Sunday, January 17, 2016

सुकमा के कुन्ना और पेद्धापारा में फ़ोर्स ने फिर किया आदिवासी महिलाओ के साथ शारीरिक प्रताड़ना, आप कार्यकर्ता सोनी सोरी ने की पहल कमिश्नर ने दिए जाँच के आदेश.

सुकमा के कुन्ना और पेद्धापारा में फ़ोर्स ने फिर किया आदिवासी महिलाओ के साथ शारीरिक प्रताड़ना, आप कार्यकर्ता सोनी सोरी ने की पहल कमिश्नर ने दिए जाँच के आदेश.









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बीजापुर जिला के पेदागेल्लुर क्षेत्र में 40 महिलाओ के साथ यौन हिंसा एवम उत्पीड़न की जाँच की कार्यवाही प्रारम्भ भी नही हुई है और अब सुरक्षा बलों ने ऐसी ही हरकत अब सुकमा जिला के कुन्ना एवम् पेद्धा पारा में कर दी . इस बार उत्पीङन की शिकार सुकमा जिला के छिंदगढ़ ब्लाक के कुन्ना एवम् पेद्धा पारा की 6 बालिकाएं एवम् महिलायें हुई है
यह घटना 11 एवम् 12 जनवरी की है , इन महिलाओ के नाजुक अंगो के साथ न केवल हिंसक और अपमानजनक हमला किया गया बल्कि इन्हें बुरी तरह से मारा पीटा भी गया है , नक्सलियों की खोजखबर के नाम पर 6 महिलाओं और 29 पुरुषो को फोर्स पकड़ कर ले गई ,3 पुरुष अभी भी पुलिस हिरासत में है
आप नेता और सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी अपने साथियों के साथ कमिशनर से मिले और फ़ोर्स के अत्याचार की न्यायिक जाँच की मांग की एवं जिम्मेदार फ़ोर्स कर्मियों की गिरफ्तारी की भी मांग की साथ ही मुख्यमंत्री से मिलके पुरी शिकायत करने को कहा.
कमिश्नर ने पुलिस आईजी ,कलेक्टर और एस पी सुकमा से शिकायत की जाँच और उसपे तुरंत कार्यवाही करने को लिखा .
पूरी घटना को आवेदन पत्र में लिखा गया है:-
1 मुनाची कोसी पति के साथ पुलिस के सिपाही ने आलिंगन किया ,उसकी साड़ी उपर उठाई और बहुत से सिपहियों ने उसके बदन को बार बार छुआ और बुरी तरह मार पीट की गई .
2 .हड़मे पति देवा करतम को पुलिस के लोगो ने निवस्त्र किया ,कमर का धागा तोडा उपर का कपड़ा निकाल के उसे नंगा कर दिया और कई पुलिस के लोग उसपे बैठ गये ,बहुत बहुत गंदे गंदे शब्दों से उन्हें अपमानित किया.
3. करतमी पति भुइयां के साथ बुरी तरह मारपीट की गई ,सीधे हाथ में चोट आई दायें जांघ में सुजन है और पिछली पीठ में भी सुजन है
4. हड़पी पोयामी पति लखमा का ब्लाउज फाड़ दिया गया और उसे उठक बैठक लगवाई गई, उससे पुछा बच्चा पैदा क्यों नही किया और बोले की हमारे साथ सो जाओ तो बच्चा पैदा हो जायेगा .जब वो रोने लगी तो उसे कांटे वाले झाड से बुरी तरह मारा पीटा गया.
5. करतामी कोसी पिता बुधवा को पुलिस के लोगो ने निवस्त्र किया और उसके स्तन देख देख के बहुत मजाक उड़ाया. और उसे मारा पीटा भी गया.
6. पोदियामी जोगी पति गंगा को घर से घसीटते हुए घर से बहार निकाला उसके चेहरे और बदन पे बहुत चोट लगी उसके पति और बच्चे को पकड़ के गादिरास केम्प ले गये . जब उनसे कहा की उन्हें मत ले जाओ बच्चा छोटा है तो उससे कहा की स्तन से दूध निकाल के दिखाओ और तो और पुलिस के एक सिपाही ने खुद आगे बढ के पोदियामी के स्तन से दूध निचोड़ के। देखा.
इन्ही लोगो ने उसकी माला ,कान के बाले और 1500 रूपये छीन लिये.
इनके अलावा भी कई महिलाओ के साथ मारपीट और अपमानजनक व्यवहार किया .घरों से मुर्गा चावल नगदी जेवर भी लुट के ले गये.
इन लोगो ने एक ग्रनेड़ भी फेंका जिससे आग लग गई.पहले जिन लोगो को पकड़ा था उनमे से तीन लोगो को छोड़ दिया उन्हें बहुत चोट भी आई है
यह कहा गया की हमारे गाँव में मुठभेड़ के दोरान कोई सिपाही घायल हो गया था ,जब की हमारे गाँव में कोई किसी के साथ कोई मुठभेड़ ही नही हुई है.
एक पुलिस वाला एक घर में घुस गया था तो उसका पैर किसी बोरी से टकरा गया और उसकी गोली चल गई उससे वो जख्मी हो गया था ,गाँव के सब लोगो को इस घटना का पता भी है.
जो फ़ोर्स के लोग आये उनमे तीन लोगो को हम पहचानते भी है वो है 1 बदरू 2 किरण 3 कमलेश इसके अलावा को भी मिलने पे पहचान सकते है.
सोनी सोरी और आप के नेताओ ने जगदलपुर के संभागआयुक्त से मिल के शिकायत की ,जिसपे उन्होंने जाँच के लिए पुलिस आई जी ,कलेक्टर और एसपी को लिखा .










