Wednesday, January 6, 2016

दंतेवाड़ा में प्रस्तावित रैली को पुलिस ने गांव में ही रोका , आखिर और क्या बचा है इनके पास जनतांत्रिक अधिकार


दंतेवाड़ा में प्रस्तावित रैली को पुलिस ने गांव में ही रोका , आखिर और क्या बचा है इनके पास जनतांत्रिक अधिकार 

दंतेवाडा में आदिवासियों की आयोजित रैली को पुलिस ने अपने अपने गाँव में ही रोक दिया ,हजारो लोग अपने अपने गाँव में बंधक बन गये ,पुलिस और सरकार ने अखबारो में बताया की ये सब नक्सलियों के दबाब में हो रहा था.
यदि बस्तर के आदिवासी अपनी सुरक्षा की मांग को लेके शांति पूर्वक प्रदर्शन या सभा तक नही कर सकते तो उनके पास क्या रास्ता है .
दंतेवाडा में आज आयोजित रेली में
आदिवासियों की कोई ऐसी मांग नही है जो देश द्रोह या देश विभाजन की बात करती हो ,जिसके कारण पुलिस ने इन्हें गाँव गाँव में रोका और इसे नक्सली समर्थित रेली कहा.
जरा उनका मांग पत्र देख लें.
इनकी मांग है :-
किसानो के कर्ज़ माफ़ करने ,शालाओ और स्कुलो को पूर्वत तरीके से चलाने ,आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओ को नियमित करने , खनिज और वन संपदा की लुट बंद करने और इसके लिए निगरानी समिति बनाने , आम आदिवासियों को नक्सली के नाम से गिरफ्तारी को बंद करने निर्दोष लोगो को रिहा करने ,दंतेवाडा के बालूद में हवाई पट्टी रद्द करने ,लोहांदी गुड़ा और डिलामिली में प्रस्तावित प्लांट का अनुबंध निरस्त करने , बीजापुर में महिलाओ के साथ दुराचार और मार पीट की न्यायिक जाँच , स्कुलो में शोचालय और नल कुप खोदने में राशी ने घपले की जाँच की मांग की गई है
अब क्या ये मांग करना भी नक्सली होना है .बस्तर के आदिवासियों के लिये मानो प्रजातंत्र खत्म ,पुलिस तंत्र लागू
आदिवासियों के नागरिक अधिकारों की मांग को नक्सल प्रेरित रैली की संज्ञा दी जा रही है, तानाशाह हुई सरकार
बस्तर में सैकड़ो आदिवासी अपनी जायज मांगो को लेकर शांति पूर्वक रैली की शक्ल में दंतेवाड़ा कूच कर रहे है लेकिन तानाशाह हुई सरकार आदिवासियों के नागरिक अधिकार आघोषित रूप से बस्तर से छिन लिये गये है शांति पूर्वक ढंग से बस्तर के आदिवासी खनिज सपदा,की लूट बचाने, आदिवासियों को कथित नक्सल समर्थक बता कर जेलों में ठुसने, निर्दोष आदिवासियों की मुठभेड़ के नाम पर बलि चढ़ने, धान का समर्थन मूल्य , आदि जायज मांगो को लेकर शांति पूर्वक रैली दंतेवाड़ा में होने जस रही थी, जिसे बस्तर पुलिस द्वारा यह कह कर रोक दिया गया कि यह ग्रामीण आदिवासी नक्सलियों के दबाव में आ कर रैली कर रहे है क्या अब आदिवासी अपने आधिकारो, मांगो को लेकर शांति पूर्वक रैली भी नही कर सकते ? आखिर यह आदिवासी मांग क्या रहे है ? (गोला बारूद तो नही मांग रहे है न ) आखिर अपना हक ही तो मांग रहे है जिन्हें सरकार पूरा नही कर प् रही है सरकार का यह तानाशाही रवेय्या देखिये आदिवासियों के स्वफ्रुत शांति पूर्वक रैली को नक्सल दबाव की रैली बता कर उनके सारे नागरिक आधिकार छिन लिये गये है बस्तर में अब प्रजातंत्र खत्म हो गया है पुलिस तंत्र चलता है जो आदिवासियों के नागरिक आधिकार को छिन रहे है
खबर है की आदिवासियों की रैली को दंतेवाड़ा से 48 किमी पहले समेली में ही रोक दिया गया है
निर्दोष –भोले-भाले आदिवासियों की स्वफुर्त रैली की शक्ल ले रही भीड़ से सरकार और पुलिस्सिया तंत्र मानो डर सी गई हो बस्तर पुलिस सोचती है कि ऐसे रैली अधिकतर नक्सल प्रेरित होती है ?
जानकारी के अनुसार अरनपुर और आस-पास के इलाके से बड़ी संख्या में बच्चे,बूढ़े ,महिलाये युवा आदिवासी ग्रामीण सैकड़ो की संख्या में रैली की शक्ल में कूच कर रहे है जिन्हें पुलिस द्वारा यह कह कह रोक दिया गया है की यह नक्सलियों के दबाव में रैली करने जा रहे
इन मांगों के साथ पहुंचे हैं ग्रामीण
पर्चों में किसानों का कर्ज माफ करने, आश्रम शालाओं, स्कूलों को पूर्ववत मूल स्थानों पर संचालित करने, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को शासकीय कर्मचारी घोषित करने, खनिज एवं वन संपदा की लूट को रोकने निगरानी समिति बनाने, नक्सलियों के समर्थन के आरोप में आदिवासियों को गिरफ्तार कर जेल भेजना बंद करने, दंतेवाड़ा के बालूद में हवाई पट्टी रद्द करने, लोहांडीगुड़ा और डिलमिली में प्रस्तावित मेगा स्टील प्लांट का एमयू रद्द करने, बीजापुर जिले में जवानों द्वारा नाबालिग सहित अन्य महिलाओं पर अनाचार की न्यायिक जांच करने, सुकमा के स्कूलों में शौचालय और नलकूप खनन की राशि में धांधली करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है।
http://bastarprahri.blogspot.in/2016/01/blog-post.html


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