वास्थ को लेके बहुत परेशानियाँ है, उन्हें न तो पोषित खाना मिलता है और न स्थानीय लोगो का कोई समर्थन नही मिलता .
और सबसे बड़ी बात उन्हें अपना दुश्मन भी स्पष्ट नहीं दिखता जब भी वे लोग मूमेंट करते है तो उनके ऊपर नक्सलियों को मारने का दबाब भी होता है, इसी कारण तरह तरह की कहानियां गढ़ के आम ग्रामवासियों पे अपना गुस्सा उतार देते है.
मेने सरगुजा जे ऐसे केम्प भी देखे है जहाँ पिछले दो तीन सालो में कभी मूमेंट ही नही हुआ है .
सैनिक बेहद निराश और पीड़ा में है .
एक सैनिक ने मुझे एक बार ट्रेन में बताया था की सरकार सिर्फ पुरस्कार या मुआवजा की भाषा जानती है उन्हें हमसे कोई लेना देना नही हैं . मंत्री रटा रटाया बयान देते है की बलिदान व्यर्थ नही जाने देंगे और कुछ दिन बाद फिर वही मौत का तांडव .
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