Thursday, January 7, 2016

माओवादी के नाम से दो और आदिवासी नौजवान की हत्या ,घर वालो का आरोप के मेरा बेटा नक्सली नहीं था।

माओवादी के नाम से दो   और आदिवासी नौजवान की हत्या ,घर  वालो का आरोप के मेरा बेटा नक्सली नहीं था। 



आम जीवन जीने वाले दो आदिवासी युवको को इनामी माओवादी बताते हुए पुलिस ने मंगलवार को मार डाला ,वाही एक को गिरफ्तर कर लिया।
पुलिस ने  इन्हे मुठभेड़ में मारे जाने की बात कही है , मारे गए में से एक युवक अपनी बीमार पत्नी की दवाई लेने और घरु सामान लेने बाजार गया था , जब की गिरफ्तार युवक मुर्गा लड़ाई देखने बाजार गया था। दोनों  नोजवानो के परिजनों जब शव लेने पहुंचे तब उन्होंने यह सब मिडिया को बताया ,अपनों के शव लेने उनके परिजन बुधवार की सुबह  कोंडागांव थाने पहुंचे।
मारे  गए जती राम उर्फ़ जीतराम और कुधुर हलधर उर्फ़ माद्दा बलदेव मुरिया जिन्हे पुलिस नक्सली कमाण्डर  बता रही है ,दोनों बेडमा  तुमड़ीवाल मर्दापाल के निवासी है। परिजनों ने मीडिया  को बताया की पुलिस के साथ किसी प्रकार की मुठभेड़ नहीं हुई ,उनके पुत्र सोमवार को बाजार के लिए निकले थे ,उन्हें पुलिस ने गोली मार के ह्त्या कर  दी ,
पुलिस ने कहा है की दोनों को मुठभेड़ में मार गिराया है और एक को गिरफ्तार किया गया है , मृतकों के परिजनों के साथ गिरफ्तार जय सिंह का पिता सन्तु  भी थाने पंहुचा , सन्तु ने बताया की सोमवार को तीनो लग मुर्गा  बाजार देखने के लिए गए थे तो पुलिस बहुत से और लड़को को भी पकड़ के ले गई थी  जिसमे तीनो को रख के बैंको को छोड़  दिए था। जिनमे दो को मार दिया और जय सिंह को गिरफ्तार कर लिया हैं।

जीतराम के पिता रो रो के बताते है की जीत राम सर्दियों में अपनी खेती करता है और बांकी समय बोर मशीन में जाके बहार काम करने जाता है ,इन दिनों उसकी पत्नी की बीमारी के कारन उसके लिया दवाई लेने बाजार गया था ,जब की पुलिस उसे पांच लाख का इनामी बता रही है।
कोंडागांव के पुलिस एसपी ने मिडिया को बताया की वे अभी कही दौरे  पे थे मुझे केस मालूम नहीं है ,पता करके कुछ  बता पाउँगा।

[ पत्रिका दिनाक 8 जनवरी के अनुसार ]



गणतंत्र की हिफाज़त में अवामी जुलूस *JANUARY 30, 2016*

गणतंत्र की हिफाज़त में अवामी जुलूस

*JANUARY 30, 2016*


*MANDI HOUSE TO JANTAR MANTAR, NEW DELHI*







*Call to All Secular Groups, People's Movements, mass organisations of all
Secular political parties*

This is being organised on voluntary basis by pooling resources , all
groups coming from outside will have to bear their own expenses of travel,
stay and food.

On behalf of the Organising Committee

People's March

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 We, as citizens, affirm the constitutional values of the Indian Republic.
This most diverse country, belongs equally to all persons who make it its
own, regardless of their religious faith (or for that matter, their denial
of faith), their gender, caste, class, language, physical abilities and
sexual orientation. This is the promise we had made to ourselves during the
independence movement. This is the meaning of Part IV--A of the
Constitution of India that prescribes the fundamental duties of all Indian
citizens: to respect ‘the composite culture of India, to ’develop the
scientific temper’, ’spirit of reform’ and ‘critical enquiry’ and to
‘cherish the ideas that inspired the struggle for Indian Independence.

As citizens, we are deeply concerned with the assault on the nation. All
critical voices are being dubbed as anti-national. Instead of this belief
in the Republic,  exclusions and intolerance is being propagated. This
would lead to the unmaking of the Indian Republic. This is what we are
witnessing: riots, polarisation; in the name of development, the theft of
natural resources; attack on livelihoods and workers rights;  attack on
minorities and Dalits. And worst of all, curbing of freedom, where people
are told what to write, speak, love and eat.

 It is this climate of intolerance that led to the lynching in Dadri of
Mohammad Akhlaq and the assassination of the rationalists, Prof. Kalburgi,
Dr. Narendra Dabholkar and Shri Govind Pansare. It is this same climate of
intolerance that had led to Nathuram Godse's assassination of Mahatma
Gandhi.

 We, as Citizens, must stand together in Defense of the Republic.

Wednesday, January 6, 2016

दंतेवाड़ा में प्रस्तावित रैली को पुलिस ने गांव में ही रोका , आखिर और क्या बचा है इनके पास जनतांत्रिक अधिकार


दंतेवाड़ा में प्रस्तावित रैली को पुलिस ने गांव में ही रोका , आखिर और क्या बचा है इनके पास जनतांत्रिक अधिकार 

