Thursday, May 28, 2015

मध्य प्रदेश सरकार का कारनामा : उधोगों को 1.5 लाख एकड़ सार्वजनिक भूमि का तोफ़ा



समाजवादी जन परिषद (सजप)  के अनुराग मोदी ने  25 मई को जारी एक प्रेस विज्ञप्ती में कहा कि  म. प्र. के मुख्यमंत्री शिवराज सिंग चौहान की सरकार ने अपने हालिया दस्तावेज ‘लैंड बैंक- 2014’ में  उद्योगों को देने के लिए जो 1.5 लाख एकड़ जमीन आरक्षित की है, वो गैरकानूनी है| यह म. प्र. , राजस्व पुस्तक परिपत्र, पंचायती राज कानून और उच्चत्तम न्यायायलय के निर्देशों की खुली अवहेलना है और गाँव के संसाधन कोडियों के मोल लुटाने की साजिश है| उनकी पार्टी, सजप  इस बंदरबांट के खिलाफ सडक से लेकर कोर्ट तक की लड़ाई लडेगी | 

म. प्र. सरकार ने  ‘लैंड बैंक- 2014’ में प्रदेश में लगभग 300 छेत्र चिन्हित किए है,  जिसमें फ़िलहाल, लगभग,  65 हजार हेक्टर (1.5 लाख एकड़)   जमीन उधोगों को देने के लिए की आरक्षित की गई है; इसमें अधिकांश जमीन आज भी राजस्व रिकार्ड में चरनोई आदि नाम से दर्ज है | यह जमीन, जिला और तहसील मुख्यालयों से जुड़े गाँवों की  हाई-वे और प्रमुख मार्गों से लगी होने के करण बेशकीमती है| श्रमिक आदिवासी संगठन के मंगलसिंग और किसान आदिवासी संगठन के फागराम और सजप के प्रदेश अध्यक्ष राजेन्द्र गढ़वा ने कहा कि एक-तरफ भूमिहीन दलित और आदिवासी जमीन को तरस रहे है, सरकार के पास विस्थापितों को देने के लिए जमीन नहीं है| 

‘लैंड बैंक- 2014’ की इन जमीनों मोटा-मोटा विवरण इस प्रकार है: 186 औधोगिक छेत्र मे, 6222 हेक्टर; 45 आधोगिक विकास केन्द्रों में, 8774 हेक्टर; इन्वेस्टर कोरिडोर: भोपाल इंदौर – 197 कि. मी.; भोपाल-बीना- 136 कि. मी.; जबलपुर-कटनी-सतना-सिंगरौली- 370 कि. मी.; मुरैना- ग्वालियर- शिवपुरी-गुना – 260 कि. मी. में कुल मिलाकर 16,634 हेक्टर जमीन; स्मार्ट सिटी के लिए 497 हेक्टर; और इसके आलावा, सभी जिलों में ओधोगिक प्रयोजन के लिए कुल 25,497 हेक्टर जमीन|

‘लैंड बैंक- 2014  में आरक्षित यह सारी जमीन इन प्रावधानों का खुला उल्लंघन है: पहला, म. प्र. राजस्व पुस्तक परिपत्र खंड  4, क्रमांक 1 – इसके अनुसार इन सार्वजानिक उपयोग की  जमीनों को नजूल या सरकारी की मिलकियत में शामिल नहीं किया जा सकता| दूसरा, नीलेंद्र प्रताप सिंग विरुद्ध म. प्र सरकार मामलें में उच्चतम न्यायालय  के आदेश के अनुसार गाँव में 2%  चरोखर जमीन बची रहना जरुरी  है| तीसरा, चरोखर जमीनों के मद परिवर्तन के प्रक्रिया धारा 237   म. प्र. भू राजस्व सहिंता में वर्णित है| चौथा,  म. प्र. पंचायत राज  अधिनियम के अनुसार कलेक्टर को इस हेतु संबंधित ग्राम-सभा  की मंजूरी लेना जरुरी है, जो किसी भी मामले में नहीं ली गई है|

अगर हम म. प्र, सरकार के ‘कमिश्नर लैंड रिकार्ड्स’ की वेब साईट पर पर प्रदेश के सभी जिलों के नगरीय छेत्रों ‘लैंड बैंक’ की जमीनों की वि  तालिका (देखे http://landrecords.mp.gov.in/landbank.htm ) में इन जमीनों की नोईयत देखें तो समझ आएगा: असल में यह सब सार्वजनिक जमीन है; जैसे: चरनोई, खलिहान, श्मशान, तालाब, कदीम,  पारतल, आबादी, पहाड़ और ना जाने क्या-क्या नाम से दर्ज है| मुग़लों से लेकर अंग्रेजों के समय तक,  जो जमीन समुदाय के अनेक तरह के उपयोग के लिए नियत थी, जैसे: चराई; आबादी; तालाब; कुम्हार की मिट्टी आदि उन्हें गाँव के  ‘बाजुल उर्ज’ (राजस्व रिकार्ड) में दर्ज कर दिया जाता था | और,  म. प्र. राजस्व सहिंता के खड 4, क्रमांक 1 के अनुसार सिर्फ ऐसी  जमीन को नजूल या सरकार की मिलकियत में शामिल  किया जा सकता है जो : A-  किसी गाँव के खाते में शामिल ना हो; बी- बंजर, झाडीदार जंगल, पहाड़ियों, और चट्टानों, नदियों, ग्राम वन या शासकीय वन ना हो; क—ग्राम की सड़कों, गोठान, चराई भूमि, आबादी या चारागाह के रूप में अभिलिखित ना हो; D-  ग्राम निस्तार या किसी भी सार्वजानिक प्रयोजन के लिए आरक्षित ना हो| याने, इन सारी  जमीनों  को नजूल या सरकारी मिल्कियत की  जमीन में नहीं बदला जा सकता|

यह जमीन गाँव के विकास के लिए उपयोग की जाना चाहिए| एकतरफ सरकार गाय बचाने की बात करती है, और दूसरी तरफ चारागाह की सारी जमीन पूंजीपतियों को लुटाने पर अमादा है| इस दोहरे मापदंड की पोल खोलना जरुरी है| 
लैंड बैंक लिंक
अनुराग मोदी , समाजवादी जन परिषद, कोठी बाज़ार, बैतूल (म. प्र.)  sasbetul@yahoo.com 09425041624

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