Saturday, November 15, 2014

सरकार लाचार Government helpless

सरकार लाचार

Government helpless


11/7/2014 3:24:27 AM
Government helpless
सरकार में बैठा एक वरिष्ठ मंत्री जब कोर्ट के सभी फैसले लागू करा पाने को मुश्किल बता रहा हो तो दूसरे मंत्रियों व अधिकारियों की मनोदशा का अंदाजा लगाया जा सकता है। नितिन गडकरी जैसे मंत्री यदि न्यायपालिका के सभी फैसले लागू करा पाने में अफसोस जताने लगें तो यह मान लेना चाहिए कि न्यायपालिका के फैसलों का क्या हश्र होता होगा? सवाल उठता है कि जब सरकार ही फैसलों को लागू नहीं करा पाएगी तो न्यायपालिका का अर्थ क्या रह जाएगा? न्यायपालिका कोई भी फैसला एकतरफा नहीं सुनाती।

दोनों पक्षों के तर्क सुनकर फैसला करती है। अनेक मामलों में सरकार भी एक पक्ष होती है और सुनवाई के दौरान उनके वकील तर्क पेश करते हैं। ऎसे में जब फैसला आता है तो उसे लागू कराने की जिम्मेदारी सरकार की ही मानी जाएगी, भले ही फैसला उसके खिलाफ ही क्यों नहीं हो?

किसी भी लोकतांत्रिक देश में न्यायपालिका का अपना महत्व होता है। न्यायपालिका लोकतंत्र का ऎसा मजबूत पाया है जिसके फैसलों से असहमत होते हुए भी उसका सम्मान किया जाता है। गडकरी ने जो कहा उसमें आंशिक सच्चाई हो सकती है। एकाध फैसले ऎसे हो सकते हैं जिनको लागू कराने से कानून व्यवस्था के बिगड़ने का खतरा हो लेकिन उसका समाधान निकालने के प्रयास किए जाने चाहिए। ऎसे फैसले से जुड़े तमाम पक्षों को एक मंच पर बिठाकर रास्ता तलाशा जा सकता है लेकिन फैसले को अधर में नहीं छोड़ा जा सकता।

गडकरी का यह कहना किसी के गले नहीं उतर सकता कि बहुतेरे मामलों में अदालत के फैसलों को लागू कराना मुश्किल होता है। गडकरी को केन्द्र में मंत्री पद संभाले अभी पांच महीने ही हुए हैं और इतने कम समय में ही वह ऎसी बातें कहने लग गए। विपक्ष में रहते क्या उन्होंने दूसरी सरकारों के बारे में कभी ऎसा सोचा था कि वे फैसले कैसे लागू कराती होंगी। 

विपक्ष की राजनीति और सत्ता की राजनीति का अंतर गडकरी को इतनी जल्दी समझ में आ गया इसके लिए उन्हें जरूर बधाई दी जानी चाहिए। गडकरी या सरकार में बैठे दूसरे मंत्रियों को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि वे बोल क्या रहे हैं? गडकरी ने आज तो न्यायपालिका की बात की है। 
कल को वे कार्यपालिका के बारे में भी अपनी लाचारी जाहिर कर सकते हैं। एक मंत्री के ऎसे बयानों से सरकार का इकबाल कमजोर नजर आता है जो लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है।
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      शर्म हो तो मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री को इस्तीफा दे देना चाहिए

      शर्म हो तो मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री को इस्तीफा दे देना चाहिए

      CM and Health Minister should resign says Shobha Ojha

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      11/14/2014 9:06:09 PM
      बिलासपुर। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष शोभा ओझा ने कहा कि स्थिति बेहद चिंताजनक है। अस्पताल में महिलाएं जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रही हैं, वहीं नवजात बच्चों का जीवन भी संकट में है। दो-दो, तीन-तीन माह के बच्चे बिना मां के हो गए हैं।

      ब्यूरोक्रेट और मंत्री साक्ष्य को नष्ट करने में पूरी ताकत झोंक रहे हैं। शर्म हो तो मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री को नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। वे अपोलो अस्पताल में मरीजों से भेंट करने के बाद पत्रकारों से चर्चा कर रही थीं।

      आयोग की अध्यक्ष ने कहा कि अपोलो में 45 मरीज भर्ती हैं, इनमें से 9 को आईसीयू में रखा गया है। पूरा मामला महिलाओं के जीवन से खिलवाड़ का है वे उन गांवों में भी गई थीं जहां के पीडि़तों की मौत हुई है।

      उन्होंने कहा कि आखिर सरकारी खरीदी में एेसी जहरीली दवाई आई कैसे, जिससे मल्टीआर्गन फेल हो गए। इसकी जांच होनी चाहिए। नकली दवाओं का रैकेट चलाने वालों पर सरकारी हत्या का मामला दर्ज किया जाना चाहिए चाहे वह कोई भी हो।