दंतेवाडा में आदिवासियों की आयोजित रैली को पुलिस ने अपने अपने गाँव में ही रोक दिया ,हजारो लोग अपने अपने गाँव में बंधक बन गये ,पुलिस और सरकार ने अखबारो में बताया की ये सब नक्सलियों के दबाब में हो रहा था.
यदि बस्तर के आदिवासी अपनी सुरक्षा की मांग को लेके शांति पूर्वक प्रदर्शन या सभा तक नही कर सकते तो उनके पास क्या रास्ता है .
दंतेवाडा में आज आयोजित रेली में
आदिवासियों की कोई ऐसी मांग नही है जो देश द्रोह या देश विभाजन की बात करती हो ,जिसके कारण पुलिस ने इन्हें गाँव गाँव में रोका और इसे नक्सली समर्थित रेली कहा.
जरा उनका मांग पत्र देख लें.
इनकी मांग है :-
किसानो के कर्ज़ माफ़ करने ,शालाओ और स्कुलो को पूर्वत तरीके से चलाने ,आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओ को नियमित करने , खनिज और वन संपदा की लुट बंद करने और इसके लिए निगरानी समिति बनाने , आम आदिवासियों को नक्सली के नाम से गिरफ्तारी को बंद करने निर्दोष लोगो को रिहा करने ,दंतेवाडा के बालूद में हवाई पट्टी रद्द करने ,लोहांदी गुड़ा और डिलामिली में प्रस्तावित प्लांट का अनुबंध निरस्त करने , बीजापुर में महिलाओ के साथ दुराचार और मार पीट की न्यायिक जाँच , स्कुलो में शोचालय और नल कुप खोदने में राशी ने घपले की जाँच की मांग की गई है
अब क्या ये मांग करना भी नक्सली होना है .बस्तर के आदिवासियों के लिये मानो प्रजातंत्र खत्म ,पुलिस तंत्र लागू
आदिवासियों के नागरिक अधिकारों की मांग को नक्सल प्रेरित रैली की संज्ञा दी जा रही है, तानाशाह हुई सरकार
बस्तर में सैकड़ो आदिवासी अपनी जायज मांगो को लेकर शांति पूर्वक रैली की शक्ल में दंतेवाड़ा कूच कर रहे है लेकिन तानाशाह हुई सरकार आदिवासियों के नागरिक अधिकार आघोषित रूप से बस्तर से छिन लिये गये है शांति पूर्वक ढंग से बस्तर के आदिवासी खनिज सपदा,की लूट बचाने, आदिवासियों को कथित नक्सल समर्थक बता कर जेलों में ठुसने, निर्दोष आदिवासियों की मुठभेड़ के नाम पर बलि चढ़ने, धान का समर्थन मूल्य , आदि जायज मांगो को लेकर शांति पूर्वक रैली दंतेवाड़ा में होने जस रही थी, जिसे बस्तर पुलिस द्वारा यह कह कर रोक दिया गया कि यह ग्रामीण आदिवासी नक्सलियों के दबाव में आ कर रैली कर रहे है क्या अब आदिवासी अपने आधिकारो, मांगो को लेकर शांति पूर्वक रैली भी नही कर सकते ? आखिर यह आदिवासी मांग क्या रहे है ? (गोला बारूद तो नही मांग रहे है न ) आखिर अपना हक ही तो मांग रहे है जिन्हें सरकार पूरा नही कर प् रही है सरकार का यह तानाशाही रवेय्या देखिये आदिवासियों के स्वफ्रुत शांति पूर्वक रैली को नक्सल दबाव की रैली बता कर उनके सारे नागरिक आधिकार छिन लिये गये है बस्तर में अब प्रजातंत्र खत्म हो गया है पुलिस तंत्र चलता है जो आदिवासियों के नागरिक आधिकार को छिन रहे है
खबर है की आदिवासियों की रैली को दंतेवाड़ा से 48 किमी पहले समेली में ही रोक दिया गया है
निर्दोष –भोले-भाले आदिवासियों की स्वफुर्त रैली की शक्ल ले रही भीड़ से सरकार और पुलिस्सिया तंत्र मानो डर सी गई हो बस्तर पुलिस सोचती है कि ऐसे रैली अधिकतर नक्सल प्रेरित होती है ?
जानकारी के अनुसार अरनपुर और आस-पास के इलाके से बड़ी संख्या में बच्चे,बूढ़े ,महिलाये युवा आदिवासी ग्रामीण सैकड़ो की संख्या में रैली की शक्ल में कूच कर रहे है जिन्हें पुलिस द्वारा यह कह कह रोक दिया गया है की यह नक्सलियों के दबाव में रैली करने जा रहे
इन मांगों के साथ पहुंचे हैं ग्रामीण
पर्चों में किसानों का कर्ज माफ करने, आश्रम शालाओं, स्कूलों को पूर्ववत मूल स्थानों पर संचालित करने, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को शासकीय कर्मचारी घोषित करने, खनिज एवं वन संपदा की लूट को रोकने निगरानी समिति बनाने, नक्सलियों के समर्थन के आरोप में आदिवासियों को गिरफ्तार कर जेल भेजना बंद करने, दंतेवाड़ा के बालूद में हवाई पट्टी रद्द करने, लोहांडीगुड़ा और डिलमिली में प्रस्तावित मेगा स्टील प्लांट का एमयू रद्द करने, बीजापुर जिले में जवानों द्वारा नाबालिग सहित अन्य महिलाओं पर अनाचार की न्यायिक जांच करने, सुकमा के स्कूलों में शौचालय और नलकूप खनन की राशि में धांधली करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है।
http://bastarprahri.blogspot.in/2016/01/blog-post.html


Saturday, January 2, 2016

चर्च गए तो राशन बंद कर दिया जायेगा ,पंचायत का फरमान


चर्च गए तो राशन बंद कर दिया जायेगा ,पंचायत का फरमान 




छत्‍तीसगढ़ के नारायणपुर के केरलापाल गांव के ग्राम पटेल, सरपंच, सहित चार लोगों ने तुगलकी फरमान जारी किया है. फरमान में मुख्यमंत्री रमन सिंह के आदेश का हवाला देकर चर्च जाने वाले ग्रामीणों को राशन नहीं देने का फरमान पंचायत ने जारी किया है.
साथ ही पंचायत ने स्‍पष्‍ट लहजों में चर्च जाने वाले परिवारों को हैंडपंप से पानी और मनरेगा के तहत काम न करने की चेतावनी दी है. ऐसे में राशन न मिलने से दो परिवार के सदस्यों ने मुख्यालय आकर कलेक्टर से राशन के लिए गुहार लगाई है.
कलेक्टर ने इस मामले की जांच के आदेश खाद्य निरीक्षक को दिए हैं. हालांकि, अधिकारी इस पूरे मामले में कैमरे के सामने कुछ भी कहने से बचते नजर आ रहे हैं.

