Tuesday, October 6, 2015

“ लीगल एड “ के वकीलों पर अलोकतांत्रिक तरीके से वकालत करने पर प्रतिबंध के खिलाफ उठ खड़े हो आदिवासी समुदाय : बस्तर के आदिवासियों पर आदिवासी हित विरोधियों का अब-तक का सबसे बड़ा हमला

  

   

                   मै अपने खुद के साथ " लीगल एड " के सहयोग को लेकर एक सच्ची घटना का जिक्र करना चाहूँगा कि इनकी मदद से पुलिस दवारा मेरे खिलाफ लगाये  गए कई धाराओं का चालान पेश होते ही इन्होने चार्ज लगने के स्तर पर ही बहंस कर खतम कर दिये | इसके लिए कांकेर की कोर्ट में उस दिन पहली बार दो घंटे की बहंस चली | पहली बार  उस दिन मुवक्किलों को लगा कि ऐसा भी हो सकता है | एक तरफ  बस्तर में अधिकांश वकील , अधिकारी , व्यवसायी , ठेकेदार  और सप्लायर तथा पत्रकार , दलाल  बस्तर वासियों को  लूटकर बनाये अपनी संपत्ति से बस्तर से बाहर बड़े-बड़े शहरों , प्रदेश और देश के  राजधानी में  निवेश करने में लगें  हैं तो दूसरी ओर ऐसे भी लोग बस्तर में हैं जिन्होंने अमेरिका, इंग्लैण्ड , आस्ट्रेलिया आदि देशों में अपने कैरियर को छोड़कर बस्तर के मूल निवासियों  की सेवा के लिए अपना अपनी लाखों की तनख्वाह और अपना कैरियर छोड़कर आये हुए हैं | जो यहाँ से कुछ ले जाने नहीं बल्कि देने आये हैं |  पिछले शनिवार को जगदलपुर जिला मुख्यालय के वकीलों द्वारा बाकायदा आमसभा कर बस्तर में देश के भीतर ही किहि और स्थानों से आकर निशुल्क कानूनी सहायता करने वाले “ लीगल एड “ के वकीलों पर अलोकतांत्रिक तरीके से वकालत करने पर प्रतिबंध लगा दिया | यह बस्तर के आदिवासियों पर आदिवासी हित विरोधियों का अब-तक का सबसे बड़ा हमला है |
             सच के लिए काम कर रहे , और इनके माध्यम से लगातार सच उजागर होने से सरकार डरी हुई है और हर सच्चे कार्यकर्ता को नक्सलियों का सहयोगी बता रही है | प्रताड़ित आदिवासियों के लिए निशुल्क और मात्र पांच हज़ार के जीवन भत्तों से लिए लड़ने आये “ लीगल एड “ के वकीलों को भी बस्तर से बाहर भगाने के लिए वकीलों की आमसभा का मामला भी यही है | इसके पहले भी आदिवासियों हित के लिए लड़ने या सच लिखने  आये ब्रम्हदेव शर्मा , अरुंधती राय, मेधा पाटकर ,हिमांशुकुमार ,  स्व रत्नेश्वर नाथ , नंदनी सुन्दर , विनायक सेन आदि को ना केवल नक्सली सहयोगी बता कर बस्तर से अवैध रूप से भगाया गया बल्कि बस्तर में घुसने से भी अलोकतांत्रिक ढंग से रोक  दिया गया | अकसर आप इन अलोकतांत्रिक तरीके से होने वाले विरोध का अध्ययन करें तो पायेंगे कि  इन सबके पीछे सभी प्रमुख राजनैतिक दलों के वे सारे नेता और कार्यकर्ता होते हैं जो बस्तर के विकास का मतलब ही अपने स्वयम के आर्थिक विकास से लेते हैं | ये सही में होते तो बस्तर के  बाहर से हैं , ये सभी अपने हित के लिए अकसर सुदूर अंचल के आदिवासियों को शतरंज की एक गोटी से ज्यादा कुछ नहीं समझते | 
                     साथियों अब तो जागिये | आप जगदलपुर में आम सभा कर अलोकतांत्रिक तरीके से बस्तर के लोगों को उचित और निशुल्क कानूनी मदद के लिए बाहर से अपंनी जान जोखिम में डाल कर आने वाले वकीलों पर प्रतिबन्ध लगाने का दमदारी से ना केवल विरोध करिए बल्कि सबक भी सिखाएं  कि अब इस तरह बस्तर के लोगों को और लम्बे समय तक लूटा और लम्बे समय तक फंसाया नहीं जा सकता | यह "लीगल एड " के साथियों की मेहनत और कानून के अध्ययन का कमाल है कि एक वर्ष के भीतर ही सैकड़ों आदिवासी ना केवल जेल के सींखचों के बाहर आये बल्कि अधिकांश  के तो मामले चार्ज लगने के स्तर पर ही समाप्त हो गए | विनायक सेन , सोनी सोढ़ी और लिंगा राम कोड़ोपी जैसे निर्दोष लोगों के खिलाफ बस्तर की पुलिस द्वारा रचा गया षड्यंत्र "लीगल एड"  के प्रयासों से ही सामने आया |  बस्तर या देश में व्यावसायिक रूप से काम कर रहे अधिकाँश वकील चार्ज स्तर ( चालान पेश करने के समय ) तर्क करने कि मेहनत ही नहीं करते | क्योंकि वे अपने मुवक्किल को एक लम्बे समय के किश्तों के इनकम का साधन मानते हैं | 
                  अतः आप सबसे अनुरोध है कि “ अपना वकील खुद चुनने की आजादी बस्तर के लोगों को रहने देने के लिए , जो कि उनका संविधान प्रदत्त अधिकार है , एक जूट होकर संगठित विरोध करें दूसरी ओर मुझे अपने जागरूक आदिवासी युवा  साथियों से  यह भी कहना है कि आप बस्तर में नक्सली उन्मूलन के नाम से अपने आदवासी भाईयों और कथित जनयुद्ध के नाम पर पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ कलम ही नहीं बल्कि अब तो धनुष चलाने का समय आ चुका है | 

[कमल शुक्ल ] 
   

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