कैसा होगा इनका भारत! -शीबा असलम फ़हमी
कभी कभी मेरे मन में ख्याल आता है की कैसा होगा इनका भारत?
क्या उसमे ताज महल, मकबरे, मीनारें, इमाम बाड़े होंगे?
क्या उसमे मुग़ल गार्डन, निशात बाग़, शालीमार बाग़ होंगे?
क्या नर्गिस, गुल हिना, इत्र, गुलाब, तब भी महका करेंगे?
क्या तब भी शेरवानी, अचकन, गरारे-शरारे लहराया करेंगे?
क्या तब भी झूमर-झुमके गुलूबंद-शौक़बंद के लश्कारे दमकेंगे?
क्या तब भी बिरयानी-पुलाव, मुतनजन-क़ोरमे, कबाब-शीरमाल, वाज़वान से दस्तरख्वान आरास्ता होंगे?
क्या तब भी कोहेनूर, मुग़लेआज़म, लैला-मजनू, मियां मक़बूल, पाकीज़ा परदे का मुंह देखेंगी?
क्या तब भी शहज़ादा सलीम, अनारकली, साहेब जान, उमराओ जान की सरकशी के क़िस्से आम होंगे?
क्या तब भी बड़े ग़ुलाम अली, बेगम अख़्तर, मो रफ़ी, ए.आर.रहमान की सदाएं दिलों में उतरा करेंगी?
क्या तब भी मीर-अमीर-दबीर, ग़ालिब-जालिब, लुधयानवी-जलन्धरी के नग़मे गूंजा करेंगे?
क्या तब भी मुरादाबादी नक़्क़ाशी, फ़िरोज़ाबादी क़ुमक़ुमे, कश्मीरी ग़लीचे, नस्तालीक ख़ुश-ख़ती से अशोका-हॉल रौशन होगा?
क्या तब जी टी रोड, उसकी कोस-मीनारें, उसके मुसाफ़िर खाने, वली दकनी के मज़ार की तरह ज़मींदोज़ कर दिए जाएंगे?
ख़ाली-ख़ाली रीता-रीता, सूना-सूना फीका-फीका, आधा-अधूरा ग़रीब-गुरबा, क्या ऐसा होगा इनका भारत?
क्या उसमे ताज महल, मकबरे, मीनारें, इमाम बाड़े होंगे?
क्या उसमे मुग़ल गार्डन, निशात बाग़, शालीमार बाग़ होंगे?
क्या नर्गिस, गुल हिना, इत्र, गुलाब, तब भी महका करेंगे?
क्या तब भी शेरवानी, अचकन, गरारे-शरारे लहराया करेंगे?
क्या तब भी झूमर-झुमके गुलूबंद-शौक़बंद के लश्कारे दमकेंगे?
क्या तब भी बिरयानी-पुलाव, मुतनजन-क़ोरमे, कबाब-शीरमाल, वाज़वान से दस्तरख्वान आरास्ता होंगे?
क्या तब भी कोहेनूर, मुग़लेआज़म, लैला-मजनू, मियां मक़बूल, पाकीज़ा परदे का मुंह देखेंगी?
क्या तब भी शहज़ादा सलीम, अनारकली, साहेब जान, उमराओ जान की सरकशी के क़िस्से आम होंगे?
क्या तब भी बड़े ग़ुलाम अली, बेगम अख़्तर, मो रफ़ी, ए.आर.रहमान की सदाएं दिलों में उतरा करेंगी?
क्या तब भी मीर-अमीर-दबीर, ग़ालिब-जालिब, लुधयानवी-जलन्धरी के नग़मे गूंजा करेंगे?
क्या तब भी मुरादाबादी नक़्क़ाशी, फ़िरोज़ाबादी क़ुमक़ुमे, कश्मीरी ग़लीचे, नस्तालीक ख़ुश-ख़ती से अशोका-हॉल रौशन होगा?
क्या तब जी टी रोड, उसकी कोस-मीनारें, उसके मुसाफ़िर खाने, वली दकनी के मज़ार की तरह ज़मींदोज़ कर दिए जाएंगे?
ख़ाली-ख़ाली रीता-रीता, सूना-सूना फीका-फीका, आधा-अधूरा ग़रीब-गुरबा, क्या ऐसा होगा इनका भारत?
---शीबा असलम फ़हमी
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