      बाबू! अम्मा ल जऊन छीने हावय ओला भगवान देखही

      बाबू! अम्मा ल जऊन छीने हावय ओला भगवान देखही

      Babu! Her goal snatched Jun Howy Ola God 

      Babu! Her goal snatched Jun Howy Ola God Dekhi
      11/15/2014 3:48:20 AM
      बिलासपुर। मांओं की मौत के लिए दोषी चाहे कोई भी हो, पकड़े भी गए तो उन्हें कुछ ज्यादा फर्क पड़ने वाला नहीं है। वो लोग उन परिवारों और मासूम बच्चों की पीड़ा समझ भी नहीं सकते, जिनकी दुनियां उजड़ चुकी है। कई घरों में मातम का माहौल है, आंखों में आंसुओं का सैलाब और दिलों में दर्द है। मासूम बच्चे मां के लिए बिलख रहे हैं। कहीं बाप बच्चों को दिलासा दे रहा है, तो कहीं बच्चे समझा रहे हैं, "बाबू फिकर झन कर, जेन हा अम्मा ल छीने हावय ओला भगवान देखही।"
      ये पीड़ा...ये रूदन...और बच्चों का बिलखना-तड़पना उन घरों में हो रहा है, जहां नसबंदी शिविर और जहरीली दवाइयों ने सबकुछ लूट लिया। 2 रूपए में चावल देकर अपनी पीठ थपथपाने वाले सरकार की लापरवाही ने जिनकी खुशियां छीन लीं। मासूम बच्चों को बिन मां के बना दिया। ऎसे ही कुछ घरों में "पत्रिका" की टीम पहंुची। पीडित परिवारों का दर्द महसूस किया।
      गनियारी के एक घर में बहोरिक अपने बच्चों को दिलासा दे रहा था। तीन साल का नासमझा अनीश है कि कुछ समझ ही नहीं रहा है। भला वो मासूम मौत-जिंदगी को समझे भी कैसे। वह तो यही समझ रहा है कि उसकी मां "शिवकुमारी" किसी काम से गई है। अब तक नहीं लौटी। वह पिता से जिद कर रहा है, बहोरिक भी उसे उसी की भाषा में समझा रहा है..."तोर मां आही बेटा, सूजी लगाए बर गै हवय...। तोर बर खाई लेके आही..।" बड़ा बेटा मनीष पहली कक्षा में पढ़ता है। वह कुछ समझदार दिखा, पीड़ा उसे भी है, लेकिन छोटे भाई का दर्द और बाप के आंसू देखकर वह दिलासा देने की कोशिश करता है... "बाबू फिकर झन कर, जेन मन अम्मा ल छीने हवय, ओखर भला नई होवय, ओला भगवान देखही।"
      बहोरिक अपने दोनों बच्चों को अपनी सीने से लिपटा लेता है। उसकी आंखों से आंसुओं की धारा बह जाती है। वहां खड़े परिवार के दूसरे सदस्यों की भी आंखें गीली हो जाती हैं। ये मंजर और नजारा सिर्फ बहोरिक के घर नहीं, बल्कि हर उस घर में है जहां अभी-अभी जहरीली दवा ने मौत दे दी। घर उजाड़ा और बच्चों को बेसहारा कर दिया। दिन का समय तो किसी तरह गुजर जाता है, लेकिन रात बड़ी मुश्किल से कटती है। बच्चों को नींद नहीं आती। वे मां के बारे में ही सवाल करते हैं।
      मनीषा के लालन पालन की चिंता
      बहोरिक की बेटी मनीषा अभी छ: माह की है उस मासूम को नहीं पता कि मां दुनिया छोड़कर चली गई है। बहोरिक का कहना है दोनों बच्चों को जैसे तैसे कर पाल लूंगा, लेकिन मनीषा को सम्भाल पाना मुश्किल हो गया है। बच्ची रोती है तो घर वाले बारी-बारी से उसे गोद लेते हैं। बच्ची के पेट भरने के लिए दूध का डिब्बा लेकर आया हूं।
      "मां अस्पताल गई है..."
      शहर से लगे ग्राम अमेरी सतनाम नगर का जगदीश निर्मलकर राज मिस्त्री का काम करता है। नसबंदी के जहर ने उसका घर भी उजाड़ दिया। पत्नी रेखा घर से सही सलामत निकली थी, लेकिन लौटी तो शरीर में जान नहीं थी। उसकी ढाई साल की बच्ची कीर्ति अपनी मां को याद करके दिन रात रो रही है। पिता से मां का पता पूछ रही है। तीन-चार दिनों पिता लगातार उसे दिलासा दे रहा है। कभी वह पिता की झूठी बातें मान जाती हैं, लेकिन अगले ही पल मां को याद करके फिर से बिलख पड़ती है। पत्रिका की टीम जब उनके घर पहंुची तो मासूम कीर्ति ने मासूमसियत से जवाब दिया, "मां अस्पताल गई है।" लेकिन दस मिनट बाद वह फिर से मां के पास जाने की जिद पर अड़ गई। पिता से लिपटकर रोने लगी। चार माह के बेटे शुभम की जिम्मेदारी भी अब जगदीश पर है। फिलहाल उसने शुभम को उसकी नानी के घर अमसेना भेज दिया है।
      चाकलेट और खिलौना लेकर आ रही मां
      ये पीड़ा..दिलों में टीस, आंखों में आंसुओं का समंदर हर उस घर में दिखा जहां नसबंदी अभिशॉप बन गई। परिवार नियोजन से खुशियों की जगह दुख का पहाड़ टूट पड़ा। ग्राम डिघौरा में धन्नालाल ने पत्नी दीप्ति को खो दिया। 9 साल के नीलकमल, 3 साल के इंद्र और 3 माह की तुलेश्वरी के सिर से मां का साया उठ गया। दादी गनेशिया तीन माह की तुलेश्वरी गोद में लिए बैठी थी। इंद्र उसे हटाकर बैठना चाहता था। दादी ने उसे रोक दिया, तो वह मां को पूछने लगा। कुछ देर खामोश रहा, फिर शायद उसे दादी की बात याद आ गई और उसने झट से कहा..."हां! मां तो पिताजी के साथ बाजार गई है, खिलौने और चॉकलेट लकर आएगी।" दादी को कुछ राहत मिली, लेकिन वह भी बच्चे की मासूमियत और दुख को समझकर आंसू पोंछने लगीं।


