Friday, November 14, 2014

ऐसे हुई रेखा की मौत...

ऐसे हुई रेखा की मौत...


छत्तीसगढ़ का पीड़ित परिवार
"ऑपरेशन से लौटने के बाद रात में गोली खाते ही रेखा को उल्टी शुरू हो गई. फिर वह कहने लगी मैं नहीं बचूंगी अम्मा, मैं नहीं बचूंगी. मुझे बचा लो अम्मा. मुझे अस्पताल ले चलो अम्मा. मेरे बच्चे को मेरी गोद में दे दो अम्मा. मुझे उससे थोड़ी देर बात कर लेने दो अम्मा. अपने चार महीने के बच्चे को उसने थोड़ी देर अपने कलेजे से चिपकाया और फिर मुझे देकर कहा कि इसे ठीक से संभालना, मैं ठीक होकर लौटूंगी दीदी."
अपनी छोटी बहन के बारे में यह सब बताते हुये अंजनी फफक-फफक कर रोना शुरू कर देती हैं और अपनी बहन के चार महीने के बेटे को निहारने लगती हैं.

सरकारी शिविर में नसबंदी के बाद जान गंवा चुकी महिला के परिवार की दास्तां

छत्तीसगढ़ का पीड़ित परिवार
बिलासपुर शहर से कोई 17 किलोमीटर दूर अमसेना गांव की सड़क से गुजरते हुए जिस घर से रोने की आवाज़ें आ रही हैं, उस घर में सप्ताह भर पहले तक खुशी और चहल-पहल का माहौल था. घर की सभी चार बेटियां अपने ससुराल से घर आई थीं.

तबीयत बिगड़ी

लेकिन शनिवार को 22 साल की रेखा का बिलासपुर के पेंडारी में नसबंदी का ऑपरेशन हुआ और उसके बाद उनकी तबीयत बिगड़ी, उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया और उसके बाद फिर कभी वो इस घर में लौट नहीं सकीं.
छत्तीसगढ़ का पीड़ित परिवार
छत्तीसगढ़ में सरकारी नसबंदी शिविरों में कई महिलाओं की मौत हुई है
इस हादसे में अब तक 15 महिलाओं की मौत हो चुकी है.
रेखा की मौत के बाद घर में शोक का माहौल है. रेखा के दो छोटे-छोटे बच्चे हैं, जिनमें से एक बच्चा महज 4 महीने का है.
उनकी बड़ी बहन अंजनी बताती हैं, "मैंने भी तीन साल पहले नसबंदी का ऑपरेशन करवाया था लेकिन मुझे आज तक कोई परेशानी नहीं हुई. भगवान जाने मेरी बहन के साथ ऐसा कैसे हो गया?"

बहन का डर

गांव के पास ही नसबंदी शिविर की बात सुनकर रेखा मायके आई थी और कहा था कि दो ही बच्चों में नसबंदी करवाउंगी क्योंकि ज्यादा बड़ा परिवार ठीक नहीं है. लेकिन हादसा ऐसा हुआ कि अपने परिवार को संभालने वाली रेखा ही नहीं रहीं.
छत्तीसगढ़ का पीड़ित परिवार
रेखा जिस दिन नसबंदी के ऑपरेशन के लिए गईं, उनके साथ ही उनकी एक और बड़ी बहन नंदिनी भी ऑपरेशन कराने के लिए जाने वाली थीं. लेकिन घर में दादी ने ही कहा कि ऑपरेशन के बाद एक साथ दोनों की देखभाल करनी मुश्किल होगी. इसलिए नंदिनी नाराज भी हो गईं. लेकिन अपनी बहन को खो देने के बाद वह डरी हुई हैं.
रेखा कहती हैं, "मैं तो अभी नसबंदी का ऑपरेशन नहीं करवाउंगी. मेरी बहन के साथ हुए हादसे के बाद डर गई हूं. बहन का तो यह हाल हुआ, कौन जाने मेरा क्या होगा!"
रेखा की मां नहीं हैं और घर की मुखिया दादी ही हैं, जिनके साथ वह नसबंदी शिविर गई थीं.

नब्ज़ थमी

शिविर से लौटने के बाद क्या हुआ?
छत्तीसगढ़ का पीड़ित परिवार
उनकी दादी बताती हैं, "शनिवार की रात को लौटे तो टोस्ट और लाल चाय के साथ दवाई देने के लिए कहा था. रात 10 बजे तक तो सब कुछ ठीक रहा, रात 12 बजे के आस-पास उल्टी शुरू हो गई. अस्पताल ले गए, दवा-पानी शुरू हुआ. फिर उसे एक निजी अस्पताल में ले जाने के लिये एंबुलेंस में डाला गया. डॉक्टर ने उसकी नब्ज टटोली, लेकिन कुछ समझ नहीं आया. मैंने डॉक्टर से पूछा क्या हुआ? फिर मैंने देखा, रेखा की नब्ज़ नहीं चल रही थी. वो खत्म हो गई थी."
अब रेखा के बच्चों को पालने का जिम्मा भी रेखा की दादी पर ही है.

सरकार से उम्मीद

वह कहती हैं, "मेरी बच्ची भी गई और अब ज़िंदगी भी जा रही है. बच्चों की घंटी भी मेरे ऊपर बंध गई है. कौन करेगा इनके लिए कुछ... मैं सरकार से चाहती हूँ कि इन दोनों बच्चों के लालन-पालन की व्यवस्था करे."
नसंबदी पीड़ित
घर की बातचीत अब रेखा पर ही केंद्रित है. पड़ोस की महिलाएं दुख बंटा रही हैं...और सबकी चिंता में सबसे अधिक शामिल हैं रेखा के दोनों बच्चे, जिन्हें पता भी नहीं है कि उनकी मां अब इस दुनिया में नहीं रही.
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