Monday, May 25, 2015

जशपुर ऐसा है हमारा -,रविन्द्र थवाईत


जशपुर ऐसा है हमारा -,रविन्द्र थवाईत
रविन्द्र थवाईत-जशपुरनगर (निप्र) । चहुंओर हरियाली और घने जंगल के बीच बसे जशपुर जिले का गठन तात्कालीन मप्र सरकार द्वारा 25 मई 1998 को किया गया था। गठन के 15 साल के बाद शनेैः-शनैः औद्योगिकरण की ओर कदम बढ़ा रहे इस जिले का इतिहास बेहद दिलचस्प है। जशपुर जिले ने डोम राजाओं के शासन से लेकर अंग्रेजी हुकूमत तक को महसूस किया है। देश की स्वतंत्रता आंदोलन में भी इस जिले के धरती के सपूतों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
मूलतः जशपुर रियासत की स्थापना का श्रेय जशपुर के वर्तमान राजवंश को जाता है। इस राजवंश से जशपुर की धरती पर उस वक्त कदम रखा,जब यहां डोम शासकों का राज डांवाडोल हो रहा था और जशपुर पूरी तरह अराजकता की चपेट में था। 18 वी सदी के मध्य में डोम राजवंश के अंतिम शासक रायभान थे। डोम राजा रायभान के राज में अराजकता से उनकी प्रजा में असंतोष की भावना पनप रही थी। इसी वक्त जशपुर की धरती पर बिहार के सोनपुर रियासत के राजा सुजान राय ने कदम रखा। राजा सुजान राय ने ही जशपुर रियासत की नींव रखी थी।
जशपुर रियासत के संस्थापक राजा सुजान प्रताप राय सूर्यवंशी शासक थे। मूलतः राजस्थान के बांसवाड़ा के निवासी थे। राजा सुजान प्रताप राय के बंशजों ने बिहार में सोनपुर रियासत की स्थापना की थी। सुजान राय सोनपुर रियासत के सबसे बड़े युवराज थे और पिता की मृत्यु के बाद सोनपुर में उनका ही राज्याभिषेक होना था। लेकिन शिकार और घूमने के शौकीन सुजानप्रताप राय को अपने छोटे भाई को गद्दी सौंप कर सन्यास ग्रहण कर समर्थकों के साथ जंगल की ओर लौट गए। यहां जंगल में घूमते-घूमते सुजान राय और उनका काफिला जशपुर पहुंचा। इस वक्त यहां डोम राजवंश के अंतिम शासक रायभान का राज था और चहुंओर अराजकता और लूटमार मची हुई थी। लोगों को अराजकता से मुक्ति दिलाने के लिए संन्यासी राजा सुजान राय ने अपने समर्थकों के साथ डोम शासन से असंतुष्ट लोगों को एकजुट कर सेना बनाया और एक संक्षिप्त युद्व में डोम राजा रायभान को पराजित कर जशपुर रियासत की नींव रखी। अंग्रेजी हुकूमत के दौरान जशपुर रियासत नागपुर के भोंसले के अधीन हो गया था। 1818 में मौधाजी भोसलें ने प्रशासनिक कसावट के लिए जशपुर रियासत को सरगुजा रियासत के अधीन कर दिया। 1956 में मप्र के गठन के दौरान जशपुर को नवगठित रायगढ़ जिले के अधीन किया गया और 25 मई 1998 में मप्र के तात्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने जशपुर समेत 16 नए जिले का गठन किया था।
औद्योगिकरण और विरोध के उठते स्वर के बीच जशपुरवासी जिले के भावी विकास को लेकर असमंजस में दिखाई दे रहे हैं। जिले में बाक्साइट के साथ सोना,हीरा जैसे कई बहुमूल्य खनिज जशपुर के धरती के गर्भ में छिपे हुए हैं। गुजरते वक्त के साथ इन खनिजों के दोहन की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। बगीचा तहसील के पंड्रापाठ क्षेत्र में दो बाक्साइट खदानों को केंद्र सरकार हरी झंडी दे चुकी है,वहीं हीरा और सोने के उत्खनन की संभावना तलाशने में भी कुछ निजी कंपनियां जुटी हुई है। जिले के औद्योगिकरण के प्रयास के बीच उठते विरोध के स्वर से शासन और प्रशासन के कदम ठिठके हुए हैं। जिले के जनप्रतिनिधि अब भी दिवंगत दिलीप सिंह जूदेव के जिले के पर्यावरण संरक्षण के आदर्श पर अटल नजर आ रहे हैं। डेढ़ दशक के सफर के बाद जशपुर जिले के विकास की रफ्तार अब औद्योगिकरण और ऑक्सिजोन के स्थापना के बीच झूल रहा है।
आदिवासी बाहुल्य जशपुर जिले में कांग्रेस के साथ भाजपा के शासनकाल में भी दिग्गज जनप्रतिनिधियों की कमी नहीं रही है। छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी के मंत्रिमंडल में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पत्थलगांव के तात्कालीन विधायक रामपुकार सिंह को प्रदेश सरकार में केबिनेट मंत्री का पद मिला था। वर्तमान में जशपुर जिले में पूरी तरह से भाजपा हावी है। इस समय जिले में भाजपा जशपुर,कुनकुरी और पत्थलगांव तीनो विधानसभा सीटों पर काबिज है,इसके साथ ही इस जिले से भाजपा के तीन सांसद भी है और इनमें से एक केन्द्रीय मंत्री भी है। सांसदों में रायगढ़ लोकसभा से विष्णुदेव साय के साथ रणविजय सिंहदेव और नंदकुमार साय राज्यसभा सांसद है। सांसद विष्णुदेव साय केन्द्र में इस्पात,खान और श्रम राज्यमंत्री है। इन राजनीतिक ताकत के बावजूद जशपुर जिले विकास के मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहा है। चाहे मामला राष्ट्रीय राजमार्ग का हो या फिर कोरबा लोहरदग्गा रेल मार्ग। आम जनता की अपेक्षा पर खरा उतरना यहां के जनप्रतिनिधियों के लिए आने वाले सालों में एक बड़ी चुनौती साबित होगी। इन अपेक्षाओं को पूरा किए बिना जशपुर जिले के गठन का उद्देश्य पूरा नहीं कहा जा सकता।


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