        अस्पताल छोड़कर भाग गया डॉक्टर

        अस्पताल छोड़कर भाग गया डॉक्टर

        Hospital doctors fled


        Hospital doctors fled
        11/15/2014 3:49:04 AM



        बिलासपुर। स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला, और संचालक स्वास्थ्य सेवाएं आर प्रसन्ना नेमीचंद अस्पताल की जांच के बाद गनियारी स्थित डॉक्टर डीसी जैन के अस्पताल पहंुचे। इससे पहले ही डॉक्टर वहां से फरार हो चुका था। मरीजों का रिकार्ड नहीं मिल सका। दवा-रिकार्ड अस्पताल के पीछे जला दिया गया था। गनियारी स्थित डाक्टर डीसी जैन रिटायर्ड आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारी के अस्पताल में इलाज के बाद एक 70 वष्ाीüय वृद्ध की सिम्स में उपचार के दौरान गुरूवार को मौत हो गई। बताया जाता है डॉक्टर ने मरीज को सिप्रोसिन टेबलेट दी थी, जिसे खाने के बाद मौत हुुई।
        शुक्रवार की दोपहर 1.45 बजे प्रमुख सचिव आलोक शुक्ला सहित तीन अधिकारी डॉ. जैन के गनियारी स्थित अस्पताल पहंुचे। डॉ. जैन को पहले ही भनक लग चुकी थी, जिससे मरीजों के रिकार्ड व दवाइयां अस्पताल के पीछे जला दी। अधिकारियों के पहंुचने से 10 मिनट पहले ही डॉक्टर अस्पताल छोड़कर फरार हो गया। अधिकारियों ने स्टाफ से पूछताछ की, लेकिन किसी ने कुछ नहीं बताया। स्टाफ ने मोबाइल नंबर दिया, लेकिन उस पर डॉ. जैन से संपर्क नहीं हो सका। रजिस्टर मांगने पर स्टाफ उपलब्ध नहीं करा सका। आखिरकार जांच टीम को खाली हाथ लौटना पड़ा।

          मेडिकल एजेंसी व सीएमओ दफ्तर से प्रतिबंधित दवाइयों का जखीरा जब्त

          मेडिकल एजेंसी व सीएमओ दफ्तर से प्रतिबंधित दवाइयों का जखीरा जब्त

          Medical Agency CMO office and seized a stockpile of banned drugs


          Medical Agency CMO office and seized a stockpile of banned drugs
          11/15/2014 3:51:00 AM


          बिलासपुर। अमानक और प्रतिबंधित दवाओं का निर्माण करने वाली रायपुर की कंपनी "महावर फार्मा" की सभी किस्म की दवाइयों को जब्त करने के लिए शुक्रवार को शहर में एक साथ जिला प्रशासन व पुलिस की चार अलग-अलग टीमों ने तेलीपारा के मेडिकल कॉम्पलेक्स व सीएमओ दफ्तर में छापेमारी की। मेडिकल काम्पलेक्स की थोक दवा दुकानों से भारी मात्रा में प्रतिबंधित व अमानक दवाइयां जब्त की गई। सीएमओ दफ्तर में इन दवाइयों का स्टॉक मिला। जिले के सभी स्वास्थ्य केंद्रों व उपकेंद्रों से भी दवाइयां जब्त कर ली गई।
          उधर एक टीम ने
          तिफरा के कविता फार्मास्युटिकल में छापेमारी की। महिलाओं की लगातार मौत के बाद राज्य शासन ने महावर फार्मास्युटिकल की सभी दवाइयां प्रतिबंधित कर दी हैं। सिपरो सीरीज की सभी दवाइयों को कंपनी, एजेंसी, दुकानों व अस्पतालों से तत्काल जब्त करने के आदेश दिए हैं। इसके लिए गुरूवार रात से ही जब्ती की कार्रवाई शुरू कर दी गई थी।
          आज सुबह अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी नीलकंठ टेकाम के नेतृत्व में जिला प्रशासन, फुड एंड ड्रग सेफ्टी कंट्रोल निरीक्षक व पुलिस की संयुक्त टीम ने कई स्थानों पर छापेमारी की। तेलीपारा स्थित मेडिकल काम्पलेक्स में लगभग दो सौ दवा दुकानें (एजेंसीज) हैं। सभी दुकानों में जांच की गई। पंकज मेडिको से प्रतिबंधित कंपनी की एक काटून दवाइयां जब्त की गई हैं।
          जिले में जांच के लिए 15 टीमें गठित
          28 हजार टेबलेट महावर फार्मा में निर्मित जब्त किए
          38 संभाग के स्थानों पर प्रतिबंधित फर्म की दवाइयों की आपूर्ति की गई
          19,980 टेबलेट बिल्हा की दुकानों से बरामद हुई
          दो संभाग में आपूर्ति, दवाइयां वापस मंगाने के निर्देश
          शहर में पंकज मेडिको नामक एजेंसी प्रतिबंधित कंपनी महावर फार्मा का स्टॉकिस्ट है। इस कंपनी के सभी किस्म की दवाइयों की आपूर्ति इसी एजेंसी के जरिए शहर की दुकानों के अलावा तखतपुर, गनियारी, पेंड्रा, मुंगेली, गनियारी, जांजगीर-चांपा जिला, कोरबा जिला, सरगुजा जिले में की गई है। फर्म के संचालक को मार्केट से प्रतिबंधित दवाइयां वापस मंगाने के निर्देश दिए हैं।
          दवा दुकानों में भी हुई जांच
          एसडीएम, तहसीलदारों की तीन अलग-अलग टीमों ने शहर के जरहाभाठा, सरकंडा, सिम्स के आसपास दवा दुकानों की जांच की गई। कुछ स्थानों से प्रतिबंधित दवाइयां जब्त की गई हैं।
          शहर के थोक व फुटकर दवा दुकानों में चार टीमों ने छापेमारी की है। मेडिकल काम्पलेक्स के पंकज मेडिको से प्रतिबंधित दवाइयां जब्त की गई हैं। इसके अलावा कई स्थानों पर दवाइयां जब्त की गई। सरकारी अस्पतालों से प्रतिबंधित दवाइयां वापस मंगा ली गई है।
          नीलकंठ टेकाम, एडीएम, बिलासपुर
          कविता फार्मास्युटिकल का संचालक हिरासत में
          एसडीएम क्यू खान के नेतृत्व में पुलिस ने शुक्रवार की सुबह तिफरा औद्योगिक क्षेत्र के कविता फार्मास्यूटिकल्स में छापेमारी की। पुलिस ने लाइसेंस व दस्तावेज जब्त कर फैक्ट्री को सील कर दिया है। फैक्ट्री संचालक राजेश खरे को हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है। संचालक राजेश खरे को हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है।
          एक दिन पहले लौट आई थी टीम
          इससे पहले गुरूवार की शाम आईजी के आदेश पर एसपी के नेतृत्व में एक जांच टीम कविता फार्मास्यूटिकल्स पर छापा मारने पहुंची थी।
          जांच के लिए पुलिस की पांच सदस्यीय टीम गठित
          नसबंदी कांड की जांच के लिए एसपी ने पांच सदस्यीय टीम बनाई है। इसमें एएसपी सिटी प्रशांत कतलम, कोतवाली टीआई अशीष अरोरा, सिविल लाइन टीआई सुरेश ध्रुव, तारबाहर टीआई नसर सिद्दीकी, व चकरभाठा टीआई एसएन शुक्ला को शामिल किया गया है। यह टीम मर्ग की जांच व दोषी लोगों के खिलाफ कार्रवाई करेगी। नसबंदी कांड में 15 महिलाओं की मौत हो चुकी है। जहरीली दवा सिप्रोसिन 500 खाने से एक युवक की जान भी जा चुकी है। सभी मामलों में पुलिस ने मर्ग कायम कर लिया है। नसबंदी कांड से संबंधित अन्य आपराधिक मामले भी दर्ज किए गए हैं।
          जांच के लिए एएसपी सिटी प्रशांत कतलम के नेतृत्व में पांच सदस्यीय टीम बनाई गई है।
          बीएन मीणा, एसपी
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          Friday, November 14, 2014