आज पत्रकारों पे नक्सली समर्थक कहा गया ,कल तक यही आरोप जन संघटनो

आज पत्रकारों पे नक्सली समर्थक कहा गया ,कल तक यही आरोप जन संघटनो ,



उपरोक्त पोस्टर में सुकमा बोल रहा हूँ नमक वाट्सअप ग्रुप में पुलिस के किन्ही ग्रुप ने पहली बार पोस्ट किया गए थे 


आज पत्रकारों पे नक्सली समर्थक कहा गया ,कल तक यही आरोप जन संघटनो ,एन जी ओ ,स्वास्थ संघटन और आप पार्टी और सीपीआई पार्टी से लेके तमाम मानवाधिकार संघटन को बार बार नक्सली समर्थक होने के लगाये गये .
बस्तर क्षेत्र के निरीह गरीब और वंचित आदिवासी रोज रोज इन आरोपों के कारण प्रताड़ना भुगत रहे है .
इन सबके बारे में भी ठीक यही तर्क पेश किये गये जो संतोष या समारू के खिलाफ कहा गया ,ऐसे ही खूब कार्टून छापे गए और भी बहुत बहुत भुगता है इन लोगो ने .
ये सब बार बार और पूरी इमानदारी से कहते रहे की हमारा माओ वादियों से कोई लेना देना नही है ,और था भी नहीं .
हमने उनके दर्द को सुना समझा और भुगता है .
आप भी इनके बारे में निर्णय करते वक्त एक बार नही कई बार सोचिये की ये भी निर्दोष हो सकते है .

यह वही रक्त है, जो बहता है और एक माँ पैदा होती है

यह वही रक्त है, जो बहता है और एक माँ पैदा होती है 




सदमें मे हूँ, लखनऊ ऐसा तो न था, ये कौन लोग थे ? एक बेटा ऐसी हरकत तो नहीं कर सकता, तो क्या ये नराधम किसी माँ की औलाद नहीं है, तो किस कोख के जाये है ये ?
लखनऊ के मोहनलालगंज जहाँ यह नृशंश वारदात हुई, बेशक वह जगह जरा सुनसान हैं, पर लखनऊ वालों के मन इतनें भी सूनें तो नहीं थे कि दर्द से कराहती, चीखँती एक औरत की गुहार उस सूनेपन की भेंट चढ़ जाए ।
कभी एक औरत के बिखरे खूँन को देखा था, रक्तरंजित शरीर और सद्ध-प्रसूत बगल में पड़ा बच्चा। अस्पताल लाते रास्ते में ही हो गया था, सबकुछ ! पता नहीं क्यों, जबकि उसके घर वाले राहत की साँसे भर रहे थे, मै रो पड़ा था ।
यह फैला हुआ रक्त मुझे उस सद्ध-प्रसूता की याद दिला गया। इस रक्त से गुजरकर ही पैदा हुए होंगे वे नराधम भी। यह रक्त उनकी माँ का रक्त है, काश उनकी पैैदाइस वाला रक्त और पैदा हुआ भ्रूण किसी नाली में बह गया होता ।
इन तस्वीरों से मुँह न चुराइये, हमारे मुँह चुरानें की हकीकत हैं यह तस्वीरें । अब तो जो है, उसे जस का तस, बिना ब्लर किए स्वीकारिये, शेयर कीजिए

बीजापुर में फोर्स द्वारा आदिवासी महिलाओ से दुराचार और मारपीट और हत्या पे मानव अधिकार आयोग ने छत्तीसगढ़ डीजीपी को फटकार लगाते हुए चार सप्ताह में मांगी रिपोर्ट .


बीजापुर में फोर्स द्वारा आदिवासी महिलाओ से दुराचार और मारपीट और हत्या पे मानव अधिकार आयोग ने छत्तीसगढ़ डीजीपी को फटकार लगाते हुए चार सप्ताह में मांगी रिपोर्ट .
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राष्ट्रिय मानव अधिकार आयोग ने पुलिस महानिरीक्षक छत्तीसगढ़ से बीजापुर जिले के ग्राम चिन्नागेलुर ,पेदमा पल्ली ,बुडी गेचोर ,और गुडेन में आदिवासी महिलाओ के साथ फ़ोर्स द्वारा किये गये बलात्कार ,मारपीट और हत्या के मामले में कडी फटकार लगाते हुए विस्त्रत रिपोर्ट र्मांगी है .और चार सप्ताह में मामले का पूरा ब्यौरा देने को आदेश दिया है .
लगभग डेढ़ महीने पहले इन ग्रामो में सीआरपी और पुलिस द्वारा 40 महिलाओ के साथ मारपीट बलात्कार और अन्य तरीको से प्रताड़ित किया गया था , जिसमे गर्भवती महिला के साथ मारपीट और रेप किया गया जिसमे एक महिला की बाद में मौत हो गई थी .
आयोग ने शिकायत के बाद भी कोई कार्यवाही न करने और ज्ञात सुरक्षा कर्मियों के खिलाफ एफ आई आर दर्ज न करने पे नाराजगी जताई है .
महिला संघटनो ने घटना के बाद तुरंत स्थल पे जाके जाँच की थी और रिपोर्ट को प्रेस तथा विभिन्न स्थानो में शिकायत के रूप में भेजी थी , जाँच में पाया गया था की 45 दिन पहले बीजापुर के ग्राम चिन्ना गेलुर ,पेद्दा गेलुर,पेदमापल्ली,बुडगी चेरू और गुधेन में 13 साल की नाबालिग और गर्भवती महिला समेत 40 महिलाओ के साथ अपमानजनक व्यवहार किया गया .चोथे दिन उसमे से एक महिला का मौत हो गयी थी .
परिवार के लोग और जन संघटन के लोगो की शिकायत पे खानापूर्ति के लिए प्राथमिकी दर्ज कर ली गई और बाद में पुरे मामले को ठन्डे बस्ते में डाल दिया गया था .आज तक फ़ोर्स के किसी भी जवान के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई .





