Thursday, October 8, 2015

पुलिस कुछ पत्रकारों को नक्सली समझती है तो नक्सली उन्हें पुलिस का खबरची |: बस्तर में पत्रकारिता करना हुआ दुभर , पत्रकार हुए आपे से बाहर , करेंगे आन्दोलन

संतोष यादव 
समारू नाग का प्रेस कार्ड 
पुलिस नाखुश तो जाना होगा जेल : नक्सली नाराज तो मौत की सजा 
बस्तर की पत्रकारिता में ही नहीं बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता में बहुसंख्यक होने के बाद भी आदिवासी पत्रकारों की संख्या दो प्रतिशत ( अनुमान )भी नहीं है | अभी कुछ वर्षों से ही बस्तर के आदिवासी युवक पत्रकारिता और लेखन के क्षेत्र में आ रहे हैं | ये वही वर्ष हैं जिसमे कथित स्वतः स्फूर्त हिंसात्मक आन्दोलन , सलवा जुडूम , आपरेशन ग्रीन हंट , और कई नाम से , आपरेशन हाका और कई नाम से नक्सली उन्मूलन के नाम पर प्रदेश और केंद्र सरकार के द्वारा चलाये गए आदिवासी विरोधी आन्दोलन से आदिवासी तो प्रताड़ित हुए ही बल्कि उलटे नक्सल वाद में सैकड़ों गुना वृद्धि हुई है | सबसे ज्यादा प्रताड़ना बस्तर और सरगुजा में जहाँ कि नक्सल उमूलन के नामपर सामान्य आदिवासियों के साथ घोर अत्याचार का दौर चल रहा |दूसरी ओर भारी मात्रा में आदिवासियों के हक़ के जंगल ,जमीन और प्राकृतिक नदिया बड़ी मात्र में कार्पोरेट को हस्तांतरित किये गए | भारी संख्या में आदिवासियों का विस्थापन हुआ | अकेले बस्तर में ही कम से कम दो लाख ( सरकारी सीजी नेट आदिके अनुसार ) से ज्यादा आदिवासियों का ना केवल विस्थापन हुआ बल्कि एक तरफ कथित जनयुद्ध तो दूसरी तरफ पूरे  बस्तर को छावनी में तब्दील किये गए जवानों के हाथों भारी संख्या में जो मारे गए | उनमे भी आदिवासियों की संख्या ज्यादा ही रही | ऐसे में एक कलमकार आदिवासी का हाल क्या होगा यह समझ में वैसे भी सभी के समझ में आ जाने चाहिए | 

                            संतोष के गिरफ्तारी के दो माह पहले सोमारू नाग की गिफ्तारी के समय समय इतना हो हल्ला नही हुआ था | पुलिस ने ही चुप-चाप सोमारू को १७ जुलाई को ही ढांप लिया था | जिस आदिवासी पत्रकार सोमारू नाग को गिफ्तार किया गया वह भी पत्रिका से ही था | इसकी गिफ्तारी को लेकर दो कारणों से ही ज्यादा हो हल्ला नहीं हो पाया कि एक तो वह आदिवासी था दूसरा इस मुद्दा की सूचना तक मुझे नहीं मिली | यही वह समय था जब मै खुद ही अपने घरेलु और मानसिक परेशानियों के कारण बस्तर से बाहार और लोगों के सम्पर्क से ही बाहार था | सोमारू की रिहाई के लिए उस समय ही “ लीगल एड “ नाम की वही सवयम सेवी संस्था सामने आयी थी जिनके वकीलों पर बस्तर बार एशोसियेशन ने अवैधानिक रूप से आम सभाकर कर बस्तर कोर्ट में मामला लड़ने से ही रोक लगाकर रखा है | 

                                   सोमारू नाग की गिरफ्तारी के बाद उनके गाँव के लोगों ने २५ जुलाई को पत्रिका अखबार जहाँ वह काम कर रहा था और पुलिस अधीक्षक बस्तर के साथ ही अन्य अधिकारियों को लिखा था. | पत्र के अनुसार उसके साथ उनके गाँव का रामलाल को भी पकड़ा गया था. | इसके पहले सोमारू के गृहग्राम दिनांक तीरथगड़ ग्राम पंचायत २४ जुलाई को एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें उन्होंने कहा की सोमारू नाग निर्दोष है |

                            तमाम प्रताडनाओं के बाद भी लिंगाराम कोड़ोपी,जिस पर जन सुरक्षा अधिनियम लगाकर वर्षों तक जेल में ठूसा गया , के बाद भी दक्षिण में जहाँ मंगल कुंजाम , माखन लाल शोरी , हेमंत बस्तरिया , वहीँ उत्तर में ईन्दु नेताम प्रकाश टेकाम , मंकुराम नेताम , नारायण मरकाम , दिनेश ध्रुव , देव नरेटी , केशव शोरी , प्रमोद पोटई, और कई आदिवासी युवा लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में सामने आये हैं | 

                           इस वर्ष भी पत्रकारों को दोनों पक्ष द्वारा धमकाने और प्रताड़ित करने का क्रम जारी रहा | अभी हाल में ही नक्सलियों ने दक्षिण बस्तर के एक पत्रकार युकेश चंद्राकर को पुलिस का मुखबिर समझ गिरफ्तार कर लिया था और उसके साथ दुर्व्यवहार भी किया | दो महीने पहले पुलिस ने सोमारू नाग को माओवादियों के साथ संबंध होने के आरोप में गिरफ़्तार किया था. वे तब से जेल में हैं और अब दूसरी गिरफ़्तारी संतोष यादव की हुई है.

                             बस्तर के इलाक़े में पुलिस का पत्रकारों को माओवादी समर्थक ठहराना और माओवादियों का पत्रकारों को पुलिस का मुखबिर बताना बेहद आम है.| दरभा इलाक़े में कुल तीन अख़बारों के प्रतिनिधि हैं और इनमें से दो अब न्यायिक और पुलिस हिरासत में हैं.| 2013 में दरभा इलाके के ही एक पत्रकार तोंगपाल निवासी नेमीचंद जैन को पहले पुलिस ने नक्सली मुखबिर बताकर प्रताड़ित किया और बाद में माओवादियों ने 2013 में पुलिस का मुख़बिर बता कर उसकी की हत्या कर दी.| यही हाल दो साल पहले ही साईं रेड्डी के साथ हुआ जिहे पहले तो जन सुरक्षा अधियम के तहत नक्सलियों का साथी बताकर सालों जेल में रखा गया , जेल से बाहर आने के कुछ ही वर्षों के बाद नक्सलियों द्वारा उसकी निर्मम ह्त्या कर दी गयी | इससे बहूत पहले ही बस्तर में स्व प्रेमराज कोटडिया , स्व गणेश शर्मा , सुशील शर्मा , स्व पल्लव घोष , भरत यादव , तामेश्वर सिन्हा , आदि सैकड़ों पत्रकारों ने प्रताड़ना झेला है | मै खुद ही असामाजिक तत्वों व , पुलिस प्रताड़ना व अपने ही मिडिया संस्थानों का कई बार शिकार बना हूँ | उत्तर बस्तर के परल कोट में तो विधायक और सांसद समर्थक लोगों के हक़ और विकास के नामपर करोड़ों की धन राशि को हजम कर रहे हैं जिनके खिलाफ लिखना और आन्दोलन करना मौत को आमंत्रित करना हैं | 

[कमल शुक्ल की पोस्ट से आभार सहित ]

No comments:

Post a Comment