          शांति का रास्ता ही दूसरा है

          शांति का रास्ता ही दूसरा है


          तारीख सात अक्टूबर को छत्तीसगढ़ के दंतेवाडा जिले के बुरगुम गाँव में पुलिस और अर्ध सैनिक बल के जवान आये .
          आदिवासियों की पिटाई करी .
          सिपाहियों ने घरों में छुपी हुई महिलाओं के गहने खींच लिए
          सिपाहियों ने आदिवासियों द्वारा घर में महुआ, बकरा बेच कर बचाए हुए रूपये लूट लिए .
          सिपाहियों ने महिलाओं और युवकों की बुरी तरह पिटाई करी
          सिपाही जाते जाते आदिवासियों के मुर्गे भी लूट कर ले गए .
          आपको शायद यह सब सामान्य लगता होगा ?
          लेकिन दिल्ली में या आपके शहर में
          आपके घर में घुस कर अगर पुलिस आपकी पत्नी या आपकी बहन के कान से सोने के जेवर खींच ले
          ओर पुलिस की पिटाई से आपकी बहन की नाक से खून निकलने लगे .
          उसके बाद आपको भी बंदूक के कुंदे से पेट में मारा जाय
          इसके बाद पुलिस आपसे कहे कि मुहल्ला छोड़ कर चले जाओ नहीं तो फिर से तुम्हारा यही हाल करेंगे क्योंकि तुम्हारे घर पर अम्बानी साहब को कब्ज़ा करना है
          तब शायद यह एक खबर बनेगी
          लेकिन जब यही सब आदिवासियों के साथ इसी हफ्ते हुआ है तब यह भयानक घटना कोई खबर ही नहीं बनी .
          मुझे गाँव वालों के लगातार फोन आ रहे हैं .
          गाँव वाले दिल्ली तक आकर अपनी बात मीडिया और अदालत को सुनाना चाहते हैं .
          लेकिन आदिवासियों की बातें सुनना ही कौन चाहता है ?
          क्या आज़ादी के समय किसी ने यह कल्पना भी करी होगी कि एक दिन भारत के लोग अपने एशो आराम के लिए अपने ही देशवासियों को मारेंगे ?
          और इस मार काट को विकास के लिए ज़रूरी मान लिया जाएगा ?
          लेकिन यही अंदरूनी साम्राज्यवाद है .
          क्योंकि जैसे अँगरेज़ अपने एशो आराम के लिए दूसरे देशों को लूटते थे और उन पर हमला करते थे
          ठीक वैसे ही हम भी अपने ही देश के गाँव और जंगलों को लूटने के लिए अपने सिपाहियों का इस्तेमाल कर रहे हैं .
          आपकी इस लूट से सिर्फ युद्ध निकलेगा .
          इस लूट और आपके हमलों के जारी रहते हुए आप शांति की उम्मीद कर ही नही सकते .
          आपसे अगर कोई सरकार कहे कि वह और ज़्यादा सिपाही भेज कर आदिवासी इलाकों में शांती करवा देगी तो उस सरकार पर भरोसा मत कीजियेगा .
          क्योंकि सिपाहियों के दम पर कभी शांति आ ही नहीं सकती .
          शांति का रास्ता ही दूसरा है .

          gramsabha se chhina bhumi ka adhikar

          ऐसे हुई रेखा की मौत...

          ऐसे हुई रेखा की मौत...


          छत्तीसगढ़ का पीड़ित परिवार
          "ऑपरेशन से लौटने के बाद रात में गोली खाते ही रेखा को उल्टी शुरू हो गई. फिर वह कहने लगी मैं नहीं बचूंगी अम्मा, मैं नहीं बचूंगी. मुझे बचा लो अम्मा. मुझे अस्पताल ले चलो अम्मा. मेरे बच्चे को मेरी गोद में दे दो अम्मा. मुझे उससे थोड़ी देर बात कर लेने दो अम्मा. अपने चार महीने के बच्चे को उसने थोड़ी देर अपने कलेजे से चिपकाया और फिर मुझे देकर कहा कि इसे ठीक से संभालना, मैं ठीक होकर लौटूंगी दीदी."
          अपनी छोटी बहन के बारे में यह सब बताते हुये अंजनी फफक-फफक कर रोना शुरू कर देती हैं और अपनी बहन के चार महीने के बेटे को निहारने लगती हैं.

          सरकारी शिविर में नसबंदी के बाद जान गंवा चुकी महिला के परिवार की दास्तां

          छत्तीसगढ़ का पीड़ित परिवार
          बिलासपुर शहर से कोई 17 किलोमीटर दूर अमसेना गांव की सड़क से गुजरते हुए जिस घर से रोने की आवाज़ें आ रही हैं, उस घर में सप्ताह भर पहले तक खुशी और चहल-पहल का माहौल था. घर की सभी चार बेटियां अपने ससुराल से घर आई थीं.