निर्दोष ग्रामीणों को फ़ोर्स द्वारा जबरन नक्सली बताते हुये लात घुसे डंडा और बेल्ट से बेरहमी से पिटा गया,


निर्दोष ग्रामीणों को फ़ोर्स द्वारा लात,घुसे डंडे,बेल्ट से पीटा गया ...

और जाँच भी उसी थाने  के आरोपी कर रहे हैं 

फ़ोर्स द्वारा मरकानार के ग्रामीणों को मारपीट कर  नक्सली सिद्द करने में तूली 


कांकेर :- निर्दोष ग्रामीणों को फ़ोर्स द्वारा जबरन नक्सली बताते हुये लात घुसे डंडा और बेल्ट से बेरहमी से पिटा गया, इतना में जवानो का मन नहीं भरा तो अगले दिन पुरे गाँव के ग्रामीणों को उठा कर बारी -बारी से कमरे में बंद कर जानवरों की तरह मार-पीट  किया गया यह घटना उत्तर बस्तर के कांकेर जिले में कोयली बेडा के ग्राम मरकानार की है जहा पुलिस द्वारा जबरन ग्रामीणों को नक्सली समर्थक बताते हुये बेहरमी से मार-पीट  किया गया, एक ओर जहा पुलिसिया तंत्र नक्सलियों सैकड़ो की संख्या में आत्मसमर्पण निति के तहत आत्मसमर्पण कराने में मशगुल है वही दूसरी और उत्तर बस्तर में जवानो का आमानवीय चेहरा सामने आ रहा है इस तरह की घटना नक्सलवाद का पनपने में कारगर सिध्द होती है आम आदिवासी ग्रामीण जो अपने जीवउपार्जन सामान्य  ढंग से करते आ रहे है उन्हें बन्दुक बट की नोक पर पुलिस नक्सली बताते हुये जबरन जानवरों की तरह पीटा जा रहा है आप पार्टी के जिला संयोजक देवलाल नरेटी जो मारकानार ग्राम से हो आये है उनके अनुसार गाव वालो को फ़ोर्स द्वारा जानवरों की तरह मारा पिटा गया है कई ग्राम वासी अभी दर्द से कहर रहे है उनके अनुसार ग्रामीणों को दो-दो दिन तक बारी बारी से कोयलीबेडा थाने ले जाकर फ़ोर्स द्वारा बेहरमी से मर पीट किया गया है 
             ज्ञात हो की घटना उत्तर बस्तर के कांकेर जिले में कोयली बेडा के ग्राम मरकानार  में दो दिसंबर बुधवार को कोयली बेडा मेढकी नदी और मरकानार  के बीच हुए  मेढकी नदी को लेके थाना कोयलीबेड़ा से फ़ोर्स लगभग दोपहर तीन बजे ग्राम मरकानार में  खेत में काम करने वाले लोगो आयतु ध्रुव ,रामलाल ध्रुव ,राम चन्द्र दर्रो बजनु राम ध्रुव ,हिरदु निषाद ,धंनु राम उसेंडी ,बैजनाथ ध्रुव ,अर्जुन कड़ियांम  और एक मेहमान श्याम सिंह दुग्गा को घर से बुलाकर बीच जंगल में नौ लोगो का सामूहिक फोटो खिंच के घटना स्थल से होते हुए थाने  ले गए और वहाँ जाके  पुलिस अधिकारियो के सामने सभी नौ लोगो के नाम रजिस्टर  में अंकित किया।
   इसके बाद फ़ोर्स के लोगो ने घटना के बारे में पूछ ताछ किया ,और सभी लोगो को एक कमरे में बंद करके  लात घुसे डंडा और बेल्ट से बेरहमी से पिटाई की गई , इस मारपीट में रामचन्द्र दर्रो बेहोश हो गया। इसके बाद दबा बनाते हुए दुबारा 4 दिसंबर  दिन शुक्रवार को सुबह 9  बजे  पुरे गाव को उपस्थित होने का आदेश देने का बाद रात को 10  बजे छोड़ा गया।
अगले दिन 4  दिसंबर को पूरे गाव के लोग सुबग 9 बजे थाने में उपस्थित हुए ,पुरे  दिन पुरे गाव के लोगो को बेवजह  बिठाया गया और 17 व्यक्तियों से    बरी बारी पूछताछ की गई और उन्हें अलग अलग कमरो में तीन तीन पुलिस वालो ने लात घुसो बेल्ट डंडे से बुरी तरह से मारपीटा  गया , जिससे राजेन्द्र ध्रुव और शेषन लावतरे बेहोश हो गया।
जिन ग्रामीणो के साथ मारपीट की गई उनके नाम है , रामलाल धुर्व ,शेषन लाउत्तरे ,राम लाल दर्रो ,हीरालाल आँचले ,सुबीर कौशल ,आयतु राम ध्रुव ,धनी  राम मांडवी ,महेर सिंह ध्रुव ,राजेन्द्र ध्रुव ,शंकर अचला ,बजणु राम ध्रुव ,अर्जुन कड़ियां ,सग्राम सलाम ,हिरदु राम निषाद ,बेहा राम अचला और अजित ध्रुव है।
     पुरे गाव को बुरी तरह प्रताड़ित करने के बाद अगले दिन शनिवार दिनाक 5  दिसंबर 15  को फिर उपस्थित होने को कह के रात में 10  बजे छोड़ा गया।  बजे तीसरी बार 5  दिसंबर को फिर  पुरे गाव के लोग थाने  में हाजिर हुए ,फिर वही कहानी दोहराई गई इन सब से अलग अलग पूछ ताछ के बार मार पीट  की गई और शाम को 7 बजे यह कह के छोड़ दिया की तुम लोगो में से तीन चार लोगो को समय आने पे नक्सली केस में फसा के जेल भेज दिया जायेगा।
ग्रामीणो ने कलेक्टर और एसपी  से लिखित में शिकायत करते हुए लिखा है की महोदय हम ग्राम वासी खेती मजदूरी ,वनोपज सग्रह करके बड़ी मुश्किल में अपना  जीवन का भरण पोषण करते है ,घने जंगलो में नक्सलियों और पुलिस के बीच किसी तरह अपना जीवन वसर कर रहे हैं। हम कोई घटना के बारे में कुछ नहीं जानते बस हमें पुलिस बार बार प्रताड़ित करती रहती हैं। ऐसी किसी नक्सली घटना से हमारा कोई वास्ता नहीं है और न ही कुछ हमलोगो को कुछ मालूम ही हैं।
ग्रामीणो ने पत्र में लिखा है की ऐसी प्रताड़ना की घटनाये रोज की बात हो गई है। ये पुलिस और नक्सलियों के बीच की लड़ाई है और हम ग्रामवासी इसमें बेगुनाह प्रताड़ित  होते रहते है। आज कल रोज पुलिस हमारे साथ मारपीट करती रहती है शिकायत के पश्चात अभी तक  पुलिस वालो के खिलाफ कोई कार्यवाही हुई और न ग्राम वासियो की प्रताड़ना ही कम हुई है।
बॉक्स
आप पार्टी के जिला संयोजक देवलाल नरेटी का कहना है कि जिस तरह से मरकानार के आम आदिवासी ग्रामीणों साथ घटना घटी है इससे ये साबित होता है की पुलिस और बी एस फ की टीम बस्तर में निवास करने वाले भोले भाले  गांव के लोंगो को मार - पीट करके  नक्सली

