Friday, October 2, 2015

अखलाख …धर्म .... और समाज

अखलाख …धर्म .... और समाज

[नथमल शर्मा सम्पादकीय ]
धर्म का समाज में अहम स्थान है। यदा यदा ही … संभवामि युगे युगे , हम बचपन से सुनते आये है। लेकिन सिर्फ सुनते और सुनाते। अपने जीवन में नहीं उतार पाते। तब ही तो कभी गोधरा होता है तो आज बसेहड़ा । दोनों मामले अलग,लेकिन दोनों में ही उन्मादी भीड़ द्वारा निर्दोष /निर्दोषों को मार दिया जाना। हत्या किया जाना। 

उत्तरप्रदेश के दादरी के पास एक गाँव बसेहड़ा । छोटा सा गांव। बरसों से भाईचारा ,सदभाव कायम। सब मिल-जुलकर रहते। कभी कोई दंगा-फसाद नहीं हुआ। एक -दूसरे के सुख-दुःख के सब साथी। इसी गाँव में दो दिन पहले सैकड़ो लोगों की भीड़ ने अखलाख के घर पर धावा बोल दिया। आरोप की उसने घर में गोमांस रखा है। इसकी घोषणा बकायदा मंदिर के लाउडस्पीकर पर की गयी। इसी घोषणा के बाद उन्मादी लोग अख्लाख़ के घर की तरफ बढे। लोहारी का काम कर किसी तरह गुजर-बसर करने वाला अखलाख और उसका परिवार कुछ समझ ही नहीं पाया। भीड़ ने उसके पूरे परिवार से मारपीट की। घर का सामान तहस -नहस कर दिया। फ्रिज में रखा मांस निकाल फेका। परिवार का कहना था की वह बकरे का मांस है। लेकिन रोते -चीखते,गिड़गिड़ाते परिवार की किसी ने नहीं सुनी अखलाख कीं पीट-पीट कर हत्या कर दी गयी। उसके बेटे की हालत भी गंभीर है। पत्नी और जवान लड़की किसी तरह खुद को बचा पाए अन्यथा उनके साथ भी गोधरा होने में कितना वक़्त लगता ? भीद और से उन्मीदी भीड़। कुछ भी कर सकती थी। करती ही है। इसी भीड़ ने एक निर्दोष मेहनतकर्मी की जान ले ली। उसके परिवार सहारा छीन लिया। 

बसेहड़ा गाँव ,दिल्ली के ज्यादा दूर नहीं है। हालांकि उनके लिए आज भी दिल्ली दूर ही है। उत्तरप्रदेश के इस गाँव में आज तक कभी दंगा-फसाद नहीं हुआ। और जातीय,झगडे तो नहीं ही हुए। इसी गाँव में मंदिर की घंटियाँ बजती रही मस्जिद से अजान की आवाज़ें भी आती रही। इन्ही आवाज़ों के साथ अखलाख नामक पचास वर्षीय लोहार हथोड़े की थक-थक भी गूंजती रही। वह हर किसान के लिए हल तैयार करके देता रहा। जिससे खेतों में फसल लहलहाती रही। मेहनती अखलाख का घर जिस मोहल्ले में था उसके आस-पास सारे हिन्दु रहते थे। अखलाख और उसके परिवार को कभी कोई परेशानी नहीं हुई। अचानक उस दिन मंदिर के लाउडस्पीकर जिससे आरती की आवाज़ आती थी ,एक घोषणा हुई की उसके घर या और भी घरों में गोमांस है। ऐसा सन्देश कई लोगों मोबाइल पर भी आया। बस उन्मादी लोग चल पड़े उसके घर। तबाही मचा दी। अखलाख की हत्या कर दी गयी। परिवार कहते रहा की फ्रिज में रखा मांस बकरे का है। पर कौन सुने। अब हत्या पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ्तार किया है। मांस को परिक्षण के लिए लैब भेजा है। गाँव तैनात है। बिलखता अखलाख परिवार दहशत में है। उसकी जवां बेटी का रो-रोकर बुरा हाल है। बेटा गंभीर हालत में अस्पताल में है। गाँव में देश के अखबारों /चैनलों के पत्रकार पहुँच रहे है। किसी नेता (जी ) का अभी तक दौरा नही हुआ। मंदिर के पुजारी का कहना है घोषणा उसने नहीं की। स्वीकार किया की किसी ने यहाँ आकर माइक से घोषणा की। पर किसने ? नहीं पता।

यह बात तो अब आईने की तरह साफ़ है की केंद्र में मोदी सरकार आने सम्प्रदाय विशेष के खिलाफ कुछ ज्यादा ही जहर उगला जा रहा है। पहला ही बयान आया था की दिल्ली में साढ़े सात सौ बरस बाद हिन्दू सरकार काबिज हुई है। बाद में स्वामियों ,नाथों के हिंदुत्व,धर्म को लेकर बयान आते रहे। एक डरावना माहौल तैयार हो रहा है। ग़र्व से कहो हम हिन्दू है.…वाला भाव अब ज्यादा महिमामंडित किया जा रहा है। जबकि हमें भारतीय होने पर गर्व है/होना ही चाहिए। हमने संविधान में धर्म निरपेक्षता को अपनाया है। सबको सामान आदर भाव और अपने-अपने आराध्य के लिए प्रार्थना की आज़ादी। हालांकि अधिसंख्य भारतीय इसी भावना से ओत -प्रोत है। हाल ही में बकरीद की नमाज़ तस्वीर व्हाट्स एप पर लोगो। मस्जिद में नमाज़ियों के लिए जगह कम पड़ गई थी। पास में ही लगे गणेश पंडाल के आयोजकों ने पंडाल में उन्हें जगह दी। यह भारतीय भाईचारा है। सदभाव है। सरकारें और संकीण सोच वाले इससे क्यों नहीं कुछ सीखते ?वैशवीकरण के इस दौर में धर्मान्धता के दिन लद जाने चाहिए लेकिन पूरी दुनिया में ही इसे बढ़ावा मिल रहा है। इससे समाज को बांटने और बोलने की ताकत ख़त्म करने आसानी होती है। इससे कुर्सियों के पाये सलामत रखने में में आसानी होती है। खून अमिट स्याही नहीं होता लेकिन कुछ लोग निर्दोष जनों बहाकर ही उससे अमिट स्याही बनाते है और कुर्सियां हासिल करते है। अखलाख का खून भी क्या ऐसी ही अमिट स्याही ?पता नहीं जांच होगी। मुआवजा मिलेगा। अभी तो सरकार विदेश घूम आई है और बिहार के गाँवों में कब्जे की तैयारी में है। उत्तरप्रदेश और बिहार में लगभग एक सामान सामाजिक व्यवस्था है। जागरूक और प्रतिबद्ध नागरिकों के सामने गंभीर सवाल है। संविधान से पोषित लोकतंत्र से अपने अपने 'लोक ' और तंत्र बचाये और बनाये रखने की। बाजार की चकाचौंध अखलाख नहीं पहुंची है लेकिन उन्माद का शोर पहले पहुँच गया। इंसानियत दब जाएगी क्या ?सरकारें ,समाज और हम सब कब तक चुप रहेंगे ?

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