          तबीयत बिगड़ी

          लेकिन शनिवार को 22 साल की रेखा का बिलासपुर के पेंडारी में नसबंदी का ऑपरेशन हुआ और उसके बाद उनकी तबीयत बिगड़ी, उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया और उसके बाद फिर कभी वो इस घर में लौट नहीं सकीं.
          छत्तीसगढ़ का पीड़ित परिवार
          छत्तीसगढ़ में सरकारी नसबंदी शिविरों में कई महिलाओं की मौत हुई है
          इस हादसे में अब तक 15 महिलाओं की मौत हो चुकी है.
          रेखा की मौत के बाद घर में शोक का माहौल है. रेखा के दो छोटे-छोटे बच्चे हैं, जिनमें से एक बच्चा महज 4 महीने का है.
          उनकी बड़ी बहन अंजनी बताती हैं, "मैंने भी तीन साल पहले नसबंदी का ऑपरेशन करवाया था लेकिन मुझे आज तक कोई परेशानी नहीं हुई. भगवान जाने मेरी बहन के साथ ऐसा कैसे हो गया?"

          बहन का डर

          गांव के पास ही नसबंदी शिविर की बात सुनकर रेखा मायके आई थी और कहा था कि दो ही बच्चों में नसबंदी करवाउंगी क्योंकि ज्यादा बड़ा परिवार ठीक नहीं है. लेकिन हादसा ऐसा हुआ कि अपने परिवार को संभालने वाली रेखा ही नहीं रहीं.
          छत्तीसगढ़ का पीड़ित परिवार
          रेखा जिस दिन नसबंदी के ऑपरेशन के लिए गईं, उनके साथ ही उनकी एक और बड़ी बहन नंदिनी भी ऑपरेशन कराने के लिए जाने वाली थीं. लेकिन घर में दादी ने ही कहा कि ऑपरेशन के बाद एक साथ दोनों की देखभाल करनी मुश्किल होगी. इसलिए नंदिनी नाराज भी हो गईं. लेकिन अपनी बहन को खो देने के बाद वह डरी हुई हैं.
          रेखा कहती हैं, "मैं तो अभी नसबंदी का ऑपरेशन नहीं करवाउंगी. मेरी बहन के साथ हुए हादसे के बाद डर गई हूं. बहन का तो यह हाल हुआ, कौन जाने मेरा क्या होगा!"
          रेखा की मां नहीं हैं और घर की मुखिया दादी ही हैं, जिनके साथ वह नसबंदी शिविर गई थीं.

          नब्ज़ थमी

          शिविर से लौटने के बाद क्या हुआ?
          छत्तीसगढ़ का पीड़ित परिवार
          उनकी दादी बताती हैं, "शनिवार की रात को लौटे तो टोस्ट और लाल चाय के साथ दवाई देने के लिए कहा था. रात 10 बजे तक तो सब कुछ ठीक रहा, रात 12 बजे के आस-पास उल्टी शुरू हो गई. अस्पताल ले गए, दवा-पानी शुरू हुआ. फिर उसे एक निजी अस्पताल में ले जाने के लिये एंबुलेंस में डाला गया. डॉक्टर ने उसकी नब्ज टटोली, लेकिन कुछ समझ नहीं आया. मैंने डॉक्टर से पूछा क्या हुआ? फिर मैंने देखा, रेखा की नब्ज़ नहीं चल रही थी. वो खत्म हो गई थी."
          अब रेखा के बच्चों को पालने का जिम्मा भी रेखा की दादी पर ही है.

          सरकार से उम्मीद

          वह कहती हैं, "मेरी बच्ची भी गई और अब ज़िंदगी भी जा रही है. बच्चों की घंटी भी मेरे ऊपर बंध गई है. कौन करेगा इनके लिए कुछ... मैं सरकार से चाहती हूँ कि इन दोनों बच्चों के लालन-पालन की व्यवस्था करे."
          नसंबदी पीड़ित
          घर की बातचीत अब रेखा पर ही केंद्रित है. पड़ोस की महिलाएं दुख बंटा रही हैं...और सबकी चिंता में सबसे अधिक शामिल हैं रेखा के दोनों बच्चे, जिन्हें पता भी नहीं है कि उनकी मां अब इस दुनिया में नहीं रही.
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          नसबंदी: ड्रग कंपनी के दो मालिक गिरफ़्तार

          नसबंदी: ड्रग कंपनी के दो मालिक गिरफ़्तार

          छत्तीसगढ़ में नसबंदी के बाद महिलाओं की मौत के मामले में पुलिस ने ड्रग कंपनी के दो मालिकों को गिरफ़्तार किया है.
          पुलिस ने दवा कंपनी मेसर्स महावर फार्मा प्राइवेट लिमिटेड के मालिकों को गिरफ्तार किया है. दोनों को सात दिन के लिए पुलिस हिरासत में भेज दिया गया है.
          छत्तीसगढ़ के खाद्य और औषधि विभाग ने भी रायपुर की कई मेडिकल एजेंसियों पर छापेमारी की कार्रवाई की है और बड़ी मात्रा में दवाइयां जब्त की हैं.
          रायपुर के आईजी जीपी सिंह ने बीबीसी को बताया, ''महावर फार्मा के रायपुर स्थित खमारडी की फ़ैक्ट्री में छापा मारा गया था. उसके बाद रमेश महावर और सुमीत महावर को गिरफ़्तार किया गया. ये दोनों पिता-पुत्र हैं.''
          छत्तीसगढ़, विरोध प्रदर्शन करती महिलाएं
          इस मामले में दवाओं के बारे में संदेह व्यक्त किया गया है और सरकार छह दवाओं पर प्रतिबंध लगा चुकी है.
          ये गिरफ़्तारियां नसबंदी की सर्जरी के बाद 15 महिलाओं की मौत के सिलसिले में की गई हैं.
          राज्य सरकार ने मामले की न्यायिक जाँच का आदेश दिया है. सेवानिवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश अनिता झा को जांच का जिम्मा सौंपा गया है, जो तीन महीने के भीतर जांच रिपोर्ट पेश करेंगी.
          इनके अलावा कई महिलाएं अभी अस्पताल में भर्ती हैं और उनके रक्तचाप और उल्टी आदि परेशानियों का इलाज चल रहा है.