साबित करने में तूली  है और  सारी हदें पार कर रही है और भोले भाले लोंगो को वारंटी बता कर अंदर कर रही है जिसे पुलिस प्रशासन और सरकार अपना उपलब्धि बता रही जो गलत है शायद पुलिस प्रशासन की लड़ाई नक्सलियों से नहीं गांवो में निवास करने वाले भोले भाले लोंगो से है जिसे हम कभी होने नहीं देंगे

वही इस मामले में कांकेर कलेक्टर शम्मी आब्दी से जब ग्राम वासियों ने फ़ोर्स की प्रताड़ना की शिकायत की तब
कार्यवाही का  भरोसा दिया था वही आज पर्यत्न तक किसी भी प्रकार की कार्यवाही नही हुई है और ग्रामीणों पर आत्याचार निरंतर जारी है 
  पुलिस द्वारा निर्दोष ग्रामीणों के साथ मारपीट की घटना को लेकर कलेक्टर ने कहा की पहले घटनाओ का तो नही पता लेकिन अभी की घटना की जल्द जाँच कर दोषियों पर कार्यवाही की जायेगी । 
तथा इससे पहले जितने जाँच लंबित है उन सब की फाइल खोल कर 
कार्यवाही की जायेगी ।

'नगर को गांव' बनाने के लिए आदिवासियों का आंदोलन आलोक प्रकाश पुतुल

'नगर को गांव' बनाने के लिए आदिवासियों का आंदोलन

  • 29 दिसंबर 2015
Image copyrightAlok Putul
छत्तीसगढ़ के प्रेमनगर में नगर पंचायत के चुनाव सोमवार को ख़त्म हुए, लेकिन एक नगर पंचायत का किस्सा कुछ अजीब सा है.
सूरजपुर ज़िले का प्रेमनगर इस बात का उदाहरण है कि हुकूमत कैसे एक ग्राम पंचायत को रातों रात नगर पंचायत में तब्दील कर देती है.
प्रेमनगर के लोगों का आरोप है कि ऐसा इसलिए किया गया ताकि उन्हें आदिवासी अधिकारों से वंचित रखा जाए और वो सरकार की योजना में बाधा न पहुँचाएं.
एक सरकारी कंपनी प्रेमनगर में पावर प्लांट लगाना चाहती थी और ग्राम पंचायत इसका विरोध कर रही थी.
आदिवासी विशेष अधिकार क़ानून के तहत ये संभव भी है. लेकिन सरकार ने ग्राम पंचायत का चरित्र ही बदल दिया और उसे नगर पंचायत बना दिया.
नगर पंचायत में पंचायत एक्सटेंशन इन शेड्यूल एरिया यानि 'पेसा' क़ानून लागू नहीं होता है. दिसंबर में पेसा क़ानून को लागू हुए 20 साल पूरे हो गए हैं.
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चुनाव में अध्यक्ष पद की एक उम्मीदवार भद्रसानी सिंह ने कहा, "मैं अगर नगर पंचायत का चुनाव जीती तो सबसे पहले नगर पंचायत को ख़त्म करने का वादा करती हूं."
इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव लिमिटेड यानी इफ़को और छत्तीसगढ़ सरकार ने 4 जून, 2005 को 1,320 मेगावॉट का एक पावर प्लांट लगाने की घोषणा की थी.
विशेष रूप से संरक्षित पंडो आदिवासी इलाके प्रेमनगर को पावर प्लांट स्थापित करने के लिए चुना गया. लेकिन गांव के लोग इसके लिए तैयार नहीं हुए. गांव वालों के पास अपने तर्क थे.
इलाके के सामाजिक कार्यकर्ता मेहदीलाल कहते हैं, "इस प्लांट के लिए लाखों पेड़ काटे जाने की बात सुनकर कौन विरोध नहीं करता? आखिर आदिवासियों का जीवन तो जंगल से ही होता है."
वह कहते हैं, "ग्राम सभा ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया कि यहां पावर प्लांट नहीं लगाया जाए."