          डॉक्टर गिरफ़्तार

          इस हफ़्ते की शुरुआत में इस मामले में एक डॉक्टर को गिरफ़्तार किया गया था, जिन पर ऑपरेशनों के दौरान लापरवाही बरतने के आरोप हैं.
          डॉ आरके गुप्ता को गिरफ़्तार किया गया था और इसके बाद उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया है.
          ये ऑपरेशन राज्य में चल रहे सरकारी नसबंदी अभियान के दौरान किए गए थे जो देश की आबादी को नियंत्रित करने के उद्देश्य से चलाया जा रहा है.
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          PUCL CONDEMNS STERILIZATION DEATHS AND CALLS IT A FORM OF MEDICAL HOMICIDE.

          CHHATTISGARH LOK SWATANTRYA SANGATHAN
          (PEOPLES UNION FOR CIVIL LIBERTIES, CHHATTISGARH)

                                                                                                                                          Dated 14th November 2014

          PUCL CONDEMNS STERILIZATION DEATHS AND CALLS IT A FORM OF MEDICAL HOMICIDE.
          The People’s Union for Civil Liberties (PUCL) Chhattisgarh expresses its grief and outrage at the deaths of so many young women as the outcome of laproscopic sterilization camps in Bilaspur district in the past week. So far 13 women have died as a consequence of the camp held at Nemichand Jain Hospital at Takhatpur, and a woman of the Primitive Tribal Baiga group as a result of the camp at Gaurela. Dozens of women are ill to the point of risk to life. Almost all were from BPL families.
          In the first incident an experienced surgeon who had been honoured earlier this year for having performed enormous numbers of laparoscopic sterilization operations, singlehandedly performed 83 operations in a five hour period with a single laproscope – a circumstance which by itself establishes that adequate aseptic precautions would not and indeed could not have been effected. The camp at Takhatpur was conducted in a private charitable hospital which had remained closed for a year where the physical infrastructure was absolutely abysmal.
          These circumstances are routine and they are replicated in “family planning” camps all across the country, in direct and deliberate contravention of the  Central Government  guidelines formulated in response to Supreme Court orders of 2005 (Ramakant Rai vs Govt. Of India) and 2012 (Devika Biswas vs Govt. Of India), that direct that a medical team can conduct a maximum of 30 operations in a day with three separate laproscopes, and that one doctor cannot do more than 10 sterlisations in a day.  The guidelines also state that all sterilisation camps must be organised in established government facilities.
          Serious and substantial doubts have been raised about the quality of medication used in these camps. Ironically the Chhattisgarh State Human Rights Commission in their inspections in the year 2009-2010 had recorded that expired drugs, fungus-ridden drugs, and untested drugs manufactured at local facilities were found in the stores and operation theatres of District Hospitals at Durg, Bilaspur, Kondagaon and Rajnandgaon. In most of the cases little follow up action had been taken by the government. Despite the fact that the Purchase Committee for the drugs was headed by Health Minister Amar Agrawal, the Government has refused to accept any liability for the tragedy.  
          So far one doctor has been arrested, however, as per newspaper reports, the private local manufacturers in Raipur who were supplying the drugs used in the camps, had already destroyed a significant part of their stocks prior to raids by the Special Investigation Team of the Police.
          While the State Government has announced a Judicial Enquiry by District Judge Anita Jha, it does not inspire confidence that another Judicial Enquiry headed by the same Judge into the Fake Encounter of a minor adivasi girl Meena Khalkho has not made any progress since its announcement in June 2012.
          Target based coercive female sterilization has had serious consequences all over the country, and in the case of malnutritioned and routinely anaemic women of poor families, fatal ones. Yet the State has continued and rewarded such a policy. In the case of the Baiga tribes where permission is required to be taken from the Collector prior to conducting sterilization, the same was not taken. Perhaps following the procedure could have ensured that the Baiga women could have been provided safer medical conditions.
          The State of Chhattisgarh has been seeing a series of medical catastrophes – blindness and even deaths of patients after cataract operation camps in 2011, the scandal of a large number of unnecessary hysterectomies only to extract “smart card” payments, a large number of malaria deaths, and recently a number of jaundice deaths in Raipur and other cities owing to contamination of drinking water by sewage.
          The High Level Expert Group of the Planning Commission on Universalization of Health Care in 2013 clearly recommended that all citizens should be able to access equitably tax based, publicly provisioned health facilities and programmes of adequate quality. In our country this is the only way forward to avoid major epidemiological and social tragedies like the present. The Chhattisgarh PUCL further notes with concern that the present development model being pursued by the State Government is resulting in impoverishing a large section of the people who are easy victims of such incidents
          The Chhattisgarh PUCL demands:-
          1.   A credible Judical Enquiry should be conducted expeditiously into the present incidents preferably by a Retired Supreme Court Judge and the results made public at the earliest.
          2.   The said Enquiry should establish whether the norms laid down repeatedly by the Supreme Court have been violated and if so how.
          3.   All those responsible for the manufacture, quality control, and supply of spurious drugs should be identified and brought to justice.
          4.   The Chhattisgarh Government should immediately consult medical experts at the highest level to lay down stringent guidelines regarding the conduct of various types of health camps.
          5.   Targeted approach for female sterilization must be done away with.
          6.   Steps should be taken toward the implementation of the recommendations of the High Level Expert Group on Universalization of Health Care.

          Dr. Lakhan Singh                                                Adv. Sudha Bharadwaj
          (President)                                                            (General Secretary)
                                                                                      09926603877
                                         “Janhit”, Near Indu   Medical, Ring Road No.2, Maharana Pratap Chowk, Bilaspur,                                                         Chhattisgarh

          Machil Fake Encounter: Five Armymen Handed Life Sentence Srinagar | Nov 13, 2014

          Machil Fake Encounter: Five Armymen Handed Life Sentence
          Srinagar | Nov 13, 2014


          Over four years after the Machil fake encounter that fuelled widespread unrest in Kashmir Valley, five army men including two officers were sentenced to life for gunning down three youths and labelling them as militants, a decision welcomed by Jammu and Kashmir Chief Minister Omar Abdullah today as a "watershed moment".

          Official sources said that the five army men including the then Col D K Pathania, who was the Commanding Officer, and Captain Upendera were held guilty by the Summary General Court Martial (SGCM) which sentenced them to life imprisonment.

          The others held guilty were Havaldar Devinder, Lance Naik Lakhmi and Lance Naik Arun Kumar. Another accused, a Subedar, has been let off by the SGCM.

          "The sentencing by the SGCM is pending confirmation from the confirmation authority after which the action would be considered legally complete," an army official said.

          "This is indeed a very welcome step," Chief Minister Omar Abdullah tweeted. "This is a watershed moment. No one in Kashmir ever believed that justice would be done in such cases. Faith in institutions disappeared.

          "I hope that we never see such #Machil fake encounter type of incidents ever again and let this serve as a warning to those tempted to try," he said.

          The incident came to light on April 30, 2010 when bodies of three youths were shown by Army as militants who were trying to sneak into the Valley from higher reaches of Machil in North Kashmir with arms and ammunition.

          It had later claimed that they were Pakistani terrorists.

          However, it was established by the Jammu and Kashmir police that the unemployed youths -- Mohamad Shafi, Shehzad Ahmed and Riyaz Ahmed -- were residents of Nadihal in Baramulla district and apparently misled on the pretext of giving jobs and later shot dead.

          Police had charge sheeted nine people in July 2010 including six Army personnel but had to hand over the probe to the Army after it was assured of holding a detailed inquiry into the incident.

          Following the alleged fake encounter, a Territorial Army jawan and two others were arrested by police but the incident led to widespread unrest in the entire Kashmir Valley which left 123 people dead.

          The police charge sheet had named Col Pathania, Captain Upender and four others of the unit besides a Territorial Army jawan and two others for allegedly conspiring and kidnapping three youths on the pretext of giving them jobs and later killing them in the higher reaches of Kupwara claiming they were terrorists.

          The charge sheet was filed in the court of Chief Judicial Magistrate in Sopore.

          Police had arrested three persons Abbas Shah-- the Territorial Army jawan, Basharat Lone and Abdul Hamid Bhat-for alleged involvement in the encounter.

          These three people will now stand trial once the final report of the Army will be submitted before the Chief Judicial Magistrate in Sopore.

          Meanwhile, Amnesty International in a statement aid the decision was a "welcome measure" and "turning point".

          विशेषज्ञों के अनुसार, महिलाओं की मौत के लिए दवा जिम्मेदार?

          विशेषज्ञों के अनुसार, महिलाओं की मौत के लिए दवा जिम्मेदार?


          रायपुर (निप्र)। नसंबदी ऑपरेशन के बाद दर्जनभर महिलाओं की मौत से सरकारी दवा की गुणवत्ता पर सवाल उठने लगे हैं। विशेषज्ञों की राय में सर्जिकल इन्फेक्शन से इतनी जल्दी मौत नहीं हो सकती। इन मौतों के लिए सर्जिकल से ज्यादा मेडिसिन व अन्य कारण जिम्मेदार हो सकते हैं। नईदुनिया ने इस मामले में राजधानी के कई विशेषज्ञ डॉक्टरों ने बात की। हालांकि सरकारी मामला होने की वजह से कई डॉक्टर्स ने नाम न छापने की शर्त के साथ बात की, लेकिन अधिकांश ने दवा पर शक जाहिर किया है।
          राजधानी के एनेस्थीसिया एक्सपर्ट डॉ. विनोद लालवानी कहते हैं कि बिलासपुर घटना के दौरान क्या परिस्थितियां थीं, यह हम नहीं जानते, इसलिए उस पर कुछ कहना कठिन है, लेकिन सामान्य तौर पर इंस्ट्रूमेंटल इन्फेक्शन इतनी जल्दी नहीं फैलता। ऑपरेशन के उपकरणों में गड़बड़ी की वजह से होने वाला इन्फेक्शन कम से कम तीन दिन बाद होता है, लेकिन उसमें भी मौत इतनी जल्दी नहीं होती।
          दवा के इन्फेक्शन का असर ही जल्दी होता और मौत की आशंका बनी रहती है। वरिष्ठ सर्जन डॉ. ललित शाह की भी राय ऐसी ही है। उन्होंने कहा कि घटना के संबंध में एक बात यह कही जा रही है कि नीडल की वजह से इन्फेक्शन हुआ, लेकिन नीडल की वजह से अगर इन्फेक्शन होता तो वह चमड़ी तक सीमित रहता, इतनी जल्दी मौत नहीं होती।
          डॉ. शाह ने कहा कि दवा का भी इन्फेक्शन हो सकता है। वैसे भी हम भले ही जो कहें, लेकिन जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं की गुणवत्ता में थोड़ा अंतर तो है। उन्होंने कहा कि इस मामले में जब तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट या कोई स्वतंत्र रिपोर्ट नहीं आ जाती, कुछ भी स्पष्ट रूप से कहना कठिन है।
          इसी तरह शहर के एक बड़े निजी अस्पताल के संचालक डॉक्टर सहित कई अन्य डॉक्टरों की भी राय यही है कि ऑपरेशन के बाद हुई महिलाओं की मौत के लिए तुरंत कोई कारण बताना बहुत जल्दबाजी होगी, लेकिन यह साफ है कि सर्जिकल इन्फेक्शन से इतनी जल्दी मौत नहीं हो सकती। इस मामले की स्वतंत्र जांच होनी चाहिए।
          कोई एक कारण नहीं हो सकता
          डॉ. राकेश गुप्ता के अनुसार इतनी बड़ी घटना के पीछे कोई एक कारण नहीं हो सकता। इस मामले में लापरवाही की बात से इंकार नहीं किया जा सकता। यह पूरी तरह अनुशासन की कमी और प्रशासनिक लापरवाही है। इस घटना में अलग- अलग स्तर पर अलग- अलग लोगों ने गलतियां की हैं, इसलिए किसी एक व्यक्ति को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।

          स्टॉक में सभी दवाएं, तो क्या कमीशनखोरी के लिए हुई खरीदी?

          स्टॉक में सभी दवाएं, तो क्या कमीशनखोरी के लिए हुई खरीदी?