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इफ़को प्रबंधन और ज़िला प्रशासन ने कई बार ग्राम सभा में अपने पक्ष में प्रस्ताव पारित करने की कोशिश की. लेकिन ग्राम सभा ने हर बार प्रस्ताव नकार दिया.
मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल की छत्तीसगढ़ इकाई के अध्यक्ष डॉक्टर लाखन सिंह कहते हैं, "एक दर्जन बार ग्राम सभा के इनकार के बाद 2009 में नगर पंचायत की तैयारी शुरू हुई."
वो कहते हैं, "उस समय लोगों को पता चला कि सरकार ने अधिसूचना जारी करते हुए प्रेमनगर को ग्राम पंचायत की जगह नगर पंचायत बना दिया है."
इस अधिसूचना का साफ मतलब यह था कि अब इफ़को के पावर प्लांट के लिए ग्राम सभा जैसी कोई रुकावट नहीं थी क्योंकि प्रेमनगर अब ग्राम पंचायत नहीं, नगर पंचायत बन चुका था.
नगर पंचायत पर पेसा क़ानून लागू ही नहीं होता.
हाईकोर्ट अधिवक्ता सुधा भारद्वाज का दावा है कि संविधान के अनुच्छेद 243 जेडसी के अनुसार अनुसूचित क्षेत्र में नगरीय निकाय तब तक स्थापित नहीं किया जा सकता, जब तक संसद से इसके लिए आदिवासी समुदायों के हितों के संरक्षण की शर्तों को जोड़ते हुए कोई कानून नहीं बनाया जाता.
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Image captionहाई कोर्ट अधिवक्ता सुधा भारद्वाज
वो प्रेमनगर को नगर पंचायत बनाए जाने को पूरी तरह से ग़ैरक़ानूनी मानती हैं.
इधर प्रेमनगर के गांव से नगर में बदलते ही इलाके के लोगों की मुश्किलें शुरू हो गईं.
इलाके में रोज़गार गारंटी योजना के सारे काम बंद कर दिए गए क्योंकि रोज़गार गारंटी योजना केवल गांवों के लिए होती है.
प्रेमनगर में वन अधिकार पत्र पर रोक लगा दी गई. वन अधिकार क़ानून में गांव के लोगों को मिलने वाले सारे व्यक्तिगत और सामुदायिक अधिकार रद्द कर दिए गए.
प्रेमनगर के मनोहर पंडो कहते हैं, "नगर पंचायत बने सात साल हो गए, लेकिन आज भी मेरे वॉर्ड में बिजली नहीं है. हम पंडो आदिवासी आज भी नाले का पानी पी रहे हैं."
पंडो ने बताया, "रोज़ी-रोटी, जल-जंगल-ज़मीन सब छिन गया. पंचायत थी तो सुनवाई हो जाती थी. लेकिन अब कोई नहीं सुनता."
प्रेमनगर के लोगों ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी लेकिन इस साल मार्च में कोर्ट ने पुराने दस्तावेज़ का हवाला दे कर तकनीकी आधार पर याचिका ख़ारिज कर दी.
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इसके बाद से ही प्रेमनगर को ग्राम पंचायत से नगर पंचायत बनाने के ख़िलाफ़ इलाके के लोग अनिश्चितकालीन धरने पर हैं.
इस धरने में शामिल अशोक कुमार कहते हैं, "प्रेमनगर और उसके अधिकार केवल पेसा कानून में ही सुरक्षित थे. हम सरकार को यह कहने का मौका नहीं देना चाहते कि मामला अदालत में है और हम कुछ नहीं कर सकते."
उन्होंने बताया, "हम पेसा कानून, पंचायती राज और प्रेमनगर की पहचान बनाए रखने की लड़ाई लड़ रहे हैं."