          रायपुर (निप्र)। पेंडारी नसबंदी कांड में इस्तेमाल दवाओं की जांच जारी है। 6 दवाओं की बिक्री पर शासन ने रोक लगा दी है, वहीं 2 दवाएं जांच के लिए कोलकाता सेंट्रल लेबोरेट्री भेजी गई हैं। रिपोर्ट आने से ही साफ हो सकेगा कि मौत का कारण दवा है या फिर कुछ और...। लेकिन 'नईदुनिया' पड़ताल में एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है।
          छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कॉर्पोरेशन (सीजीएमएससी) सभी दवाएं उपलब्ध हैं फिर भी स्थानीय खरीदी की गई। शासन ने (सीजीएमएससी) को दवाओं की खरीदी के लिए अधिकृत किया है तो फिर क्यों संस्था प्रमुख (मेडिकल कॉलेज अस्पताल अधीक्षक, सभी जिला सीएमएचओ) दवाओं की स्थानीय खरीदी करते हैं? यह सवाल इसलिए अहम है क्योंकि पेंडारी नसबंदी कैंप के लिए दवाओं की स्थानीय खरीदी हुई थी। दवाएं गुणवत्ताहीन थी, यही संदेह जताया जा रहा है।
          पड़ताल के दौरान सीजीएमएससी की वेबसाइट पर जाकर दवाओं का स्टॉक देखा गया तो सीजीएमएससी द्वारा प्रदेश के सभी 9 वेयर हाउस में पर्याप्त मात्रा में दवाएं उपलब्ध हैं। वे दवाएं भी भारी मात्रा में हैं, जिसकी स्थानीय खरीदी बिलासपुर सीएमएचओ कार्यालय ने टेंडर बुलाकर की थी।
          तो क्या यह सब कमीशनखोरी के लिए किया जा रहा है? सूत्र बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में 5 दवा निर्माता कंपनियां हैं, जो सिर्फ सरकारी सप्लाई के लिए दवाओं का निर्माण कर रही हैं। इनकी सीधी पहुंच संस्था प्रमुखों तक है। दो कंपनियां धमतरी, दो रायपुर और एक बिलासपुर में है। रायपुर मेडिकल कॉम्प्लेक्स के दवा विक्रेताओं का कहना है कि वे इन कंपनियों से दवाएं नहीं खरीदते।
          इसलिए हुआ है सीजीएमएससी का गठन-
          राज्य शासन ने 2012 में सीजीएमएससी का गठन किया, इस उद्देश्य से कि दवाओं की केंद्रीय खरीदी हो, इसका फायदा यह होगा कि पूरे प्रदेश के लिए एक साथ दवा खरीदी होगी। कमीशनखोरी और करप्शन से बचा जा सकेगा। यह संस्था दवाओं की खरीदी से पहले गुणवत्ता की जांच करेगी। सभी संस्था प्रमुख सीजीएमएससी को अपनी आवश्यकता की जानकारी भेजेंगे और वह सप्लाई करेगी। 9 जिलों में वेयर हाउस भी बनाए गए हैं। सारी खरीदी, स्टाफ ऑनलाइन वेबसाइट पर देखा जा सकता है।
          इन दवाओं पर लगा है प्रतिबंध- स्थानीय खरीदी थी
          टैबलेट-आईबुप्रोफेन 400 एमजी, बैच नम्बर टीटी-450413 निर्माता- मेसर्स टेक्नीकल लैब एण्ड फार्मा प्रा.लिमि. हरिद्वार। टैबलेट सिप्रोसीन 500 एमजी, बैच नम्बर 14101सीडी, निर्माता- मेसर्स महावर फार्मा प्रा.लिमि. खम्हारडीह रायपुर। इंजेक्शन लिग्नोकेन एचसीएल आईपी बैच नम्बर-आर.एल.108, निर्माता-मेसर्स रिगेन लेबोरेटरीज हिसार। इंजेक्शन लिग्नोकेन एचसीएल आईपी बैच नम्बर- आरएल 107, निर्माता- मेसर्स रिगेन लेबोरेटरीज हिसार। एब्जारबेंट कॉटन वुल आईपी बैच नम्बर- 0033, निर्माता-मेसर्स हेम्पटन इंडस्ट्रीज, संजय नगर रायपुर । जिलोन लोशन, बैच नम्बर जेई-179, निर्माता-मेसर्स जी. फार्मा 323, कलानी नगर, इंदौर (मध्यप्रदेश)।
          'नईदुनिया' पड़ताल, सीजीएमएससी स्टॉक में हैं उपलब्ध-
          टैबलेट आईबुप्रोफेन 400एमजी- प्रदेश में 41812 का स्टॉक, बिलासपुर में 3233 टैबलेट उपलब्ध।
          टैबलेट सिप्रोसीन 500एमजी- प्रदेश में 7090 टैबलेट, बिलासपुर में 499 का स्टॉक।
          इंजेक्शन लिग्नोकेन हाईड्रोक्लोराइड 500 एमजी- प्रदेश में 23019 इंजेक्शन, 1660बिलासपुर में।
          (एब्जारबेंट कॉटन और जिलोन लोशन की खरीदी सीजीएमएससी ने नहीं की है।)
          नहीं खरीदते दवाएं
          जिन कंपनियों की दवाएं बैन की गई हैं, 99फीसदी दवा विक्रेता वे दवाइयां नहीं खरीदते। दवाओं के दो टेस्ट महत्वपूर्ण हैं क्वालिटी और टाइम, जो प्रदेश में नहीं होते हैं।
          ठाकुर राजेश्वर सिंह, अध्यक्ष, रायपुर ड्रग एवं केमिस्ट एसोसिएशन
          हमारे पास सभी दवाओं का स्टॉक है
          सीजीएमएससी के पास स्टॉक की कोई कमी नहीं है। जो दवाएं शासन ने नसबंदी कांड के बाद बैन की, वे स्थानीय खरीदी होगी, सीजीएमएससी से सप्लाई नहीं हुई है। हमारे पास वे सभी दवाएं हैं, जो बैन की गई हैं। (पूछे जाने पर की फिर स्थानीय खरीदी की जरूरत क्यों पड़ी, बोले...) मैं इस बारे में क्या कह सकता हूं।
          स्वागत साहू, जनरल मैनेजर, सीजीएमएससी