सरकार तू हैं कहाँ बता ? ; सन्दर्भ बस्तर - प्रभात सिंह

सरकार तू हैं कहाँ बता ? ;  सन्दर्भ बस्तर 
प्रभात सिंह 



सुरक्षा का अधिकार नहीं है ? जबकि माओवादी उसे कई बार उठाकर ले गए और जान से मारने की धमकी के बाद छोड़ दिए और अंत में वही हुआ जो हमेशा बस्तर में होता आ रहा है निर्दोषों का हमेशा गला घोंटा जाता रहा है |
अब इस दुःखद मामले पर बस्तर के सबसे बड़े पुलिस अधिकारी जुलुस निकालकर अपनी नाकामयाबी छुपाने का प्रयास देश की जनता के सामने करेंगे | भाई आप ही बताओ; आसुजीत पोड़ियाम बस्तर में इकलौता शख्स नहीं है जिसे माओवादियों ने मुखबिरी के नाम पर मौत के घाट उतार दिया हो, पर इसकी कहानी औरों से जुदा है | पेशे से डाकिया कहलाने वाले सुजीत पर माओवादी गोपनीय सैनिक के रूप में मुखबिरी का आरोप लगा रहे हैं सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक फुलपाड़ इलाके से कुछ माह पहले 4 लोगों की गिरफ्तारी और सन्ना सोढ़ी की गिरफ्तारी में इसकी भूमिका का आरोप माओवादियों द्वारा लगाया गया है | सुजीत 2013 से ही माओवादियों को खटक रहा है | इस मामले में भी पत्रकारों ने भरपूर कोशिश की पत्रकार जंगलों की ख़ास छानकर कल शाम ही लौटे थे | किन्तु कोई सुखद समाचार नहीं मिला पर आज खबर आई तो फिर बस्तर की धरती लाल हो गई |
अब सवाल यहीं से उठता है कि यदि सुजीत पोड़ियाम माओवादीयों की मुखबिरी कर रहा था तो पुलिस को हर घटना की जानकारी रही होगी | फिर सुजीत और उसके घर वालों को मरने क्यों छोड़ दिया गया | जबकि एक कथित हमले या माओवादी धमकी बावत चिट्ठी के बाद जनप्रतिनिधि टाइप के ठेकेदारों को भी सुरक्षा बल मुहैया हो जाती है और तो ऐसे कथित जनप्रतिनिधियों को सालों साल सुरक्षा बाकायदा रौब के साथ मिलती रहती है | तब ऐसे गोपनीय सैनिकों को सुरक्षा क्यों नहीं दी गई जो सरकारी तंत्र को मजबूत करने की सबसे बड़ी कड़ी है | जबकि गोपनीय सैनिकों के बिना माओवाद खत्म हो ही नहीं सकता है |
अब इसका दूसरा पहलु यह कि वह गोपनीय सैनिक नहीं रहा हो और पुलिस के लिए मुखबिरी भी नहीं करता रहा हो किन्तु जब माओवादी सुजीत को लगातार डरा रहे थे और सुजीत को माओवादियों द्वारा कथित गोपनीय सैनिक करार देकर जान से मारने की धमकी और चेतावनी मिल रही थी | तब बेचारे डाकिया सुजीत के साथ न्याय क्यों नहीं किया गया | क्या सत्ता लोभियों को ही छत्तीसगढ़ सरकार में केवल सुरक्षा का अधिकार है ? क्या सुजीत जैसे कर्मवीर डाकिये को प लोगों के हाथ में बन्दुक दी है क्या सरकार ने ? नहीं ना ! जिस आम जनता की सुरक्षा का जिम्मा हथियार बंद बस्तर पुलिस को दी गई है | वे चंद माओवादियों को नहीं पकड़ पा रहे हैं जो बस्तर में खून की होली सालों से खेल रहे हैं | इन्हें जुलुस निकालने के बजाय उस वीरगति को प्राप्त सुजीत कुड़ियाम की अर्थी उठने के पहले माओवादियों को सबक सिखाया जाना था | किन्तु ऐसा होगा नहीं क्योंकि सब सुनियोजित साजिस का हिस्सा है |
ये सलवा जुडूम ले कर आये हजारों मारे गए लाखों बेघर हो गए, इनकि मौजूदा स्थिति देखना हो तो चले जाइए बस्तर से सटे पड़ोसी राज्यों में करीब एक लाख लोग तो भद्राचलम की विस्थापित बस्तीयों में ही मिल जायेंगे | बस्तर में सरकारी राजनैतिक सलवाजुडूम के बाद माओवाद तो कम नहीं हुआ, किन्तु माओवाद उससे अधिक विकराल शक्ल अख्तियार कर बस्तर में लौट आया | अब सलवा जुडूम का विकल्प ढूंढने की फिराक लगाईं जा रही है | उसके वैकल्पिक नाम बदल-बदल कर सामने लाये जा रहे हैं |
माओवाद का शिकार आम बस्तरिया होता था, होता है और होता रहेगा | तब तक, जब तक कार्पोरेट्स को बस्तर में हर उस इलाके की जमीन नहीं मिल जाती जहाँ गर्भ में छुपा है बेशकीमती खनिज सम्पदा | जिसके दोहन के लिए जल और साथ में उन्हें मुफ्त में खरबों की वन सम्पदा सौगात में मिल नहीं जाते |
इतना सब सुनने के बाद भी आपको लगता है कि, सरकार है छत्तीसगढ़ में ! यदि है तो वह सरकार है कार्पोरेट्स के लिए काम करने वाली सरकार; जिसके लिए बस्तर में फोर्स की संख्या तो सालों से बढ़ती जा रही है | किन्तु नक्सलवाद का नासूर कम होने के बजाय लगातार बढ़ता जा रहा है |
एक तरफ बस्तर के पुलिस अफसर कहते नहीं थकते की अब तो नक्सलियों का खात्मा हम कर ही दिए हैं | बस्तर में माओवाद खत्म होने के कगार पर है | तो फिर बस्तर में फोर्स की संख्या लगातार क्यों बढ़ रही है | अपराध कम होने से थानों, चौकियों और पुलिस कैम्पों की संख्या कम होनी चाहिए । यदि इन सबकी संख्या बढ़ रही है तो समझ लीजिये अपराध बढ़ रहा है ।
एक बात तो साफ है बस्तर में फोर्स तब तक रहेगी जब तक कार्पोरेट्स को एक-एक इंच जमीन नहीं मिल जाता; ये कार्पोरेट्स पाइप लाईन बिछाने के लिए माओवादियों को पैसे देने तैनात खड़े रहते हैं | तो फिर इनके सामने दूसरा पक्ष उस सरकार का है जिसके उपर तमाम तरह के भ्रष्टाचार के आरोप लगे हों |
Prabhat Singh की खबर साभार